प्रबोध कुमार गोविल का रचना संसार मदालसा मणि त्रिपाठी पी-एच.डी (हिंदी विभाग) राजीव गाँधी विश्वविद्यालय रोनो हिल, अरुणाचल प्रदेश ईमेल- madalsh...
प्रबोध कुमार गोविल का रचना संसार
मदालसा मणि त्रिपाठी
पी-एच.डी (हिंदी विभाग)
राजीव गाँधी विश्वविद्यालय
रोनो हिल, अरुणाचल प्रदेश
ईमेल- madalsha12@hotmail.com
सदियों से मनुष्य वर्तमान में रहकर भविष्य की कल्पना कर रहा है। सामान्य मनुष्य भविष्य की कल्पना करता है परंतु एक लेखक ही है जो उस कल्पना को शब्द देता है, फिर उसे एक रूप और आकार प्रदान करता है। प्रबोध कुमार गोविल ऐसे कथाकार हैं जो कि अपने समय की सीमा को लांघते हुए, भविष्य के द्वार को पाठकों के लिए खोलते नज़र आते हैं। उनकी कई रचनाएँ अपने समकालीन परिवेश से आगे नज़र आती हैं। आज के सभी युगीन लेखको के लेखन में कल्पना की उड़ान है, परंतु भविष्य की दस्तक को अच्छी तरह सुनकर अपनी कलम से उसे आकार देकर प्रबोध कुमार गोविल पाठक को आने वाले समय का एहसास दिलाते है। उनके सृजनात्मक लेखन का प्रमाण उनकी एक कहानी “पिछली सदी की पोटली” से मिलता है जिसमें सभी पात्र भविष्य में रहते हैं और आज से कई साल आगे की टेक्नोलॉजी का उपयोग करते दिखाई देते हैं। कहानी में एक स्थान पर वह भविष्य का वर्णन करते हुए कहते है की ‘पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में यह सुविधा आ गई थी कि कनॉट प्लेस पर लगे टॉवर की छत से एक विशेष कैप्सूल पहन कर वहां रखी तोपों से आप कुछ रुपये देकर, आप सीधे अपने घर की छत पर शूट हो सकते थे। अपनी छत का रेजिस्ट्रेशन करवा कर एक विशेष नंबर कार्ड आपको बनवाना पड़ता था। कुछ लाख रुपये खर्च करके। शाम के समय हवाई जहाज से ऊपर से देखने पर रंग बिरंगे पतंगों से लगते थे ये कैप्सूल।’
इनके लेखन में सामाजिक प्रतिबद्धता है, जिससे कहानियों और उपन्यासों के पात्र अपने आस-पास की घटनाओं से प्रभावित होते हैं तथा अपने जीवन की जटिलताओं से लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत कर देते है। “रेत होते रिश्ते” इनका एक ऐसा ही आधुनिक समाज में टूटते रिश्तों का उपन्यास है। जो एक ऐसी लड़की की कथा पर आधारित है। जिसे उसका अपना परिवार ही दर्द भरा जीवन जीने के लिए दूसरों के हाथों बेच देता है और जो अपने संघर्ष से अपना जीवन बनाती है। स्वार्थ के कारण आज निकटतम रिश्ता भी व्यवसाय बनता जा रहा है। जिसे इस उपन्यास में आधुनिक समाज और महानगर के परिवेश में यंत्रवत होती मानवीयता को अच्छी तरह से रेखांकित किया गया है।
प्रबोध कुमार गोविल आज के समय की समस्याओं से उलझते है। साथ ही उनसे दो-दो हाथ करने से पीछे नही हटते। अपने लेखन से वह उन विषयों को भी सामने लाते है जिन पर लोग हमारे तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले समाज में सामान्य तौर पर लिखने या बोलने से कतराते है। “देहाश्रम का मनजोगी” इनका प्रथम उपन्यास है, जिसमें इन्होंने यौन-शुचिता को लेकर लिखा है। इसका प्रकाशन 1982 में हुआ था। और तब से इसके बारे में यहीं माना जाता रहा है कि यह उपन्यास अपने समय से पूर्व ही लिखा गया है। इस उपन्यास में व्यक्ति की यौनेच्छाओं और यौनपूर्ति से संबन्धित उसकी अस्मिता को लेकर लिखा गया है। जो समाज में मनुष्य के शरीर को लेकर बनाए गए नियमों को बदलने की गुजारिश करता है। जिससे की मानव शरीर समाज के बंधनों की जकड़ से छूटकर स्वछंद विचरण कर सकें।
