बाल उपन्यास "मनीष और नर भक्षी" लेखिका - आभा यादव प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली. (लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित) -- पि...
बाल उपन्यास
"मनीष और नर भक्षी"
लेखिका - आभा यादव
प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली.
(लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित)
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पिछले अंक -
भाग 1 / भाग 2 / भाग 3 / भाग 4 / भाग 5 /
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पिछले अंक से जारी ...
अंतिम भाग -
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मनीष की बात सुनकर तान्या सोच में पड़ गया. वह भी यही चाहता था कि बिना परेशानी में पड़े काम बन जाये. काफी देर विचारों में खोये रहने के बाद उसे आशा की एक किरण दिखाई दी. वह गम्भीरता से बोला, "तुम एक बार फिर जादू दिखा दो. जिससे सरदार प्रभाव में आ जाए. "
"जादू!"मनीष का दिमाग तेजी से चक्कर काटने लगा.
"ऐसा जादू नहीं हो सकता कि देवता स्वयं बोलने लगे. "तान्या ने कुछ सोचते हुए कहा.
"काम बन गया. "खुशी से तान्या की पीठ ठोकते हुए मनीष ने कहा. एकबार के लिए वह भूल गया कि तान्या उससे बहुत बड़ा है.
"कैसे?"तान्या ने उत्सुकता से पूछा.
"अब तुम किसी बात की चिंता न करो. अंधेरा होते ही तुम बस्ती से बाहर मिलो. मैं गन्ने के खेत में मिलूंगा. "मनीष ने समझाया.
"ठीक है, अंधेरा होते ही मैं गन्ने के खेत पर पहुंच जाऊँगा. "कहकर तान्या झोंपड़ी से बाहर निकल गया.
गन्ने के खेत के पास सरसराहट हुई. मनीष संभल गया तभी सरसराहट के पास चिड़ियों के चहचहाने की आवाज आयी. मनीष गन्ने के खेत से बाहर निकल आया. खेत से सटा हुआ एक साया खड़ा था.
खेत से निकलकर मनीष बस्ती से बाहर की ओर चलने लगा. साया उसके साथ था.
काफी दूर चलने के बाद मनीष एक स्थान पर रूक गया. यहां पत्थरों का एक ढ़ेर पड़ा था. मनीष ने कुछ पत्थर साये को थमाये कुछ स्वयं उठा लिए. इसके बाद दोनों देवता की ओर चल दिए.
देवता के टीले के पास पहुंच कर मनीष के हाथ तेजी से चलने लगे. देखते ही देखते टीला बीच से खोखला हो गया. इस खोखले भाग में मनीष ने साथ लाए हुए पत्थर भर दिए. कुछ देर में टीला पहले जैसा हो गया.
इस काम से निपटकर मनीष ने जेब से छोटी टार्च और पाकेट टेपरिकार्डर निकाला जिसे वह शिकार पर आते समय जानवरों की आवाज टेप करने के लिए साथ लाया था.
"देखो, यह डिब्बा में तुम्हें दे दूंगा. जब मुझे देवता के पास ले जाया जाये और लोग देवता को नहलायें तभी तुम इस नीचे वाले बटन को दबा देना. "मनीष ने टार्च की रोशनी में टेपरिकार्डर की कार्यविधि समझाते हुए कहा.
"ठीक है "ठीक से समझते हुए साए ने कहा.
मनीष ने टार्च बुझाकर जेब में रख ली. टेपरिकॉर्डर अब साए के पास था. साया और मनीष बस्ती की ओर वापस चल दिए.
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मनीष के आगे मौत घूम गई. उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. कभी तान्या की गद्दारी पर उसका मन नफरत से भर जाता. कभी सामने खड़ी मौत देखकर सिहर जाता.
