" मसालों की रानी : इलायची " -डॉ. दीपक कोहली- बेहतरीन सुगंध वाली एवं मसालों की रानी इलायची प्रत्येक घर में पाई जाती है। यह माउथ फ्र...
" मसालों की रानी : इलायची "
-डॉ. दीपक कोहली-
बेहतरीन सुगंध वाली एवं मसालों की रानी इलायची प्रत्येक घर में पाई जाती है। यह माउथ फ्रेशनर व मसाला होता है, जो कई तरह के व्यंजन में डाला जाता है। इलायची का स्वाद अलग तरह का होता है, जिससे ये सभी को भाता है।
इलायची दो प्रकार की होती है –हरी या छोटी इलायची तथा बड़ी इलायची। जहां बड़ी इलायची व्यंजनों को लजीज बनाने के लिए एक मसाले के रूप में उपयोग में आती है । बड़ी इलायची एक तरह का खड़ा मसाला है जो कि गरम मसाले में प्रयुक्त होता है। वहीं छोटी हरी इलायची खुशबू या माउथ फ्रेशनर का काम करती है। यह औषधीय गुणों की खान है संस्कृत में इसे 'ऐला' या 'तीक्ष्णगंधा' कहा जाता है। वनस्पति विज्ञान की भाषा में इसे एलेटेरिआ कार्डामोमम कहते हैं । इलायची के काले बीजों में एक प्रकार का उड़नशील तेल होता है।
छोटी इलायची का पौधा हरा तथा 5 फिट से 10 फीट तक ऊंचा होता है इसके पत्ते बच्चे की आकृति के तथा 2 फीट तक लंबे होते हैं यह बीज और जड़ दोनों में उगता है 34 वर्ष में फसल तैयार हो जाती है एक के फल घुटनों के रूप में होते हैं इसे तोड़कर जब सुखाया जाता है तो यह इस अवस्था में आ जाती है जिससे हम सभी परिचित हैं इलायची के 1 पौधे का जीवन काल 10 से लेकर 12 वर्षों तक होता है समुद्र की हवा और छायादार भूमि इसके लिए आवश्यक हैं इसके भी छोटे और कोने दार होते हैं मैसूर बैंगलोर मालाबार तथा श्रीलंका में इलायची का उत्पादन बहुतायत से होता है।
इलायची की मौजूदगी का उल्लेख 4000 साल पहले के ग्रंथों में हुआ है ।यानी यह हजारों सालों से हमारे जीवन के साथ जुड़ी हुई है ।अभिलेख बताते हैं कि डेढ़ हजार साल पहले प्राचीन मिस्र में इसका उपयोग चिकित्सा अनुष्ठानों और शव लेपन में होता था। मिस्र के लोग दांतों को साफ करने और सांसों में ताजगी भरने के लिए इसका खूब इस्तेमाल करते थे। एक जमाना था जब दुनिया को लगता था कि यह अनूठा मसाला दक्षिण भारत के मालाबार तट पर ही मिलता है। बात सही भी है क्योंकि प्राचीन भारत में हजारों वर्षों से इसका इस्तेमाल ही नहीं व्यापार भी होता रहा था ।तृतीय संहिता जैसी प्राचीन पुस्तक , पुराणों और वेदों में भी इसका उल्लेख मिलता है । हम भारतीय हजारों सालों से पूजा ,अनुष्ठानों ,चिकित्सा पद्धतियों में इसका प्रयोग करते आ रहे हैं। ग्रीक में 176 ईसवी के दस्तावेजों में इसका उल्लेख भारतीय मसाले के रूप में हुआ है । दरअसल भारत 2000 वर्षों से ज्यादा से कहीं ज्यादा समय से विदेश से इसका व्यापार करता रहा था ।मालाबार तट इस व्यापार का प्रमुख स्थान था ।केरल में इसका बहुतायत से उत्पादन होता था । ऐसा लगता है कि हमारे घुमंतू पूर्वजों ने इसे अपनी यात्राओं के दौरान खोज निकाला होगा । वह इसे दुनिया के तमाम कोनों में ले गए लेकिन यह लगी वहीं जहां इसे अनुकूल जलवायु वाली आबोहवा मिली। इलायची की खेती लैटिन अमेरिका के ग्वाटेमाला, भारत, श्रीलंका ,इंडोनेशिया और मलेशिया में बहुतायत से होती है । ग्वाटेमाला में तो एक पहाड़ का नाम ही इलायची पहाड़ यानी "Cardamom Hill" रखा गया है। ग्वाटेमाला कभी ब्रिटिश उपनिवेश था वहां अंग्रेजों ने इसकी खेती शुरू की थी ग्रीस और रोमन इसका उपयोग परफ्यूम ले और सुगंधित तेल को बनाने में करते थे । वह मेहमानों के सामने इसे परोसने में सम्मान की बात समझते थे । स्वीडन और फिनलैंड में इसका उपयोग क्रिसमस के दौरान बेहतरीन वाइन और पेस्ट्री बनाने में होता था।
इसके बहुत से स्वास्थवर्धक फायदे भी हैं, यदि आवाज बैठी हुई है या गले में खराश है तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा चबाकर खाएं तथा गुनगुना पानी पिए। यदि गले में सूजन आ गई है तो मूली के पानी में छोटी इलायची पीस कर सेवन करने से लाभ होता है । सर्दी -खांसी और छींक आने पर एक छोटी इलायची एक टुकड़ा अदरक, लोंग तथा पांच तुलसी के पत्ते एक साथ पान में रखे खाएं । बड़ी इलायची 5 ग्राम लेकर आधा लीटर पानी में उबाल लें, जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उतारने यह पानी पीने से उल्टियां बंद हो जाती हैं। मुँह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को महीन पीसकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर जबान पर रखें। तुरंत लाभ होगा। बहुतों को यात्रा के दौरान बस में बैठने पर चक्कर आते हैं या जी घबराता है। इसके लिए इलायची मुंह में रख लेने से तुरंत लाभ होता है। इस प्रकार देखें तो मसालों की रानी इलायची बेहतरीन स्वाद और स्वास्थ्य के लिहाज से भी बहुउपयोगी है।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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