व्यंग्य तुम चंदन हम पानी वीरेन्द्र सरल वैश्विक महामारी के गम्भीर संकट से गुजर रहे आले देश की सरकार ने अपेक्षाकृत कम संकट का सामना कर रहे निर...
व्यंग्य
तुम चंदन हम पानी
वीरेन्द्र सरल
वैश्विक महामारी के गम्भीर संकट से गुजर रहे आले देश की सरकार ने अपेक्षाकृत कम संकट का सामना कर रहे निराले देश की सरकार से मदद मांगी। आले देश की सरकार ने लिखा कि हमने सुना है कि आपके यहाँ धार्मिक कर्मकांडों और टोटकों से महामारी नियंत्रण की बड़ी प्राचीन और कारगार पद्धति प्रचलित है। हमारे देश में मृत्यु का आंकड़ा आपके देश के फर्जी समाचारों की तरह बढ़ता जा रहा है। हमारा धैर्य आपके यहाँ की सहिष्णुता की तरह कम हो रही है। हमारी चिंता आपके देश की गरीबी, भुखमरी की तरह बढ़ रही है। हमारे उपलब्ध संशाधन आपके यहाँ के रोजगार की तरह कम होते जा रहें है। हमारी नींद अभी वैसे ही उड़ी हुई है जैसे चुनाव के समय आप लोगों की नींद कुर्सी हथियाने के लिए उड़ी होती है। तो मित्र इस संकट के समय में आपसे मदद की दरकार है, बांकी समय दुनिया के चौधरी बनकर सबको आंख दिखाने के लिए तो हम सदैव उतारू ही रहते हैं।
आले देश के इस पत्र को पढ़कर निराले देश की सरकार
मदद देने को तैयार हो गई।
घरेलू उपयोग के लिए पर्याप्त स्टॉक रखने के निर्देश के साथ ही अपने सम्बंधित विभाग और उनके अधिकारियों को प्राचीन पद्धति के अलग अलग रंग के धार्मिक रैपरों में लिपटे धार्मिक दवाइयों एवम उसके निर्माता और उसके होलसेल सेलर के साथ ही फुटकर विक्रेताओं को इकट्ठा कर उनका बंडल बनाने का आदेश दिया ।
मगर जैसे ही इन प्राचीन और धार्मिक दवाइयों को यह पता चला कि इन्हें आले देश भेजने की तैयारी की जा रही है, वैसे ही वे डर के मारे थर थर कांपने लगे और मेढकों की तरह उछल उछल कर बंडल से कूद कर भागने लगे। बंडल बनाने वालों ने इन दवाइयों के निर्माताओं से सहायता मांगने की सोची पर वे पहले ही गधे के सींग की तरह गायब हो चुके थे। इनके थोक और चिल्हर विक्रेता भी जानकारी मिलते ही भूमिगत हो गए थे और अपनी खैर मना रहे थे। पर बकरी की अम्मा कब तक खैर मनाएगी। निराले देश की सरकार इस समय बड़ी सख्त थी। इन धार्मिक दवाइयों को पकड़ने के आदेश के कारण सब पकड़े गए। कुछ निर्माता और सेलर भी पकड़े गए।
अधिकारियों के निर्देश पर मजदूरों द्वारा बंडल बनाने का काम शुरू हुआ। यूं तो ये धार्मिक दवाइयां अलग अलग कम्पनियों की थी पर सब मेड फार स्वार्थ सिद्धि ही थी। कुछ निर्माता बंडल बनने से पहले अपनी कम्पनी में बनी टेढ़ी मेढ़ी दवाइयों को खींच कर सीधा कर रहे थे।
एक अधिकारी ने उनसे पूछा, ये आप क्या कर रहें हैं?
जवाब मिला, हम देख रहे हैं कि निराले देश की तरह हम आले देश मे भी इनसे अपना उल्लू सीधा कर सकते हैं या नहीं?
अधिकारी ने कहा, अरे उल्लू के पट्ठे ये उल्लू नहीं बल्कि धार्मिक दवाइयां है, समझे?
