एक आदिम रात्रि की महक पात्र परिचय करमा:- एक अनाथ लड़का धरमा:- करमा की छाया बाबू:- रेलवे कर्मचारी गोपाल बाबू:- रेलवे कर्मचारी बौमा:- गोप...
एक आदिम रात्रि की महक
पात्र परिचय
करमा:- एक अनाथ लड़का
धरमा:- करमा की छाया
बाबू:- रेलवे कर्मचारी
गोपाल बाबू:- रेलवे कर्मचारी
बौमा:- गोपाल बाबू की पत्नी
पानी पाँड़े:- रेलवे कर्मचारी
पैटमान:- रेलवे कर्मचारी
भैंसवार:- गांव का भैंसवाला
बूढ़ा:- एक का आदमी
बूढ़ी:-बूढ़ा की पत्नी
सरसतिया:- बूढ़ा की बेटी
लखमी:- बूढ़ी की पड़ोसी
कुत्ता:- करमा का साथी
भालूवाला:- मदारी
भालू:- पालतू जानवर
दृश्य: 01
स्थान:- सिगनल केबिन नया क्वार्टर समय:- रात्रि बारह बजे
( दोनों अलग अलग लोहे के खाट में सो रहे हैं, दोनों को नींद नहीं आ रही है।)
करमा:- (मन ही मन) न --- मुझको नींद नहीं आएगी। नए मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चवन्नी भर दर्द चिनमिनाता रहता है। पुराने लाइन के पुराने इस्टिसन सब हजार पुराने हों, वहाँ नींद तो आती है। ---- ले नाक के अंदर फिर सुड़सुड़ी जगी ससुरी---!
( करमा छींकने लगा। नए मकान में उसकी छींक गूँज उठी।)
बाबू :- (करवट लेते हुए पूछा) करमा, नींद नहीं आती?
करमा:- (गमछे से नथुने को साफ करते हुए) यहाँ नींद कभी नहीं आएगी, मैं जानता था, बाबू!
बाबू:- मुझे भी नींद नहीं आएगी।(सिगरेट सुलगाते हुए) नई जगह में पहली रात मुझे नींद नहीं आती।
करमा:- (मन ही मन) नए पोख्ता मकान में बाबू को भी चूने की गंध लगती है, क्या? कनपटी के पास दर्द रहता है हमेशा क्या?
बाबू:- (गीत गुनगुनाने लगा) सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, न हाथी है, न घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है।
(एक कुत्ता गश्त लगाता हुआ आया और बरामदे के पास आकर रुक गया। करमा चुपचाप कुत्ते की नीयत को ताड़ने लगा। कुत्ते ने बाबू की खटिया की ओर थुथना ऊँचा करके हवा में सूँघा। आगे बढ़ा।)
करमा:- (मन ही मन )जरूर जूता-खोर कुत्ता है साला! नहीं ,सिर्फ सूँघ रहा था।
( कुत्ता अब करमा की ओर मुड़ा। हवा को सूँघने लगा। फिर मुसाफिरखाने की ओर दुलकी चाल से चला गया।)
बाबू:- तुम्हारा नाम करमा है या करमचंद या करमू?
करमा:-(मन ही मन ) सात दिन रहने के बाद, आज आधी रात के पहर में बाबू ने दिल खोलकर एक सवाल के जैसा सवाल किया है। (प्रकट) बाबू नाम तो मेरा करमा ही है, वैसे लोगों के हजार मँुह है, हजार नाम कहते हैं। निताय बाबू कोरमा कहते थे, घोस बाबू करीमा कहकर बुलाते थे, सिंघ जी ने सब दिन कामा ही कहा और असगर बाबू तो हमेशा करम करम कहते थे। खुश रहने पर दिल्लगी करते थे- हाय मेरे करम! नाम में क्या है बाबू? जो मन में आए कहिए। हजार नाम---!
बाबू:- तुम्हारा घर संथाल परगना में है, या राँची-हजारीबाग की ओर?
करमा:- ( अचकचा कर, मन ही मन) घर? जहाँ धड़, वहाँ घर। माँ-बापजी- भगवान जी! लेकिन बाबू को ऐसा जवाब तो नहीं दे सकता! बाबू आप भी खूब हैं। नाम का अरथ निकालकर अनुमान लगा लिया। घर संथाल परगना में है, या राँची- हजारीबाग की ओर होगा, किसी गाँव में? करमा-पर्व के दिन जन्म हुआ होगा, इसलिए नाम करमा पड़ा। माथा, कपाल, होंठ और देह की गठन देखकर भी---। बाबू तो बहुत गुनी मालूम होते हैं। अपने बारे में करमा को कुछ मालूम नहीं। और बाबू नाम और कपाल देखकर सब कुछ बता रहे हैं। इतने दिन बाद एक बाबू मिले है, गोपाल बाबू जैसे!
(प्रकट) बाबू, गोपाल बाबू भी यही कहते थे! यह करमा नाम गोपाल बाबू का ही दिया हुआ है! गोपाल बाबू कहते थे, आसाम से लौटती हुई कुली-गाड़ी में एक डोको के अंदर तू पड़ा था, बिना बिलटी-रसीद के ही--- लावारिस माल। ( बाबू का नाक बजता है।) चलो बाबू को नींद आ गई। नाक बोलने लगी। गोपाल बाबू का किस्सा अधूरा रह गया। (कुतवा फिर गस्त लगाता हुआ आया।) यह कातिक का महीना है न! ससुरा पस्त होकर आया है। हाँफ रहा है। ले, तू भी यहीं सोएगा? ऊँह साले की गंध यहाँ तक आती है-धेत्त!धेत्त!
