दादाजी का लॉकडाउन डॉ. मंजरी शुक्ला शानू बहुत दिनों से देख रहा था कि दादाजी अनमने से इधर से उधर छत पर टहलते रहते हैI वह जब भी उनसे पूछने का स...
दादाजी का लॉकडाउन
डॉ. मंजरी शुक्ला
शानू बहुत दिनों से देख रहा था कि दादाजी अनमने से इधर से उधर छत पर टहलते रहते हैI वह जब भी उनसे पूछने का सोचता तो उसे कोई दूसरी बात याद आ जाती और वह दादाजी से पूछना भूल जाताI
एक दिन शाम को उसने दादाजी से कहा-"बहुत दिन हो गए आपने मुझे कोई कहानी नहीं सुनाईI" ..
दादाजी पुराने अख़बार को पढ़ते हुए बोले-"मेरा मन नहीं है अभी कोई कहानी सुनाने काI"
शानू ये सुनकर आश्चर्यचकित रह गयाI
आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि दादाजी ने उसे कहानी सुनाने का मना किया होI
सिर्फ़ एक दादाजी ही तो थे जिन्होंने पंचतंत्र से लेकर हितोपदेश तक की ढेर सारी कहानियाँ उसे बातों ही बातों में याद करवा डाली थीI
उसने मम्मी से जाकर पूछा-"दादाजी का मूड क्यों खराब है?"
"मुझे लगता है कि वह आजकल पार्क में सैर करने नहीं जा पाते है और फ़िर उनका न्यूज़ पेपर भी आना भी तो बंद हो गया है, इसलिए वह आजकल परेशान रहते हैI"
"ओह! तभी दादाजी आजकल पुराने न्यूज़ पेपर पढ़ते रहते हैI" शानू ने सोचा
वह तुरंत दादाजी के पास गया और बोला-"दादाजी, मैं और आप आज से मम्मी के कामों में मदद करेंगेI"
दादाजी ये सुनकर मुस्कुरा दिए और कुर्सी से उठते हुए बोले-"अरे वाह, ये तो मैंने सोचा ही नहीं थाI"
दो मिनट बाद मैं और दादाजी किचन में मम्मी सामने खड़े थेI
मम्मी आलू छील रही थीI
मैंने दादाजी की तरफ़ देखाI उन्होंने मुझे मुझे कहने का इशारा किया और मैं तुरंत बोला-""दादाजी आलू छीलना चाहते हैI"
मम्मी का हाथ चाक़ू पर रूक गए और उन्होंने पलट कर हम दोनों को बारी बारी से देखाI
अचानक ही वह खिलखिलाकर हाँ पड़ी और आलू की प्लेट लेकर किचन से भाग गईंI
दादाजी का चेहरा उतर गया और वह बोले-"जाता हूँ में वापस अपनी कुर्सी पर आराम करनेI"
मैंने उनका हाथ पकड़ा और फ़ुसफ़ुसाते हुए बोला-"अभी पापा बाकी हैI"
दादाजी के चेहरे पर फ़िर से मुस्कान आ गईI
हम लोग तेज क़दमों से चलते हुए पापा के कमरे में जा पहुंचेI वैसे तो दादाजी को पापा के कमरें में जाना बिलकुल पसंद नहीं था क्योंकि पापा का कमरा पहली मंज़िल पर थाI पर इस समय दादाजी की चुस्ती फुर्ती देखते ही बनती थीI वे सीढ़ी चढ़ने में मुझसे भी आगे निकल गएI
हम जब पापा के कमरे में पहुँचे तो पापा अपने लेपटॉप पर कुछ काम कर रहे थेI
मैं कुछ कहता इससे पहले ही पापा बोले-"अभी दो मिनट बाद ही मेरी वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग शुरू होने वाली हैI तीन घंटे तक मैं कोई भी बात नहीं कर सकताI"
दादाजी ने मुझे देखा और कुछ पल बाद ही मैं और दादाजी दोनों कमरे से बाहर थेI
दादाजी बोले-"मैं जा रहा हूँ अपनी कुर्सी पर ..."
