अग्निपरिक्षा कब तक अग्निपरिक्षा सीता की रहेगी अनवरत जारी, युगों युगों की गाथा बनकर कब तक सहेगी नारी। रावण ने हरा बलात पर मन को हर न प...
अग्निपरिक्षा
कब तक अग्निपरिक्षा सीता की
रहेगी अनवरत जारी,
युगों युगों की गाथा बनकर
कब तक सहेगी नारी।
रावण ने हरा बलात
पर मन को हर न पाया था,
तब क्यों श्री राम ने उन्हें अग्नि पथ दिखलाया था।
छाया सीता को अग्नि से पाने
राम की लीला थी सारी,
तब अग्नि ने सीता लौटाई
राम जी की थी वो प्यारी।
ये अंतिम परीक्षा नहीं थी
अभी और कष्ट हैं भारी,
कब तक अग्नि शिखा पर
बैठेगी सबला नारी।
अब परीक्षाएं नारी पर
विकृत लांछन लगाता है
कभी शंका में कभी वासना में
दहेज वेदी पर चढ़ाया जाता है
खत्म हो अग्निपरिक्षाएँ नारी
सदा नारायणी हैं।
मातृशक्ति अन्नपूर्णा धरा की
जगत की पालनकारी हैं।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
*नमन धरतीपुत्र*
चीर कर सीना धरा का
स्वेद जिसने बहाया है
कर पूरित अन्नपूर्णा को
जिसने वसुधा पे लाया है
धरतीपुत्र हलधर वही
अन्नदाता श्रमवीर है
पौरुष से जिसके दमकती
भारत की तस्वीर है
जिसके साहस से निपट रहे
हम इस आपात संकट को
नमन है वीर योद्धा
प्रणाम उस धरणीधर को
मोह नहीं लालच नहीं वही
तो पालन करता है
मोल नहीं उसके कर्म का
वह तो जीवन सृजित करता है
हासिये में जिंदगी उसकी
कर्ज के बोझ से मारा है
कभी अकाल ने कभी दुर्भिच्छ ने
पल पल उसे ही मारा है
पूर्ण समर्पित देश को
बस यही कहता है
मत घबराना भारतमाता
तेरा पुत्र नही थकता है
तेरा पुत्र नहीं रुकता है-2
कोई पेट न भूखा होगा
आंसू सबकी पोछुंगा
कर्मवीर सैनिक हूँ तेरा माते
तेरा भाल न झूकने दूंगा
तेरा भाल न झुकने दूंगा।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
सुनहरा सबेरा
फिर वही सुबह होगी
इंसान न फिर अकेला होगा
झूमेंगे सभी मस्ती में
खुशियों का फिर मेला होगा
मन्दिर में गूँजेगी आरती
गुरुद्वारा में शबद कीर्तन होगा
सब मिलके फहराएंगे तिरंगा
मुस्कुराता अपना चमन होगा
फिर बागों में झूले झूलेंगे
बच्चों की होगी किलकारी
फिर गले लगाएंगे हम सबको
संकल्पित हैं सब नर नारी
है कठिन समय तो क्या हुआ
सोना कुंदन में ही दमकता है
भारत का दृढ़ निश्चय देख
हर मुश्किल भी तो डरता है
बीतेगी ये काली अमावस रात
फिर सामने सुनहरा सबेरा होगा
हारेगा ये बेशर्म विषाणु
भारत इससे जीतेगा इंसानियत इससे जीतेगा।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर
विक्षिप्त पालघर
भीड़ थी और लाठी थी
दो सन्त वहां बेजुबान थे
निशाचरों के उदीप्त विचार
से बिल्कुल ही अनजान थे
चीख थी चीत्कार थी
मदद की गुहार थी
रोका इनका रास्ता कानून ने
माना समय की पुकार थी
वर्दी से छीनकर जाहिलों
ने इंसनियित लहूलुहान किया
शांत पड़ी मीडिया ने
न बिल्कुल ही प्रलाप किया
उबाल न थी इस नृशंस हत्या पर
न बची कोई संवेदनाएं थी
उन्मादी भीड़ पर मरहम लगाते
सतही और फीकी बातें थी
कब होगा न्याय ये काल गर्भ में जायेगा।
मानवता भी विक्षप्त होकर
अपना मुंह छिपायेगा
कोई कुछ भी न कह पायेगा
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर
चीरहरण
जब निर्लज्जता भी लाज की सीमाएं लांघता है
दुःशाशन का पौरुष वस्त्र खींचने
आता है।
जहां धृतराष्ट्र हो मदान्ध भीष्म