बाबू:-(जगकर) हूँ-ऊ-ऊ! तब क्या हुआ तुम्हारे गोपाल बाबू का?
( कुत्ता बरामदे के नीचे चला गया। उलटकर देखने लगा। गुर्राया। फिर दो-तीन बार दबी आवाज में बुफ-बुफ कर जनाने मुसाफिरखाने की अंदर चला गया। जहाँ पैटमान जी सोता है।)
करमा:- बाबू सो गए क्या? चलो बाबू को नींद आ गई! बाबू की नाक ठीक बबुआनी आवाज में डाकती है! पैटमान जी तो लगता है, लकड़ी चीर रहे हैं। गोपाल बाबू की नाक बीन-जैसी बजती थी- सुर में!! असगर बाबू का खर्राटा --, सिंघ जी फुफकारते थे और साहू बाबू नींद में बोलते थे- ए- डाउन दो, गाड़ी छोड़ा!
दृश्य परिवर्तन
( करमा सपना देख रहा है।)
(तार की घंटी! स्टेशन का घंटा! गार्ड साहब की सीटी! इंजिन की बिगुल! जहाज का भोंपा! सैकड़ों सीटियाँ-- बिगुल ---भोंपा--भों-ओं-ओं-ओं--!
हजार बार लाख कोशिश करके भी अपने को रेल के पटरी से अलग नहीं कर सका, करमा। वह छटपटाया। चिल्लाया, मगर जरा भी टस-से-मस नहीं हुई उसकी देह। वह चिपका रहा। धड़धड़ाता हुआ इंजिन गरदन और पैरों को काटता हुआ चला गया। लाइन के एक ओर उसका सिर लुढ़का हुआ पड़ा था, दूसरी ओर दोनों पैर छिटके हुए! उसने जल्दी से अपने कटे हुए पैर को बटोरा- अरे, यह तो एंटोनी गाट साहब के बरसाती जूते का जोड़ा है! गम-बूट! उसका सिर क्या हुआ? धेत्त, धेत्त! ससुरा नाक कान चबा रहा है! )
बाबू:- करमा!
करमा:- ( सोते हुए)धेत्त! धेत्त!
बाबू :- उठ करमा, चाय बना?
करमा:- (धडपड़ाकर उठकर बैठा) ले बिहान हो गया। मालगाड़ी को थुरू-पास करके पैटमान जी हाथ में बेंत की कमानी घुमाता हुआ आ रहा है। साला! ऐसा भी सपना होता है, भला? बारह साल में, पहली बार ऐसा अजूबा सपना देखा हमने। बारह साल में एक दिन के लिए रेलवे-लाइन से दूर नहीं गया। इस तरह एकसिडंटवाला सपना कभी नहीं देखा उसने!
( परदा गिरता है।)
दृश्य: 02
स्थान:- सिगनल केबिन नया क्वार्टर समय:- दिन छह बजे
( करमा धरमा से बातचीत कर रहा है।)
करमा:- मैं रेल कंपनी का नौकर नहीं। मैं चाहता तो पोटर, खलासी पैटमान या पानी पाँडे की नौकरी मिल सकती थी। खूब आसानी से रेलवे-नौकरी में घुस सकता था। मगर मन को कौन समझाए! मन माना नहीं! रेल-कंपनी का नीला कुर्ता और इंजिन-छाप बटन का शौक मुझे कभी नहीं हुआ।
धरमा:- क्यों नहीं हुआ करमा?
करमा:- रेल कंपनी क्या, किसी भी नौकरी मैंने कभी नहीं की।
धरमा:- क्या काम करते हो?
करमा:- नाम धाम पूछने के बाद सभी लोग पेशे के बारे में पूछते हैं। मैं एक ही जवाब देता है कि मैं बाबू के साथ रहता हूँ। एक पैसा भी मुसहरा न लेने वाले को नौकर तो नहीं कह सकते।
धरमा:- तुम्हारी कहानी मजेदार है करमा? और सुनाओ ना।
करमा:- गोपाल के साथ, लगातार पाँच वर्ष! इसके बाद कितने बाबुओं के साथ रहा, यह गिनकर बतलाना होगा! लेकिन एक बात है- रिलिफिया बाबू को छोड़कर किसी सालटन बाबू के साथ नहीं रहा। सालटन बाबू माने किसी टिशन में परमानंटी नौकरी करने वाला -फैमिली के साथ रहनेवाला! जा रे गोपाल बाबू! वैसा बाबू कहाँ मिले, मेरा माय बाप भाय बहिन कुल परिवार जो बूझिए - सब गोपाल बाबू! बिना बिलटी रसीद के लावारिस माल था, मैं! रेलवे अस्पताल से छुड़ाकर अपने साथ रखा, गोपाल बाबू ने। जहाँ जाते मैं जाता। जो खाते, मैं भी खाता। लेकिन आदमी की मति को क्या चाहिए, रिलिफिया काम छोड़कर सालटनी काम में गए। फिर एक दिन शादी कर बैठे। बौमा गोपाल की फैमिली - राम हो राम! वह औरत थी? साच्छात चुड़ैल! दिन भर गोपाल बाबू ठीक रहते। साँझ पड़ते ही उनकी जान चिड़िया की तरह लुकाती फिरती। आधी रात को कभी कभी इसपेसल पास करने के लिए बाबू निकलते। लगता, अमेरिकन रेलवे इंजिन के बायलर में कोयला झोंककर निकले हैं, मैं क्वाटर के बरामदे पर सोता था। तीन महीने तक रात में नींद नहीं आई कभी। बौमा फों फों करती - बाबू मिनमिनाकर कुछ बोलते। फिर शुरू होता रोना कराहना गाली गलौज। मारपीट। बाबू भागकर बाहर निकलते और वह औरत झपटकर माथे को केश पकड़ लेती। तब मैंने एक उपाय निकाला। ऐसे समय में मैं उठकर दरवाजा खटखटा कर कहता-
दृश्य परिवर्तन
करमा:- बाबू इसपेसल का कल बोलता है। बाबू की जान कितने दिनों तक बचाता मैं?
