बाल उपन्यास "मनीष और नर भक्षी" लेखिका - आभा यादव प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली. (लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित) -- पि...
बाल उपन्यास
"मनीष और नर भक्षी"
लेखिका - आभा यादव
प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली.
(लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित)
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पिछले अंक -
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पिछले अंक से जारी ...
भाग 4
मनीष को ऐसे मौके की ही तलाश थी. वह चेहरे पर गम्भीरता लाते हुए बोला, "मैंने तो पहले ही कहा था कि देवता नाराज हो जायेगा. "
"बच्चे, हमसे गलती हो गई. "सरदार के स्वर में पश्चाताप था.
"देवता को मना दो. हम तुम्हारा एहसान मानेंगे. "मनका ने आँसू पोंछते हुए कहा.
"तुम सबकी तकलीफें दूर करते हो. देवता को भी मना दो. "तान्या ने अनुनय की.
मनीष ने इन लोगों की बात का कोई जवाब नहीं दिया. उसकी निगाहें कलाई में बंधी घड़ी पर टिकी थीं. घड़ी की सुई ग्यारह बजकर दस मिनट बता रही थी. उसे ग्यारह बजकर पन्द्रह मिनट का इंतजार था. वह जानता था कि ग्यारह बजकर पन्द्रह मिनट पर चन्द्र ग्रहण समाप्त हो जायेगा. तब वह जंगलियों को विश्वास दिलाने में सफल हो जायेगा कि उसने देवता को मना लिया है और देवता ने चांद छोड़ दिया है.
बाहर से अभी भी आवाजें आ रही थीं.
"बच्चे, हम सब पर दया करो. देवता हम सबको मार डालेगा. "सरदार बुरी तरह गिड़गिड़ा रहा था.
"अच्छा मैं देवता से बात करता हूँ. जैसा वह कहेगा मैं कर दूंगा. "कहकर मनीष ने अपनी दोनों आँखें मूंद लीं.
सरदार, तांन्या और मनका मनीष के आँखें खोलने का इंतजार करने लगे. उनकी निगाहें मनीष के चेहरे पर टिकी थीं.
कुछ पल बाद ही मनीष ने आँखें खोल दीं. फिर वह अपने शब्दों पर जोर देते हुए बोला, "देवता चाहता है कि तुम सब मेरे कहने में चलो. तभी वह प्रसन्न होगा. "
"हम सब तुम्हारी बात मानेंगे. "सरदार, मनका, और तान्या ने एक साथ कहा.
मनीष की निगाहें पल भर के लिए घड़ी से टकराई. ग्यारह बजकर पन्द्रह मिनट हो चुके थे. उसने बारी-बारी तीनों के चेहरे पर निगाह डाली . फिर सरदार के चेहरे पर निगाह गड़ाते हुए बोला, "जाओ, तुम्हारा देवता प्रसन्न हो गया. उसने चांद को छोड़ दिया.
"सच!"कहते हुए तीनों झोंपड़ी के बाहर भागे.
बाहर से खुशी में डूबी आवाजें आने लगीं.
"देवता प्रसन्न है. "
"उसने चांद छोड़ दिया. "
"अब हम लोग नहीं मरेंगे. "
"सरदार हमारा मालिक है. "
"यह बच्चा हमारा देवता है. हम सब इसका कहना मानेंगे. "आवाजों के बीच सरदार की रोबीली आवाज गूंजीं.
"हां, हम सब बच्चे का कहना मानेंगे. "मिला जुला स्वर गूंजा.
मनीष से अंदर न बैठा गया. वह झोंपड़ी से बाहर निकल आया.
"हम सब तुम्हारा कहना मानेंगे. "सब एक स्वर में बोले.
"अच्छा, अब तुम सब आराम करो. मुझे देवता से कुछ काम की बातें करनी हैं. "मनीष ने सरदार और तान्या से कहा.