रात तान्या से मिलकर तान्या ने मौत से बचने का रास्ता ढूंढ लिया था. किंतु कल तक जिस तान्या ने उसे मौत से बचने के रास्ते सुझाये थे वही आज उसकी मौत बनकर सामने खड़ा था. मनीष ने एक बार अपने चारों ओर खड़े जंगलियों पर नजर डाली. सातों जगंलियों के हाथ में तीर थे. सभी जंगलियों के तीर मनीष की गर्दन की ओर निशाना साधे हुए थे. तान्या मनीष के ठीक सामने था. मनीष की चारों ओर घूमती निगाहें तान्या पर आकर रूक गई. तान्या की नजरें नीचे झुक गई.
"देवता के स्नान के लिए चलो. "सरदार ने पंक्ति में खड़े सातों जंगलियों को आज्ञा दी. इनके सिर पर पानी से भरे घड़े थे.
मनीष की सांस थम सी गई. सब कुछ वैसा ही हो रहा था, जैसा बलि देते समय होता है. उसने तान्या के साथ मिलकर बचने की योजना बनाई थी, किन्तु तान्या स्वयं मौत बना सामने खड़ा था. कभी उसे तान्या पर क्रोध आता कभी अपनी किस्मत पर रोना. लेकिन, अभी तक उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि उसकी जान बचाने वाला तान्या अपनी बात से मुकर क्यों गया?क्यों मौत बनकर सामने खड़ा है? ढ़ेरों सवाल उसके दिमाग में घूम रहे थे. लेकिन वह इस समय तान्या से कुछ कह भी नहीं सकता था. उसके होंठ चिपक कर रह गए थे.
"मेरे तीर छोड़ते ही सब अपना कार्य शुरू कर देंगे. "सरदार ने अपना तीर कमान संभालते हुए कहा.
मनका एक थाल लिए हुए मनीष की ओर बढ़ी. थाल में एक चार मुँह वाला दीपक रखा था. दीपक की चारों बत्तियां जल रही थीं. मनका ने थाल में से लाल रंग का पदार्थ लेकर मनीष का तिलक कर दिया. इसके साथ ही मनीष ने अपने आप को मरने के लिए तैयार कर लिया. एक बार उसे फिर विश्वास हो चला था कि अब मरने से उसे ईश्वर भी नहीं बचा सकता. मौत निश्चित थी.
"देवता को स्नान कराओ. "मनीष का तिलक होते ही सरदार ने घड़े वाले जंगलियों को आज्ञा दी.
सरदार की आज्ञा सुनते ही मनीष की आँखें भय से बंद हो गई. उसे मालूम था, देवता के स्नान करते ही सातों तीर उसकी गर्दन में समा जायेंगे. वह आँखें भींचे तीर गर्दन में लगने का इंतजार करने लगा. किन्तु तीरों की चुभन के स्थान पर उसे अपने टेप किए शब्द सुनाई देने लगे. साथ ही टीला फटने की आवाज सुनाई दी. आश्चर्य से मनीष की आँखें खुल गई .
सातों जंगलियों के तीर नीचे झुके हुए थे. देवता वाले टीले में कल दबाये गये चूने के पत्थर अभी तक फूट रहे थे. सरदार मनीष के पैरों पर लोट रहा था. उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं. सभी जंगली घबराये हुए थे. टेपरिकॉर्डर से शब्द अभी भी हवा में गूंज रहे थे, "मुझे बच्चे का चढ़ावा नहीं चाहिए. बच्चा मेरा स्वरूप है. यदि तुम बच्चे का चढ़ावा दोगे तो फट जाऊँगा. "
मनीष कभी टेपरिकॉर्डर से निकलते शब्दों को सुनता, कभी फटते हुए टीले को देखता. फिर उसकी आँखें रोते गिड़गिड़ाते सरदार पर टिक गई.
"बच्चे!हम सबको बचा लो. हम सब मर जायेंगे. देवता हम सबको मार डालेगा. "मनीष की अपनी ओर देखते पाकर सरदार पुनः गिडगिडाने लगा.