(बौमा एक दिन चिल्लाई)
बौमा:- ए छोकरा हरामजादा को दूर कोरो। यह चोर है, चो-ओ-ओ-र!
दृश्य परिवर्तन
करमा:- इसके बाद से ही किसी टिसन के फैमिली क्वाटर को देखते ही मेरे मन में एक पतली आवाज गूँजने लगती है- चो-ओ-ओ-र! हरामजादा! फैमिली क्वाटर ही क्यों- जनाना मुसाफिरखाना, जनाना दर्जा, जनाना- जनाना नाम से ही मुझको उबकाई आने लगती है। ( चुप हो जाता है , जैसे कुछ याद कर रहा हो।)
धरमा:- फिर क्या हुआ धरमा?
करमा:- एक ही साल में गोपाल बाबू को हाड़ गोड़ सहित चबाकर खा गई, वह जनाना! फूल जैसे सुकुमार गोपाल बाबू! जिन्दगी में पहली बार फूट-फूटकर रोया था, मैं। रमता जोगी, बहता पानी और रिलिफिया बाबू ! हेड-क्वाटर में चैबिस घंटे हुए कि परवाना कटा- फलाने टिसन का मास्टर बीमार है, सिक रिपोट आया है। तुरत जोआयेन करो। रिलिफिया बाबू का बोरिया बिस्तर हमेशा रेडी रहना चाहिए। कम से कम एक सप्ताह, ज्यादा से ज्यादा तीन महीने से ज्यादा किसी एक जगह में जमकर नहीं रह सकता, कोई रिलिफिया बाबू। लकड़ी के एक बक्से में सारी गृहस्थी बन्द करके - आज यहाँ, कल वहाँ। पानीपाड़ा से भातगाँव, कुरैठा से रौताड़ा। फिर हेड क्वाटर कटिहार!
( चुप हो जाता है , जैसे कुछ याद कर रहा हो।)
धरमा:- आज मुझे जिन्दगी में पहली बार इतना मजा आ रहा है। आगे सुनाओ।
करमा:- गोपाल बाबू ने ही घोस बाबू के साथ लगा दिया था- खूब भालो बाबू। अच्छी तरह रखेगा। लेकिन घोस बाबू के साथ एक महीना से ज्यादा नहीं रह सका करमा। घोस बाबू की बेवजह गाली देने की आदत ! गाली भी बहुत खराब खराब! माँ बहन की गाली। इसके अलावा घोस बाबू में कोई ऐब नहीं था। अपने समांग की तरह रखते थे। घोस बाबू आज भी मिलते हैं तो गाली से ही बात शुरू करते हैं। की रे --करमा? किसका साथ में हैं आजकल मादर्च---? घोस बाबू को माँ बहन की गाली देने वाला कोई नहीं। नही ंतो समझते कि माँ बहन की गाली सुनकर आदमी का खून किस तरह खौलने लगता है। किसी भले आदमी को ऐसी खराब गाली बकते नहीं सुना है करमा ने आज तक।
धरमा:- ओ हो बहुत ज्यादा मजा आ रहा है करमा। आगे सुनाओ।
करमा:- राम बाबू की सब आदत ठीक थी। लेकिन भा-आ-री इस्की आदमी। जिस टिसन में जाते, पैटमान पोटर सूपर को एकांत में बुलाकर घुसुर फुसुर बतियाते। फिर रात में कभी मालगोदाम की ओर तो कभी मुसाफिर खाना की में, तो कभी जनाना पैखाना में -छिः-छिः -- जहाँ जाते छुछुआते रहते। क्या जी असल-माल-वाल का कोई जोगाड़ अंतर नहीं लगेगा। आखिर वही हुआ जो मैंने कहा था- माल ही उनका काल हुआ। पिछले साल जोगबनी लाइन में एक नेपाली ने खुकरी से दो टुकड़े काटकर रख दिया। और उड़ाओ माल! जैसी अपनी इज्जत वैसी पराई!
धरमा:- यही तो मजा है, नौकरी वालों के साथ रहने पर, खाना और मनोरंजन और क्या चाहिए जीवन में करमा।
करमा:- (अपने मग्न होकर कहे जा रहा है।) सिंघ जी भारी पुजेगरी! सिया सहित राम-लछमन की मूर्ति हमेशा उनकी झोली में रहती थी। रोज चार बजे से ही नहाकर घंटी हिलाते रहते। इधर कल की घंटी बजती। जिस घर में ठाकुर की झोली रहती, उसमें बिना नहाए कोई पैर भी नहीं दे सकता था। कोई अपनी देह को उस तरह बाँधकर हमेशा कैसे रह सकता है। कौन दिन में दस बार नहाए और हजार बार पैर धोए! सो भी जाड़े के मौसम में। जहाँ कुछ छुओ कि हूँहूँहूँ- हाँहाँहाँ- अरेरेेरे- छू दिया न? ऐसे छुतहा आदमी को रेल कंपनी में आने की क्या जरूरत? सिंघ जी का साथ नहीं निभ सका।
धरमा:- आगे क्या हुआ?