"अच्छा. "कहते हुए तान्या झोंपड़ी का दरवाजा बाहर से बंद करने लगा.
"देवता का कहना है कि इस झोंपड़ी का दरवाजा बाहर से बंद नहीं होगा. यह मेरी मरजी से खुलेगा मेरी मरजी से बंद होगा. "मनीष ने आँखें मूंदते हुए कहा.
"ठीक है. जैसी देवता की मरजी. "कहते हुए तान्या ने साथ जोड़ दिए.
अब सरदार, तान्या, मनका सीढियां उतर रहे थे. सभी प्रसन्न थे.
सरदार के नीचे उतरते ही सारे जंगली झोंपडी से दूर हटने लगे. मनीष ने संतोष की सांस ली और दरवाजा भीतर से बंद कर लिया.
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5
मनीष की आँख तो बाहर हल्का शोर हो रहा था. उसने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली. आठ बज चुके थे. उसने अंगड़ाई ली. फिर उठकर दरवाजा खोल दिया. वह दरवाजे से बाहर निकला तो सरदार, मनका और तान्या दरवाजे पर खड़े थे. मनका के हाथ में थाल था जिसमें पीले चावल रखे हुए थे. तान्या के हाथ में पानी भरा लोटा था.
"तुम लोग कितनी देर से खड़े हो?"मनीष ने पूछा.
"बहुत देर से. "सरदार ने जवाब दिया.
"फिर आवाज क्यों नहीं दी?"मनीष ने कहा.
"देवता नाराज हो जाता. "सरदार ने कहा.
"हां, देवता ने कहा है कि आज में तुम्हारी पूरी बस्ती घूम कर पवित्र कर दूं. "
"हम लोगों ने तुम्हें मुक्त कर दिया है. "तान्या ने कहा.
"लेकिन मेरे साथ तुम तीनों रहोगे. "वह नहीं चाहता था कि अकेले घूम कर किसी परेशानी में पड़े.
"चढ़ावा खा लो. तभी चलेगें. "मनका ने कहा.
"अंदर रख दो. "कहकर मनीष ने तान्या के हाथ से पानी का लोटा ले लिया.
मुँह धोकर मनीष अंदर गया. मनका ने थाल नीचे जमीन पर रख दिया. पास ही सरदार, तान्या और मनका बैठ गए.
"तुम लोग भी खा लो. "मनीष ने थाल के पास बैठते हुए कहा.
"देवता नाराज नहीं होगा?"सरदार ने आश्चर्य से कहा.
मनीष ने पत्थर पर रखी पत्तल उठाई. पत्तल को उसने थाल के पास रखा और आँखें मूंद लीं. उसके होंठ हिलने लगे .
सरदार, तान्या और मनका की निगाहें मनीष पर टिकी थीं.
कुछ पल बाद मनीष ने आँखें खोलीं. थाल में अपने खाने भर को चावल छोड़कर उसने शेष चावल पत्तल पर रख दिया.
"लो, यह चढ़ावा सबमें बांट देना. "मनीष ने पत्तल सरदार की ओर बढ़ा दी. सरदार ने पत्तल हाथ में ले ली.
"अब तुम लोग जाओ. थोड़ी देर बाद मुझे बस्ती घुमाना. "मनीष ने थाल अपनी ओर खींचते हुए कहा.
सरदार, तान्या और मनका झोंपड़ी से बाहर निकल गए.
चावल खा कर मनीष ने पानी पिया. थाल एक ओर खिसका कर वह उठ बैठा. उसने पैंट की जेब से रूमाल निकाल कर मुँह साफ किया. इसके बाद वह झोंपड़ी से बाहर आ गया.