प्रबोध कुमार गोविल चुनौती चाहते हैं। वह उन अन्य लेखको के बारे में भी निरंतर चिंतन करते रहते है जिन्हें अभी तक साहित्य जगत में सामने नहीं लाया गया है। वह कहते है कि ‘हिंदी में बहुत सारे बेहद महत्वपूर्ण ऐसे साहित्यकार भी है, जिन्होंने सार्थक और नायाब आधुनिक साहित्य रचा है, निरंतर लिख भी रहे हैं पर इस बात से बिल्कुल बेखबर हैं कि उनके काम को सामने लाया जा रहा है या नही।’ इसके लिए वह 2015 से प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के अवसर पर राही सहयोग संस्थान के सौजन्य से दुनिया भर के सौ बड़े लेखकों(जीवित) को चुन कर वर्तमान समय में उनकी एक रैंकिंग तैयार करते हैं।
प्रबोध कुमार गोविल का लेखन समाज में परिवर्तन और बदलाव लाने की प्रेरणा लेकर हमारे सामने प्रस्तुत होता है। इनके लेखन में समाज से जुड़ा हर छोटा बड़ा विषय, भाव विचार आदि नजर आते हैं। जहाँ यह अपने कई समकालीन लेखकों से समय में आगे बढ़ते दिखाई पड़ते हैं। इनका अभी तक आठ उपन्यास प्रकाशित हो चुका हैं, जिनमें “बेस्वाद मांस का टुकड़ा” और “वंश” उपन्यासों में मनुष्य के मन में छुपी हुई इच्छाओं और काम-वासना को दर्शाया गया हैं। जहाँ दुष्प्रभाव से जीवन किस प्रकार प्रभावित होता है इसको बहुत ही सुंदर रूप से सामने लाया गया है।
उपन्यास “आखेट महल” के पात्र मानव मन की अतल गहराइयों में जाकर सुख की तलाश करते हैं। जो वर्तमान समय की चूहा-दौड़ को सफलतापूर्वक दर्शाते हैं। लेखक अपने साहित्य से पाठक का सामना एक ऐसी दुनिया से करवाते है, जहाँ राजतंत्र भले ही समाप्त हो गया हो परंतु आज के जनतंत्र में उसकी रूढ़ियाँ अभी भी कायम है और मनुष्य सत्ता की दौड़ में अंधाधुंध भागता जा रहा है। इनके उपन्यासों में काम भावना, दमित भावनाओं सहित तमाम मानसिक स्थितियों का खुलकर चित्रण हुआ है। जहाँ रचनाओं की स्थित और घटित घटनाओं के सम्बन्ध पात्रों के साथ यथार्थ परक लगते हैं। उपन्यास “जल तू जलाल तू” में जीवन के यथार्थ का खुल कर चित्रण किया गया है। जिसमें पात्र समय को पकड़ने का प्रयास करते हुए प्रतीत होते हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रबोध कुमार गोविल ने अपने नये उपन्यास “अक़ाब” में भूमंडलीकरण के दौर को व्याख्यायित करने का भरसक प्रयास करते दिखते है।
इस उपन्यास का कथानक पूरे विश्व को अपने में समेटे चलता है। जहाँ उपन्यास के सभी पात्र जापान, अमेरिका, भारत, पाकिस्तान, लेबनान, उज़्बेकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका सहित विश्व के कई और देशों से संबंध रखते है। इस उपन्यास का मंच पूरा विश्व है। जिसमें उपन्यास का मुख्य पात्र तनिष्क कोई आम युवा नहीं है जिसे की न अपनी मंज़िल का पता है और न अपने रास्तों का। और न ही मौज-मस्ती और खाने-खेलने में वह अपना समय गवाता है। बल्कि तनिष्क तो उस मेहनतकश युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से अपने लिए एक सफल जीवन का निर्माण करते हैं। तनिष्क ने बचपन से ही कई आभावों को झेला है, वह भौतिक सुखों के साथ-साथ पारिवारिक सुखों से भी वंचित रहां है। परंतु जैसे-जैसे वह बड़ा होता है वह अपना जीवन अपने हाथों से संवारने में लग जाता है। भाग्य उसके लिए खिलौना है और अभी उसे केवल अपने बाहुबल पर ही यकीन है।