मनीष ने सरदार से निगाह हटाकर अपने चारों ओर खड़े जंगलियों की ओर देखा. सारे जंगली उसके पास सिमट आए थे. उनके हाथ जुड़े हुए थे. वे अपनी जिंदगी की भीख मांग रहे थे.
"बच्चे, हम लोगों को जिंदगी दे दो. "तान्या ने रोते हुए मनीष के पांव पकड़ लिए.
"वादा करो. आज से देवता को किसी जीव का चढ़ावा नहीं दोगे. "मनीष ने सरदार के चेहरे पर निगाहें जमाते हुए कहा.
" हम वायदा करते हैं. कभी किसी जीव का चढावा नहीं देंगे. "सरदार तथा मनका ने एक साथ कहा.
"जाओ, देवता तुम्हें जिंदगी देता है. "कहता हुआ मनीष बस्ती की ओर बढ़ गया.
जंगलियों में एक बार फिर खुशी की लहर दौड़ गई.
"आखिर यह सब कैसे हो गया?"मनीष ने तान्या के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए पूछा.
"सब देवता की मर्जी. "तान्या ने गहरी सांस लेकर कहा. उसके चेहरे पर संतोष झलक रहा था.
"तुम मेरे सामने तीर लिए खड़े थे. फिर योजना कैसे सफल हो गई?" मनीष ने पुनः पूछा उसे तान्या के उत्तर से संतोष नहीं हो रहा था.
"आज तुम मेरे साथ खेलोगे?"झोंपड़ी में प्रवेश करते हुए एक दस साल के बच्चे ने मनीष से प्रश्न किया.
"जरूर खेलेंगे. "मनीष ने बच्चे का मन रखने के लिए कहा.
"सच!देवता बच्चा कितना अच्छा है. "कहता हुआ बच्चा झोंपड़ी से बाहर भाग गया.
"यह बच्चा कौन था?"मनीष ने उत्सुकता से पूछा.
"इसी ने तुम्हारी जान बचाई थी. "
"कैसे?"मनीष की उत्सुकता बढ़ गई.
"जब सरदार ने बताया कि पहला तीर मुझे तुम्हारी गर्दन पर मारना है, तब मैं स्वयं तुम्हें बचाने से मजबूर था. उस समय मुझे ऐसे विश्वास पात्र की जरूरत थी, जिससे तुम्हारी योजना पूरी करबा सकता. इसके लिए मैंने अपने बेटे को चुना. यह छोटा अवश्य है लेकिन समझदार बहुत है. मैंने इसे तुम्हारा दिया हुआ डिब्बा देकर सारी बातें समझा दीं थीं. यह बराबर वाले गन्ने के खेत में छिपकर बैठ गया था. जैसे ही सरदार ने तीर चलाने आज्ञा दी इसने डिब्बे का बटन दबा दिया. "तान्या बिना सांस लिए बताता चला गया.
"सच!तान्या, मैं तुम्हारा और तुम्हारे बच्चे का एहसान नहीं भूल सकता. "मनीष आत्मविभोर होकर बोला.
"बच्चे, इसे एहसान न कहो यह हमारा फर्ज था. "तान्या उठते हुए बोला.
"चल दिए?"तान्या को उठते देख मनीष ने कहा.
"हां, कोई परेशानी हो तो बताना. "कहकर तान्या झोपड़ी से बाहर चला गया.
मनीष जंगलियों के बीच पूरी तरह सुरक्षित था. लेकिन पूरी जिंदगी इनके बीच नहीं गुजारी जा सकती थी. उसने डाक्टर बनने के सपने देखे थे. किन्तु अब वह एक सभ्य जिंदगी भी नहीं जी पा रहा था. उसने यहां से निकलने का कई बार विचार किया . उसने सरदार से यहां से जाने की इच्छा भी प्रकट की लेकिन हर बार सरदार उसके कदमों पर लोट गया. जंगली उसे खोने को तैयार न थे. उनके लिए वह देवता था. उन्हें डर था कि मनीष के बस्ती से जाते ही वह फिर मुसीबत में फँस जायेंगे.