झोंपड़ी के कई बच्चे मिट्टी म़े खेल रहे थे. सीढियां उतर कर मनीष बच्चों की ओर बढ़ गया. बच्चे खेल में मस्त थे. एक बच्चे की निगाह मनीष पर पड़ गई. उसने मिट्टी में खेल रहे बच्चों से कुछ कहा. इसके साथ ही सारे बच्चे झोंपड़ी से दूर भाग गए. काफी दूर भागने के बाद सारे बच्चे रुक गए. अब, वे आश्चर्य से मनीष की ओर देख रहे थे. एक बार के लिए मनीष की इच्छा हुई कि वह इन बच्चों से बात करे. लेकिन कुछ सोचकर आगे बढ़ गया.
पूरी बस्ती में जगह -जगह कूड़े के ढ़ेर लगे थे. चारों ओर अजीब दुर्गंध फैली हुई थी. इतनी गंदगी में स्वस्थ्य रह पाना सम्भव नहीं था. इसी के साथ ही मनीष के आगे बीमार जंगलियों के चेहरे घूम गए. वह बस्ती की गंदगी दूर करने का उपाय सोचने लगा. मनीष अपने विचारों में खोया हुआ था कि सरदार की आवाज सुनकर चौंक गया.
"बच्चे हमें देर हो गई. देवता नाराज हो जाएगा. "मनीष को चुप देखकर सरदार ने कातर स्वर में कहा. वह मनीष को बस्ती में देख कर परेशान हो गया था. उसने देर नहीं की . वह तान्या और मनका के साथ तुरंत मनीष के पास आ गया.
"देवता को मैं मना लूँगा. तुम चिंता न करो. "मनीष ने दिलासा दी.
"सच!"सरदार का चेहरा खुशी से चमक गया.
"अब तुम लोग मेरे साथ चलो. मुझे पूरी बस्ती देखनी है. "मनीष ने कहा.
"चलो. "कहकर सरदार आगे बढ़ गया.
मनीष सरदार के पीछे चल रहा था. तान्या और मनका इनके पीछे थे.
बस्ती में कूड़े के ढेर के अलावा एक विशेष बात और थी. प्रत्येक झोंपड़ी के आगे एक छोटा गड्ढा था. इन गड्ढों में गंदा पानी भरा हुआ था. इस पानी में ढ़ेरों मच्छर थे. मनीष के आगे जंगलियों की बीमारी का कारण स्पष्ट हो गया. गंदगी के कारण बस्ती में बीमारी फैल रही थी. अनपढ़ जंगली इसे देवता का कोप समझ रहे थे. मनीष ने जंगलियों के आगे से अंधविश्वास का पर्दा हटाने का निश्चय किया.
"पूरी बस्ती इतनी ही है. "बस्ती के अंतिम छोर पर पहुंच कर सरदार ने कहा .
मनीष ने पलभर के लिए आँखें मूंदी. फिर बोला, "अब बस्ती के बाहर नदी पर चलो. "
सरदार चुपचाप नदी की ओर जाने वाले रास्ते पर मुड़ गया. तान्या और मनका भी उनके साथ चल रहे थे.
बस्ती के बाहर एक बड़ा मैदान था. मनीष को यह मैदान उपयुक्त लगा . मैदान के बीच पहुंच कर वह रुक गया. उसने एक बार चारों ओर निगाह डाली फिर बोला, "जल्दी नदी पर चलो. "
"हां. "कहते हुए सरदार ने अपनी चाल तेज कर दी.
मनीष की निगाहें प्रत्येक स्थान का निरीक्षण कर रही थी. उसकी निरीक्षण करती निगाहें नदी के जल पर ठहर गई. नदी का पानी गंदा था. उसमें सड़े हुए घास पत्ते पड़े थे.
"इस नदी के अलावा और कोई नदी है?"मनीष ने नदी किनारे रूककर पूछा.
"बस्ती के पूर्व की ओर एक नदी और है. "सरदार ने बताया.
"उस नदी पर चलो. "मनीष ने आज्ञा दी.
सरदार आज्ञा कारी बच्चे की तरह पूर्व दिशा में मुड़ गया. तान्या, मनका और मनीष उसके पीछे चल दिए.