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही दादाजी सीढिया उतारते हुए चले गएI
मैं सच मैं दादाजी की मदद करना चाहता था इसलिए मैंने अपने दिमाग के घोड़े तेजी से दौड़ने शुरू कर दिएI
तभी मेरे दोस्त मोनी का फोन आयाI उससे बात करते ही मेरा मन करा कि मैं ख़ुशी से नाचने लगूँI मैं तुरंत दौड़ता हुआ दादाजी के पास गया और बोला-"दादाजी, मुझे आपको एक बात बतानी हैI"
दादाजी खुश होते हुए बोले-"क्या मम्मी मुझसे आलू छिलवाने को तैयार हो गईI"
"मैंने हँसते हुए कहा-"अरे, आलू वालू भूल जाओ आपI कल सुबह नौ बजे आप बिलकुल तैयार रहनाI मेरे दोस्तों से मिलवाना है आपको?"
"पर अभी तो लॉकडाउन चल रहा हैI भला, तेरे दोस्त कैसे आएँगे अपने घर?" दादाजी ने आश्चर्य से पूछा
"यही तो सरप्राइज़ हैI" शानू ने हँसते हुए कहा और वहाँ से भाग गया
"इस बिल्डिंग में तो तीन चार साल के बच्चे ही हैI शानू ने लगता है इतने छोटे बच्चों को अपना दोस्त बना लिया हैI कल उन्हीं को बुलाया होगाI" दादाजी ने मुस्कुराते हुए सोचा
दूसरे दिन दादाजी सुबह साढ़े आठ से ही तैयार होकर बैठ गए थेI
शानू बोला-"दादाजी, आप तो बहुत खुश नज़र आ रहे होI"
दादाजी हंस दिए और बोले-"तुमने अपने दोस्तों को बता तो दिया है ना कि वे मास्क पहनकर आयेI"
"हाँ, सब बता दिया हैI" कहते हुए शानू नाश्ता करने लगा
नौ बजने में पाँच मिनट बाकी थे कि शानू पापा का लेपटॉप खोलकर बैठ गयाI
दादाजी उदास स्वर में बोले-"क्या बच्चे नहीं आ रहे है?"
"सब आ गएI" शानू हँसते हुए बोला
"कहाँ?" दादाजी ने इधर उधर देखते हुए पूछा
"यहाँ..." कहते हुए सोनू ने हँसते हुए लैपटॉप कि स्क्रीन दादाजी की तरफ़ कर दी
दादाजी उठकर लेपटॉप के पास आ गएI
वे आश्चर्य से सोनू को देख रहे थे कि तभी सोनू बोला-"जब मेरे दोस्तों ने बताया कि वे गणित के सर के घर नहीं जा प् रहे है और सर भी किसी कारण से ऑनलाइन क्लासेस नहीं ले पा रहे है तो पापा ने मुझे बताया कि आप तो कॉलेज में गणित के प्रोफेसर थे और मेरे दोस्तों को चुटकियों में गणित पढ़ा देंगे और इसलिए अब मेरे सभी दोस्त रोज़ सुबह ९ से ग्यारह आपसे गणित पढ़ेंगेI"
दादाजी का दिल ख़ुशी के मारे ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगाI
उनका पसंदीदा विषय उन्हें पढ़ने को बहुत सालों के बाद मिल रहा थाI
पर तभी उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने धीरे से कहा-"पर तेरे पापा को भी तो लैपटॉप चाहिये होता हैI"
"हाँ, पर नौ से ग्यारह मुझे लैपटॉप बिलकुल नहीं चाहियेI" और ये कहते हुए पापा का गाला भर आया और उन्होंने प्यार से दादाजी की तरफ़ देखा
दादाजी की आँखों के कोरों से दो बूँद आँसूं निकल पड़े और उन्होंने पापा को कस कर गले से लगा लियाI
और अब दादाजी कभी बोर नहीं होते है क्योंकि शानू और उसके दोस्त सुबह ग्यारह बजे के बाद भी दादाजी को दिनभर फोन करके गणित के सवाल पूछा करते है और साथ में ढेर सारी बातें भी करते हैI
कभी कभी शानू को लगता है कि दादाजी सिर्फ़ उम्र में ज़्यादा है पर दिल से वो आज भी एक बच्चे हैI
डॉ. मंजरी शुक्ला
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपकी कहानियाँ रोचक और शिक्षाप्रद होती हैं।
जवाब देंहटाएंएक और अच्छी कहानी के लिए बधाई