बाल उपन्यास "मनीष और नर भक्षी" लेखिका - आभा यादव प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली. (लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित) -- पू...
बाल उपन्यास
"मनीष और नर भक्षी"
लेखिका - आभा यादव
प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली.
(लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित)
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पूर्व के भाग -
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पिछले अंक से जारी ...
भाग 2
मनीष ने मुड़ते ही दरवाजे पर खड़ी एक आकृति को देखा उसकी आँखें भय से खुली रह गई. भंयकर शक्लसूरत की एक बुढ़िया दरवाजे पर खड़ी उसे घूर रही थी. उसकी आंखें अंगारे की तरह दहक रही थी. बड़े बड़े दांतों ने उसे और ज्यादा भंयकर बना दिया था.
मनीष अधिक देर बुढ़िया के चेहरे को न देख सका. उसने अपनी दृष्टि बुढ़िया के चेहरे से हटा ली. उसकी दृष्टि बुढ़िया के चेहरे से हटी तो उसके हाथों से टकरा गई. हाथों की कठोर अंगुलियों में बड़े बड़े नाखून थे. बुढिया लपलपाती जीभ अपने खून से सने होंठों पर फिरा रही थी. घबराहट के मारे मनीष का गला सूखने लगा.
सामने खड़ी मृत्यु से बचने का मनीष को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. लेकिन वह भीरूता दिखा कर बेमौत नहीं मरना चाहता था. उसने तेजी से सोचना शुरू किया. अचानक उसे एक युक्ति सूझ गई. उसने अपने शरीर को एकदम नीचे झुका लिया. वह बुढ़िया की बगल से निकल कर तेजी से भागने लगा. बुढ़िया भी असावधान न थी. वह फुर्ती से पलटी और मनीष का पीछा करने लगी.
मनीष को अपने पीछे भागते कदमों की आहट साफ सुनाई दे रही थी. ऊबड़ खाबड़ जमीन पर उसे भागने में बहुत परेशानी हो रही थी. फिर भी वह किसी भी हालत में बुढ़िया के हाथ नहीं पड़ना चाहता था. उसे मालूम था कि बुढ़िया के हाथ पड़ते ही उसका क्या अंजाम होगा.
भागते भागते मनीष की सांस फूलने लगी उसके पैर जवाब दे रहे थे. लेकिन रूकना मौत को निमंत्रण देना था. किसी तरह मनीष घिसटता हुआ अपने आप को बुढ़िया से बचाये हुए था.
अचानक दक्षिण की ओर से अजीब सा शोर उठा. शोर काफी भंयकर लग रहा था. इस शोर में न जाने क्या जादू था कि बुढ़िया जिस दिशा से आई थी, चीखती हुई उसी दिशा में भाग गई. उसने मुडकर पीछे देखा. चांद की तेज रोशनी में बुढ़िया विपरीत दिशा में भागती नजर आ रही थी.
मनीष ने चैन की सांस ली. वह वहीं पेड़ के नीचे बैठ गया. मौत से बचकर वह काफी प्रसन्न था. अब वह अपनी उखड़ी हुई सांसें संयत करने लगा. लगातार भागते रहने के कारण उसकी सांस तेजी से चलने लगी थी. उसने अपना सिर पेड़ से टिका कर आँखें बंद कर लीं. वह कुछ देर आराम करना चाहता था.
मनीष को आँखें बंद किए कुछ ही समय गुजरा था. तभी उसे अपने चारों ओर से अजीब किंतु तेज शोर की आवाजें आने लगीं. हड़बड़ा कर उसने अपनी आँखें खोल दीं. अब जो दृश्य उसके सामने था, वह दिल दहलाने वाला था. उसके चारों तरफ बुढ़िया से भी ज्यादा भंयकर लोग थे. उनकी आँखें अंगारे की तरह दहक रही थीं. बडे बडे दांत और हाथ पैरों के लंबे लंबे नाखून थे. किसी के हाथ में हड्डियां थीं. किसी के हाथ में मांस का टुकड़ा. कुछ के हाथ में अधखाया जानवर था. कुछ अपने खून से सने होठों को जीभ से चाट रहे थे. भय के मारे मनीष का बुरा हाल था. अभी वह बुढ़िया से बचने की खुशी भी नहीं मना पाया था कि यह नई मुसीबत आ गई.