प्रबोध कुमार गोविल ने कहानियाँ भी लिखी हैं। उनका “खाली हाथ वाली अम्मा” में सोलह कहानियों का एक संकलन है, जो 2014 में प्रकाशित हुआ था। इस कहानी संग्रह की कहानियों के माध्यम से समाज की ‘संश्लिष्ट’ अवस्था को समझने का प्रयास किया गया है और साथ ही साथ यह कहानियाँ समाज के विभिन्न चित्रों को यथार्थतः पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करती हैं। इस कहानी संग्रह के माध्यम से प्रबोध कुमार गोविल ने अपने अनुभव से जन्में पात्रों को अपने समकाल से मुठभेड़ करते हुए दर्शाया है।
कहानी संग्रह "थोड़ी देर और ठहर" जीवन यथार्थ की जटिलताओं को सहजता से उजागर करती है। इनकी कहानियाँ स्वतः ही पाठक के सामने खुलती चली जाती है। “हार्मोनल फेंसिंग” कहानी संग्रह के जरिए पारिवारिक संबंधो के परंपरागत और नए रूपों पर प्रकाश डाला गया है और आधुनिकता के तले छिपी मानवीय संवेदनाओं को भी तलाशने का प्रयास किया गया है। इसमें वह समकालीन समय को गहराई से समझते भी हैं और पारंपरिक मूल्यों के प्रति उनके मन में गहरा अनुराग भी है। इसके अलावा दो और कहानी संग्रह भी हैं- “अन्त्यास्त” और“सत्ता घर की कंदराएँ”। भाषा की सहजता भी इनकी कहानियों की अपनी एक विशेषता है। इनकी कहानियों में आधुनिक जीवन की विसंगतियों, यश की आकांक्षा के लिए नैतिकता की बलि चढ़ाते इनके कई पात्र विवश दिखाई देते हैं।
इनके दो कविता संग्रह भी हैं, “उगती प्यास दिवंगत पानी”। अपनी इस कृति को लेकर प्रबोध कुमार गोविल स्वयं कहते हैं कि गुजरा हुआ समय, आने वाले समय के साथ बैठकर कुछ बात करें इसलिए यह कविताएँ लिखी गयी हैं। इन कविताओं में एक सदी दूसरी सदी के साथ अपने अनुभव साझा करती है। इस कविता संकलन में 27 कवितायें हैं। दूसरा कविता संग्रह है “रक्कासा सी नाचे दिल्ली”। यह एक लंबी कविता है जिसमें प्रबोध कुमार गोविल ने अपने दिल्ली प्रवास के अनुभवों को लेकर लिखा है। इस लंबी कविता में दिल्ली की राजनीति, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, भ्रष्टाचार, फ़ैशन और अँग्रेजी परस्ती के साथ-साथ अभावग्रस्त बचपन, परेशान यौवन और काँपते बुढ़ापे का भी मर्मस्पर्शी चित्र उभरता है। इनकी भाषा में व्यंग्य का पुट भी मिलता है। “शेयर खाता खोल सजनिया” इनका एक और व्यंग्य कविता संग्रह है।
प्रबोध कुमार गोविल वर्षों से लेखन कर रहे हैं। उन्होंने अनेक उपन्यास, कहानियाँ, कवितायें लिखी हैं। तथा साथ ही 2006 में उनके द्वारा एक संस्मरण भी लिखा गया है जिसका शीर्षक है “रास्ते में हो गई शाम”। इस पुस्तक में उन्होंने हरिवंशराय बच्चन, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, विष्णु प्रभाकर आदि लोगों को लेकर संस्मरण लिखे हैं। प्रबोध कुमार गोविल राजभाषा के प्रति भी विशेष अनुराग रखते हैं। उन्होंने अपनी इस पुस्तक के दस अध्यायों में हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने की बात की है। साहित्य के माध्यम से भाषा की पड़ताल भी इस पुस्तक में की गयी है।
प्रबोध कुमार गोविल ने नाटक एवं बाल साहित्य की रचनाएँ भी की हैं। बाल साहित्य के अंतर्गत उनके द्वारा दो पुस्तकें लिखी गयी हैं- “उगते नहीं उजाले” और “मंगल ग्रह के जुगनू”।“मंगल ग्रह के जुगनू” पाँच खंडो में है जिसमें 'श्रीहान' और 'सुयश' नामक दो बच्चों की कहानी है। “मेरी जिंदगी लौटा दे”, “अजबनार्सिस डॉट कॉम” और “बता मेरा मौतनामा” नामक नाटक भी प्रबोध कुमार गोविल के द्वारा लिखे गए हैं। इसी प्रकार प्रबोध कुमार गोविल अपनी हर कृति के माध्यम से पाठकों की संवेदनाओं को जगाते हैं, उसके हर भाव को जागृत कर देते हैं और उसके मन में अपनी कृति के प्रति आकर्षण पैदा करते हैं। इनके लेखन का आकर्षण कृति की शुरुआत से लेकर अंत तक पाठक को सम्मोहित किए रहता है। साथ ही अपने परिवेश से जुड़ी हर घटना पर अपनी प्रतिक्रिया रखते हैं और अपनी रचनाओं के माध्यम से यथार्थरूप में उसे अपने पाठकों तक पहुँचाते हैं।