मनीष को समझ नहीं आ रहा था कि अपने घर कैसे पहुंचे. अब उसका मन बस्ती में नहीं लग रहा था. वह अपनी जिंदगी नहीं बरबाद करना चाहता था. कुछ बनने की इच्छा उसे परेशान किए हुए थी. मां-पिताजी से मिलने को भी वह बैचेन था. लेकिन उसे अपने घर की दिशा का ज्ञान नहीं था. वह किधर जाये.
आज वह घूमते -घूमते बस्ती से काफी दूर निकल आया था. इस समय वह परेशान और अपने विचारों में खोया हुआ एक पत्थर पर बैठा था.
पास ही जीप रूकने की आवाज सुनकर वह चौंक गया. उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. जीप से छः व्यक्ति उतरे. इनमें पांच शिकारी की वेषभूषा में थे. छठा व्यक्ति ड्राइवर लग रहा था. एक लंबे अरसे बाद अपने जैसे लोगों को देखकर मनीष की आँखें खुशी से चमक उठीं.
सभी व्यक्ति मनीष की ओर आ रहे थे. उनके चेहरे मुरझाए हुए थे. शायद वे किसी परेशानी में थे. मनीष को देखकर उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गए थे.
मनीष की निगाहें उन्हीं पर टिकी थीं.
"बेटे, यहां पानी मिलेगा?"उनमें से सबसे बड़ी उम्र वाले व्यक्ति ने कहा.
"अवश्य ।"कहते हुए मनीष बस्ती की ओर मुड़ गया. सारे लोग मनीष के पीछे चल दिए. बस्ती में प्रवेश करते ही सरदार मिल गया.
"यह राहगीर हैं . इन्हें पानी चाहिए. "मनीष ने सरदार से कहा.
सरदार को देखकर शिकारी आश्चर्य में पड़ गए. जंगलियों के बीच एक सभ्य बच्चे का होना उन्हें आश्चर्य में डाल रहा था.
"अभी पानी आता है"सरदार ने कहा.
"खाना-पानी मेरी झोंपड़ी में दे देना. "कहकर मनीष अपनी झोंपड़ी की ओर बढ़ गया. शिकारी भी आश्चर्य में डूबे हुए मनीष के पीछे चल रहे थे.
झोंपड़ी के पास पहुंच कर मनीष पल भर के लिए रुका. फिर बोला, "यहीं रहता हूँ. ऊपर आइए. "
सभी लोग मनीष के पीछे सीढियां चढ़ने लगे. झोंपड़ी में पहुंच कर एक शिकारी ने पूछा, 'बेटे, तुम यहां कैसे?तुम यहां के नहीं लगते हो?"
"अलग अलग स्थान पर पैदा हुए लोगों में अंतर तो होगा ही. "मनीष ने गहरी सांस लेकर कहा.
"क्या, मतलब?"बुजुर्ग शिकारी ने कहा.
"मैं शहर में पैदा हुआ. रह इसी बस्ती के रहने वाले हैं. "
"तुम इन लोगों के बीच कैसे आ गए. ?"दूसरे शिकारी ने पूछा.
"यह एक लम्बी कहानी है. "
"क्या, सुनाना पसंद करोगे?"ड्राइवर ने पूछा.
"हां, हां, क्यों नहीं !"कहकर मनीष ने आपबीती उन्हें सुना दी.
मनीष अपनी कहानी सुनाकर चुप हो गया.
"बहादुर बच्चे!क्या तुम अपने घर जाना पसंद करोगे?"मनीष की पीठ ठोंकते हुए बुजुर्ग शिकारी ने कहा.
"अंकल, इससे अच्छी बात क्या होगी. लेकिन. . . "कहकर मनीष चुप हो गया.
"लेकिन, क्या?"शिकारी ने उत्सुकता से पूछा.
"बस्ती वाले मेरा जाना पसंद नहीं करेंगे. "
"क्यों?"