उसे इन लोगों से बच पाना मुश्किल लग रहा था. फिर भी उसने डरते डरते चारों ओर दृष्टि दौड़ाई. वह चारों ओर से इन्हीं लोगों से घिरा हुआ था. मनीष ने सुन रखा था कि जंगलों में नरभक्षी मनुष्य भी पाये जाते हैं. अब उसे विश्वास हो चला था कि वह नरभक्षी जंगलियों से घिर चुका है. नरभक्षी मनुष्य को खा जाते हैं, यह सोचते हुए मनीष सिहर उठा. उसे विश्वास होने लगा था कि अब मौत निश्चित है. इस मौत से बचा नहीं जा सकता.
वे नरभक्षी विचित्र सा शोर मचाते हुए मनीष के चारों ओर उछलने कूदने लगे. उनके बीच खड़ा मनीष थरथर कांप रहा था. भय से उसके आँसू निकलने लगे.
नाचते नाचते कुछ लोगों ने मनीष को हाथों में उठा लिया. उनके सख्त और खुरदरे हाथ मनीष के शरीर को छीले दे रहे थे. मनीष को उठाकर वे नरभक्षी एक ओर चल दिए. वे लोग मनीष के चारों ओर उछलते कूदते शोर मचाते चल रहे थे. मनीष ने कई बार चाहा कि ऊपर उछलकर पेड़ पकड़ ले. लेकिन उन नरभक्षियों की पकड़ इतनी सख्त थी कि छूटना मुश्किल था.
बहुत दूर जाने के बाद मनीष को आग जलती दिखाई दी. सभी नरभक्षी उसी ओर चल दिए. आग के पास पहुंच कर वे रूक गये. अब वे सभी आग के चारों ओर घेरा बनाकर नाच रहे थे. मनीष अभी भी दो नरभक्षियों के हाथों में था. कुछ लोग आग में लकड़ियां डालकर आग तेज कर रहे थे. मनीष को इनका इरादा समझते देर न लगी. वह समझ गया था कि वह कुछ पल का मेहमान है. कुछ ही देर में उसे इस जलती आग में झोक दिया जायेगा.
मनीष आसानी से डरने वाला नहीं था. किंतु इस भंयकर पीड़ादायक मृत्यु की कल्पना से ही उसके पसीने छूट गए. उसने भय से आँखें मूंद लीं. उसे विश्वास हो गया था कि इस मौत से उसे भगवान भी नहीं बचा सकता. तभी न जाने क्या हुआ?नरभक्षियों ने उसे जमीन पर फेंक दिया. उन में भगदड़ मच गई.
मनीष ने चौंककर आँखें खोल दी. नरभक्षी चीखते हुए उससे दूर भाग रहे थे. वह आश्चर्य से इस नई परिस्थिति को समझने का प्रयत्न करने लगा.
अभी वह स्थिति को पूरी तरह समझ भी नहीं पाया था कि फिर घिर गया. लेकिन उसे इस बात का संतोष था कि वह अपने जैसे लोगों के बीच घिरा हुआ था. यह लोग देखने में साधारण मनुष्य जैसे थे, लेकिन इनकी वेषभूषा जंगलियों जैसी थी. इनके शरीर पर वस्त्र नाममात्र को ही थे.
यह लोग हाथ पैरों में सफेद रंग के मोटे-मोटे कड़े पहने थे. उनके गले में हरे रंग की मोतियों की माला थी और कानों में लकडिय़ों के कुंड़ल. इन लोगों के हाथों में भाले और धनुष बाण थे. कुछ के हाथों में चलती मशालें थीं. इन लोगों में पता नहीं क्या खास बात थी कि सभी नरभक्षी भाग गए.
