मेरी जिन्दगी उधार दे दो मेरी अभिलाषा को थोड़ा उड़ान दे दो, हे तात!मुझे मेरी पहचान दे दो । कब तक भटकती रहेगी मेरी आत्मा , यूँ करते रहो...
मेरी जिन्दगी उधार दे दो
मेरी अभिलाषा को थोड़ा उड़ान दे दो,
हे तात!मुझे मेरी पहचान दे दो ।
कब तक भटकती रहेगी मेरी आत्मा ,
यूँ करते रहोगे कहाँ तक मेरा खात्मा,
मुझको मेरा खोया मुकाम दे दो ,
मेरे हौसलों को थोड़ा-सा उड़ान दे दो ।
तुझको जना वो भी किसी की किसी की कली थी,
जिसने राखी बांधी वो भी भली थी,
तेरी भार्या भी किसी की परी थी,
बता फिर मेरी क्या खता,
एक एहसान दे दो ।
मेरे चलने से चहकेगा अंगना तेरा,
गुलज़ार होगा जब खनकेगा कंगना मेरा,
चुका दूंगी मोल इस जीवन का मैं,
बस मेरी जिन्दगी मुझको उधार दे दो ।
जाने से पहले,दधी साग लाने कहूँगी,
आते ही पानी से स्वागत करुँगी,
तेरे कहने से पहले सारा कुछ करूँगी ,
बस एक बार इस जहाँ का दीदार दे दो ।
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अद्भुत गाथा
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शंकर के अवतार आदि गुरु शंकराचार्य का
आज जन्मोत्सव मनाते हैं ।
हिन्दू धर्म के सर्वोच्च गुरु की अद्भुत गाथा गाते हैं ।
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मंडन मिश्र
केरल के काषाण गाँव में उनका
आविर्भाव हुआ
मानव धर्म के प्रकाश स्तम्भ का
जय जय कार हुआ ।
शिवगुरू थे तात कहलाये
सुभद्रा के लाल थे
दिव्य कान्ति की आभा से आलोकित उनके भाल थे।
मातृभक्ति की इनमें
करूणा अविरल बहती थी
इनके कारण अलवाई नदी भी रुख बदला करती थी ।
हिन्दुत्व के महान प्रतिनिधि
जगद्गुरु का सम्मान मिला
सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु
चार मठों का प्रतिष्ठान किया ।
विविध स्तोत्र सौन्दर्य लहरी
आदि का निर्माण किया
समस्त भारत का पदभ्रमण कर
वेदों का पुर्नउत्थान किया ।
शास्त्रार्थ में मंडल मिश्र को
सपत्नीक परास्त किया
निज प्रयोजन पूरा कर
अल्पायु में स्वर्ग को
प्रस्थान किया ।।
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श्रद्धान्जलि : है अर्पित उन्हें
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उनके सफ़र का सिलसिला यूँ शुरू हुआ
बढ़ा जो काफिला रुकते नहीं रुका ।
एक जलता हुआ चिराग फिर यूँ विदा हुआ
देखते ही देखते न जाने कहाँ खो गया ।।
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सदाबहार व्यक्तित्व के धनी थे जो कभी
पंचतत्व में विलीन हो सबको रुला गया ।
मौत से जिन्दगी का फासला है क्या
गरूर करने वाले को आइना दिखा दिया ।
जाने से जिनके गमगीन हम तो हो गये
सबके दिलों में बसेरा बना गया ।
श्रद्धान्जलि हो अर्पित नम आँखों से कैसे
जाने से जिनके खाली जहाँ हुआ ।
जिनके रगो में था हुनर अभिनय का भरा हुआ
साधना व परिश्रम का गुढ सिखा गया ।
सफरों का सिलसिला जो शुरू हुआ,
उनका ये काफिला रुकते नहीं रुका ।।
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बस तू ही तू
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तू इस हारे मन का विश्वास बनकर रहना
घेरे है निराशा तू आस बनकर रहना
आया है ऐसा तूफा जगमगा रही है नैया
इस दारूण वेला में ना ना है क़ोई खेवैया
डूबते हुए मन में संबल बनकर रहना
तू इस हारे मन का विश्वास बनकर रहना ।।
मुझको जनने वाली बिस्तर पे जा पड़ी है
न कोई देखनहारा आई कैसी ये घड़ी है
अकेले में बस,तू ही बस,तू ही साथ रहना
तू इस हारे मन का विश्वास बनकर रहना।।
उलझनें बहुत हैं और मैं हूँ अकेली
सुनाए हाल किसको न है कोई सहेली
तुझसे जो कहूँ ,तू अपने पास रखना ।
इस हारे हुए मन का विश्वास बनकर रहना ।।
दुःख दर्द ले ले,उनका संताप हर ले
हे करूणा निधान उनको,जीवन दान दे दो
उनके जीवन में आरोग्य बनकर रहना ।
इस हारे हुए मन का विश्वास बनकर रहना ।।
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मजबूर नहीं मजदूर है हम
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हम अपनी मेहनत से बंज़र को उर्वर करते हैं
