यह जीवन...... अनकहे शब्दों से वीरान की और बढ़ता है, यह जीवन...... यूँ मिट्टी के पुतलों में भी जीवन ढूंढ़ता है यह...... यूँ उदासी के रिश्तों...
यह जीवन......
अनकहे शब्दों से वीरान की और बढ़ता है, यह जीवन......
यूँ मिट्टी के पुतलों में भी जीवन ढूंढ़ता है यह......
यूँ उदासी के रिश्तों में सिमट कर रह गया यह जीवन.......
कभी तो अनकहे शब्दों में भी कई उम्मीदों के रंगो को ढूंढता यह जीवन.......
यादों की परछाइयों में धूमिल करता है यह जीवन......
तेरी मेरी की कहानी में ही रहकर फंस गया यह जीवन.......
यूँ अपनों में अपनों के खास होने के अहसास को ढूंढ़ता है , यह जीवन.......
कई विस्मृतियों की यादों की धूल में खो गया यह जीवन.......
अपनों के रिश्तों को भी किस्तों में निभाने लग गया यह जीवन.......
अब तो कई उम्मीदों में ही सांसो को ढूंढ़ने लग गया यह जीवन......
अब यह कुछ खास पलो को संजोने में ही लग गया यह जीवन.......!!
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कोरोना देवी को समर्पित।
मोदीजी की तरह खादी में
कल हम गए एक शादी में !!!!!!!
चारों तरफ डेटॉल और फिनायल
की खुशबू महक रही थी।
सिर्फ करोना वाइरस की ही
चर्चा चहक रही थी।।
रिश्तेदार मिल रहे थे
आपस में हँसते हँसते।
हाथ मिलाने की बजाय
कर रहे थे सिर्फ नमस्ते।।
सब दूर दूर खड़े थे
शादी वाले हॉल में।
मास्क ही मास्क रखे थे
पहली पहली स्टॉल में।।
इत्र वाले को मिला हुआ था
सैनेटाइजर छिड़कने का टास्क।
महिलाएं पहने हुए थी
साड़ी से मैचिंग वाला मास्क।।
दूल्हा दुल्हन जमे स्टेज पर
थोड़ा दूर दूर बैठकर।
वरमाला भी पहनाई गई
एक दूजे पर फेंककर।।
हमने भी इवेंट को देखा
स्क्रीन पे थोड़ा दूर से।
मेकअप दुल्हन का भी
किया गया था कपूर से।।
फेरों में भी उनके हाथ
एक दूसरे को नहीं थमाए गए।
और तो छोड़ो उनके फेरे भी
सौ मीटर दूर से कराए गये।।
इधर हम थूकने गए
अपने पान की पीक।
उधर दूल्हे को आ गई
बड़ी जोर से छींक।।
एक सन्नाटा सा छा गया
उस पंडाल में चारों ओर।
दुल्हन को गुस्सा आ गया और
चली गई नहाने मंडप को छोड़।।
माफी लगा माँगने सबसे
तब दूल्हे का बाप।
रिश्तेदार एक दूजे की
शकल रहे थे ताक।।
छोड़कर खाना भूखे ही
मेहमान घर को भागने लगे।
मेहमान तो छोड़ो हलवाई भी
बोरिया बिस्तर बाँधने लगे।।
हम शादी में जाकर भी
यारों रह गए भूखे सरीखे।
जैसी हमपर बीती वैसी
किसी पर भी ना बीते।।
करोना देवी मेरी तुमसे
एक विनती है हाथ जोड़कर।
इस दुनिया से अब तुम जाओ
जल्दी ही मुँह मोड़कर।।
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क़ुदरत के सब गुनहगार.....
सब गुनहगार है,
क़ुदरत के क़त्ल के.....
यूँ ही हवाएं,
जहरीली नहीं हुई......
हमने देखी है,
सड़कों की वीरानियाँ.....
ये परेशानियां ,
अभी कम नहीं हुई.......
लिया था तूने ,
जो क़ुदरत से
तेरी बदमाशियां अभी कम नहीं हुई.........
काँटे है पेड़ ,
खोदे है पहाड़
अभी कुदरत की
अंगड़ाइयां कम नहीं हुई.......
जो लिया है
देना है अब तुझको
अभी तेरी बीमारी कम नहीं हुई..........
पहले तू हँसता था,
रोटी थी क़ुदरत
यूँ ही हवा ज़हरीली नहीं हुई.........
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"फिर से लोट आए खुशियाँ".........
आज हर जगह सन्नाटा पसरा
आज देखो मेरे देश में कोरोना का कोहराम मचा!!
