उत्तराखण्ड की लोककथा कल्पना की समझदारी - डॉ. उमेश चमोला जमींदार सुदेश की एक कन्या थी । उसका नाम कल्पना था । एक बार कल्पना सहेलियों के साथ खे...
उत्तराखण्ड की लोककथा
कल्पना की समझदारी
- डॉ. उमेश चमोला
जमींदार सुदेश की एक कन्या थी । उसका नाम कल्पना था । एक बार कल्पना सहेलियों के साथ खेल रही थी । बातों -बातों में उसने सहेलियों से कहा ,‘‘मैं उसी लड़के के साथ शादी करूंगी जो हमेशा मेरा कहना मानेगा ।‘‘ वहाँ से एक लड़का गुजर रहा था । उसने कल्पना की बात सुन ली । उसने प्रतिज्ञा की कि वह इसी लड़की से ब्याह रचाएगा और कभी भी इसका कहना नहीं मानेगा । उस लड़के का नाम राजवीर था । उसके पिता भी जमींदार थे ।
कुछ दिनों के बाद राजवीर ने अपने पिता को कल्पना के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर भेजा । कल्पना के पिता इस रिश्ते के लिए राजी हो गए । उन दोनों का विवाह हो गया । प्रथम मिलन में ही राजवीर ने कल्पना से कहा,‘‘ एक दिन तू अपनी सहेलियों से कह रही थी कि तू उस लड़के के साथ विवाह करेगी जो हमेशा तेरा कहना मानेगा लेकिन मैं कभी भी तेरा कहना नहीं मानूंगा ।‘‘ वह कल्पना को बुरा-भला कहने के साथ मारपीट पर भी उतारू हो गया ।
,‘‘मैं आपकी पत्नी हूँ । आपको मेरा सम्मान करना चाहिए । फिर भी आप मेरे साथ मारपीट करना ही चाहते हैं तो मैं आपको यह अधिकार तब दूंगी जब आप मेहनत से धन कमाकर लाओगे । अभी तो आप अपने पिता के धन पर ऐश कर रहे हो ।‘‘ कल्पना की यह बात सुनकर राजवीर नौकरी की तलाश में घर से निकल गया ।
राजवीर को रास्ते में आम का एक पेड़ दिखाई दिया । उस पेड़ के नीचे कई आम गिरे हुए थे । उसने एक आम खाया । उस आम की गुठली उसने जैसे ही पेड़ के नीचे की जमीन पर फेंकी वहाँ पर आम का नया पेड़ उग आया । उसने बहुत सारे आम एक बोरे में भर लिए और सोचने लगा,‘‘ वह इन्हें बेचकर बहुत सारा धन कमाएगा ।‘‘ आम का बोरा लेकर वह आगे बड़ा ही था कि उसे तीन आदमी मिले । उन्होंने आमों के बारे में उससे पूछा । राजवीर ने बताया, ‘‘इन आमों को चूसने के बाद इनकी गुठली को जमीन में रखने पर उनसे नएं पेड़ उग आते हैं ।‘‘
उन तीनों ने राजवीर से शर्त लगाई, ‘‘ यदि आम की चुसी गुठली को जमीन में रखने पर आम का पेड़ उगेगा तो वे सारा धन उसे दे देंगे । पेड़ नहीं उगने पर राजवीर को अपना सारा धन उन तीनों को देना होगा । राजवीर शर्त हार गया । दरअसल आम की चुसी गुठली से नया पेड़ आम के पेड़ के नीचे की ही मिट्टी में उग सकता था । यह बात उन तीनों को मालूम थी । शर्त हारने पर उन तीनों ने राजवीर का सारा पैंसा और आम ले लिए । राजवीर उदास होकर रोने लगा ।
रात होने लगी । राजवीर को दूर उजाला दिखाई दिया । वह उसी दिशा में आगे बढ़ता गया । वहाँ एक बुढ़िया का घर था । राजवीर ने बुढ़िया से कहा ,‘‘ मुझे तीन आदमियों ने ठग लिया । मैं बहुत थका हुआ हूँ । मुझे ठहरने के लिए जगह मिलेगी ? ‘‘ बुढ़िया नेक दिल की
थी । उसका कोई बच्चा भी नहीं था । उसने राजवीर को अपने साथ रख लिया । वह कोल्हू के तेल का व्यापार करती थी । राजवीर ने उसके व्यापार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया ।
आम के पेड़ वाले रास्ते से गुजरे राजवीर को काफी समय हो गया था । राजवीर को ठगने वाले वे तीनों आदमी अब किसी और की तलाश में थे । अचानक उन्हें एक घुड़सवार आता हुआ दिखाई दिया । उसके हाथ में तलवार थी । उन तीन ठगों ने घुड़सवार से भी वही शर्त लगा
ली । उसने थैले से एक आम निकाला, उसको चूसा । दूसरे थैले से थोड़ी मिट्टी निकाली और जमीन पर रख दी । चुसे आम को उस जमीन पर रखने से आम का एक पेड़ उग आया । दरअसल दूसरे थैले में रखी मिट्टी आम के पेड़ के नीचे की मिट्टी थी । तीनों ठग शर्त हार