नियति का ये खेल तो देखो,दो जून को तरसा करते हैं ।
हम मेहनतकश मजदूर धरा के मेहनत हमको प्यारी है
दुनिया की हर चमक के पीछे
मेहनत दमका करती है ।
हम रोज कमाते रोज है खाते
मिट्टी से सोना उगलाते
अनाज कपड़ा या मकान
सब निर्माण हमीं तो करते हैं ।
हथौड़ा हो या कोई कलम थोड़ा का ना हमको गम
हर काम अदब से करते हैं
हम झोपड़पट्टी में रहते हैं
काम मिलेगा या खाली रहेंगे
लौट के बच्चों से क्या कहेंगे
इस उधेङबुन में रहते हैं
हम मर मर के जिया करते हैं ।
मेरी कठोर मेहनत का फल
फैक्ट्री अटारी और महल
फिर भी कर्जे से लदे हुए
निर्वाह की सोचा करते हैं ।
मेरे बच्चों के नंगे बदन
चिथड़ों से लिपटे मेरे तन
कपड़ों के मिल में खटते है
पर,दो गज को तरसा करते हैं ।
दुनिया के सारे मेहनतकश इंसान को समर्पित "Happy Labour Day"
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समय की कसौटी
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कोरोना की विपदा कहें
या ग़रीबी की मार
मौत तो मिलती नहीं
जिन्दगी भी है उधार ।
उन मजबूरों से जा के पूछो
कैसे कटती रातें हैं
उनके घरों में जाके देखो
कैसे क्या कर खाते हैं
पूर्ण बंदी क्या हुई
छूट गया उनका रोजगार ।
आज कोई कहाँ किसी का
कैसे रिश्ते नाते हैं
गैरों की क्या बात करें
अपने भी मुँह फेर के जाते हैं ।
बच्चों के पिचके पेट देख़
मन रोता जार जार ।
कैसी भी हो चुनौती
एक अवसर भी देती है
है उत्साह जो समय की
कसौटी पर खरी उतरती है
तय है सहेंगे हर चुनौती
होंगे नहीं लाचार ।
मौत को वरेंगे नहीं
चाहे हो कितना भी लाचार ।।
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माँ : तुझ पे दुनिया बिहारी
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तेरी करूणा दुनिया से न्यारी है
मां ! तू हमें जान से प्यारी है ।
तेरी निश्छल ममता पर ,
दुनिया बलिहारी है ।
जन्म दिया प्रसव पीड़ा सहकर
पेट भरा खुद भूखे रहकर
आंखों में काटे रातें जगकर
आज भी मुझे
पीड़ा से मुक्ति दिला दे ।
मा मोरी,तू क्यूं ऐसे पड़ी है
देख नैनन से अश्रु झड़ी है
मेरी उम्मीदें तुझसे जुडी है
उठ, मोहे गले से लगा ले ।
ईश्वर की अवतार है तू
निज सुत की वरदान है तू
तेरी ममता अविरल-निश्छल
स्नेह की क्षुधा बुझा दे।
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पूर्ण बंदी:दो गज़ की दूरी
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गलियां है सुनसान,सड़कों पर खामोशी है
संक्रमण की आहट थमने के लिए
ये सन्नाटा भी जरूरी है ।
पूर्ण बंदी क्या हुई क्या हुई
थम गया आवागमन
आने वाले बेहतर कल के लिए
घर में रमण जरूरी है ।
ताक में बैठा हरपल
एक अनजाना सफ़र
अनजानों से बचने के लिए
दो गज की दूरी जरूरी है ।
यह सिर्फ बन्दी नहीं,
धैर्य परीक्षा है हम सब की
जीवन की स्वर्णिम आभा के लिए
इच्छा का दमन जरूरी है ।
संक्रमण की आहट थमने के लिए
ये सन्नाटा भी जरूरी है ।।
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सृष्टि की जननी का तिरस्कार
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त्याग तपस्या की जो मूरत
अनन्त गुणों का आगार है ।
अपनों के द्वारा ही निर्मित
रूढ़िवादिता का हुईं शिकार है ।।
धरा सी जिसमें सहनशीलता
रवि सा जिसमें तेज है
समुद्र सी जिसमें गंभीरता
नदी सा जिसमें वेग है
नवजीवन की शिक्षा का आधार है
गुमनाम हुआ जिसका जीवन
बलि वेदी पर चढ़ी दहेज की
कभी गर्भ में खण्डित तन
प्रताड़ित हो,भेंट चढ़ी समाज की
सृष्टि की जननी का
कैसा यह तिरस्कार है ।
थोड़ा झिझकती थोड़ा सहमती,
आगे बढ़ती,फिर घबराती,
हिंसक घटनाओं का सामना करती ,
मानसिकता को कैसे करें परिवर्तित,
टूट रहे सपने,मन करता चीत्कार है ।
मातृत्व की ममता से मण्डित
फिर मन क्यूं है कंपित
तन मन धन सब तुझको अर्पित
तुझसे मैं,
मैं मेरा जीवन शृंगारित
फिर क्यों तुच्छ तेरा व्यवहार है
अपनों के द्वारा ही निर्मित
रूढ़िवादिता का हुईं शिकार हैं ।।
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