1. रात्रि मंथन कुछ छिपा सा चंद्रमा है, कुछ कुटिल यह रात है.... इन दोनों के मध्य कोई, रहस्यास्पद बात है!!!.... भूमि के सौंदर्यवर्धन से, कहीं ...
1. रात्रि मंथन
कुछ छिपा सा चंद्रमा है,
कुछ कुटिल यह रात है....
इन दोनों के मध्य कोई,
रहस्यास्पद बात है!!!....
भूमि के सौंदर्यवर्धन से,
कहीं कोई द्वेष है????....
या कि इतनी शांति...
मन में मचाती क्लेश है???
ओ चपल(रात्रि)!!!
यह वसुंधरा...
प्रारंभ से ही माता है,
हर कोई सान्निध्य में....
इसके शरण को पाता है,
आज बस मनु ने स्वयं को...
विवश होकर बांधा है,
क्योंकि कल वो समझता था....
मानो वही विधाता है,
इसलिए कुछ कष्ट देकर...
माँ है धर्म सिखा रही,
मानो कुम्भकार वसुधा...
मनुख कुम्भ बना रही।।
.........श्रुति शर्मा
2. मैं चाहती हूं...
3.
मौन मन ने क्षुब्ध कर दी सृष्टि की अविचल तरंग,
अब विहंगम की भी वाणी को समझना चाहती हूँ,
मैं तड़ागों की तरंगों में विचरना चाहती हूँ,
मैं.. मैं होकर, मैं में रखकर...मुक्त होना चाहती हूँ,
हाँ! मैं चंचल मेघ की शैय्या पे सोना चाहती हूँ।
इस धरा से उस गगन के बीच खोना चाहती हूँ।
सुप्त होना चाहती हूँ, लुप्त होना चाहती हूँ।।
: श्रुति शर्मा
4. घर
एक छत, चार दीवारें,
बनाती हैं कमरा,
कमरों का झुरमुट,
बनाता है मकान,
बहुत सा भरा रहता है,
रंगीन उसमें सामान,
परंतु...
क्या घर बन पाता है,
वो सामान लबरेज़ स्थान?
जहाँ रिश्तों का मान हो,
बड़ों का सम्मान हो,
छोटों को ज्ञान हो,
छोटी मोटी खटपट,
गलतियों का भान हो,
एक माला में पिरोई हुई,
जहां सब की जान हो,
बड़ा-छोटा कैसा भी हो,
घर, वही मकान हो!
5. महादेव
निराकार, तू चंद्र भाल,
आदि अंत ना, अनंत काल,
जटाजूट, गल नाग माल,
शक्ति सारी का पुंज विशाल,
सती, उमा करें पग प्रक्षाल,
भस्म रमैया, वाणी रसाल,
कृपा मूक करे सम वाचाल,
कार्तिकेय, गणपति हैं लाल,
भूत, भविष्य, वर्तमान काल,
शिवशक्ति काटे विषम साल।।
6. भँवर
पीर का समंदर है..
तैरना नहीं जानूं,
भय भरा सा अंतर है..
चीरना नहीं जानूं,
कौन जाने दशा क्या है..
वेदना नहीं जानूं,
इस हृदय तुरंग को मैं..
साधना नहीं जानूं,
शाप के भुजंग को मैं,
जीतना नहीं जानूं,
अब केवल...
हार की निराशा है,
प्रीत है ना आशा है,
निर्मोही भाषा है,
कंटकी परिभाषा है,
दुर्दशा का झांसा है,
साथ न ज़रा सा है,
निर्मम अभिलाषा है,
जलधि मन सूखा सा है,
कुश शेष बचा नही,
हलाहल पिपासा है।।
7. मन मित्र
8.
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
भान हुआ मुझे दुख का।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
ज्ञान हुआ किसी सुख का।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
अंतर्मन था द्वंद्वित।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
मन मेरा था खंडित।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
दिन में था अंधियारा।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
छूटा प्रत्येक सहारा।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
तृन तृन सी मैं बिखरी।
तुम्ही ने मेरा साथ दिया जब
कोंपल नई कोई निकली।
ए मन मेरे... तुझे अभिवादन..
तू ही बना सहारा..
यूँही जीवन भर तू मेरा..