करमा:- साहू बाबू दरियादिल आदमी थे। मगर मदक्की ऐसे कि दिन-दोपहर को पचास-दारू एक बोतल पीकर माल गाड़ी को थुरूपास दे दिया और गाड़ी लड़ गई। करमा को याद है, एक्सिडन्ट की खबर सुनकर साहू बाबू ने फिर एक बोतल चढ़ा लिया। आखिर डॉक्टर ने दिमाग खराब होने का साटिफिकेट दे दिया। लेकिन उस एकसिडंट के समय भी किसी रात को मैंने ऐसा सपना नहीं देखा!
( परदा गिरता है।)
दृश्य:03
स्थान:- सिगनल केबिन नया क्वार्टर समय:- दिन सात बजे
करमा:- (मन ही मन) न भोर भोर ऐसी कुलच्छन भरी बात बाबू को सुनाकर ठीक नहीं किया। रेलवे की नौकरी में अभी तुरत घुसवै किए हैं। न बाबू के मिजाज का टेर पता अब तक करमा को नहीं मिला है। करीब एक सप्ताह तक साथ रहने के बाद कल रात में पहली बार दिल खोलकर दो सवाल- जवाब किया बाबू ने। इसीलिए सुबह को करमा ने दिल खोलकर अपने सपने की बात शुरू की थी।
( चाय की प्याली सामने रखने के बाद उसने हँसकर कहा)
हँह बाबू , रात में हम एक अ-जू-ऊ-ऊ-बा सपना देखा। धड़धड़ाता इंजिन -- लाइन पर चिपकी हमारी देह टस-से-मस नहीं--- सिर इधर और पैर दोनों लाइन के उधर -- एंटोनी गाट साहेब का जूते का जोड़ा--- गमबोट---।
बाबू:- धेत्त ! क्या बेसिर-पैर की बात करते हो, सुबह सुबह? गाँजा -वाँजा पीता है क्या?
करमा:- (मन ही मन) करमा ने बाबू को सपना की बात सुनाकर अच्छा नहींे किया।
(करमा उठकर ताखे पर रखे हुए आईने में अपना मुँह देखने लगा। उसने अ-जू-ऊ-ऊ-बा कहकर देखा।)
छिः उसके होंठ तीतर की चोंच की तरह।
(पानी पाँड़े आता है।)
पानी पॉड़े:- का करमचन? का बन रहा है?
करमा:-( मन ही मन) पानी पाँड़े ? यह पानी पाँड़े भला आदमी है। पुरानी जान पहचान है इससे, करमा की। कई टिसन में संगत हुआ है। लेकिन यह पैटमान लटपटिया आदमी मालूम होता है। हर बात पर पुच पुचकर हँसने वाला।
पानी पॉड़े:- करमचन, बाबू कौन जाति के हैं?
करमा:- क्यों? बंगाली हैं।
पानी पॉड़े:- भैया बंगाली में भी साढ़े-बारह बरन के लोग रहते हैं।
करमा:- पानी पॉड़े जी, सो तो मैं नहीं जानता। मगर बहुत गुनी आदमी हैं। आपका नाम का मतलब निकालकर- चेहरा देखकर सब कुछ बता देंगे। लीजिए, घंटी पड़ गई दुब्ज्जी गाड़ी की, और मेरी तरकारी अभी तक चढ़ी नहीं है।
पानी पॉड़े:- (जाते जाते कहा) थोड़ी तरकारी बचाकर रखना करमचन!
( पानी पॉड़े जाता है।)
करमा:- (मन ही मन) घर कहाँ? कौन जाति? मनिहारी घाट के मस्तान बाबा का सिखाया हुआ जवाब, सभी जगह नहीं चलता, हरि के भजे सो हरि का होई! मगर हरि की भी जाति थी! ले यह घटही गाड़ी का इंजन कैसे भेज दिया लाइन में आज? संथाली-बाँसी जैसी पतली सीटी-सी-ई-ई!!
( धरमा आता है।)
धरमा:- करमा भाई! और कुछ कुछ सुनाओ?
करमा:- ले फक्का! एक भी पसिंजर नहीं उतरा, इस गाड़ी से भी। काहे को इतना खर्चा करके रेल कंपनी ने यहाँ टिसन बनाया, मेरे के बुद्धि में नहीं आता। फायदा? बस नाम ही आमदपुरा है- आमदनी नदारद। सात दिन में दो टिकट कटे हैं और सिर्फ पाँच पसिंजर उतरे हैं, तिसमें दो बिना टिकट के। इतने दिन के बाद पंद्रह बोरा बैंगन उस दिन बुक हुआ। पंद्रह बैंगन देकर ही काम बना लिया, उस बूढ़े ने। उस बैंगनवाले की बोली बानी अजीब थी। मुझसे खुलकर गप करना चाहता था बूढ़ा। घर कहाँ है? कौन जाति? घर में कौन कौन हैं? मैंने सभी सवालों का एक ही जवाब दिया था- ऊपर की ओर दिखलाकर! बूढ़ा हँस पड़ा था। अजीब हँसी! घटही -गाड़ी! सी-ई- ई-!!