काफी दूर चलने के बाद नदी दिखाई दी. इसका पानी साफ था. मनीष को आश्चर्य हुआ कि साफ पानी के होते हुए भी यह गंदे पानी की नदी में नहाते हैं. मनीष से न रहा गया . उसने पूछ ही लिया, "तुम लोग इस नदी में क्यों नहीं नहाते हो?"
"देवता के पीठ पीछे कैसे नहायेंगे?"सरदार ने आश्चर्य से कहा.
मनीष को अपनी गलती का एहसास हुआ. उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था. उसे एक उपाय सूझा. उसने झट अपनी आंखें मूंद लीं. कुछ क्षण बाद उसने अपनी आँखें खोलीं. फिर वह गम्भीरता से बोला, "देवता वह नदी छोड़ रहा है. वह चाहता है कि तुम इस नदी का पानी उपयोग में लाओ. "
"आगे से ऐसा ही होगा . "सरदार ने मनीष की बात पर ध्यान देते हुए कहा.
"देवता ने एक काम और सौंपा है. "मनीष ने अपनी बात बनते देखकर कहा.
"क्या?"सरदार और तान्या एक साथ बोले. उनके चेहरे पर उत्सुकता थी.
मनीष ने सरदार तथा तांन्या के चेहरे पर नजर डाली. इसके बाद उसने अपनी नजरें मनका के चेहरे पर टिका दीं. उसकी भी उत्सुक निगाहें उसके चेहरे पर टिकी थी.
"बस्ती के बाहर बड़ा मैदान है उसमें सात गड्ढे खोदे जाए. "मनीष ने सरदार के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा.
"कितने गहरे?"तान्या ने पूछा.
"सरदार जितने गहरे. "
"इसके बाद क्या करना होगा?"मनका ने पूछा.
"सारी बस्ती के कूड़े को इन गड्ढों में डालकर मिट्टी से दबा दो. कूड़ा दिखना नहीं चाहिए. देवता को कूड़ा पसंद नहीं आ रहा है. "मनीष ने बताया.
"ठीक है. "सरदार ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई.
"इन गड्ढों की बची हुई मिट्टी को बस्ती में ले जाकर बस्ती के सारे गड्ढे पाट दो. देवता का उनमें पैर फँसता है. बस्ती के किसी भी गड्ढे में पानी नहीं रहना चाहिए. "मनीष ने अगला निर्देश दिया.
"और कोई आदेश?"सरदार ने पूछा.
"इतना काम सूरज छिपने तक हो जाना चाहिए. "मनीष ने कहा.
"अवश्य हो जायेगा. "सरदार ने कहा .
"अब बस्ती में लौट चलें. काम अभी शुरू करना है. "कहते हुए मनीष बस्ती की ओर वापस हो लिया. अब उसकी निगाहें नीम के पेड़ को तलाश कर रही थीं.
मनीष की खोजी निगाहें बस्ती के बाहर एक स्थान पर टिक गई . वहां नीम के पूरे ग्यारह पेड़ थे. मनीष ने संतोष की सांस ली. उसके कदम तेजी से आगे बढ़ गए.
जैसे ही मनीष ने बस्ती में प्रवेश किया, सारे जंगलियों ने उन्हें घेर लिया. सभी की उत्सुक निगाहें मनीष पर टिकी थीं.
"अब सात लोगों को मेरे साथ कर दो. बाकी सभी देवता के बताए काम पर लग जाओ. "मनीष ने कहा.
"बच्चे, तुम इनमें से सात आदमी ले लो. "सरदार ने सारे जंगलियों की ओर इशारा करते हुए कहा.
मनीष सभी पर सरसरी सी निगाह डाली. फिर उनमें से छः लोगों को अपने पास आने का इशारा किया.
"ये तो छः ही हुए. "मनका ने कहा.
