आईना ########## कोरोना अपना मन बहलाने को इधर उधर भटक रहा है। बाहर घूम रहा है। कोई है जो उसके साथ खेल खेलने को राजी हो। प्रेमी जन...
आईना
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कोरोना अपना मन बहलाने को इधर उधर भटक रहा है। बाहर घूम रहा है। कोई है जो उसके साथ खेल खेलने को राजी हो।
प्रेमी जन लॉक डाउन के चलते अंदर भटक रहे हैं ।सोशल मीडिया ही सहारा रह गया है। पहले तो छुप छुप कर मिल लिया करते थे लेकिन अब मिलना तो दूर छुप छुप कर बात करना भी दूभर हो रहा है ।
कोरोना काल जैसे जैसे बढ़ता जा रहा है । प्रेमी प्रेमिकाओं के दिल बैठते जा रहे हैं। मन दुखी हो रहा है ।आंखों के सामने अंधेरा छा रहा है।
इस कोरोना ने प्रेमी प्रेमिकाओं को दुखी कर दिया है। कहीं कोई उपाय दिखाई नहीं दे रहा है।
वही साहित्यकार खुलकर साहित्य सर्जन कर रहे हैं । बरसों का कोटा पूरा कर रहे हैं। उनके लिए यह लोकडाउन साहित्य सृजन का कालखंड बनकर आ गया है। यह ऋतु जैसे साहित्य की बसंत ऋतु बन गई है।
साहित्य की मैगजीन और अखबार भरे पड़े हैं। साहित्यकारों की डायरियां चुक गई हैं ।हजारों पन्ने काले कर दिए हैं ।
कोरोना उनकी नायिका बनकर हर जगह इठलाती घूम रही है।
कोरोना मदमाती युवती की तरह अपना सौंदर्य बिखेरती जा रही है। रंग बदल रही है। उसने शहरों को भी रंग बिरंगा कर दिया है। कोई लाल ,कोई पीला, कोई हरा।
कभी इधर, कभी उधर, कभी यहां, कभी वहां। वह कब कहां अपने सौंदर्य की खुशबू बिखेर दे। किसी को नहीं पता?
सब लोग उसकी मनमोहिनी अदाओं में उलझे हुए हैं ।
टेलीस्कोप लगा लगा कर उसको देखने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन वह है कि .…...।
पूरे विश्व को इसने अपने मायाजाल में उलझा रखा है। सब उलझे हुए हैं ।कोई चीज याद नहीं। सिर्फ और सिर्फ कोरोना। यह कहां है ?किसके पास है? कैसे इससे बचा जाए? सब इसी उलझन में हैं ।
पूरा विश्व एक तरह से थम सा गया है।
यह समय बड़ा चौंकाने वाला है। भगवान तक ने अपने पट बंद कर लिए हैं। घंटों घड़ियाल की आवाज सुनाई नहीं दे रही। मस्जिदों से अजान सुनाई नहीं दे रही। कल कारखानों की चीख लुप्त हो गई है ।शादी विवाह ,बैंड बाजे सब रूक गए हैं ।आवाजाही बंद है ।बस , ट्रक, रेल ,हवाई जहाज सब बंद । पहिए थम गए हैं। जिंदगी रुक गई है। यहां तक कि लोग इस लॉक डाउन में मृत्यु को प्यारे नहीं हो। इसके लिए उनके अपने भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं ।कम से कम दूर बैठे अपनों को उसके अंतिम समय में अंतिम दर्शन तो नसीब हो।
छिटक कर दूर रहने का समय आ गया है। एक विचित्र अनुभव से विश्व गुजर रहा है।
सब अनुशासित है। अनुशासन का अर्थ है सब कुछ से सहमत होना ।जो असहमत है वह अनुशासित नहीं है ।असहमति की कल्पना मात्र दहशत पैदा कर रही है ।इसके परिणाम को कहने तक से गला अवरुद्ध हो रहा है।
मन में प्रश्न उठ रहा है कि देश के भविष्य का क्या होगा?