धरमा:- तुम्हारी बातों में मुझे बहुत रस मिल रहा है, तुम्हारी बातें गन्ने की रस की तरह मीठे हैं, करमा।
करमा:- मनियारी घाट टिसन में भी रहा हूँ, तीन महीने तक एक बार, एक महीने में दूसरी बार। इसकी बात निराली है। कहाँ मनियारी घाट और कहाँ आदमपुरा का यह पिद्दी टिसन। नई जगह में नए टिसन पर पहंुॅचकर आसपास के गाँवों में एकाध चक्कर घूमे फिरे बिना मुझको न जाने कैसा कैसा लगता है। लगता है अंधकूप में पड़ा हुआ है। वह डिसटन-सिंगल के उस पार दूर दूर तक खेत फैले हैं। वह काला जंगल ताड़ का वह अकेला पेड़, आज बाबू को खिलाकर मैं निकलूँगा। इस तरह बैठे सहने से उसके पेट का भात नहीं पचेगा। यदि गाँव भर और खेत का मैदान में नहीं घूमता-फिरता तो वह पेड़ पर चढ़ना कैसे सीखता? तैरना कहाँ सीखता?
धरमा:- आम के रस की तरह तुम्हारे बोल लग रहे हैं। सुनाओ सुनाओ कुछ और सुनाओ, करमा।
करमा:- लखपतिया टिसन का नाम कितना जब्बड़ है! मगर टिसन पर एक सत्तू-फरही की भी दुकान नहीं। आसपास में पाँच कोस कोई गाँव नही। मगर टिसन से पूरब जो दो पोखरे हैं, उन्हें कैसे भूल सकता है मैं? आईना की तरह झलमलाता पानी। बैसाख महीने के दोपहरी में, घंटों गले भर पानी में नहाने का सुख! मुँह से कहकर बताया नहीं जा सकता! मुदा, कदमपुरा - सचमुच कदमपुरा है। टिसन से शुरू करके गाँव तक हजारों कदम के पेड़ हैं। कदम की चटनी खाए एक युग हो गया।
धरमा:- संजय जैसे तुम्हारी बातें लग रही है, करमा।
करमा:- वारिसगंज टिसन, बीच कस्बा में है। बड़े बड़े मालगोदाम हजारों गाँठ-पाट, धान-चावल के बोरे, कोयले सीमेंट चूना की ढेरी। हमेशा हजारों लोगों की भीड़! करमा को किसी का चेहरा याद नहीं। लेकिन टिसन से सटे उत्त्र की मैदान में तंबू डालकर रहनेवाले गदहावाले मगहिया डोमों की याद हमेशा आती है। घाघरीवाले औरतें हाथ में बड़े बड़े कड़े, कान के झूमके, नंगे बच्चो, कान में गोल गोल कुंडल वाले मर्द! उनके मुर्गे! उनके कुत्ते!
धरमा:- नाम तो मेरा धरम है, पर तुम धरम कर रहे हो करमा। आदमी को कर्म को ही पूजा समझना चाहिए और कर्म करते रहना चाहिए। आगे सुनाओ।
करमा:-बथनाहा टिसन के चारों ओर हजार घर बन गए हैं। कोई परतीत करेगा कि पाँच साल पहले बथनाहा टिसन पर दिन दोपहर को टिटही बोलती थी। कितनी जगहों कितने लोगों को याद आती है। सोनबरसा का आम, कालूचक की मछलियाँ, भटोतर की दही, कुसियारगांव का ऊख। मगर सबसे ज्यादा याद आती है मनिहारीघाट की टिसन। एक तरफ धरती दूसरी ओर पानी। इधर रेलगाड़ी, उधर जहाज। इस पार खेत-गाँव मैदान, उस पार साहेबगंज कटरोटिया का नीला पहाड़। नीला पानी-सादा बालू! तीन एक चार! चार महीने तक तीसों दिन गंगा में नहाया है करमा। चार जनम तक पाप का कोई असर नहीं होना चाहिए। इतना बढ़िया नाम शायद ही किसी टिसन का होगा - मनिहार। बलिहारी! मछुवे जब नाव से मछलियाँ उतारते तो चमक के मारे करमा की आँखें चैंधिया जाती। रात में उधर जहाज चला जाता-धु धु करता हुआ। इधर गाड़ी छकछकाती हुई कटिहार की ओर भागती। अजू साह की दुकान की झाँपी बंद हो जाती। तब घाट पर मस्तान बाबा की मंडली जुटती।
धरमा:- ऐसी बातें रोज रोज सुनने को मिले तो, आदमी खाना भूल जाए।
करमा:- मस्तान बाबा कुली कुल के थे। मनिहारी घाट पर कुली का काम करते थे। एक बार मन ऐसा उदास हो गया कि दाढ़ी और जटा बढ़ाकर बाबाजी हो गए। खंजड़ी बजाकर निरगुन गाने लगे। बाबा कहते- घाट घाट का पानी पीकर देखा- सब फीका। एक गंगाजल मीठा। बाबा एक चिलम गाँजा पीकर पाँच किस्सा सुना देते। सब बेद पुरान का किस्सा ! मैंने ग्यान की दो चार बोली मनियारी घाट पर ही सीखाीं। मस्तान बाबा के सत्संग में। लेकिन गाँजा में उसने कभी दम नहीं लगाया। आज बाबू ने झुँझलाकर जब कहा, गाँजा- वाँजा पीते हो क्या, तो करमा को मस्तान बाबा की याद आई। बाबा कहते - हर जगह की अपनी खुशबू-बदबू होती है! इस आदमपुरा की गँध के मारे मुझको खाना- पीना नहीं रुचता। मस्तान बाबा को बाद देकर मनिहारीघाट की यााद कभी नहीं आती।
(परदा गिरता है।)
दृश्य: 04
स्थान:- सिगनल केबिन नया क्वार्टर समय:- दिन दो बजे
( करमा ने ताखे पर रखे आईने में फिर अपना मुखड़ा देखा। उसने आँखें अधमुँदी करके दाँत निकालकर हँसते हुए मस्तान बाबा के चेहरे की नकल उतारने की चेष्टा की। - मस्त रहो! सदा आँख कान खोलकर रहो। धरती बोलती है। गाछ- बिरिच्छ भी अपने को पहचानते हैं। फसल को नाचते देखा है कभी। रोते सुना है कभी अमावस्या की रात को? है--है--- है--- मस्त रहो। करमा को क्या पता कि बाबू पीछे खड़े होकर सब तमाशा देख रहे हैं। बाबू ने अचरज से पूछा।)
बाबू:- तुम जगे जगे खड़े होकर भी सपना देखता है? कहता है कि गांजा नहीं पीता?