जहां मौन है
द्रोण जहां मूक दर्शक तो फिर
रक्षक अब कौन है
द्रौपदी का साहस था कृष्ण का विश्वाश था
हारा दुर्योधन हरदम क्योंकि
धर्म न उसके पास था
लाक्षागृह सा षणयंत्र ईर्ष्या की आग थी
शकुनि का पासा जुआं पर एक
नार थी
है धर्मराज पासे पर दांव नारी का
तुमने ही तो लगाया था
भीम की बलिष्ट भुजाओं से भी
यह अधर्म न रुक पाया था
कब तक चिरहरण होगा
कब तक शकुनि चाल चलेगा
कब तक मानवता क्षुब्ध रहेगी
कब तक ये हाहाकार रहेगा
कब तक ये हाहाकार रहेगा
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
जय दादा परशुराम
जब धरा परशु वेद छोड़
जन कल्याण की बेला थी
धरा व्याकुल तब अधर्मी से
हरनी जनगण की पीड़ा थी
नारी का सम्मान बचाने
संकल्प उन्होंने उठाया था
विधर्मी धरा से मुक्त करने
रौद्र रूप धर डाला था
आज सुप्त हैं कुछ वंशज तेरे
अंधेरों में जा के खोये हैं
भान नहीं कुल गौरव का
कुछ रास रंग में सोए हैं
जगो विप्र धरा तुम्हारी
ज्ञान तुम्हे ही फैलाना है
उठा शस्त्र अब वेदों को
नव प्रकाश तुम्हे लाना है
तेरी वाणी में ओज वही
कर्म अपना सुरभित रखो
जागो राष्ट्र निर्माण में
पथ अपना तुम सुदृढ़ रखो।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर
गुड्डा गुड़िया
गुड्डा मेरा दूल्हा बना
इसके निराले ठाठ हैं,
शूट बूट औऱ काला चश्मा
टाई डबल नॉट हैं।।
जल्दी से बारात निकालो
ढम्मक ढोल बजाओ भाई,
बैंड बाजा में झूम के नाचे
गूंज उठी है शहनाई।
गुड़िया बनी है दुल्हन प्यारी
चम चम बिंदिया लगाई है
लाल चुनरिया ओढ़ के बन्नी
मन्द मन्द मुस्काई है।
मंगल गीत गाएं हम सब
मिलकर सभी बधाई दें,
प्रीति भोज में खा कर जाना
गुड़िया को मधुर विदाई दें।
@अवि
अविनाश तिवारी
शिक्षक
प्रतापपुर छत्तीसगढ़
मूल निवास अमोरा
जांजगीर चाम्पा
*हिन्दू*
मन है हिन्दू तन है हिन्दू
धमनी में बहता रूधिर है हिन्दू
हिन्दू को सिर्फ धर्म न समझो
जीने का आदर्श है हिन्दू
हिन्दू हिंदी हिंन्दीस्तान के
स्वप्नों को हमने देखा है,
सौरभौमिक्ता के सिंद्धातों से
वतन को हमने सींचा है।
नहीं खींची कभी नफरत रेखा
सबको गले लगाया है
दया करुणा का रस है हिन्दू
प्रेम ही सबको सिखाया है
जिस हिन्दू ने सहिष्णुता का
सन्देश जहां को सिखलाया
विवेकानंद जी ने उदघोष कर
परचम हिन्दू लहराया
जहां दधीचि का त्याग भरा है
राम का जहां आदर्श रखा है
कृष्ण के गीता उपदेश यहीं है
वेदों का यहां ज्ञान बसा है
गर्व मुझे मैं हिन्दू हूं
भारत मेरा अभिमान है
पतित पावन मेरी मातृभमि
हृदय में बसता हिंदुस्तान है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
*श्रद्धाजंलि ऋषि कपूर*
रजतपट के तारे तुम
सितारों में जाके खो गए
सदाबहार अभिनेता तुम
खालीपन एक छोड़ गए
रंगमंच है ये जीवन
निश्चित इसका क्रम है
किरदार बदलता है तन
न प्राम्भ न अंत है
शत शत नमन तुमको
नायक तुमको करते हैं
ब्रम्हलीन हों ईश चरणों मे
अंतिम प्रणाम करते हैं।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्प
*शास्वत सत्य*
अंतिम सत्य प्रारब्ध यही है
अटल है मृत्यु लक्ष्य यही है
परमगति मोक्ष निर्वाण इसके नाम है
राजा न रंक इसको नहीं पहचान है
श्मशान चिर चिंरतन नीरव निर्वेद है
शांति असीम वहां राग न द्वेष है
कर्म पीछे छूट चला अनवरत यात्रा