मनीष आगे आने वाली मुसीबत का इंतजार करने लगा. उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि वह मौत के मुँह से निकल गया है. वह खुश था. उसे संतोष था कि वह मनुष्यों के बीच है. दर्द नाक मौत उसके आगे से टल गई थी.
इन जंगली आदमियों में एक आदमी की वेशभूषा अलग थी. वह काफी लम्बा-चौड़ा था. उसने सबसे बड़ा धनुष बाण लिया हुआ था. उसके गले में सफेद मोतियों की माला थी. यह इन लोगों का सरदार मालूम पड़ रहा था. उसने जंगलियों को कुछ इशारा किया. दो जंगली आगे बढे. उन्होंने मनीष को कंधे पर उठा लिया. मनीष समझ न सका यह लोग उसे कहां ले जायेंगे?एक बार उसकी इच्छा हुई कि पूछ ले, लेकिन कुछ सोचकर चुप रह गया.
जंगली लोग मनीष को उठाए पूर्व दिशा की ओर बढ़ गये. सफेद माला वाला आदमी सबसे आगे चल रहा था. सभी खुश थे. उनकी बेफिक्र चाल से मनीष ने अनुमान लगा लिया कि जंगल में सभी इनसे डरते हैं.
काफी देर चलते रहने के बाद दूर टिमटिमाती रोशनी दिखाई देने लगी. मनीष ने वहां कोई बस्ती होने का अनुमान लगा लिया. जंगली लोग इन्हीं रोशनी की ओर जा रहे थे. ऊबड़ खाबड़ मार्ग पर रात में भी यह लोग बड़े आराम से चल रहे थे. जैसे यह उनका रोज का आने जाने का रास्ता हो .
दूर चमकती छोटी छोटी रोशनियां स्पष्ट होने लगी थीं. बस्ती अब दूर नहीं रह गई थी. झोपड़ियां साफ दिखाई देने लगी थीं. बस्ती के पास पहुंच कर मनीष ने देखा कि बस्ती के बाहर ही जंगली स्त्रियों का एक झुंड खड़ा है. इनके हाथों में भी जलती मशालें और धनुष बाण थे. एक स्त्री के हाथ में बड़ा सा थाल था. जिसमें चार बत्तियों वाला बड़ा सा दीपक जल रहा था. मनीष इस नई आफत कै समझने का प्रयत्न करने लगा.
बस्ती में प्रवेश करते ही दीपक वाली स्त्री सरदार के पास आयी. मनीष इस स्त्री को ध्यान से देखने लगा. इस स्त्री ने भी सफेद मोतियों की माला पहनी हुई थी. यह सब स्त्रियों की सरदार और सरदार की पत्नी लग रही थी. इस स्त्री ने थाल में रखी किसी सफेद चीज को उठाकर सरदार का तिलक किया. इसके बाद सरदार ने थाल में रखे दीपक को उठा लिया.
दीपक उठाकर सरदार बस्ती के मध्य भाग की ओर चल दिया. सरदार की बगल में सफेद माला वाली स्त्री चल रही थी. अन्य सभी लोग इनके पीछे-पीछे चल रहे थे. मनीष बस्ती का निरीक्षण करने लगा. इस बस्ती में सौ के लगभग झोपड़ियां थी. सभी झोपड़ियां जमीन से काफी ऊंचाई पर बनी थीं. उनमें केवल एक दरवाजा था. दरवाजे से जमीन तक पहुंचने के लिए लकड़ी की सीढियां बनी थीं. सभी झोपड़ियों के दरवाजे पर एक मशाल लगी थी जो जल रही थी.
