विज्ञान कथा भूतों की कोठी का रहस्य ‘‘ वाह! कितनी सुन्दर जगह है ? चारों ओर हरे-भरे पेड़-पौधे और सुन्दर खिले फूल।‘‘ ‘‘हाँ ,दोस्त। यह तो साक्षा...
विज्ञान कथा
भूतों की कोठी का रहस्य
‘‘ वाह! कितनी सुन्दर जगह है ? चारों ओर हरे-भरे पेड़-पौधे और सुन्दर खिले फूल।‘‘
‘‘हाँ ,दोस्त। यह तो साक्षात स्वर्ग है। यहाँ से वापस जाने का मन ही नहीं कर रहा है।‘‘
मयंक और सुधीर बातें कर ही रहे थे। तभी उन्हें अपनी ओर एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। उसके चेहरे पर कू्रता साफ झलक रही थी।
‘‘तुम दोनों दुश्मन देश के लग रहे हो। मैं अभी तुम्हें मजा चखाता हूँ।‘‘-ऐसा कहकर वह उन दोनों को मारने के लिए दौड़ा। वे घबरा गए।
‘‘तुम इन बच्चों को क्यों परेशान कर रहे हो ?‘‘- एक दूसरे आदमी की ऊँची आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। उस आदमी ने बच्चों को परेशान करने वाले आदमी को मार
भगाया।
‘‘अंकल ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आप नहीं आते तो वह आदमी हमें जीवित नहीं छोड़ता। अंकल! आप कौन हो ? हमें मारने भगाने वाला कौन था ?‘‘
‘‘मेरा नाम दयानन्द है। तुम्हें मार-भगाने वाला सीमा पार का आतंकवादी था। लगता है तुम दोनों रास्ता भटक गए हो। तुम थक गए होंगे। चलो मेरे साथ। हमारे घर में कुछ देर विश्राम कर वापस चले जाना।‘‘-सुधीर की बात को सुनकर वह आदमी बोला।
मयंक और सुधीर दयानन्द के साथ साथ चलने लगे। कुछ दूर चलकर वे एक पुरानी कोठी में पहुंच गए। दयानन्द ने उन दोनों को कोठी के एक कक्ष में बिठाया। उसने उन्हें जड़ी बूटियों से बनी शरबत पीने को देते हुए कहा,‘‘तुम जितनी देर चाहो यहाँ बिस्तर में लेटकर आराम कर सकते हो। फिर वापस चले जाना।‘‘
दयानन्द वहाँ से चला गया। मयंक और सुधीर थके हुए तो थे ही उन्हें नींद आ गई। कुछ देर बाद उनकी नींद टूट गई। उन्हें जोर की प्यास लगी। मयंक सुधीर से बोला,‘‘तुम यहीं विश्राम करो। मैं दयानन्द अंकल से पानी मांगकर लाता हूं।‘‘
मयंक उस कक्ष से बाहर आ गया। वह दयानन्द अंकल को ढूंढ़ते रास्ता भटक गया। वह कोठी के दूसरे कक्ष के बाहर पहुंच गया। उस कक्ष का दरवाजा खुला हुआ था। कक्ष के अन्दर एक दाढ़ी वाला आदमी बैठा हुआ था। वहाँ कई लाशें रखी हुई थी। यह देखकर मयंक डर के मारे थर-थर कांपने लगा। वह वहाँ से भागकर उसी कक्ष में आ गया जहाँ सुधीर आराम कर रहा था। उसने सुधीर को पूरी बात बता दी। वह बोला,‘‘सुधीर! मुझे यह जगह ठीक नहीं लग रही है। मुझे यह भूतों की कोठी लग रही है। उस आतंकवादी से हमें बचाकर जो यहाँ लाया और लाश वाले कमरे में बैठा हुआ वह दाढ़ी वाला आदमी दोनों जिन्दा भूत हैं। भागो,यहाँ से।‘‘
सुधीर और मयंक ने वहाँ से भाग कर जाने में ही भलाई समझी। वह अपने घर की ओर जाने लगे। काफी दूर चलने के बाद वह आखिर अपने घर पहुंच गए। घर पहुंच कर उन्होंने उस रहस्यमयी कोठी के बारे में सबको बताया। उनकी बात को सुनकर कुछ लोग कहने लगे,‘‘सीमावर्ती क्षेत्र में भूत-प्रेतों के ऐसे कई किस्से सुनने को मिलते हैं। देश प्रेमी सैनिकों की कई आत्माएं वहाँ प्रकट होकर लोगों की रक्षा करती रहती हैं।‘‘
दूसरे दिन सुधीर और मयंक ने उस कोठी, दयानन्द अंकल और लाशों के बारे में अपने शिक्षक डॉ दीपमोहन को बताया।
‘‘बच्चों! तुमने मेरी जिज्ञासा को बड़ा दिया है। एक दिन तुम लोगों के साथ मैं भी उन भूतों से मिलना चाहता हूँ। ‘‘-हंसते हुए डॉ दीपमोहन बोले।
छुट्टी के दिन डॉ दीपमोहन ने सुधीर और मयंक के साथ उस कोठी में जाने का प्रोग्राम बनाया। चलते-चलते वे उस कोठी में पहुंच गए। कोठी के बाहर उन्हें दयानन्द अंकल दिखाई दिए। उन्होंने बच्चों को पहचान लिया। वहां दाढ़ी वाला आदमी भी दिखाई दिया जिसे मयंक ने लाश वाले कमरे में देखा था। डॉ दीपमोहन ने उनसे इस कोठी में आने का कारण बताया।
