ग़ज़ल 1 फूलों के गुलदस्ते को इक खार समझता है सौदागर है वो घर को जो बाज़ार समझता है जिसके लिये आँगन ओसारा खुला रखते थे भाई हमें वो ही भाई आज...
ग़ज़ल 1
फूलों के गुलदस्ते को इक खार समझता है
सौदागर है वो घर को जो बाज़ार समझता है
जिसके लिये आँगन ओसारा खुला रखते थे
भाई हमें वो ही भाई आज ग़द्दार समझता है
हंस रही है दुनिया तमाशा खेल देख देख के
इक गुनाहगार सबको गुनाहगार समझता है
अक़्ल अपनी गिरवी रखने वाले सुनता जा
लहू पीने वाला तुझको अख़बार समझता है
तारीख़ गवाह है हमीं निगेहबा थे ढाल बने
ये तेरी इल्म की तू मुझे तलवार समझता है
ज़र्रे ज़र्रे निशाँ हैं मेरी कुर्बानियों के बेशक़
हर इक रंग मेरे हक़ की पुकार समझता है
वफ़ा होती है सुरखुरु मेरे ही नाम से अब भी
नदीम इसे वतन का यार प्यार समझता है
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ग़ज़ल 2
अलग कर दे तुमसे हमें वो जंग नहीं चाहिए
ज़मीं आसमाँ रास्ता कोई तंग नहीं चाहिए
के जिसके नाम से शर्मिंदा हो ज़माना मेरा
नयी नस्लों का वास्ता वो रंग नहीं चाहिए
फिर जला कर बस्तियों को रौशनी मत करो
किसी की खाक़ पे इसको उमंग नहीं चाहिए
मेरी मिट्टी में रवाँ दवां है खून मुहब्बत ही का
हाथों को दीवार बनाने का ढंग नहीं चाहिए
तेरे क़दमों का क़दम से फासला ही फासला
शीशे के घर को चांदी की पलंग नहीं चाहिए
बेकसूर किसी का दुश्मन सबको बना जो दे
दोस्त ऐसा किसी को अब संग नहीं चाहिए
फ़क़त तेरे जुनून पे ऐतराज़ है नदीम को भी
तू अपना है तेरी जान तेरा अंग नहीं चाहिए
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ग़ज़ल 3
सूरज चाँद न सही कुछ सितारा रखना
वक़्त की आवाज़ है ..भाईचारा रखना
ज़िंदगी क़ौम की ये औरों के नाम की
अपनों से हरगिज़ नहीं किनारा रखना
गुज़र जाये मज़लूमों की भी शाम यहाँ
ऐ हम वतन ऐसा अब गुज़ारा रखना
क़दम से क़दम मिला न पाओ दोस्तों
दहलीज़ पे रोशनी का सहारा रखना
दिल तो बेलगाम है इसका गिला क्या
तुम घर में आँगन को ओसारा रखना
जाने वाले इल्ज़ाम तेरा हक़ नहीं है
मुश्किल है याद में दोबारा रखना
चलने से मत घबरा चल नदीम चल
उनका नसीब है राह में अंगारा रखना
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ग़ज़ल 4
प्यार से आज कल प्यार नहीं मिलता
जिस तरह दो पैसा उधार नहीं मिलता
अमीरी का रंग चाहे जहाँ फेको तुम
क़रार वालों से बेक़रार नहीं मिलता
छोड़ देते जलने के लिये कहो उनसे
तड़पने का दिन बार बार नहीं मिलता
मेरी तस्वीर दौलत उनकी ख़रीद लेती
मगर दिल का तो बाज़ार नहीं मिलता
ज़मीं हिलती आसमाँ रोते ज़लज़ले आते
आदमी को आदमी किरदार नहीं मिलता
सहारे वाले बेसहारों का दर्द क्या जानें
चमन को फूलों का सिंगार नहीं मिलता
शहर में सांस का आना जाना मुश्किल
गाँव में नदीम कोई बीमार नहीं मिलता
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ग़ज़ल 5
दौलत तो मिल जाती है दुआ नहीं मिलती
धूप मिलती है चाँद को हवा नहीं मिलती
तुम मंज़िल खोने का ग़म लिए बैठे रहो
सफ़र के लिये राहे वफ़ा नही मिलती
ये कैसी बदनसीबी ज़माने भर तक पहुँची
अफसोस उसी को मेरी सदा नहीं मिलती
ये कारवां जो बनता बनता गया किस लिये
हम कहाँ तुम होते गर जफ़ा नहीं मिलती
सर झुकता तो आप क्या जहाँ मेरा होता
कि चाहत जो हो चीज़ क्या नहीं मिलती
ख़ुद को देते हैं बेवजह धोखा नाम तेरे
खोजता हूँ पूछता हूँ ख़ता नहीं मिलती
ये वो दुनिया नहीं जिसे ढूंढते थे नदीम
कहाँ देखते सच इसकी सज़ा नहीं मिलती
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ग़ज़ल 6
अपनी हस्ती कहाँ है अपना ठिकाना कहाँ है
जाने वाले आवाज़ दे मुझको जाना कहाँ है
इस शहर से वफ़ा की रस्म कहाँ गयी
दिल कहाँ है दर्द का फ़साना कहाँ है
कुछ लोग ज़मीन से नाता तोड़ चले गये
और पूछते हैं वो लोग वो ज़माना कहाँ है
कितना हस्सास था वो बेरहम यार मेरा
जिस्म पे ढूंढता था ज़ख़्म पुराना कहाँ है
रास्ते अक्सर बता देते हैं मुसाफिर को
खोना कहाँ है जिंदगी को पाना कहां है
इक नज़र देख ले बेमुरव्वत आंखों में
मेरी सिवा तेरी राह में कोई बेगाना कहाँ है
मैं पराया यहाँ कभी नहीं रहा नदीम
किसी ने मुझको अपना माना कहाँ है
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ग़ज़ल 7.