बस्ती के मध्य एक झोंपड़ी के आगे जाकर सरदार रूक गया. यह छोटी सी झोंपड़ी काफी ऊंचाई पर थी. सरदार के रूकते ही सभी लोग झोंपड़ी के आगे इकट्ठा हो गए. सरदार ने ऊपर पहुंच कर झोंपड़ी का दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही सफेद माला वाली स्त्री झोंपड़ी के दरवाजे पर पहुंच गई. उसने थाल में से सफेद वस्तु लेकर झोंपड़ी के दरवाजे पर रख दी. इसके साथ ही सरदार ने दीपक झोंपड़ी के दरवाजे पर रख दिया. सरदार के दीपक रखते ही, दोनों जंगली मनीष को उठाये हुए झोंपड़ी में प्रवेश कर गए.
झोंपड़ी में हल्का प्रकाश था. जो बाहर रखे दीपक से अंदर आ रहा था. दोनों जंगलियों ने मनीष को किसी कोमल वस्तु पर लिटा दिया. इसके बाद दोनों जंगली तुरंत बाहर निकल गए. दोनों जंगलियों के बाहर जाते ही झोंपड़ी का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया. मनीष को झोंपड़ी में बंद करने के बाद सरदार तथा सफेद माला वाली स्त्री पास ही बनीं झोंपड़ी में चले गए. सरदार के जाते ही सभी स्त्री-पुरूष अपनी अपनी झोंपड़ी की ओर बढ गए.
थोड़ी देर में चलने -फिरने की आहट आनी बंद हो गई. मनीष ने चैन की सांस ली. वैसे अभी वह अपने आप को सुरक्षित नहीं समझ पा रहा था. उसे इन लोगों के इरादे का अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा था. जब मनीष ने उन्हें देखा था सभी जंगली चुप थे. वे मशीन की भांति काम कर रहे थे. मनीष को किसी की जरा सी भी आवाज नहीं सुनायी दी थी. कभी कभी तो मनीष को यह लगने लगा था कि वह सब गूंगे हैं, लेकिन मनीष ने इस बारे में अधिक नहीं सोचा. थकान से उसका शरीर टूट रहा था. उसने आँखें मूंद लीं. लेकिन उसे भूख के कारण नींद नहीं आ रही थी.
मनीष ने सोचा शायद झोंपड़ी में कोई खाने की वस्तु हो. लेकिन झोंपड़ी में घुप अंधेरा था. कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. खाने की वस्तु ढूंढना काफी मुश्किल था. अचानक उसे जेब में पड़ी पेंसिल टार्च की याद आयी. उसने जेब में हाथ डाला तो टार्च के साथ अमेरिकन माडल का रिवाल्वर भी मिल गया. उसे दूसरी जेब में रखे सामान की भी याद है आई. उसकी दूसरी जेब में छोटा सा ट्रांजिस्टर था. लेकिन उसने दूसरी जेब का सामान बाहर नहीं निकाला. उसे आगे आने वाली मुसीबत का कोई पता नहीं था. पता नहीं उसे यहां कितनी देर रखा जाए.
झोंपड़ी में खाने की वस्तु ढूंढने के लिए उसने टार्च जलानी चाही. लेकिन तभी झोंपड़ी के बाहर किसी के कदमों की आहट सुनाई दी. मनीष ने जल्दी से टार्च जेब में रख ली अब वह आँखें मूंदे लेटा था.
झोंपड़ी का दरवाजा तो सफेद मोतियों की माला वाली स्त्री ने अंदर प्रवेश किया. उसके हाथ में एक बड़ी सी थाली थी. थाली में से भाप उठ रही थी. दूसरे हाथ म़ें चार बत्तियों वाला बड़ा सा दीपक था. दीपक जल रहा था. झोंपड़ी के अंदर आकर स्त्री ने दीपक एक पत्थर पर रख दिया. इसके बाद वह मनीष की ओर बढ़ी. मनीष अधखुली आँखों से यह सब देखता रहा. मनीष के पास आकर स्त्री ने थाली को जमीन पर रख दिया . इसके बाद वह झोंपड़ी से बाहर चली गई. झोंपड़ी का दरवाजा पुनः बाहर से बंद हो गया.
