1. हम कुछ दिन से घर में हैं। बस कोरोना के डर में हैं।। विश्व भर में कोहराम मचा है। सब सूने पड़े गली कूचा है।। बंद दरवाजे बंद है हलचल। ब...
1. हम कुछ दिन से घर में हैं।
बस कोरोना के डर में हैं।।
विश्व भर में कोहराम मचा है।
सब सूने पड़े गली कूचा है।।
बंद दरवाजे बंद है हलचल।
बेचैन हो रहा मन ये चंचल।।
माना कोरोना बहुत बुरा है।
कुछ अच्छा भी सीखा रहा है।।
गांव की मिट्टी घर का आंगन।
यहीं सुखी होता है तन मन।।
भाग दौड़ नहीं जीवन हमारा।
सबसे अच्छा है भाईचारा।।
हम सब एक विधाता के जन।
हर घर में बसते हैं भगवन।।
'सीमा' यूं एक दूजे से ना भिड़ें।
चलो मिलकर कोरोना से लड़ें।।
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
2. कोरोना तेरा दोष नहीं
तू हमें जगाने आया है।
हम कितने बुरे हो गए
तू सबक सिखाने आया है।।
भूल गए थे मानवता हमारी
हम हो गए थे अत्याचारी
छोड़े ना कोई पेड़ पहाड़ी
सब जानवरों की आजादी मारी
धरती मां पर जुल्म किए थे
वो फिर भी जीवन देते ना हारी
हम कितने क्रूर हो गए
मां का संदेश सुनाने आया है।
भूल गए थे रिश्ते-नाते
कोई किसी का दुख ना बांटे
भाग दौड़ का जीवन बिताते
एक पल का समय ना पाते
बुढे मां-बाप सोच रहे
बच्चे हमको पूछने आते
पैसा ही सब कुछ नहीं होता
ये एहसास दिलाने आया है।
धर्म-जात में बंटे हुए हैं
एक दूजे से कटे हुए हैं
झूठ फरेब पे डटे हुए हैं
स्वार्थ से बिल्कुल सटे हुए हैं
रुतबा शोहरत सिर्फ नाम की
तन-मन से लुटे हुए हैं
मोह माया में लिप्त हो गए
अपनों की ओर ध्यान बंटाने आया है।
कोरोना तेरा दोष नहीं
तू हमें जगाने आया है।
हम कितने बुरे हो गए
तू सबक सिखाने आया है।।
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
3. दिल कमबख्त
रात को जो फैसले
लेकर सोता है
सवेरा होते ही
सब भुला देता है
और कहता है..
रात गई बात गई
चल अब फिर से
आवारा हो जा...
परवाह न कर
जमाने की
कर ले जो करना है
बस किसी को
दुख मत पहुंचा...
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
4. नहीं तू इतनी कमजोर
नहीं हो सकती
तेरी आँखें नम अब और
नहीं हो सकती
मिट्टी के घरोंदे सा है दुख
सुख की बारिश में बह जायेगा
रात ना हो तो दूजी भोर
नहीं हो सकती
थक के मत बैठ हिम्मत रख
एक दिन गरूर सबका ढह जायेगा
बुरी नजर तब कोई तेरी ओर
नहीं हो सकती
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
5. डूब चुका था
फिर ऊगा है
लालिमा है
चमके भी गा
पर ढलने ना दूंगी मैं
आस जगी है
कुछ करने की
मन मेरा
मजबूत किया है
अब मचलने ना दूंगी मैं
छूट गए थे
पाना है अब
सपनों को
ठोस किया है
तो पिघलने ना दूंगी मैं
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
6. एक चमकता सा पत्थर
परखा इतना ही सबकी निगाहों ने
डर नहीं खो जाने का
सस्ती सी कीमत का समझा
जब चाहा काम में लिया
रख दिया संदूकची में बंद करके
बांधने लगे आलोचनाओं के ढेर
पीछे से,
पत्थर ही तो है
बेखबर इस बात से
तराशें तो हीरा निकलेगा
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
7. न कल्पना नव रूप से,
रचना रची जब नार की
चमकी एक किरन
सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् संसार की।
बाबुल का घर महकाती हैं ये
होती है जब तक बालाएँ
पिया के घर जाकर ये
निभाये अनेक औपचारिकताएं
बनके माँ शिशु की खातिर
प्यार और ममता की गंगा बहाएं
नारी होती है शक्ति ऐसी
जैसे बारिश के बाद बहार सी
नारी तो बहुत दर्द सहती है
फिर क्यों इसे कमजोर माना जाए