‘‘मेरा नाम सुरेन्द्र है। मैं भूत नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक हूँ। यह मेरे दादा जी के जमाने की कोठी है। मेरा बचपन यहाँ बीता था। फिर मैं पढ़ाई-लिखाई करने यहाँ से दूर शहर चला गया था। मैं अपने जीवन का महत्वपूर्ण शोध करने यहाँ आया हूँ। शायद तुम लोगों को पता होगा कि यहाँ बार्डर के पार दूसरा देश है। यह देश आतंकवादियों के कब्जे में है। यह कोठी आतंकवादियों की नजरों से दूर एक पहाड़ी पर है। इस कोठी से बार्डर जाने का एक गुप्त,छोटा और सुरक्षित रास्ता है। एक दिन मैंने बार्डर पर एक आतंकवादी को एक देशप्रेमी सैनिक से लड़ते हुए देखा। इस लड़ाई में दोनों की मौत हो गई थी। देशप्रेमी सैनिक का सिर सुरक्षित था किन्तु शरीर का शेष भाग टूट-फूट गया था। आतंकवादी का सिर फट गया था किन्तु शरीर का शेष भाग सुरक्षित था। मैं इन दोनों जवानों के शरीरों को अपनी कोठी में लाया।
मैं क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक पर शोध कर रहा था। एक दिन मैंने एक मरे हुए खरगोश को बर्फ में पड़े देखा। मैंने देखा उसका मस्तिष्क मरने के बाद भी सक्रिय था। ऐसा अत्यन्त कम ताप होने के कारण हुआ। यहीं से मुझे क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक पर काम करने की प्रेरणा मिली। मुझे पता था कि किसी आदमी के मस्तिष्क की कोशिकाओं में उसकी यादें और व्यक्तित्व छिपा रहता है। मुझे ऐसे आदमी की जरूरत थी जिसके मस्तिष्क में देश प्रेमी व्यक्तित्व की कोशिकायें हों। मैंने देशप्रेमी सैनिक के सिर और आतंकवादी के शरीर के शेष भाग को अत्यन्त काम तापक्रम पर रखा। मैंने अपनी मशीनों की सहायता से देखा कि मौत के बाद भी शरीर के यह भाग सक्रिय और जीवित थे। मैंने देशप्रेमी सैनिक का सिर आतंकवादी के शरीर के शेष भाग पर फिट कर दिया। इस क्षेत्र में ऐसी कई जड़ी-बूटियां हैं जो घाव भरने में सहायक हैं। मैंने इन जड़ी-बूटियों का लेप तैयार किया। इस लेप से इनके शरीर का घाव भर गया था। अब मेरे सामने एक ऐसा इन्सान था जो दो इन्सानों के शरीर को जोड़कर बनाया गया था।‘‘
‘‘अंकल! अब वह इन्सान कहाँ है?‘‘- सुधीर ने प्रश्न किया।
‘‘बच्चों ! जिन दयानन्द अंकल ने आपको आतंकवादी से बचाया था,यही हैं वह इन्सान। इनका मस्तिष्क एक देशप्रेमी का मस्तिष्क है। इनके मस्तिष्क में देशभक्ति की कोशिकाएं और एक सैनिक के रूप में इनके द्वारा लिए गए प्रशिक्षणों की यादें सुरक्षित हैं। अतः यह किसी आदमी को मुसीबत में देखकर चुप नहीं रह सकते। यह उसकी रक्षा करने को तत्पर रहते हैं।‘‘-वैज्ञानिक सुरेन्द्र अंकल की बात को सुनकर दयानन्द मुस्कराए।
‘‘अंकल !जब मैं पिछली बार यहाँ आया था तो मैंने इस कोठी के एक कक्ष में कई लाशें देखी थी। इन लाशों का राज क्या है ?‘‘
मयंक के इस प्रश्न को सुनकर सुरेन्द्र बोले ,‘‘यह लाशें उन इन्सानों की हैं जो यहाँ किन्हीं कारणों से मर जाते हैं, उनके परिजनों को उनकी कोई खबर नहीं होती। इन लाशों को मैंने अत्यन्त कम ताप पर कक्ष में सुरक्षित रखा है। क्रायोजैनिक तकनीक द्वारा इनके अंगों को फिर से जीवित करने की दिशा में मैं शोध कर रहा हूँ। भविष्य में जिन लोगों का इलाज दवाइयों से नहीं हो पाएगा,या जिनके अंग खराब हो जाएंगे, उनके लिए यह तकनीक वरदान सिद्ध होगी।‘‘
वैज्ञानिक अंकल से जानकारी प्राप्त कर सुधीर और मयंक बहुत खुश हुए। दूसरे दिन डॉ दीपमोहन ने और बच्चों को भी रहस्यमयी कोठी के बारे में बताया।
- डॉ. उमेश चमोला, शिक्षक –प्रशिक्षक राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् उत्तराखंड, राजीव गाँधी नवोदय विद्यालय भवन नालापानी रायपुर देहरादून , उत्तराखंड
ई मेल – u.chamola23@gmail.com
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