मनीष ने आँखें पूरी तरह खोल दीं. दीपक की रोशनी में झोंपड़ी की प्रत्येक वस्तु साफ दिखाई दे रही थी. झोंपड़ी पूरी तरह खाली थी. यहां सामान नाम की कोई चीज न थी. अब उसने थाली की ओर देखा. थाली किसी ऊंची चीज पर रखी थी. उसने थाली उठाई तो उसके नीचे पानी से भरा लोटा था. मनीष ने थाली में रखी वस्तु को ध्यान से देखने लगा. थाली में पीले रंग के चावल थे जो शायद अभी पकाएं गए थे. चावल में से भाप उठ रही थी.
मनीष निर्णय नहीं कर पा रहा था कि इन चावलों को खाये या नहीं?लेकिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था. सामने रखे चावल देखकर उसकी भूख और जोर मारने लगी थी. उसने भूखे मरने से तो खाकर मरना अच्छा समझा. उसने थाली अपनी ओर खींचीं और थोड़े से चावल अपने मुँह में रख लिए. चावल मीठे थे. स्वाद भी बुरा न था. उसने जल्दी से काफी चावल साफ कर दिए. अब पेट भर गया था. उसने लोटे से पानी पिया. पानी पीकर वह लेट गया.
एक बार के लिए मनीष के मन में आया कि इस झोंपड़ी से भागने का प्रयत्न करे. लेकिन जंगल में मिले नरभक्षियों का ध्यान आते ही उसकी हिम्मत जवाब दे गई. वैसे भी उसे इन लोगों के इरादे बुरे नजर नहीं आ रहे थे. उसने अभी यहां से निकल भागने का विचार त्याग दिया.
इस समय उसे अपने माता-पिता की बहुत याद आ रही थी . पता नहीं, उसे ध पाकर कितने परेशान होंगे. मां ने तो खाना भी नहीं खाया होगा?उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा. आखिर क्या आवश्यकता थी तितली के पीछे भागने की. यदि पिताजी के साथ रहा होता तो यह मुसीबतें न उठानी पड़ती. शायद अब कभी उनसे न मिल पाऊं. सोचते हुए मनीष की आँखों में आँसू आ गए. उसने हथेली से आँखें साफ की, लेकिन आँखें पुनः भर आयीं. उसने अपना चेहरा दोनों हथेलियों में छुपा लिया और जोर से सिसक पड़ा.
रोते -रोते मनीष की आँख लग गई. एक बार के लिए वह सब कुछ भूल गया.
*
3
"तैयारी पूरी हो चुकी है. अब अपनी स्थिति संभाल ली जाए. "
अजीत सिंह ने राबर्ट और शमीम की ओर आते हुए कहा.
"मनीष मेरे साथ रहेगा. "राबर्ट ने अपनी रायफल संभालते हुए कहा.
"क्या वह. तुम्हारे साथ रहना पसंद करेगा?"शमीम ने मुस्कुराते हुए कहा.
"बहुत अधिक . मैं उसका प्यारा चाचा हूँ न. "
"यह तो मनीष से पूछो. "विजय ने हँसते हुए कहा.
"बिल्कुल, बुलाओ मनीष को. "राबर्ट ने अपने चिकने चेहरे पर हाथ फिराया.
"मनीष!"शमीम ने आवाज दी.
लेकिन उत्तर में मनीष की आवाज नहीं आई.
शमीम ने दोबारा आवाज दी. लेकिन कोई लाभ न हुआ.
"वह कहां गया?शमीम ने चारों ओर निगाह दौडाते हुए कहा.
"यही कहीं होगा. "कहते हुए राबर्ट मनीष को देखने आगे बढ़ गये.
आसपास मनीष को न देखकर राबर्ट ने मनीष को एक तेज आवाज मारी"मनीष"
लेकिन उत्तर में सन्नाटा छाया रहा.
"आखिर वह गया कहां?"विजय ने राबर्ट के पास आते हुए कहा.
"परेशान करने के लिए कहीं छुपा बैठा होगा. "राबर्ट ने चारों ओर देखते हुए कहा.