"सातवां तांन्या चाहिए. "
तान्या बिना कुछ कहे मनीष के पास आ खड़ा हुआ.
"तान्या अपने देवता के पास चलो. "कहकर मनीष आगे बढ़ गया.
मनीष के साथ तान्या के पीछे छः जंगली भी चल दिए. जिन्हें कुछ देर पहले मनीष ने छांटा था.
काफी देर मनीष खामोश चलता रहा. उसका मन ऊबने लगा था. उसने बात करने के उद्देश्य से हवा में प्रश्न उछाला, "तुम लोगों के नाम क्या हैं?"
"सब अपने नाम बता दो. "साथ चल रहे जंगलियों को तान्या ने आदेश दिया.
"मेरा नाम पांडया है. "खिचड़ी बाल वाले जंगली ने कहा.
"मेरा नाम सूचा है. "नाटे कद के जंगली ने खांसते हुए कहा.
"तुम्हारा नाम क्या है?"अपने ठीक बांयी ओर चल रहे छोटी आँखों वाले जंगली से मनीष ने पूछा.
"भेंगा, "छोटी आँखों वाले ने उत्तर दिया.
"मेरा नाम नीके है. "भेंगा के बराबर चल रहे तीखे नयन नक्श वाले जंगली ने कहा.
"तुम लोगों ने अपने नाम नहीं बताये. "थोड़ा रूक कर शेष बचे जंगलियों के पास आते हुए मनीष ने कहा.
"कंजू, "मनीष के बायीं ओर वाले जंगली ने कहा.
"मेरा नाम शेखू है. "दायीं तरफ चल रहे जंगली ने मनीष की ओर देखते हुए कहा.
"देवता का स्थान आ गया. "तान्या ने कहा तो मनीष चौंक गया. बातों में उसे पता ही न चला कि कब पड़ाव आ गया.
"अब क्या करें?"पांडया ने हिचकते हुए पूछा.
"मेरे पीछे आओ. "कहते हुए मनीष प्याज के ढ़ेर की ओर बढ़ गया.
तान्या सहित सभी मनीष के पीछे चल दिए.
प्याज के ढेर के पास पहुंच कर मनीष रुक गया. उसने एक बार तान्या की ओर देखा. फिर प्याज की ओर इशारा करते हुए बोला, "तान्या!तुम पांडया, सेखू और कंजू के साथ इसका रस निकाल कर यहां रखी हांड़ियों को धोकर उसमें भर लो. "
"अच्छा. "तान्या ने कहा.
"यह काम सूरज छिपने तक हो जाना चाहिए. "मनीष ने निर्देश दिया.
"अवश्य हो जायेगा. "कहते हुए तान्या ने कुछ प्याज पत्थर पर रख कर कुचल दिए.
"ऐसे नहीं पहले इनके छिलके साफ करो. "तान्या को छिलके सहित प्याज कुचलते देखकर मनीष ने कहा.
"ठीक है. "कहकर तान्या प्याज के छिलके हटाने लगा. पांडया, शेखू और कंजू भी तान्या के साथ प्याज का रस निकालने लगे.
मनीष कुछ देर खड़ा तान्या का काम देखता रहा. जब वह यहां के काम से संतुष्ट हो गया तो वापस मुड़ते हुए बोला, "भेंगा, सूचा, नीके तुम लोग मेरे साथ चलो. "
भेंगा, सूचा, नीके चुपचाप मनीष के पीछे चल दिए. मनीष चुप था . लेकिन उसके कदम तेजी से आगे बढ़ रहे थे. मनीष को चुप देखकर भेंगा, सूचा और नीके की भी बोलने की हिम्मत न पड़ी. वे चुपचाप मनीष के साथ चलते रहे.
नीम के पेड़ों के पास पहुंच कर मनीष रुक गया. उसने एक उड़ती सी निगाह तीनों पर डाली. फिर आज्ञा के स्वर में बोला, "सूचा और नीके तुम सामने के पेड़ पर चढ़ जाओ. "
सूचा और नीके चुपचाप नी के पेडों पर चढ़ गये.