यूँ तो कोई रोक न सका मेरे देश के बढ़ते कदमों को
पर आज वक़्त थम - सा गया
लगता है ,
आज ख़ुदा भी हमसे नाराज़ बैठा।।
जो गलिया रंगो - रंगो से सजी हुई थी
आज हर गली सुन - सान दिखी
जैसे पलो के पहरे में
दुबकी भीगी - भीगी रात समाई हो।।
प्रकृति तो आज भी उसी चाल से आगे बढ़ रही
पर उसमें भी उदासी छाई
जो सुबह सुहानी हुआ करती थी
आज दिन - चर्या को बदलते देखा
कब सुबह हुई ,
कब भरी दुपहरी और कब सुनहरी श्याम।।
आज बीन मौसम बिजली चमकी
और हुई बरसात
मानो लगा जैसे
प्रकृति कहर बरसा रही हो
मन में डर सा फ़ेल गया
कब हो सुनहरी सुबह
आज हर इंसान रो रहा है
प्रकृति तेरे इस रूप को देखकर।।
अब जल्द से हटे यहाँ मेरे देश से अंधेरा
और भोर हो फिर से चपल रश्मियां
कनक कलेवर लेकर
हो प्रफुल्लित वसुंधरा देश की रौनक लेकर।।
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हाय रे ये गर्मी.......
सूरज का तेवर सर चढ़ गया
अब तो गर्मी का पारा बढ़ गया
धूप चेटे , पसीना छूटे
हाय ये गर्मी सही न जाए।।
आग बरसे
तपे अम्बर ,
झुलसे धरती
हाय रे ये गर्मी।।
डूबता वक़्त ,
धूप के आयने उगता लगे
बढ़ता तापमान ,
दुनिया सोती रहे
हाय रे ये गर्मी तेज लगे।।
सुबह से सूरज मुँह फुलाए लाल हो आए
सारी एनर्जी खींच ले जाए
दोपहरी होते - होते ,
हाल बेहाल हो जाए
श्याम होते - होते तो,
हालत खस्ता हो जाए।।
बिना बर्फ़ के जूस पिए
मटके के पानी से काम चलाए
फ़्रिज से करे तौबा
है ,भगवान
अब ये कोरोना भगा।।
गर्मी छुए , कपड़ा चुभे
ये गर्मी बरसे
अब हम बर्फ के गोला खाने को तरसे
हाय रे ये गर्मी सही नहीं जाए।।
घर बैठे - बैठे ऊबे
नानी की अब याद आये
कैरम , लूडो सारे खेल,
अब नानी के घर बिन बोर हुए
गर्मी से अब हम ढेर हुए।।
सूरज फैलाए अपनी माया
चलते कूलर , चलते पंखे
हम घर बैठे -बैठे हिंडोला करते।।
छुट्टियां भी ,
लॉक होकर डाउन हो गई
बिना गोला , कुल्फ़ी , पेप्सी खाए रह गई
नानू के पैसे बच गए
हम घर में बैठे रह गए
अभी घर में रहकर,
सेफ़ रहेंगे
अगले साल,
नानी घर धूम - मचाएंगे।।
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श्रद्धा सुमन समर्पित...
काल के गाल में समा गए
सदा के लिए तुम मौन हो गए।।
यूँ तो बोलती थी तुम्हारी अदाएँ
पर आज तुम ख़ामोशी की अदा को ओढ़ गए।।
पुष्प के मकरन्द की तरह
अपनी छटा बिखेरते गए।।
मेरा नाम जोकर , बॉबी हो या अग्निपथ,
या हो इरफान की मूवी हासिल , हैदर ,पानसिंह तोमर
कई फिल्मों का सफर तय किया
अपने अभिनय से फिल्मों को नया जीवन दिया।।
फ़िल्म सिटी हो या , देश
सबके दिलों में अपनी जगह बनाई।।
फूलो की खुशबु की तरह
अपनी महक फैलाते गए।।
आपके कई डायलॉग,
सबके दिलों में छा गए।।
आपकी कई फ़िल्म ,
जो जीवन की सत्यता की कहानी गढ़ते गए
अपने रंगो को प्रदर्शित करते गए।।
अपनी कलाओ के रंग को,
यूं भरा जिंदगी में
सबके जीवन में नया,
जोश , उमंग भरते गए।।
कलाकारों की दिग्गज हस्तियों में हो तुम
क्योंकि इरफान, ऋषि जी महानायक हो तुम।।
हर बार अपनी अलग छटा बखेरते गए
अपनी फिल्मों में याद दिलाते गए।।
कैसा भयानक समय है,
एक - एक करके दो
महानायक अलविदा कर गए
फ़िल्म सिटी को तुम सुना कर गए।।
नहीं भूल पाएंगे तुम्हें कभी
जीवित रहोगे यादों में तुम सदा।।
माटी के पुतले है,सभी
एक दिन सभी को होना है,
इसी में विलीन
पर मरकर भी जो,
अमर हो गए
ऐसी हस्ती को शत् - शत् नमन्।।
शांति के फूल अर्पित करते है
दो महानायकों को श्रद्धा - सुमन समर्पित करते हैं।।
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सरकारी......