"मनीष, अब सामने आ जाओ. शिकार की पूरी तैयारी हो चुकी है. तुम्हारे पिताजी बुला रहे हैं. "विजय ने काफी तेज आवाज में कहा.
उत्तर में अभी भी सन्नाटा था.
"मनीष कहां?"अजीत सिंह ने राबर्ट और विजय को आवाजें लगाते सुना तो उनके पास आ गये.
"कई आवाजें दीं. लेकिन कोई जवाब नहीं दे रहा. "शमीम ने चारों ओर खोजती सी निगाह डालते हुए कहा.
"मनीष, "अजीत सिंह ने बहुत तेज आवाज लगाई. लेकिन उनकी आवाज भी गूंज कर रह गई.
"तभी तो उसे साथ नहीं ला रहा था. "अजीत सिंह झल्लाकर बोले.
राबर्ट, विजय और शमीम के चेहरे पर खिचीं चिंता की रेखाएं और गहरी हो गईं. उन्हें विश्वास हो गया था कि मनीष कहीं दूर निकल गया है. वरना अजीत सिंह की आवाज पर तुरंत आ जाता.
"आए नहीं छोटे साहब, ?"सबको परेशान देखकर नेतराम भी अजीत सिंह के पास आ गया.
"पता नहीं कहां गुम होकर बैठ गया!"अजीत सिंह के स्वर में परेशानी और झल्लाहट दोनों थे.
"अजीत, शिकार को छोड़कर पहले मनीष को ढूंढना चाहिए. "राबर्ट ने कहा.
"हां, जंगल में वह किसी परेशानी में भी पड़ सकता है. "
"हम लोग अलग-अलग दिशाओं में जाकर मनीष को ढूंढते हैं. "शमीम ने कहा.
"हां. "अजीत सिंह ने धीरे से कहा. क्रोध और चिंता से उनका मानसिक तनाव बढ़ने लगा था.
"नेतराम, तुम सामान समेट कर जीप में रखो . पहले मनीष को ढूंढना है. "राबर्ट ने नेतराम को हिदायत दी.
"साहब, बिटवा को ढूंढना जरूरी है "कहता हुआ नेतराम सामान समेटने लगा.
सभी अपनी रायफल सहित अलग-अलग दिशाओं में मनीष को ढूंढने निकल पड़े. चिंतित मन से अजीत सिंह भी एक ओर चल दिए. उन्हें मनीष की बहुत चिंता लग रही थी. साथ ही उस पर क्रोध भी आ रहा था.
अपनी अपनी दिशा में चलते हुए राबर्ट, विजय, शमीम और अजीत सिंह मनीष को आवाजें लगाते जाते. हर बार उत्तर में सन्नाटा छाया रहता. उनकी आवाज पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. मनीष को खोजते हुए वे काफी आगे निकल गए थे.
ज्यों-ज्यों समय गुजरता जा रहा था, सबकी परेशानी बढ़ती जा रही थी. कभी वह चीखकर मनीष को आवाज लगाते. कभी उनकी आवाज भर्रा जाती.
नेतराम ने सारा सामान जीप में रख लिया था. अब, वह भी मनीष को ढूंढ रहा था.
मनीष का कहीं पता नहीं था. सभी को एक ही चिंता सता रही थी. रात होने तक मनीष न मिला तब क्या होगा?
मीलों दूर तक जंगल का चप्पा-चप्पा छान मारा गया था. लेकिन मनीष का कहीं पता न था.
अंधेरा घिरने लगा था. सभी के चेहरे के रंग उड़े हुए थे. अंधेरा और गहराने लगा तो वापस चल दिए. वापस लौटते समय सभी को एक आशा थी कि मनीष कहीं रास्ता भटक कर वापस आ गया होगा. एक -एक कर सभी जीप के पास पहुंचे. लेकिन सभी अकेले थे. मनीष किसी के साथ नहीं था.
सभी को खाली हाथ लौटते देखकर अजीत सिंह के सब्र का बांध टूट गया. वह सिसक पड़े"अब क्या होगा?"