बहू ऐसी चाहिए होती है
जो बहुत सा दहेज लेकर आए
मानी जाती थी जो देवी पहले
रहते हैं हर वक्त अब बुरी नजरों के साये
नारी अश्रुओं के घूंट पी
जीती है जिंदगी पठार सी
नारी के बिन तो
ये जग भी ना बढ पाए
ये सब जानते हुए भी
क्यों कन्या को भ्रूण में ही मरवाएं
नारी ही है आधार जग का
ना इनको इतना सताएं
नारी ही है डुबती नाव को
बचाने वाली पतवार सी
नारी के सर से हटा दो
छत अत्याचार की
तभी कल्पना कर सकते हैं
फिर एक सुंदर संसार की
नव कल्पना नव रूप से
रचना रची जब नार की
महकी एक बगिया सी
सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् संसार की।
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर हिसार*
8. वो पेड़ उम्मीदों से जुड़ा है
इतु सी कोपलों पे तना खड़ा है
दिख रहा है जैसे सूखा हो
बरसों से पानी का भूखा हो
गर्मी-सर्दी सब तोड़ने को आए
वह अडिग और भी जड़ फैलाएं
गर जड़ों से पानी मिल जाए
फिर वह हरा-भरा खिल जाए
वो " पेड़ " पिता है 'कोपल" है बच्चे
"पानी" कामयाबी बच्चों की
'गर्मी-सर्दी" ठहरा समाज
"जड़" मेहनत पिता की
बच्चों के सुकूनो- ए- चैन के लिए
हर मुश्किल से लड़ जाता है
अपने दुख-दर्द भूल कर
खुशियां लेकर घर आता है
मजाल है समाज का कोई भी ताना
उसको तोड़ दे
वो टूट तो तब जाता है
जब बच्चे उनका साथ छोड़ दे
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर, हिसार*
9. एक लड़की
अपने माता- पिता के लिए चिंता नहीं
उनका गर्व बनना चाहती है।
उसे कुछ नहीं चाहिए
सिवाय अपने माता-पिता के सहारे के।
जब तक उसके माता- पिता साथ हो
वो समाज की परवाह किए बिना कुछ भी करेगी,
पर कोई ऐसा काम नहीं करेगी
जिससे उसके मां बाप दुखी हों।
वो उनको हमेशा खुश देखना चाहती है,
क्योंकि माता पिता उसके भगवान है
और वो उनकी शान है।
उसको समाज से कोई मतलब नहीं होता
बस माता-पिता से होता है
वो ही उसकी दुनिया होती है।
पर समाज तो समाज ही है ना...
उनकी नजरों में बहुत सी चीजें
सही होकर भी गलत ही होती है।
उनकी नज़रों में सही नहीं है
एक लड़की को सपने पूरे करने देना,
उसको आजादी देना,
उसको मरजी से रहने देना...
लोगों को सिर्फ इधर-उधर की
घटिया बातें करना आती है।
वो कभी नहीं बोलते
किसकी लड़की ने अच्छा काम किया,
हाँ अगर किसी लड़की ने
कुछ गलत किया
या उसके साथ कुछ गलत हुआ
वो जरूर बार बार गिनाते फिरेंगे।
फलां की लड़की ने ऐसा किया...
फलां की लड़की के साथ ऐसा हुआ...
ऐसी बातें कर कर के
वो उन माता पिता को
खोखला करने की कोशिश करते हैं
जो हर कदम पर
अपनी बेटी के साथ होते हैं।
इन सब के बावजूद
वो अपनी बेटी पर
विश्वास कायम रखते हैं
कि हमारी बेटी
कुछ गलत नहीं करेगी।
समाज ऐसे माता पिता के
विश्वास का बाल भी बांका नहीं कर पाते
पर उनके अंदर
एक डर जरूर बैठा देते हैं
कि कहीं मेरी बेटी के साथ
कुछ गलत ना हो जाए...
आज का समय देखते ये
डर भी ठीक है।
अगर मां बाप अपनी बेटी पर
इतना विश्वास करें तो
बेटी की कभी हिम्मत नहीं होती
कि वो उनका विश्वास तोड़ दे।
शादी के अलावा
अपनी बेटियों के सपने
पूरे करवाने वाले
और उन पर विश्वास करने वाले
माता पिता बहुत कम ही होते हैं।
बाकी तो समाज की बातों में आकर
समाज में ही शामिल हो जाते हैं।
बहुत खुशकिस्मत है वो बेटियाँ
जिनके माता -पिता
समाज में शामिल नहीं है,
मैं भी उन्हीं में से एक हूँ...
मैं भी उन्हीं में से एक हूँ...
*सीमा वर्मा*
*शिकारपुर*
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