1.लॉकडाउन ज़िन्दगी तो कुछ अस्त व्यस्त सी हो गई । कुछ भी कहो थोड़ी पस्त सी तो हो गई । डर के माहौल में कहीं घर से न जाया जाए। दुनिया भर स...
1.लॉकडाउन
ज़िन्दगी तो कुछ अस्त व्यस्त सी हो गई ।
कुछ भी कहो थोड़ी पस्त सी तो हो गई ।
डर के माहौल में कहीं घर से न जाया जाए।
दुनिया भर से कट के दिन कैसे बिताया जाए।
सूनी सड़कें सूने मंज़र सूना सा बाज़ार हुआ।
ऐ जहाँ बोल तुझे इश्क किसके साथ हुआ ।
हर कोई खौफ से सहमा दिखाई देता है।
चैन से जीना भी जोखिम दिखाई देता है।
बद से बद्तर कहीं हालात न होते जाएं ।
मान लें बात तो ये साथ न खोने पाएं।
लॉकडाउन का ये एहसास नया सा जाना।
अपने परिवार को इस दिल की ताकत माना।
ऋचा
2.विधाता
पाप पुण्य के फेर में
तू भूला दिन- रात।
कुदरत तुझको बता रही
क्या तेरी औकात ।
साफ़ हवाएं, साफ़ आसमां,
साफ़ हुआ दिल आज ।
पानी ने धरती को भिगो के
दे दिया सुख का राज ।
तू भी मन को साफ कर
छोड़ पुरानी सारी बात ।
वो ऊपर वाला जो बैठा
दे सकता है सबको मात ।
इन्हीं चन्द लम्हों की खातिर
तूने दौड़ कमाया लाख।
देख इसी फ़ुरसत को पाकर
लगी कमाई जैसे राख ।
प्रभु की लीला जान ले
मान ले उसकी बात ।
वही विधाता है जगती का
खुद को सौंप दे उसके हाथ
ऋचा
3.बस यूँ ही!
बस यूँ ही कभी यादों के पन्नों को पलट लेते हैं
ऐसे ही कुछ पुरानी यादों को ताज़ा कर लेते हैं।
बस यूँ ही कभी कुछ लकीरों को उकेरा करते हैं
ऐसे ही उनमें कुछ हल्के गहरे रंग भी भर देते हैं।
बस यूँ ही कभी रातों को तारे गिन लेते हैं
ऐसे ही चाँद की तारीफ में कसीदे पढ़ लेते हैं।
बस यूँ ही अपनों की कुछ फरमाइशें सुनते हैं।
ऐसे ही उनको अक्सर पूरा भी कर देते हैं ।
बस यूँ ही कभी किसी अपने से मिल लेते हैं
ऐसे ही कुछ अपनी कह उसकी सुन लेते हैं।
बस यूँ ही कभी इस दिल को हल्का कर लेते हैं
ऐसे ही कुछ चन्द मिसरे हम भी लिख लेते हैं।
ऋचा
4.बेटे भी घर से जाते हैं ।
बेटे जब बाहर जाते हैं ,
आँखों की नमी बन जाते हैं।
सब दुख बेटी का बतलाएँ
बेटों के ग़म न गिनाते हैं।
माँ रोती, बाबा हैं उदास
खाली कमरा भी है उदास ।
बिखरा बिखरा हर कोना है,
भैया भी आँख चुराते हैं।
कल तक जो शोर शराबा था
वो बदल गया सन्नाटे में ।
ले कर सामान वो निकल गया
बोला माँ जल्दी आते हैं ।
कमरे में जाकर जो देखा
तो रोक नहीं पाई आँसू ।
इक छोटी लाइन पड़ी मिली
"नहीं तेरे बिन रह पाते हैं "।
बेटे भी होते हैं उदास
निस्वार्थ भाव करते हैं प्यार।
बस अपने मन के भावों को
वो खुल के नहीं दिखलाते हैं।
बेटे भी घर से जाते हैं
आँखों को नम कर जाते हैं ।
5.होस्टल से बेटे आते हैं !