"इन पेड़ों से पत्ते तोड़कर नीचे डाल दो. "मनीष ने सूचा और नीके से कहा.
"मेरा काम?"भेंगा ने पूछा.
"सूचा और नीके जो पत्ते नीचे डाल रहे हैं. उन्हें इकट्ठा करते जाओ. मनीष ने कहा.
भेंगा, सूचा और नीके द्वारा फेंके हुए पत्ते इकट्ठा करने लगा.
मनीष थोड़ी देर तीनों का कार्य देखता रहा. फिर थोड़ा आगे बढ़ गया.
नीम के पेड़ों के आगे आम के कई पेड़ थे. मनीष निगाहें ऊपर उठीं तो उसके मुँह में पानी आ गया. साथ ही उसे आश्चर्य भी हुआ. इतनी बढिया चीज को भी यह लोग उपयोग नहीं करते. सारे पेड़ पके आमों से लदे थे. मनीष आम खाने की तरकीब सोचने लगा. तभी उसकी निगाह आम के एक तिरछे झुके हुए पेड़ पर पड़ी. उसने देर नहीं की तुरंत आम के पेड़ पर चढ़ गया. उसने पके हुए आम तोड़े और खाने लगा. बेस्वाद चावल खाकर उसका मुँह खराब हो गया था. उसने भरपेट आम खाये और कुछ तोड़कर जेब में भर लिए.
मनीष नीम के पेडों के पास पहुंचा तो पत्तों का ढ़ेर लग चुका था. सूचा और नीके अभी भी पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था. ।भेंगा पत्ते इकट्ठा कर रहा था.
"सूचा और नीके पेड़ से उतर आओ. "नीम के पत्तों का बड़ा ढ़ेर देखकर मनीष ने सूचा और नीके को आवाज दी.
सूचा और नीके नीचे उतर आये.
"इन पत्तों को ले जाकर मेरी झोंपड़ी के आगे रख दो. "मनीष ने कहा.
"बहुत अच्छा. "कहकर सूचा और नीके पत्तों की ढ़ेर की ओर बढ़ गए.
"तुम तीनों पत्ते लेकर बस्ती में चलो. मैं तान्या के पास जा रहा हूँ. "कहकर मनीष तान्या के पास चल दिया.
खेतों को पार करके मनीष ने घड़ी पर निगाह डाली. छः बज चुके थे. उसने अपनी चाल तेज कर दी.
मनीष तान्या के पास पहुंचा तो तान्या अपना काम निपटा चुका था. मिट्टी के चार बड़े घड़े भरे रखे थे.
"चार घड़े भर गये. "मनीष को देखते ही तान्या ने कहा.
"इनको देवता के पास रख दो. "कहकर मनीष टीले की ओर बढ़ गया.
टीले के पास पहुंच कर मनीष ने टीले के चारों ओर चार चक्कर लगाए. प्रत्येक चक्कर में उसने एक आम निकाल कर देवता के आगे रख दिया. चार फेरे पूरे करने के बाद वह रूक गया. उसने देवता के आगे रखे चारों आम उठा लिए. अब वह वापस तान्या के पास आया. उसने एक एक आम प्रत्येक घड़े में डाल दिया. आम घड़ो में डालते हुए उसके होंठ हिल रहे थे. तान्या, पांड़या, कंजू और सेखू ध्यान से मनीष के प्रत्येक कार्य को देख रहे थे. उनके चेहरे पर श्रद्धा के भाव थे.
इन सारे कामों से निपट कर मनीष तान्या से बोला, "अब इन घड़ों को मेरी झोंपड़ी में रख दो. "
तान्या, पांडया, कंजू और सेखू ने एक एक घड़ा उठा लिया. अब ये लोग बस्ती की ओर जा रहे थे. मनीष सबसे आगे चल रहा था.