(सचमुच वह खड़ा खड़ा सपना देखने लगा था। मस्तान बाबा का चेहरा बरगद की पेड़ की रह बड़ा होता गया। उसकी मस्त हँसी आकाश में गूँजने लगी। गाँजा का धुआँ उड़ने लगा। गंगा की लहरें आईं। दूर जहाज का भोंपा सुनाई पड़ा- भों-ओं-ओं!
बाबू:- खाना परोसो। देखूँ, क्या बनाया है? तुमको लेकर भारी मुश्किल है। ( पहला कौर निगलकर) लेकिन खाना तो बहुत बढ़िया बनाया है। खाना बनाना किसने सिखलाया तुमको? गोपाल की घरवाली ने?
करमा:- गोपाल की घरवाली? माने बौमा? बौमा का मिजाज तो इतना खट्टा था कि बोली सुनकर कड़ाही का ताजा दूध फट जाए। वह किसी को क्या सिखावेगी? फूहड़ औरत?
बाबू:- और यह बात बनाना किसने सिखलाया तुमको?
करमा:- बाबू सिखलाएगा कौन? सहर सिखाए कोतवाली!
बाबू:- तुम्हारी बीबी को खूब आराम मिलेगा।
करमा:- बाबू, आज हमको जरा छुट्टी चाहिए।
बाबू:- छुट्टी! क्यों? कहाँ जाएगा?
करमा:- ( हाथ से इशारा ) जरा उधर घूमने फिरने।
( पैटमान पुकारता है।)
पैटमान:- करमा ! बाबू को बोलो कल बोलता है।
दृश्य: 05
(करमा सोचते हुए जा रहा है।)
करमा:- तुम्हारी बीबी को आराम होगा! करमा की बीबी! वारिसगंज टिसन मगहिया डोमों के तंबू। उठती उमेरवाली छौंड़ी। नाक में नथिया। नाक और नथिया में जमे हुए काले मैंले। पीले दाँतों में मिस्सी!! करमा अपने हाथ का बना हुआ हलवा-पूरी उस छौंड़ी को नहीं खिला सका। एक दिन कागज की पुड़िया में ले गया। लेकिन वह पसीने से भीग गया। उसकी हिम्मत नहीं हुई। यदि वह छौंड़िया चिल्लाने लगे कि तुम हमको चुरा छिपाकर हलवा काहे खिलाता है? ओ--मइयो-यो-यो-यो-यो। बाबू हजार कहे ? करमा का मन नहीं मानता कि उसका घर संथाल परगना या राँची की ओर कहीं होगा। मनिहारीघाट में दो दो बार रह आया है वह। उस पार के साहेबगंज कजरौटिया के पहाड़ ने उसको अपनी ओर नहीं खींचा कभी! और वारिसगंज, कदमपुरा, कालूचक, लखपतिया का नाम सुनते ही उसके अंदर कुछ झनझना उठता है। जाने-पहचाने, अचीन्हे, कितने लोगों की भीड़ लग जाती है। कितनी बातें सुख-दुख की! खेत खलिहान, पेड़-पौधे, नदी पोखरे, चिरई-चुरमुन- सभी एक साथ टानते हैं, मुझकोे! सात दिन से वह काला जंगल और ताड़ का पेड़ उसको इशारे से बुला रहा है। जंगल के ऊपर आसमान में तैरती हुई चील आकर करमा को क्यों पुकार जाती है? क्यों?
(रेलवे हाता पार करने के बाद भी कुत्ता नहीं लौटा तो करमा ने झिड़की दी।)
करमा:- तू कहाँ जाएगा ससुर? जहाँ जाएगा झाँव-झाँव करके कुत्ते दौड़ेंगे। जा! भाग! भाग!!
( कुत्ता रुककर करमा को देखने लगा। धनखेतों से गुजरनेवाली पगडंडी पकड़कर करमा चल रहा है। धान की बालियाँ अभी फुटकर निकली नहीं हैं। )
करमा:- इनको देखकर हेडक्वाटर के चैधरी बाबू की गर्भवती घरवाली की याद आई। सुना है, डॉक्टरनी ने अंदर का फोटो लेकर देखा देखा है- जुड़वाँ बच्चा है पेट में!
इधर हथिया नच्छत्तर अच्छा झरा था। खेतों में अभी भी पानी लगा हुआ है। मछली? पानी में माँगुर मछलियों को देखकर अपन की देह अपने आप बँध गई।
(वह साँस रोककर चुपचाप खड़ा रहा। फिर खेत की मेंड़ पर चला गया। मछलियाँ छलमलाईं। आईने की तरह थिर पानी अचानक नाचने लगा। )
करमा:- क्या करे? उधर की मेंड़ से सटाकर एक छेंका देकर पानी को उलीच दिया जाए तो---?
