(1) चाँद के ओठ पे मुहब्बत का इतिहास ----------------------------------------------------------- ...
(1) चाँद के ओठ पे मुहब्बत का इतिहास
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अपने प्यार के हर किस्से को करें खास चलें।
और इस श्वेत चाँदनी में बैठें हम गुनाह करें।
हर हुस्न के आतिश को लगा दिया आतिश
आज चाँद चूमें चलो चाँदनी के पास चलें।
इस चाँद के माथे पे लिखें सारे गुनाह के कर्म।
अब हर मुस्कुराहट में आओ अट्टहास करें।
अपनी मुहब्बत बने पाक व परवान चढ़े
ऐसा करते रहें और ऐसा ही हर साँस करें।
इस रात के आगोश में सिहरें व सिमट जायें हम
आओ इस चाँद और चाँदनी का विश्वास करें।
इतना शीतल व सुखद चाँदनी का हर कतरा
चाँद के ओठ पर अपना तथा इतिहास लिखें।
पिघला के जिस्म हम अपना हर समुन्दर को दें
आओ इस शीत की उष्णता का अहसास करें।
खामोश रहें हम मुहब्बत हमारा होवे मुखर
बाँट आयें तथा हर कयामत तलक सहवास करें।
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(2) सौन्दर्य को डर
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किसी लावण्यमयी के कपोलों को छूकर आती है हवा।
सँदल सा हो जाता है जिस्म और जाँ इसका।
होते ही वहाशत में बहने लगती है हवा
कहीं भय तो नहीं लुट जाने का लावण्य की दोशीजगी।
(3) अश्क को शरम कैसी ?
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मैं रोता हूँ तेरी बेवफाई नहीं
अपने हाल पर।
दिल पत्थर का होगा तेरा
मेरा तो पत्थर की किस्मत है।
खोदना चाहे कोई लकीर भी
खोद ले अपनी ही कब्र।
रोने का मुझे ही नहीं तो
अश्क को शरम कैसी ?
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(4) वजह कैसी
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उनसे तकरार क्या और उनसे सुलह कैसी?
मुहब्बत का हक है यह‚इसकी वजह कैसी?
(5) तन्हाईयाँ
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सुई की नोक की तरह चुभती हैं तन्हाईयाँ।
मेरे चाहनेवाले आसमाँ से नहीं उतरेंगे।
(6) फर्ज
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मैंने‚नाजनींॐ तूझे छूने की कसम खायी थी
रतनारे ओठों को अँगुलियों से।
कजरारे आँखों की पुतलियों को।
तूने तड़पाया‚तरसाया मार डाला है।
अब दरगाह पर तू खुद चलकर आयी है।
'मेरे मजार का पत्थर बिके‚
कुछ कर्ज है क्या?
मैं तो कब्र से भी चुका दूँगा‚
ये है फर्ज मेरा'।
(7) दंगा
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जितने थे लोग वस्त्रमय सब हो गये नंगे।
जब भी हुए हैं झगड़े जब भी हुए हैं दंगे।
(8) याद
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इतिहास के कबर में हैं जख्म‚ चोट इतने।
किस–किस को याद रक्खें किसको तथा भुलायें?
किस हर्फ को मिटायें‚किस्सा किसे जलायें?
छूने से इनको जलते हैं हाथ मेरे कितनेॐ
(9) चुगलखोर
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जो बना दे आदमी को
इन्सान से
जानवर आदमखोर‚
वह है दुनिया का सबसे बड़ा चुगलखोर।
(10) विज्ञापन
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अविश्वास के जिस्म को
शब्दों का पहनाकर
अपारदर्शी जामा
कहीं उभार
कहीं श्वेत सौन्दर्य का
भ्रम पाल देना।
करना जुगाली शब्दों की।
(11) तुलसीदास
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बिखरते पारिवारिक सम्बन्धों को
पिरोया है अनुशासन के सूत्र में।
अन्याय‚अत्याचार के विरूद्ध
उत्तर व दक्षिण के सामूहिक
प्रयास का किया वकालत जिसने
हो सकता है वही तुलसीदास।
(12) उड़ना
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टूटे हुए पंख और उड़ने का काम।
मारकर पत्थर
गिराया है खगों को
इसीलिए उसने तमाम।
(13) रचना
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न हो नैसर्गिक संभोग का सौन्दर्य
पर‚ सौन्दर्य को प्रदत्त औदार्य।
सृष्टि के अस्तित्व के लिए
किया गया हर विध्वंस
है रचना का मौलिक अंश।
(14) भविष्य
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उत्साह का क्रोड़
आशा का अंक।
मौत के साथ
जीवंत युद्ध।
(15) दर्पण
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तुम्हारे विरूद्ध
तुम्हारा आरोप।
तुम हो तलाशते
हो गये हो लोप।
(16) भूत
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वर्तमान को हस्तांतरित
इतिहास के शीर्षक में
संग्रहीत
विपुल निधि।
(17) पुस्तक
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शब्दों के वीर्य से
आदमी का जन्म।
(18) प्रयोग
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भ्रमण
चौराहे से
चौराहे तक।
(19) शान्ति
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मीठा जहर
नपुसंक क्रांति।
मृग–तृष्णा जनित
सौख्य की भा्रंति।
(20) वर्तमान
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भविष्य शिशु हेतु
वैध सम्भोग।
शुक्र–दान तेरा
काल का कोख।
(21) भूख
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भूख है
मुगलिया सल्तनत का
तख्ते–ताऊस।
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अरुण कुमार प्रसाद
शिक्षा--- ग्रेजुएट (मेकैनिकल इंजीनियरिंग)/स्नातक,यांत्रिक अभियांत्रिकी
सेवा- कोल इण्डिया लिमिटेड में प्राय: ३४ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्यरत रहा हूँ.
वर्तमान-सेवा निवृत
साहित्यिक गतिविधि- लिखता हूँ जितना, प्रकाशित नहीं हूँ.१९६० से जब मैं सातवीं का छात्र था तब से लिखने की प्रक्रिया है.मेरे पास सैकड़ों रचनाएँ हैं.यदा कदा विभिन्न पत्र,पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ हूँ.
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