ख़ुश भी नसीब रखता
ख़ुद को ग़रीब रखता
खामोशी भी ख़फ़ा है
लोगों को क़रीब रखता
किताब देख लेता तो तू
इक इक तरकीब रखता
रौशनी देती रास्ते को
दो चार अदीब रखता
सामान साथ जाएंगे
कुछ तो तहज़ीब रखता
वो तरसते हैं इसलिये
हमें भी हबीब रखता
तेरी तरह सब मेरे होते
दो चार रक़ीब रखता
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ग़ज़ल 8
वक़्त की आग में रूह जो जलती है
दिल बन के जान ग़ज़ल में ढलती है
मिलते तो हैं आज भी चेहरे तुम्हारे
मैं चाहता हूं दुआ आह निकलती है
गुज़र जाती है ठहरती नहीं कोई चीज़
मैं चलता हूँ या तेरी कहानी चलती है
गम ए मुहब्बत तुम क्या जानों यारा
इस शहर में रोज़ आंख पिघलती है
जब से माँ तू गयी है घर छोड़ कर
बहुत मुझे अपनी कमी खलती है
रास्ता ले के उस पेड़ को बख़्श दे
याद कुछ तमन्ना कल की फलती है
ऐ ज़ालिम तेरा दौर है सुकूँ छीन ले
बदल जायेगी हवा नदीम बदलती है
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ग़ज़ल 9
सबकी किस्मत में यार प्यार नहीं होते
जैसे आंखों में आज इंतिजार नहीं होते
चाहें तो हो जाएं अमीर कल मगर दोस्त
उनकी तरह हम भी दुकानदार नहीं होते
ऐ शहंशाह तू कोई गुज़ारिश न करना
ऐश ओ इशरत के भूखे फ़नकार नहीं होते
क़रार मिला होता तो गिला भी कर लेते
ज़ुल्म जैसा हो कभी बेक़रार नहीं होते
कितनी यादों के रास्ते गुज़र गये हैं
क़रीब के सफ़र बस पार नहीं होते
वक़्त को रही रंजिश मेरी खुशी से
उदासी पे हम भी शर्मसार नहीं होते
मजबूरी आदमी को आदमी नहीं होने दे
लुटेरों में सब गुनाहगार नहीं होते
साथ चलने वालों को पुकारा भी करो
ऐसे नदीम दिल में दरार नहीं होते
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ग़ज़ल 10
इक खूबसूरत ख़्वाब समझना
हक़ीक़त को जवाब समझना
इक दिल में दफ़्न लाशें हज़ार
ज़िंदगी का हिसाब समझना
मुहब्बत कोई इक नाम नहीं है
काँटो को भी गुलाब समझना
जो रहेगा भूल जा वही कहेगा
चराग़ को आफ़ताब समझना
ख़ुशी तेरी तो ग़म मेरे हंसते हैं
दर्द ओ दिल आदाब समझना
सलाम पानी वाली आँखों को
क़तरा क़तरा सैलाब समझना
हालात बेपर्दा जो कर दे नदीम
ग़ैरत को इक नक़ाब समझना
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ग़ज़ल
नदीम हसन चमन
द्वारा मोहम्मद हसन
रिकाबगंज टिकारी गया बिहार 824236
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