प्रबोध कुमार गोविल अपनी रचनाओं में जीवन के सभी आयामों को समाविष्ट करते हुए चलते हैं। वह अपने युग के सिद्धहस्त लेखकों में से एक हैं, जो अपनी हर नयी रचना के साथ, पाठकों के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करते हैं। आज के इस विघटन भरे युग में, हमारा समाज किस प्रकार मनुष्य को प्रभावित कर रहा है और मनुष्य किस प्रकार वर्तमान के इस सरपट भागते हुए युग में अपनी नैतिकता को बचाता है, इसका बहुत सुंदर चित्रण प्रबोध कुमार गोविल के लेखन में नज़र आता है। जहाँ यह अपने पात्रों के माध्यम से सदियों से चले आ रहे मानकों को बदलना चाहते है जैसे कि इनकी एक कहानी ”पिछली सदी की पोटली" का पात्र शहज़ाद कम उम्र में संन्यास लेकर चर्च की सेवा में लग जाता है, परन्तु वह स्वयं भी इस संन्यास को कहाँ तक मन से ग्रहण कर पाता है। इसका भी निर्णय वह नहीं कर पाता क्यूंकि कहानी में संन्यास लेने के पूर्व वह एक "राहत" नामक लड़की से प्रेम करता है। जहाँ कहानी के अनुसार "वह खुद को सज़ा दे रहा था, कोई प्रायश्चित कर रहा था, अथवा किसी की दी हुई सज़ा काटने को अभिशप्त था, ये सब किसी धुंध में ही था।" अपने शरीर की जरूरतों को स्वीकार करते हुए भी, अपने नैतिक दायित्व के चलते ही शहज़ाद संन्यास ले लेता है।
जहाँ एक तरफ हमारा समाज समय के साथ और कुंठित हो रहा है, जो हर दूसरे मनुष्य को दूसरी कसौटी पर आँकता है। और अपने लिए अलग मापदंड बनाता है, वहीं प्रबोध कुमार गोविल ऐसे समाज के सामने अपनी रचनाओं के माध्यम से नैतिकता का, व्यवहार की भिन्नता का प्रश्न खड़ा करते रहे हैं । प्रबोध कुमार गोविल ने अपने लेखन के माध्यम से ऐसे पात्रों की बुनावट की है, जो भौतिक उपलब्धि के लिए संघर्ष तो करते हैं, परंतु भीतरी आनंद उन्हें कभी प्राप्त नहीं होता, वह हमेशा स्थितियों का शिकार होते रहते हैं। इनके द्वारा रचित नाटक “बता मेरा मौतनामा” में इनका पात्र अजामिल इतिहास की एक घटना से अपने वर्तमान को जोड़कर हमेशा असमंजस और शंका में घिरा रहता है। वह अपने व्यवहार से हर समय प्रश्न खड़ा करता और हमेशा अंतर्द्वंद में रहने से कई मनोग्रंथियों का शिकार हो जाता है।
प्रबोध कुमार गोविल का लेखन समाज में मनुष्य के जन-जीवन, व्यवहार, परिवेश को अलग-अलग रूपों में समझने का प्रयास करता है। अपनी रचनाओं के माध्यम से लेखक समाज के सामने कई प्रश्न खड़ा करता है। इसी प्रकार प्रबोध कुमार गोविल भी समाज में व्याप्त उन समस्याओं को पाठक के सामने लाने से बिल्कुल नहीं घबराते जिनसे हमारा समाज अक्सर दूर भागता है। उनके लेखन में संवेदनशीलता, यौन-शुचिता, समाज की वास्तविकता नज़र आती है और उनकी परिपक्व कलम हर विषय पर चलती है। वह अपनी एक पुस्तक “रास्ते में हो गई शाम” (संस्मरण) में कहते है की “कलम भी इसी तरह है। कुछ अवांछित देखेगी तो चौकन्नी होगी और उसका पीछा अंतिम तह तक करेगी। जहा तक पहुंचकर वह बुराई को अच्छाई के हाथों नष्ट होते देखने की साक्षी बनें।
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट समीक्षा
जवाब देंहटाएंDhanyawad
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