वर्तमान स्थिति अकुलाहट पैदा कर रही है ।
एक समय था जब कलम और जबान आसानी से किसी के भी खिलाफ चल पड़ती थी। लगता था हम जो कह रहे हैं ।सही कह रहे हैं। हम जो समझ रहे हैं। सही समझ रहे हैं ।अब यही सोच हमारी नासमझी को प्रगट कर रही है ।
सब का वर्णन करना सरल है। युद्ध में आमने-सामने लड़ना सरल है। चाहे कितना ही घमासान युद्ध हो। लेकिन इस कोरोना का वर्णन करना असंभव लग रहा है। हजारों लाखों की संख्या में पृष्ठ काले किए जा चुके हैं लेकिन अभी तक इसकी गाथा पूरी नहीं हो पा रही है।
आज हर व्यक्ति एक छोटा रणक्षेत्र बना अपनी प्राण रक्षा में लगा हुआ है। उसकी जान हथेली पर है। पीठ दीवार से टिकी हुई है। उनके पास जो शस्त्र है वह विश्वसनीय नहीं है।इन शस्त्रों के सहारे वह जीवित रह पाएगा यह भी निश्चित नहीं है । अंदाजे से शस्त्र चलाए जा रहे हैं ।निशाना सही लग रहा है या नहीं ।
यह भी चलाने वाले को नहीं पता लेकिन सब चला रहे हैं।
जीवित रहना जरूरी है ।बचाव ही उपचार है। घर में रहना ही उपचार है। आप कब तक घर में रहेंगे? इसकी समय सीमा तक तय नहीं है।
सारा विश्व बूचड़खाना बनता जा रहा है । इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यह वर्णनातीत है । यह वायरस नहीं हुआ ।कोई ईश्वर हो गया जिसके बारे में इस पृथ्वी पर जीवित किसी भी व्यक्ति द्वारा इसका सही-सही वर्णन करना संभव नहीं हो पा रहा है।
कौन ऐसा भविष्यवक्ता है? दूरदर्शी है ?जो कल की भविष्यवाणी करें । कौन कब तक जीवित रह सकेगा।
हम सब तमाशबीन बने हुए हैं। रंगमंच पर खेल खेल रहे हैं। उस खेल को खिलाने वाला मदारी कोई और ही है ।यह खेल कब तक चलता रहेगा। यह मदारी हम से कब तक खेल खिलाते रहेगा। यह सब भविष्य के गर्त में समाहित है ।
क्या हम मदारी के खेल में अपने आप को साबित कर पाएंगे?
कोई नहीं जानता ।सिर्फ मदारी जानता है ।
मदारी कौन है ?यह जमूरा नहीं जानता । जमूरे मदारी की थाप पर नाच रहे हैं ।खेल खेल रहे हैं।
हंस रहे हैं, हंसा रहे हैं। लोग तालियां बजा रहे हैं। दीप जला रहे हैं ।पुष्प वर्षा कर रहे हैं। यह कब तक चलेगा ?कब तक चलेगा?
किसी को नहीं पता!
हम बहुत ताकतवर बन चुके हैं। सब कुछ हमारा है। बहुत ताकत हमारी भुजाओं में है ।हम चाहे जो कर सकते हैं ।हम चाहे जिसे मार सकते हैं ।हम चाहे जब तक दुनिया पर राज कर सकते हैं । सारी कायनात हमारी है हम इसके अधिनायक है। यह पृथ्वी ही नहीं। यह जल, थल, सारा नभ मंडल हमारा है।
सारी सृष्टि के मालिक हम हैं। यह हमारा अहं हमको कहां ले आया? हमें क्या आईना दिखा रहा है यह ?हम अब तक नहीं समझ पाए हैं ।
वे कह रहे हैं यह साल जिंदा रहने का साल है। कोई लाभ नहीं ।कोई हानि नहीं ।सिर्फ तुम जिंदा रह सको ।इसी में तुम्हारी ताकत है। इसी में तुम्हारी भलाई है। यही अपने आप को साबित करने का वक्त है।
यह आईना हमें कौन दिखा रहा है? क्या इस आईने से हमें वह सब दिखाई देगा जो यह काल खंड हमें दिखाना चाह रहा है।
सबक ले सकेंगे हम अपनी इस शोषण वादी नीति से ।
हमारी भूख से।
तो क्या अब हमें हमारी इन आंखों से दिखाई देने लगेंगे छोटे-छोटे भीख मांगते बच्चे, क्रंदन करती माताएं, झोपड़ियों में रहते लोग, कारखानों में दो रोटी के लिए अपना हाड़ मांस एक करते लोग, खेतों में पसीना बहाते मजदूर ,भूखे, नंगे, गरीब, बीमार अपाहिज लोग।
क्या ये भी इस सृष्टि का हिस्सा है? हम किस का हिस्सा अब तक डकारते आ रहे हैं ?
क्या हम देख सकेंगे इन सबको इस आईने में।
आओ हम सब मिलकर आईना देखें और आईने में वह सब देखें जो हमें दिखाया जा रहा है।
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#हनुमान मुक्त
"मुक्तायन"
93, कांति नगर गंगापुर सिटी जिला सवाई माधोपुर राजस्थान
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