करमा:- है है - है है! साले! बन का गीदड़, जाएगा किधर? और छलमलाओ! अरे काँटा करमा को क्या मारता है? करमा नया शिकारी नहीं। आठ माँगुर और एक गरई मछली! सभी काली मछलियाँ! कटिहार हाट में इसी का दाम बेखटके तीन रुपया ले लेता।
( करमा ने गमछे में मछलियों को बाँध लिया। ऐसा संतोख उसको कभी नहीं हुआ, इसके पहले। बहुत बहुत मछली का शिकार किया उसने!)
( एक बूढ़ा भैंसवार अपनी भैंस को खोजते हुआ आया।)
भैंसवार:- ए भाय! उधर किसी भैंस पर नजर पड़ी है?
करमा:- नहीं तो।
भैंसवार:- बीड़ी होगी?
करमा :- मैं बीड़ी नहीं पीता।
भैंसवार:- (अचरज से) कैसा आदमी है? न बीड़ी पीता है, न तंबाकू खाता है।
( भैंसवार नाराज होकर जिरह करना शुरू किया।)
भैंसवार:- इधर कहाँ जाना है?
करमा:- उधर वो गांव जाना है।
भैंसवार:- गाँव में तुम्हारा कौन है?
करमा :- तुमसे मतलब?
भैंसवार:- मछली कहाँ ले जा रहा है?
करमा:- तुम्हें क्यों बताऊँ?
( भैंसवार अपने रास्ते चला जाता हैै।)
करमा:- ताड़ के पीछे आया कि गाँव आ गया, गाँव में कोई तमाशावाला आया है। बच्चे दौड़ रहे हैं। हाँ भालूवाला ही है। डमरू की आवाज सुनकर हमने समझ लिया है।
आह! गाँव की पहली गंध! गंध का पहला झोंका!
( गाँव का पहला आदमी। यह बूढ़ा गोभी को पानी पटा रहा है। दोनों के आँखे मिलती है। बूढ़ा भी पहचान जाता है।)
बूढ़ा:- क्या है, भाई! इधर किधर?
करमा:- ऐसे ही । घूमने फिरने! आपका घर इसी गाँव में है?
(बूढ़ा हँसा। सरसतिया हुक्के पर चिलम चढ़ाकर फूँकती हुई आई। चिलम को फूँकते समय उसके दोनों गाल गोल हो गए थे। करमा को देखकर वह ठिठकी। फिर गोभी के खेत के बाड़े को पार करने लगी। )
बूढ़ा :-चल बेटी, दरवाजे पर ही हम लोग आ रहे हैं।
( हाथ पैर धोकर बाहर आया।) चलो!
सरसतिया:- बाबा, यह कौन आदमी है?
बूढ़ा :- भालू नचानेवाला आदमी।
सरसतिया:- धेत्त!
( करमा लजाया। क्या उसका चेहरा भालू नचानेवाला जैसा है।)
बूढ़ा :- तुम रिलिफिया बाबू के नौकर हो न?
करमा:- नहीं, नौकर नहीं। ऐसे ही साथ रहता हूँ।
बूढ़ा :- ऐसे ही? साथ में? तलब कितना मिलता है?
करमा:- साथ रहने पर तलब क्या मिलेगा?
( बूढ़ा हुक्का पीना भूल गया।)
बूढ़ा :- बस? बेमतलब का ताबेदार?( सरसतिया से) सरसतिया ! जरा माय को भेज दो, यहाँ। एक कमाल का आदमी।
( बूढ़ी टट्टी की आड़ में खड़ी थी। तुरत आई।)
बूढ़ा :- जरा देखो, इस किल्लाठोंक-जवान को। पेट भात पर खटता है। क्यों जी कपड़ा भी मिलता है? इसी को कहते हैं- पेट-माधेराम मर्द!
( सरसतिया की पतली खिलखिलाहट, भालू नचानेवाला कहीं पड़ोस में ही तमाशा दिखा रहा है। करमा सोच रहा है।)
करमा:- डमरू के ताल पर भालू हाथ हिला हिला कर थब्बड़ थब्बड़ नाच रहा होगा- थुथना ऊँचा करके!
दृश्य परिवर्तन
भालूवाला:- (भालू से) अच्छा जी भोलेराम, नाच तो खूब बनाया तैने। अब एक बार दिखला दे कि फूहड़ औरत गोद में बच्चा को सुलाकर किस तरह ऊँघती है।
भालू:- ( वैसा करके बताता है)
भालूवाला:- वाह जी भोलेराम!
सभी:-( हँसते हैं)हा हा हा
दृश्य परिवर्तन
बूढ़ा:- तुम्हारा नाम क्या है जी?
करमा:- करमचन
बूढ़ा:- वाह, नाम तो सगुनिया है। लेकिन काम? काम चूल्हचन?
करमा:- (लजाते हुए बात को मोड़ दिया।) आपके खेत का बैंगन बहुत बढ़िया है। एकदम घी जैसा।
( बूढ़ा हँसता है और बूढ़ी की हँसी करमा की देह में जान डाल देती है।)
बूढ़ी:- बेचारे को दम तो लेने दो। तभी से रगेड़ रहे हो।
बूढ़ा:- मछली है? बाबू के लिए ले जाओगे?
करमा:- नहीं। ऐसे ही रास्ते में शिकार।
बूढ़ा:- सरसतिया की माय! मेहमान को चूड़ा भूनकर मछली की भाजी के साथ खिलाओ! (करमा से) एक दिन दूसरे के हाथ की बनाई मछली खा लो जी!
(जलपान करते समय करमा ने सुना, लखमी और सरसतिया बात कर रहे हैं।)
लखमी:- ए सरसतिया की माय! कहाँ का मेहमान है?