हां मगर हमारी कम्पनी की उत्पाद तो हमारे लिए उल्लू ही है ना।
अधिकारी ने कहा, बकवास बंद करो और चुपचाप इस कार्टून में घुसो। हमें बंडल बनाना है। निर्माता एक बार हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखा , उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। वह सुबकते हुए कार्टून में घुस गया।
अधिकारीगण भारी मशक्कत के बाद इन धार्मिक दवाइयों को उनके निर्माता के साथ बंडल बनाने में सफल हुए। फिर पसीना पोंछते हुए उन बंडलों को विशेष विमान
पर लादने लगे।
वैसे तो निराले देश में प्राचीन काल में ही विमान का निर्माण कर लिया गया था। मगर रास्ते में इस विमान के इंजन फेल हो जाने के डर के कारण एहितयात के तौर पर वैज्ञानिकों के द्वारा आविष्कृत विशेष विमान से ही इन बंडलों को आले देश की ओर रवाना किया गया।
अपने निर्धारित समय में यह विशेष विमान आले देश की धरती पर लैंड कर चुका था। आले देश की सुरक्षा एजेंसियां और वहां के मेडिकल एक्सपर्ट वहां पहले ही तैनात थे। विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में पहले उन बंडलों की जांच पड़ताल होनी थी। ज्यों ही विमान से पहला बंडल उतारा गया त्यों ही उतारने वाले मजदूरों के बीच न जाने किस बात पर हाथा पाई शुरू हो गई, दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। दोनों एक दूसरे को जाति धर्म की भद्दी भद्दी गालियां देने लगे।चारो तरफ अफरा तफरी मच गई।
वहां उपस्थित सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी और मेडिकल एक्सपर्ट के कान खड़े हो गए। मेडिकल विशेषज्ञ ने सबको सचेत करते हुए कहा, सावधान। तुरन्त इन दोनों को आइसोलेट करो। शायद इन बंडलों उससे भी ज्यादा खतरनाक वायरस की मौजूदगी है जिस वायरस से हम जूझ रहे हैं। ये दोनों मजदूर उसी खतरनाक वायरस से संक्रमित हो चुके हैं।
सभी डर के मारे कांपते हुए अपना हाथ सैनिटाइजर से साफ करने लगे। नाक मुँह मास्क से बंद कर एक दूसरे को भयभीत नजरों से देखने लगे।
मेडिकल एक्सपर्ट ने तुरंत अपने राष्ट्र अध्यक्ष को फोन लगाकर पूछा, सर, आपने ये दवाइयां किसी मित्र देश से मंगाई है या-------?
राष्ट अध्यक्ष ने कहा, क्यों? क्या हुआ? हम अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी अपना मित्र बना सकते हैं और मौका मिलते ही किसी की पीठ में छुरा भी घोप सकते हैं। सारी दुनिया हमारे कारनामे जानती है। हम अपना मुंह मिट्ठू मियां नहीं बनना चाहते। क्या हुआ, साफ साफ बताइए।
मेडिकल एक्सपर्ट ने कहा, सर दवाइयों की इन बंडलों में नफरत के वायरस का संक्रमण है। यदि हम इसके चपेट में आ गए तो फिर हमें कोई नहीं बचा सकता। अभी हम जिस वायरस से जूझ रहे हैं वह तो इंसान से सांसे छीन लेता है पर ये नफरत के वायरस इंसान के हृदय से संवेदना, दिमाग से विवेक, समाज से सौहद्रता और सद्भाव सब कुछ छीन लेता है। यह आदमी को मारता नहीं बल्कि विवेकहीन कर रोबोट की तरह अपने आकाओं के इशारे पर सब कुछ करने के लिए मजबूर कर देता है। जिस वायरस से हम जूझ रहे हैं, उनसे तो हम कभी न कभी जीत ही जायेंगे। हमें विश्वास है हम दवाई बना लेंगे, वैक्सीन तैयार कर लेंगे और मानवता को बचाने में कामयाब हो जाएंगे। पर नफरत के इस वायरस से लड़ना विज्ञान के बस की भी बात नहीं है। मेरी सलाह तो यह है तुरन्त इन धार्मिक दवाइयों के बंडलों को निराले देश की सद्भावना के लिए उन्हें धन्यवाद देते हुए वापस कर देने में ही मानवता का कल्याण है।
राष्ट अध्यक्ष की सहमति मिलते ही उस विशेष विमान के सामने एक बड़ा सा स्टिकर लगाकर निराले देश के लिए वापस रवाना कर दिया गया। स्टिकर में लिखा था, मित्र तुम चंदन हम पानी।
वीरेन्द्र सरल
ग्राम बोडरा, मगरलोड
जिला धमतरी, छत्तीसगढ़।
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