कहने वाले कहते रहे,
निकम्मे है सरकारी।।
आज इस विकट दौर में ,
काम आए सरकारी।।
कोई न आते पास मरीज के,
दवा पिलाते सरकारी।।
कोई न इनके हाथ लगाते,
सफ़ाई करते सरकारी।।
कोई न इनको रोक पाते,
पत्थर खाते सरकारी।।
चौराहों पर चौबीसों घण्टे,
पाठ पढ़ाते सरकारी।।
स्कूलों में बरातियों सी,
ख़ातिर करते सरकारी।।
छोड़ परिवार डटे हुए है,
कर्तव्य पथ पर सरकारी।।
नेताओं ने नाम कमाया
देकर धन सरकारी।।
अपनी कमाई का हिस्सा दे,
बीना नाम के सरकारी।।
घर रहने की विनती करते,
गाना गाकर सरकारी।।
घर - घर जो सर्वे करते,
वो बन्दे सारे सरकारी।।
नुकसान तो सबका है,
पर मौत सर लिए बैठे सब सरकारी।।
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ईश्वर की एक अदभुत रचना है माँ.....
माँ का प्यार
हाथों का दुलार
मुँह पर मीठी मुस्कान
हँसी - ठिठोली का साथ
ऐसा है माँ का प्यार......
तू हर दर्द की दवा है माँ
तेरे कदमों में ही जन्न्त है माँ.......
दिन - रात तू सबकी सेवा करती
छोटे - बड़े का ध्यान रखती
तेज धूप में भी अचार - पापड़ बनाती
परिवार की ख़ुशी के लिए दिन भर सब काम करती
फिर भी नहीं थकती है माँ....
अपनी जिंदगी गुजार देती ख़ामोशी से
ख़ामोशी से अपना हर फर्ज निभाती
अपनी इच्छाओं का दमन करती हर बार
परिवार के लिए ही जीती अपना पूरा जीवन
तू हर बार क्यों ख़ामोश रहती माँ .......
सबकी ख़ुशी का ध्यान रखती
परिवार में ही अपने जीवन को तराशती
खुद के लिए कुछ नहीं चाहिए
पर परिवार की ख़ुशी के लिए अपना जी जान लगाती है माँ .....
जब भी में डरी सहमी माँ
तेरे आँचल में चुप गई माँ।
हर पल मुझे तेरी गोद याद आई माँ
तेरी गोद में सिर रखकर ही सुकून पाया माँ......
मेरी आँखों में एक आँसू देख
बर्दाश्त नहीं कर पाई एक पल तुम
मेरे हर आँसू से बिखर गई तुम
पर अपने हर गम को भूलकर
मेरी हर ख़ुशी में इतराई माँ....
जब तक सिर पर हाथ तेरा
हर चिंता से मुक्त है माँ
तुमने झेली हर बाधा और मुश्किल
तेरी हर सीख मेरे काम आई माँ.....
यूं प्रकृति में अद्भुत रंग में तुम हो माँ
मेरा सारा संसार हो तुम
भूख , प्यास , व्याधि
हर गम की दवा हो तुम
इस धरती पर ईश्वर की अद्भुत रचना हो तुम मेरी माँ हो तुम.....
तेरी कोख से जन्म लेकर धन्य हुई में माँ
जिंदगी के हर पल में,
तेरे साथ के बिना अधूरी- सी हूं माँ.......
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चीन का प्रकोप.......
हे जिनपिंग
चीन के स्वामी
तुम तो निकले ,
बड़े तिकड़मी।।
कोरोना के पालन कर्ता
मैल जाओ तो बना देंगे भर्ता।।
कोई मुल्क नहीं है बाकी
जहाँ न मिली इसकी झाँकी।।
लॉक हुए है घर में अपने
आजादी के देखे सपने।।
पत्नी कोसे , बच्चा रोये
जिनपिंग नाश तुम्हारा होय।।
जो वुहान से भेज कीड़ा
भोग रहा जग उसकी पीड़ा।।
बीमारी तुमने फैलाई
बेच रहे हो खुद ही दवाई।।
अरे मौत के सौदागर सुन
देह पर लग जाए तेरी घुन।।
काज तेरे सब विश्व अंत को
आग लगे तेरे वामपंथ को।।
छोटी आँख वाले चीन
तुमने सबकी नींदे छीनी।।
उधर डॉक्टर लगे हुए है
24 घण्टे जगे हुए है।।
कुत्ते घूमे गली डगर में
नहीं आदमी कहीं नगर में।।
देश बजाता थाली, ताली
उधर विपक्षी देते गाली।।
बन्द बाजारें बन्द दुकानें
सिगरेट ख़ातिर सड़कें छाने।।
एक हो गई दो , दो पीढ़ी
पिता , पुत्र से मांगे बीड़ी।।
कुर्सी याद बहुत आती है
आँखों में आँसू लाती है।।
हालातों पर करके काबू
ऑफिस घर ले जाएंगे बाबू ।।
कोरोना का चीन में डेटा
पूरे विश्व को इसने घेरा।।
भारत में आकर हारेगा
संयम ही इसको मारेगा।।
संध्या शर्मा
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