बूढ़ी:- कटिहार का।
लखमी:- कौन है?
बूढ़ी:- कुटुम ही है।
लखमी:- कटिहार में तुम्हारा कुटुम कब से रहने लगा?
बूढ़ी:- हाल से ही।
( फिर एक खिलखिलाहट! कई खलखिलाहट!! चिलम फूँकते समय सरसतिया के गाल मोसंबी की तरह गोल हो जाते है। )
बूढ़ी:- अच्छा ए बबुआ! तार के अंदर से आदमी की बोली कैसे जाती है? हमको जरा खुलासा करके समझा दो। ( करमा जा रहा है) बूढ़े की बात का बूरा न मानना। जब से जवान बेटा गया, तब से इसी तरह उखड़ी उखड़ी बात करता है कलेजे का घाव। एक दिन फिर आना। अपना ही घर समझना।
( लौटते समय करमा को लगा, तीन जोड़ी आँखें उसकी पीठ पर लगी हुई है। आँखें नहीं- डिसटन सिंगल, होम सिंगल और पैट सिंगल की लाल लाल गोल गोल रोशनी।)
दृश्य: 06
( करमा वापस आ रहा है। रास्ते में ढोढ़िया साँप मिलता है।)
करमा :- ढोढ़िया साँप ! फों फों करता हुआ भागा। हद है! कुत्ता अभी तक बैठा मेरा राह देख रहा है। ( कुत्ता खुशी के मारे नाचने लगा।) बूढ़े ने उसे बनाकर ठग लिया। तीन रुपए की मोटी मोटी मांगुर मछलियाँ एक चुटकी चूड़ा खिलाकर , चार खट्टी मीठी बात सुनाकर।
( करमा ने मछली की बात अपने पेट में रख ली।)
बाबू:- करमा, तुम्हारी देह से कच्ची मछली की बास आती है। मछली ले आए हो।
करमा:- ( मन ही मन) बाबू तो पहले से जान लेने वाला अगरजानी है। (चुप रहा) जिन्दगी में पहली बार किसी बाबू को विश्वासघात किया है। मछली देखकर बाबू जरूर नाचने लगते।
( परदा गिरता है।)
दृश्य:- 07
( करमा सो रहा है, पर उसे नींद नहीं आ रही है, वह सोच रहा है।)
करमा:- पंद्रह दिन देखते ही देखते बीत गया। अभी रात की गाड़ी से टिसन से साल्टन मास्टर बाबू आए हैं- बाल बच्चों के साथ। पंद्रह दिन से चुप फैमिली क्वाटर में कुहराम मचा है। भोर के गाड़ी के साथ करमा अपने बाबू के साथ हेड-क्वाटर लौट जाएगा। इसके बाद मनिहारीघाट? न आज रात भी करमा को नींद नहीं आएगी नहीं अब वार्निश चूने की गंध नहीं लगती। बाबू मजे में सो रहे हैं। बाबू सचमुच गोपाल बाबू जैसे हैं। न किसी जगह से तिल भर मोह, न रत्ती भर माया। करमा क्या करे? ऐसा तो कभी नहीं हुआ। एक दिन रि आना , अपना ही घर समझना। कुटुम है, पेट माधोराम मर्द।
( करमा सपना देख रहा है।)
अचानक करमा को एक अजीब गंध लगी, वह उठा। किधर से यह गंध आ रही है? उसने धीरे से प्लेटफार्म पार किया। चुपचाप सूँघता हुआ आगे बढ़ता गया। रेलवे लाइन पर पैर पड़ते ही सभी सिंगल- होम, डिसटट और पैट- जोर जोर से बिगुल फूँकने लगे। फैमिली क्वाटर की एक औरत चिल्लाने लगी- चो-ओ-ओ-र। वह भागा। एक इंजिन उसके पीछे-पीछे दौड़ा आ रहा है। मगहिया डोम की छौंड़ी? तंबू में वह छिप गया। सरसतिया खिलखिलाकर हँसती है। उसके झबरे केश, बेनहाई हुई देह की गंध, करमा के प्राण में समा गई। वह डरकर सरसतिया के गोद में--- नहीं उसकी बूढ़ी माँ की गोद में अपना मुँह छिपाता है। रेल और जहाज के भोंपे एक साथ बजते हैं। सिंगल की लाल लाल रोशनी।
बाबू:- करमा उठ! करमा सामान बाहर निकालो।
( करमा एक गंध के समुद्र में डूबा हुआ है। उसने उठकर कुरता पहना। बाबू का बक्सा बाहर निकाला।)
पानी पाँड़े:- कहा सुना माफ करना।
करमा:- ( गंध में डूबा रहा।)---।
( गाड़ी आई। बाबू गाड़ी में बैठे। करमा ने बक्सा चढ़ा दिया। वह सरवेंट दर्जा में बैठेगा। )
बाबू:- सब कुछ चढ़ा दिया तो? कुछ छूट तो नहीं गया?
करमा:- नहीं, कुछ छूटा नहीं है।
( गाड़ी ने सीटी दी। करमा ने देखा , प्लेटफार्म पर बैठा हुआ कुत्ता उसकी ओर देखकर कूँ कूँ कर रहा है। बेचैन हो गया कुत्ता।)
करमा:- बाबू?
बाबू:- क्या है?
करमा:- मैं नहीं जाऊँगा।
( करमा चलती गाड़ी से उतर गया। धरती पर पैर रखते ही ठोकर लगी। लेकिन सँभल गया।)
(परदा गिरता है।)
( फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से।)
एकांकी रूपान्तरण:- सीताराम पटेल सीतेश
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