"उनका विश्वास है कि मेरे जाते ही बस्ती पर मुसीबत आ जायेगी. "मनीष ने बताया.
"तुम उन्हें सच बता दो ताकि उनके आगे से अंधविश्वास हट जाये. "शिकारी ने सुझाव दिया.
मनीष सरदार का इंतजार करने लगा. उसे शिकारी का सुझाव पसंद आया.
जल्दी ही सरदार तान्या और मनका के साथ आ गया. तान्या के पास पानी से भरा एक घड़ा था. घड़े पर लोटा रखा था. मनका के हाथ में थाल था. थाल में चावल के लड्डू थे.
मनका ने लड्डू का थाल उनके बीच रख दिया.
"खाओ. "सरदार ने पास बैठते हुए कहा.
शिकारियों ने पहले पानी पीकर प्यास बुझाई फिर लड्डू खाने लगे.
"बहुत अच्छे हैं. "भूरी आँखों वाले शिकारी ने कहा. उसे इतने स्वादिष्ट लड्डू की उम्मीद नहीं थी.
"इस बच्चे ने अच्छी चीजें बनानी सिखा दीं हैं. "मनका ने खुश होकर कहा.
"हम इस बच्चे को लेने आये हैं. "बुजुर्ग शिकारी ने गम्भीरता से कहा.
मनीष की निगाहें सरदार पर टिक गई.
"क्यों?"सरदार ने घबरा कर पूछा. उसके चेहरे का रंग उड़ गया.
"बच्चे के मां-बाप बहुत दुखी हैं, "शिकारी ने बताया.
"लेकिन, बस्ती का क्या होगा. देवता फिर नाराज हो जायेगा. "कहते हुए सरदार की आँखों में आँसू आ गए.
"देवता था ही नहीं. वह. नाराज कैसे होगा. "मनीष ने सच्चाई से पर्दा हटाया.
"देवता का चांद खाना. टीले का फटना. देवता की चढा़वे को न लेने का आदेश?"सरदार ने अविश्वास से कहा. वह सब तुम लोगों का अंधविश्वास था. न मानो तो तान्या से पूछ लो. मनीष ने कहा.
सरदार ने तान्या की ओर देखा. तान्या और मनीष ने शुरू से लेकर आखिर तक सारी बात स्पष्ट बता दी. बीच बीच में सरदार शंकाएं करता रहा. मनीष और शिकारी मिलकर उन शंकाओं का समाधान करते रहे.
सरदार का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.
"अब तो इस बच्चे को अपने मां-बाप के पास जाने दोगे. ?"शिकारी ने पूछा.
"अवश्य. "सरदार ने कहा.
"लेकिन, तुम और तान्या मेरे साथ चलोगे. वहां से तुम्हें खेती बाडी का सामान और आवश्यक दवाएं दिलवा दूंगा. इससे भविष्य में तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी. "मनीष ने कहा.
"हां, सरदार, तुम्हारी बस्ती को सरकारी सहायता दिलवा दी जायेगी. "शिकारी ने कहा.
"अच्छा, अब तुम लोग चलने के लिए तैयार हो जाओ. "ड्राइवर ने कहा.
सरदार, तान्या और मनका झोंपड़ी से बाहर निकल गए.
जीप जंगल को छोड़कर आगे बढ़ती जा रही थी. मनीष का मन खुशी से झूम रहा था. अब एक लम्बे अरसे बाद वह अपने मां -पिताजी से मिल पायेगा. कितने खुश होंगे वह उसे देखकर. जीप पूरी गति से भाग रही थी. लेकिन मनीष के विचार उससे भी तेज गति से भाग रहे थे.
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9
"पिताजी, आपका खोया हुआ बेटा मिल गया. खुशी की बात है न!"
"हां, बेटे!"अजीत सिंह ने स्नेह से मनीष के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
"पिताजी, यह खुशी आपको सरदार और तान्या की बजह से मिली है. "
"हां, बेटे, . "
"इन्हें इनाम मिलना चाहिए!''मनीष अपने उद्देश्य पर आते हुए बोला.