गए । शर्त के मुताबिक उनका पूरा सामान घुड़सवार ने ले लिया ।
घुड़सवार आगे बढ़ता गया । उसे भी बुढ़िया के घर का उजाला दिखाई दिया । वह उसी दिशा में आगे बढ़ा । थोड़ी देर बाद वह बुढ़िया के घर पहुंच गया । बुढ़िया बोली, ‘‘ चलो, एक रात के लिए तुम भी यहाँ रुक जाओ ।‘‘ घुड़सवार की मुलाकात वहाँ राजवीर से हुई । उसने राजवीर से पूछा, ‘‘ क्या तुम मेरे साथ काम करोगे ? तुम्हें काफी धन दिया
जाएगा ।‘‘ राजवीर ने उसके साथ काम करने की हामी भर ली । दूसरे दिन घुड़सवार और राजवीर ने बुढ़िया से विदा ले ली ।
राजवीर घुड़सवार के साथ एक महल में पहुंचा । वहाँ बहुत सारे लोग काम कर रहे थे । घुड़सवार ने राजवीर को भी उन लोगों के साथ काम पर लगा लिया । बुढ़िया के साथ रहकर राजवीर के बाल बहुत बड़े हो गए थे । घुड़सवार ने उसके बाल छोटे करवा दिए । दाड़ी और नाखूनों को कटवा कर छोटा कर दिया । राजवीर को हर काम के लिए अलग-अलग कपड़े घुड़सवार द्वारा दिए जाते रहे । घर से निकले बहुत दिन हो गए थे। राजवीर ने सोचा ,‘‘ अब मेरे पास बहुत धन हो गया है। अब मुझे घर चला जाना चाहिए । मैं अब कल्पना पर रौब भी दिखा सकता हूँ ।‘‘
राजवीर ने घुड़सवार से घर जाने की इजाजत मांगी । वह अपने घर की ओर चल पड़ा । उसे घुड़सवार भी उसी दिशा की ओर जाता हुआ दिखाई दिया ।
घर पहुंच कर राजवीर अपनी पत्नी से शेखी बघारते हुए बोला, ‘‘ इस बीच मैंने बहुत अच्छी नौकरी की । मैंने कई लोगों को नौकरी भी दी । तुमने कहा था जब मैं मेहनत से धन कमाकर लाऊंगा तब मैं तुम्हारे साथ मारपीट कर सकता हूँ ।‘‘ ऐसा कहकर वह कल्पना को पीटने के लिए आगे बड़ा । कल्पना बोली, ‘‘ स्वामी! तुम अगर मेरे साथ मारपीट घर के अन्दर करोगे तो किसी को पता भी नहीं चल पाएगा । किसी को खबर भी नहीं होगी कि तुमने इतना धन कमाया है। इसलिए आज आराम कर लो । कल सुबह सारे गाँव वालों को बुलाकर मुझे उनके सामने
पीटना ।‘‘
राजवीर उसकी बातों में आ गया । दूसरे दिन उसने सभी गाँव वालों को बुला लिया । वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गई । जैसे ही राजवीर ने पत्नी पर हाथ उठाने की कोशिश की, वह
बोली, ‘‘ स्वामी! मैंने तुम्हें कहा था कि तुम मेरे साथ मारपीट तभी कर सकते हो जब तुम अपनी मेहनत से धन कमाकर लाओगे लेकिन तुमने जितना भी धन कमाया वह सब उस घुड़सवार की बदौलत ।‘‘
‘‘ कौन घुड़सवार ?‘‘ - आश्चर्य से राजवीर बोला।
‘‘वही घुड़सवार जो तुम्हें कोल्हू के तेल का व्यापार करने वाली बुढ़िया के घर से वापस लाया । वही घुड़सवार जिसने तुम्हारे बाल, दाढ़ी और नाखून बनाकर तुम्हें जानवर से इन्सान बनाया ।‘‘- कल्पना बोली।
‘‘तुम घुड़सवार को कैसे जानती हो ?‘‘- राजवीर ने प्रश्न किया ।
प्रश्न को सुनकर कल्पना ने एक थैले से कटे बाल, नाखून और कपडे निकाल कर
कहा ,‘‘पहचानो, यह सब तुम्हारे ही हैं ? मैंने घुड़सवार का वेश धारण कर अपने पिता की एक जागीर में तुम्हें नौकरी दी । नहीं तो तुम जीवन भर कोल्हू के तेल का ही व्यापार करते ।‘‘
भीड़ के सामने राजवीर शर्मशार हो गया । उसके हृदय की दुष्टता मिट गई
थी । वह कल्पना के पैरों में गिर पड़ा । कल्पना उसे उठाती हुई बोली,‘‘ तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं बल्कि मेरे हृदय में है । ‘‘
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-डॉ . उमेश चमोला, शिक्षक -प्रशिक्षक राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् उत्तराखण्ड, राजीव गांधी नवोदय विद्यालय भवन नालापानी देहरादून, उत्तराखण्ड
ई मेल – u.chamola23@gmail.com
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