"अजीत"धीरज रखो. "राबर्ट ने भर्राए गले से कहा.
"मनीष, अब कहां मिलेगा?"अजीत सिंह राबर्ट के कंधे पर सिर रखकर रोने लगे.
शमीम और विजय भी अजीत सिंह को ढ़ाढस बंधाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन, स्वयं उनकी आँखें गीली हो रही थी.
नेतराम भी जीप के पास खड़ा अपनी गीली आँखें पोंछ रहा था. उसे मनीष के खोने का बहुत दुख था. उसने मनीष को गोद खिलाया था.
सभी किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे. किसी को नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाये?रात बढ़ती जा रही थी.
"साहब, यहां रात म़े इस तरह खड़े रहना खतरे से खाली नहीं है. " नेतराम ने उदास मन से कहा.
अजीत सिंह ने बुझी -बुझी आँखों से नेतराम की ओर देखा. फिर जीप का सहारा लेकर खड़े हो गए.
"अब, यहां इस तरह खड़े रहने से कोई लाभ नहीं है. "शमीम ने धीरे से कहा.
"फिर क्या करूँ?"अजीत सिंह की आवाज़ उदासी में डूबी हुई थी.
"घर चलो. "कहते हुए शब्द राबर्ट के गले में फंस गए.
"मनीष के बिना. "अजीत सिंह ने गहरी नजरों से राबर्ट को देखा.
"जहां तक संभव था. देख चुके हैं. "विजय ने कहा.
"लेकिन, घर जाकर रीता को क्या जवाब दूंगा. "कहते हुए अजीत सिंह फिर सिसक पड़े.
अजीत सिंह की बात सुनकर सभी चुप हो गए. उनकी आँखों के आगे मनीष के लिए रोती हुई रीता जी का चेहरा घूम गया. मनीष उनके घर का इकलौता चिराग है. फिर भी परिस्थिति को देखते हुए विजय ने अजीत सिंह को समझाने का प्रयत्न किया.
"घर चलो. पुलिस में रिपोर्ट करनी है. कल फिर आकर ढूढ़ेंगे"
"मनीष न जाने किस मुसीबत में होगा. "
"हिम्मत से काम लो. सब ठीक हो जायेगा. "विजय ने फिर कहा.
"तुम घर चलो. मनीष रास्ता भटक गया है. उसे अपना बचाव करना आता है. आखिर जूड़ो कराटे का अपने स्कूल का चैम्पियन है. वह जहां भी होगा सुरक्षित होगा. "शमीम ने दिलासा दी.
अजीत सिंह को याद आया-पिछली दीपावली को बदमाश मनीष को उठा ले गए थे. मनीष ने काफी बहादुरी दिखाई थी वह बदमाशों को चकमा देकर निकल आया था
"तुम घर चलो. मनीष तुम्हें शीघ्र मिल जायेगा. "अजीत सिंह को जीप में बिठाते राबर्ट ने कहा तो अजीत सिंह अनमने मन से जीप में बैठ गये. दुख और परेशानी के कारण वह ठीक से सोच भी नहीं पा रहे थे.
अजीत सिंह के जीप में बैठते ही सभी जीप म़े बैठ गए. जीप राबर्ट चला रहे थे.
जीप चली तो अजीत सिंह ने अपना सिर राबर्ट के कंधे पर रख दिया. उनकी आँखें बरस रही थी. अजीत सिंह की हालत देखकर सभी की आँखें नम हो गई.
* रीता जी बैचेनी से बाहर लान में टहल रही थीं. आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. अजीत सिंह ने पहले कभी इतनी देर नहीं लगाई थी. वे शिकार खेलकर रात होने से पहले वापस आ जाते थे. लेकिन आज रात के ग्यारह बज चुके थे. अजीत सिंह का कहीं पता नहीं था. रीता जी बार बार गेट की ओर देखतीं. नौ बजे तक उन्हें विशेष चिंता नहीं हुई थी. सोचा आते ही होंगे. रास्ते में समय लग गया होगा. लेकिन धीरे धीरे ग्यारह बज गये. बढ़ते समय के साथ रीता जी की परेशानी बढ़ती जा रही थी.