"मैं इन्हें मुँह मांगा धन दूंगी. "रीता ने जल्दी से कहा. उनका चेहरा खुशी से चमक रहा था. वह मनीष की खुशी के लिए कुछ भी कर सकती थीं.
"धन नहीं ऐसा इनाम दे. जो हमेशा काम आये. "मनीष ने कहा.
मनीष की बात सुनकर रीता और अजीत सिंह सोच में पड़ गए.
"किस चिंता में पड़ गये?"मां -पिताजी को चुप देखकर मनीष ने कहा.
"हां, तो इनाम में क्या चाहते हो?"अजीत सिंह ने पूछा.
"खेती के आधुनिक यंत्र दिलवा दीजिए. बस्ती में एक अस्पताल और स्कूल बनवा दीजिए. "मनीष ने कहा.
"और कुछ ?"अजीत सिंह ने पूछा.
"आपकी विधायक और समाजसेवी लोगों से जान-पहचान है. उनसे कहकर बस्ती से शहर तक सड़क बनवा दीजिए. यातायात की सुविधा हो जायेगी तो इनकी जिदंगी सरल हो जायेगी. "मनीष ने अपनी बात रखी.
"हां, मालिक !इतना हो जाये तो हम भी इंसानों की तरह जीने लगेंगे. "सरदार ने हाथ जोडकर कहा. उसे मनीष के घर आये दो दिन हो गये थे. इन दो दिनों में मनीष ने अपने पिताजी के साथ पूरा शहर घूमा दिया. सरदार और तान्या आश्चर्य से शहर की प्रत्येक चीज देखते रह गये थे. उन्हें शहर की सुख-सुविधाओं के आगे बस्ती की जिंदगी बहुत कष्ट प्रद लग रही थी.
"तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारी बस्ती में आवश्यक सुविधाएं जुटाकर रहूंगा. "अजीत सिंह ने सरदार की पीठ थपथपा ते हुए कहा.
अजीत सिंह के आश्वासन से सरदार और तान्या के चेहरे खिल गये.
"एक प्रार्थना मेरी भी है. "तान्या धीरे से बोला.
"क्या. "अजीत सिंह ने पूछा.
मनीष तान्या की ओर देखने लगा.
"आप कभी -कभी बच्चे को साथ लेकर हमारी बस्ती में आया करेंगे. "तान्या ने दबी जबान में दिल की बात कह दी.
दरअसल, तान्या मनीष को प्यार करने लगा था.
"अरे, यह भी कोई कहने की बात है?मैं स्कूल की छुट्टियों में बस्ती में आया करूंगा. "अजीत सिंह के जवाब देने से पहले ही मनीष बोल पड़ा. मनीष की बात पर रीता और अजीत सिंह मुस्कुरा दिए.
"मां जी, जाने से पहले आपके हाथ के पकौड़े खाने हैं. "तान्या ने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा.
"अरे, क्यूं नहीं. वैसे तान्या जब भी तुम्हें पकोड़े खाने का मन करे आ जाया करना. "रीता ने उठते हुए कहा.
"सच!"तान्या खुशी से बोला.
"तुम लोग मनीष के दोस्त हो जब चाहे आ सकते हो. वैसे मुझे तुम्हारे साथ जाकर तुम्हारी बस्ती देखनी है. ताकि वहां काम शुरू करवा सकूं. अजीत सिंह ने कहा.
"पिताजी, में भी इन्हें छोड़ने आपके साथ चलूंगा. "मनीष बोला.
"इस बार में भी आपके साथ चलूँगी. "रीता रसोई में जाते जाते रुक गई.
"आप सबको देखकर बस्ती के लोग बहुत खुश हो जायेंगे. "सरदार खुश था.
अजीत सिंह सरदार और तान्या को बस्ती में पहुँचाने की तैयारी करने लगे.
*
समाप्त
आभा यादव
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