प्रतिपल साथ निभाना।।
9. चिड़ी
नन्ही सी यादों की चिड़िया,
कभी इस टहनी, कभी उस टहनी,
फुदका करती है दिन भर यूँ,
मानो पुरवैया हो भीनी,
एक आस जगी, फिर भोर भई,
बूंदें अंखियों ने पी झीनी,
ये खुला गगन ज्यों तात है,
चादर तारों की है सीनी,
रख दूं सम्भाल इसे मन विशाल,
काहे खतरे में यह दीनी,
जब उखड़ा मन हो वीरान,
तब तब पुकार मैंने लीनी,
बस यही साथ संगी मेरी,
कड़वाहट में घोले चीनी।।
10. माँ
बनाया है जिसने, चलाया है जिसने,
गिरे तो भी हमको उठाया है जिसने,
वात्सल्य ने जिसके गढ़ी हम सी मूरत,
है अंदर से इक ही, बस अलग सूरत,
वही प्रेम मन में, छलावा है गाली,
है इतनी तू कोमल, बड़ी भोली भाली,
आँचल में तेरे गहरी सबसे छाया,
करे प्रेम हरदम, ये कैसी है माया?
बेटी या बेटा, कहाँ फर्क कोई,
तूने ही तो जीवन माला पिरोई,
इतनी ये स्थिरता कहाँ से तू लाई?
वेदों की शक्ति भी तुझमें समाई,
बुद्धि का तेरी नहीं कोई सानी,
पल में हल करती सबकी परेशानी,
गहरी जैसे सागर, सच्ची तू मोती,
पल भर को अपनों से दूर न होती,
इतना कुछ लिखा, है फिर भी अधूरा,
शब्दों से कहाँ बखान हो पूरा,
माँ, माता, जननी नाम हैं अनेक,
श्रुति करे वंदन, चरण शीश टेक।
11. आवाज़
वो हर मंज़र जो गुज़रा है,
दिल सोचे तेरा टुकड़ा है।
वो दस्तूर ना पुराना था,
जो बसता है वो उजड़ा है।
इधर देखा तो खालीपन,
उधर देखा तो बिखरा है।
भरा दुनिया से अब है मन,
सुनाता हर कोई दुखड़ा है।
तभी सोचा कि सब छोडूं,
अभी मेरा क्या बिगड़ा है।
ये झूठों से भरी दुनिया,
यहां हर एक गया गुज़रा है।
न कोई था, न कोई है,
छोटे दिल, नाम बड़ा है।
करूँ रोज़ मछली से मैं बातें,
देखती वो उतरा मुखड़ा है।
पेड़ पंछी मेरी दुनिया है,
इन्हीं से बस दिल जुड़ा है।
चाहूँ एक नया सा जहां,
अकेली हूँ न कोई बुरा है।
काश हो जाये सच मंज़र,
प्रभु तेरा शुक्रिया है।
12. मन तन का सामंजस्य
मुंदी आँखें खुली ऐसे, ज्यों इक अहसान किया हो।
खुलते खुलते जता गयी ये, मुझे है बांधे हुए वो।।
अकड़ देखो ज़रा मन की, उठने पर ऐसे दुखता है।
यहां नहीं कुछ भी मेरा, सारा संसार मिथ्या है।।
जनाब तन ने फरमाया, अभी तू ठहर जा कुछ पल।
है गड़बड़ी, कमर अकड़ी, जल्दी जाग लेना कल।।
सरीखी बुद्धि ने फिर सब की आशाओं को किया गुम।
नई सुबहा, नया है दिन, बात न इनकी सुनो तुम।।
हैं दिन भर में काम काफी, जो तुझे आज ही निपटाने।
न कल पर टाल, बिस्तर छोड़, इनकी तू एक न माने।।
प्रथम प्रणाम कर सबको, हमने तब सुबह शुरू की।
छुई धरती, नमस्ते की, पालन करती सबका वो ही।।
प्रभु एक और दिन जीवन में आज आपने जोड़ा।
सुनूं सबकी करुं मन की, दुखी हो ना मुझसे कोई थोड़ा।
मंज़िल के लम्बे पथ पर श्रुति अनथक मैं बढ़ पाऊं।
चलूं उस ओर, सगरा जग छोड़, कामयाबी हिय लगाऊं।।
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद����
जवाब देंहटाएं