का प्रस्थान है
आवागमन जगत का ठहराव ही
विराम है।
मोहबन्धन ठगमाया जगत सात्विक प्रमाण है
भस्म काया माटी का पुतला
रह गया एक अभिमान है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
[ *मई दिवस*
नींव हूँ बुनियाद हूं
हां मैं ही विकास हूं।
बाग में उद्यान में
संसद के हर मुकाम में
श्रमित धरोहर हूँ।
हां मैं मजदूर हूं।
मेरे घर भगवान आये
उनको भोजन परोसा था।
था भरम मन का मेरे
सियासत का मौका था।
धुंआ मेरे अन्तस् में
गरल रोज पीता हूं।
जिस भवन को निर्माण किया
देख उसको रोता हूं।
असीम मुझमे संभावना
मुझसे ही नवनिर्माण है।
व्यापक मेरी मुफलिसी
दु:खों का विस्तार है।
विकास की इबारत मैंने लिखी
पर प्रकाश से बहुत दूर हूँ
हां मैं मजदूर हूं
हालत से मजबूर हूं।।
अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
*मजदूर*
सिर पर बोझा दो नंगे पाँव
पपड़ी थी होंठ नहीं थी छांव
पेट थी पतली मैले हाथ
छिथड़े कपड़े मासूम के माथ
बर्तन धोता सुनहरा बचपन
टूटे खिलौने उजड़ा उपवन
सुलेशन की गंध चौपट जीवन
भीख मांगता निर्बोध स्टेशन
सड़क पर भटकता किसने निकाला
निर्माता था वो छीना निवाला
श्रम का मालिक प्रश्न हजार
किसकी गलती वो हुआ बेजार
मजदूर दिवस की कैसी बधाई
सिसकती सांसे जीवन दुखदाई
फ़टे पैर मंजिल बहुत दूर
मैं हूँ मजदूर मैं हूँ मजदूर।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
*मयखाना*
मन्दिर बन्द है मस्जिद बन्द है
रोक लगी पाठशाला में
झूम रहे हो के मतवाले
भीड़ लगी मधुशाला में
छलक रहें हैं जाम कहीं पर,
आँसू कहीं पर छलक रहें हैं।
मदिरालय की रौनक देखी,
जन्मों के प्यासे तरस रहें हैं।।
जिनके घर अनाज न थी,
जो पांच दिनों से भूखा था।
कतार में वो ही पहले खड़ा था,
नजारा बड़ा अनोखा था।।
टूट पड़े हैं ऐसे जैसे
अमृत मंथन की बेला है
धक्का मुक्की छीना झपटी
साकी भी अलबेला है
मदमस्त होकर ये अपनों में
प्रेम सन्देशा लाएंगे
जिन घरों में शांति थी
वहाँ डिस्कोडान्स दिखाएंगे
महके गुलशन महके घरौंदा
हाथ में ले लो विजयमाला,
सुर्ख आंखों का नेह निमंत्रण
खुली हुई है मधुशाला।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
नमन हंदवाड़ा के बलिदानी
नमन है उस मिट्टी को
गर्वित है जो अभिमान से
सौर्य गाथा से अभिभूत है
कण कण जिसका मान से
है पुनीत पावन वो माता
जिस कोख ने तुमको जन्म दिया
कन्धा न झुका उस पिता का
तुमको पाकर वह धन्य हुआ
वीरांगना का सुहाग अक्षुण्ण
तेरी बलिदान से संपूरित है
अंतिम सलामी दे रही वह
ह्रदय से अश्रुपूरित है
नमन है इस बलिदान को
यह सौर्य दिवस की शाम है,
श्रद्धापूरित भारत वासी
तुमको अंतिम प्रणाम है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
धन्य वीरांगना
मेरी सिंदूर की लालिमा
अन्तस् मेरे तुम प्राण हो
गर्वित है मेरी माथ की बिंदिया
धड़कन की हर श्वांस हो
कैसे अश्रु निकले आंखों से
इन नयनों में तुम ही बसते हो
तिरंगे से सजी अर्थी तुम्हारी
कितने सुंदर लगते हो
मातृभूमि पर किया समर्पण
धन्य मैं अर्धांगनी तुम्हारी हूँ
नहीं लजाउंगी बलिदान को तेरे
मैं वो हिन्द की नारी हूँ।।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
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