मनीष बस्ती में पहुंचा तो देखता ही रह गया. पूरी बस्ती बदल गई थी. कूड़े के ढ़ेर हट चुके थे. गड्ढे बंद हो चुके थे. गंदगी का कहीं नाम न था.
"जितना काम बताया था सब हो गया . "मनीष के बस्ती में प्रवेश करते ही सरदार ने कहा.
"मेरे साथ चलो. "कहते हुए मनीष अपनी झोंपड़ी की ओर बढ़ गया.
सरदार भी चुपचाप मनीष के पीछे चल दिया.
मनीष अपनी झोंपड़ी के पास पहुंचा. सूचा और नीके पत्तों के ढ़ेर के पास खड़े थे.
इन पत्तों में से थोड़े -थोड़े पत्ते प्रत्येक झोंपड़ी के अंदर रख दो. सूरज छिपते ही इन पत्तों में आग लगा दें. "नीम के पत्तों की ओर इशारा करते हुए मनीष ने कहा.
"हो जायेगा. "सरदार ने कहा. उसकी उत्सुक निगाहें तांन्या, पंड़या, कंजू और सेखू के सिर पर रखे घड़ो पर टिकी थी.
"इतना काम करने के बाद देवता के प्रसाद के यह घड़े ले जाना और बस्ती में सभी को बांट देना. "
मनीष ने कहा.
"ऐसा ही करेंगे. "सरदार ने कहा.
"इक्कीस दिन तक यह कार्य रोज करना है. "झोंपड़ी की सीढियां चढ़ते हुए मनीष ने कहा.
तान्या, कंजू, सेखू, पाड़या भी मनीष के पीछे उसकी झोंपड़ी में पहुंच गए.
"घड़े एक तरफ ठीक से रख दो. "चारों ने घड़े संभाल कर एक ओर रख दिए.
"तान्या सूरज छिपने के बाद सरदार के साथ आकर देवता का प्रसाद ले जाना. साथ में एक खाली घड़ा भी लेते आना. "कहकर मनीष ने झोंपड़ी का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
मनीष ने अपने कपड़े उतारे ओर लेट गया. सारा दिन घूमते घूमते वह थक गया था. लेटते ही उसे नींद आ गई.
अभी मनीष न जाने कितनी देर और सोता, यदि झोंपड़ी के दरवाजे पर आहट न हुई होती. उसने उठकर दरवाजा खोला. सामने तान्या, मनका तथा सरदार खड़े थे. मनका हाथ में चावल से भरा थाल था. सरदार के हाथ में पानी का लोटा था. तान्या के हाथ में खाली घड़ा था.
"अंदर आ जाओ. "दरवाजा खोलकर एक और हटते हुए मनीष ने कहा.
तीनों अंदर आ गए. मनका ने चावल का थाल नीचे रख दिया. सरदार ने पानी का लोटा थाल के पास रख दिया.
"तान्या घड़ा यहां लाओ. "प्याज के रस वाले घड़े की ओर बढ़ते हुए मनीष ने कहा.
तान्या ने खाली घड़ा मनीष के आगे रख दिया. मनीष ने खाली घड़े को प्याज के रस से भर दिया. उसके बाद थाल में से थोड़े से चावल निकाल कर थाल मनका को थमा दिया.
सरदार, तान्या और मनका ध्यान से मनीष को देख रहे थे.
"घड़े का रस और यह चावल पूरी बस्ती के लोगों को बांट देना. घड़े का रस खाना खाने के बाद पीना है. "मनीष ने आज्ञा दी.
तान्या, सरदार और मनका चावल और प्याज के रस से भरा घड़ा लेकर चले गये. मनीष ने दरवाजा बंद कर लिया. उसने थोड़े से चावल खाकर पानी पिया. उसकी आँखों में नींद भरी हुई थी. लेटते ही उसकी आँखें बंद हो गईं.
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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