होस्टल से! जब बेटे आते हैं
आपकी याद आई ये नहीं बताते हैं।
हाँ क्या- क्या खाना है ,
एक लिस्ट बना के लाते हैं।
गले में बाहें डाल कर
आँखे ज़रुर चुराते हैं।
पर आप सब को बहुत मिस किया
ये नहीं बोल पाते हैं ।
घर में घुसते ही क्या- क्या बदला
एक पल में बताते हैं ।
नया सामान उनके बिना आया
इसके लिए लड़ जाते हैं ।
आपने मुझे बताया नहीं
ऐसा कह कर रूठ जाते हैं ।
मेरी किताबों को किसने छुआ
कह कर अपनी अलमारी देख जाते हैं।
मेरी लाल वाली शर्ट कहाँ गई
आपने किसी को दे तो नहीं दी
ऐसा कह कर शक जताते हैं ।
एक एक कोने की तलाशी ले कर
बीते लम्हों को जी जाते हैं ।
ये क्या पापा के पुराने जूते
अभी तक फेंके क्यों नहीं
झट से आन लाइन
नये जूते मंगवाते हैं।
गिटार और की बोर्ड को
दुछत्ती से निकाल कर
प्यार से उस पर हाथ फिराते हैं।
दोस्तों से मिलने जाते हैं
उनको घर भी बुलाते हैं ।
माँ अपने खास भरवां करेले बना दो
ऐसा कह कर अवाक कर जाते हैं।
पर! आपकी याद आई ये नहीं बताते हैं।
होस्टल से जब बेटे आते हैं।
6.तेरी आहट
तेरे कदमों कि आहट से तुम्हें हम जान लेते हैं ।
किसी भी राह से गुज़रो तुम्हें पहचान लेते हैं ।
तुम्हारे गम तुम्हारी हर खुशी में साथ देंगें हम ।
यही वादा किया था हर सफ़र यूँ ही चलेंगे हम।
तुम्हारी हर कही और अनकही को मान लेते हैं।
खबर ये है कि जन्नत आसमां से दिल में उतरेगी।
अगर चाहेंगे मिल के घर को अपना घर बना लेगी।
उसी जन्नत में रहने की चलो हम ठान लेते हैं ।
तसव्वुर ये है हाथों की लकीरें खुद बनाएंगे।
ख़ुशी के रंग से दुनिया की तस्वीरें सजाएंगे।
वज़ूदे इश्क को खामोशी से हम पहचान लेते हैं।
7.बचपन
कितना प्यारा था वो बचपन,हर चिंता से मुक्त थी पवन।
कितना प्यारा था वो बचपन।
माँ बाबा का लाड़ दुलार, भाई बहन का हर मनुहार
धड़कन सा बस गया ह्रदय मे, याद आयेगा सूनेपन में।
जाने कब मैं बड़ी हो गई पावों पर मैं खड़ी हो गई ,
सखियाँ जाने कहाँ हो गई, हंसी ठिठोली किधर खो गई।
उन्हीं दिनों को ढूंढते नयन,कितना प्यारा था वो बचपन।
बगिया के वो फूल ओसकण, तितली पंछी सूर्य की किरण
मेरे घर की हर पगडंडी, हरश्रृंगार की पीली डंडी।
पेड़ों पर झटपट चढ़ जाना, बाबा का उत्साह बढ़ाना।
खिलखिलाहटों से गुंजार, माँ की मधुर मधुर फटकार।
कहाँ गया सब वो अपनापन, कितना प्यारा था वो बचपन।
कितना प्यारा था वो बचपन।
8. याद पिता की
यादों के पन्नों को पलटा तो आज बहुत याद आये ।
उंगलीयाँ पकड़ कर चलने से ले जीना भी सिखलाये ।
यादों की गठरी खोली तो, कुछ लम्हे छुप कर बैठे थे
कुछ सपने थे कुछ तस्वींरें जो भी थे मीठे मीठे थे।
बचपन भी था गोदी भी थी, कंधे भी थे लोरी भी थी
कुछ खेल खिलौनों के संग में, सीखों की मीठी गोली थी।
बगिया के फूलोँ के माली, सावन के झूलों की डाली।
मन भर आया इन यादों से, नयनों की कोर हुई गीली।
ऋचा
9. ज़िन्दगी
ज़िन्दगी क्या है ये कटना है तो कट जायेगी।
वक्त के साथ बदलने से बदल जायेगी ।
इक तमाशा सा बनाने का हमें रंज होगा।
हम अगर चाहें खिले फूल सी खिल जायेगी ।
चाँदनी रात हो या फिर तपता हुआ सूरज हो ,
वक्त के साथ गर चले तो न जल पायेगी।
कहते हैं इसने दग़ा हर किसी के साथ किया,
हम दग़ा देंगे इसे तो ये सम्भल जायेगी ।
दर्द देती है ,इसे हम भी हंस के दर्द देंगे,
वक्त के साथ फिर तो ये भी बदल जायेगी।
ऋचा
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