अक्समात रीता जी को जीप के आने की आवाज सुनाई दी. उन्होंने कानों पर थोड़ा और जोर डाला. अब उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. उन्होंने एक गहरी सांस ली. और तेजी से गेट की ओर चल दीं.
जीप की आवाज नजदीक आने लगी थी. जब तक रीता जी गेट पर पहुंची, जीप गेट पर रूक चुकी थी. फाटक के पास बैठे गगन ने उठकर फाटक खोल दिया था. जीप फाटक के अंदर आ गई.
उत्सुकता से रीता जी जीप की ओर बढ़ गई . जीप रुक चुकी थी. सबसे पहले जीप से राबर्ट निकले. वह रीता की नजरों से बचने का प्रयत्न कर रहे थे. रीता को आश्चर्य हुआ. राबर्ट हर बार की तरह चहक नहीं बोले.
शमीम ने सहारा देकर अजीत सिंह को जीप से बाहर निकाला. विजय और नेतराम भी बाहर आ गए थे. डंबरलाल जीप से सामान निकालने लगा . सब खामोश थे . कोई भी रीता से आँख नहीं मिला रहा था. रीता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.
वह परेशान होकर बोलीं-"इनकी तबीयत खराब हो गई हैं क्या?"
"ठीक हैं. "शमीम ने कहा.
रीता जी ने गहरी नजरों से अजीत सिंह की ओर देखा. वह अपने आप को संभालने की कोशिश कर रहे थे. अजीत सिंह की ओर से ध्यान हटाकर रीता जीप की ओर बढ़ गई.
"मनीष सो गया क्या?"रीता जी ने जीप में झांकते हुए कहा.
सब को सांप सूघ गया . अब क्या होगा?रीता जी को क्या उत्तर दें.
"मनीष कहां है?"जीप खाली देखकर रीता जी घबरा गई.
सभी चुप रहे किसी को कोई उत्तर देते न बना.
"बताइए न, मनीष कहां है?"सबको चुप देखकर रीता जी ने अजीत सिंह को बाहों से पकड़कर झकझोर दिया.
"रीता, मनीष अब नहीं है. "कहते हुए अजीत सिंह फूट फूट कर रो पड़े.
"नहीं. "रीता एक चीख के साथ बेहोश हो गई.
अगर राबर्ट ने संभाल न लिया होता तो जमीन पर गिर जाती.
अजीत सिंह ने रीता को गोद में उठाया और भीतर चल दिए.
रीता पंलग पर बेहोश लेटी थी. पास ही डाक्टर मुकर्जी बैठे हुए थे. शमीम, राबर्ट, विजय और अजीत सिंह सभी मौजूद थे. लेकिन सभी खामोश.
"इंजेक्शन लगा दिया है. प्रायः तक ठीक हो जायेगी. घबराने की कोई बात नहीं है. "उठते हुए डाक्टर मुकर्जी ने कहा.
विजय ने जेब से रूपये निकाल कर डाक्टर की फीस और दवा के पैसे दे दिये. नेतराम ने डाक्टर का बैग उठा लिया. विजय डाक्टर को कमरे के दरवाजे तक छोड़ने गया.
"अजीत, तुम भी आराम करो. "बत्ती बुझा कर नाईट बल्ब जलाते हुए राबर्ट नें. कहा.
"मैं ठीक हूँ. "रीता की ओर देखते हुए अजीत सिंह बोले. उनकी आवाज बुझी हुई थी.
"तुम्हें आराम की जरूरत है. थोड़ी देर लेट जाओ हम लोग बैठे हैं. "विजय ने कहा.
अजीत सिंह उठे और रीता के पास पड़े बैड़ पर लेट गये. कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया. हालाँकि नींद किसी को नहीं आ रही थी.
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(क्रमशः अगले भागों में जारी...)
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