"अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश : कोरोना बॉण्डस" -डॉ दीपक कोहली- वैश्विक महामारी कोविड - 19 के प्रसार को र...
"अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश : कोरोना बॉण्डस"
-डॉ दीपक कोहली-
वैश्विक महामारी कोविड - 19 के प्रसार को रोकने हेतु विश्व के लगभग सभी देशों में पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से लॉकडाउन की व्यवस्था को अमल में लाया गया है।लॉकडाउन के कारण देश के भीतर होने वाला या एक देश का दूसरे देश से होने वाला आर्थिक संव्यवहार पूरी तरह से ठप्प है, जिसके कारण प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुज़र रही है। लोगों के समक्ष खाद्य और रोज़गार का संकट है। संकट के इस दौर में प्रत्येक देश अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये विभिन्न वैकल्पिक साधनों को अपना रहे हैं। यूरोपीय संघ और यूरोज़ोन भी यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये इन वैकल्पिक साधनों के प्रयोग को लेकर तत्पर हैं। इन वैकल्पिक साधनों में सामूहिक ऋण प्रपत्र अर्थात कोरोना बॉण्डस प्रमुख हैं।
बॉण्ड एक ऋण निवेश प्रपत्र होता है। जो किसी देश की सरकार या कार्पोरेट कंपनी द्वारा निवेशकों के लिये जारी किये जाते हैं।सरकार या कंपनी पूंजी जुटाने के उद्देश्य से बाज़ार से मुद्रा ऋण लेने के लिये बॉण्ड जारी करती है।बॉण्ड जारीकर्त्ता निवेशकों से ऋण में ली गई मुद्रा के बदले में निवेशकों को ऋण प्रपत्र के रूप में बॉण्ड जारी करता है।बॉण्ड जारीकर्त्ता निवेशक से एक निश्चित ब्याज दर पर निर्धारित समय के लिये ऋण लेता है।सरल शब्दों में बॉण्ड जारीकर्त्ता परिपक्वता की निर्धारित तिथि पर निवेशक की राशि को चुकाने का वायदा करता है और निर्धारित तिथि के लिये उधार ली गई राशि पर निवेशक को ब्याज का भुगतान करता है।
कोरोना बॉण्ड यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच एक सामूहिक ऋण प्रपत्र होगा, जिसका उद्देश्य यूरोजोन देशों के कोरोना वायरस पीड़ितों को वित्तीय राहत प्रदान करना है।
यह यूरोपीय संघ द्वारा सभी राज्यों के सामूहिक रूप से लिये गए ऋण के साथ यूरोपीय निवेश बैंक द्वारा प्राप्त निधियों को पारस्परिक रूप से जोड़ा जाएगा और आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।कोरोनोवायरस महामारी ने यूरोज़ोन देशों के बीच संयुक्त रूप से स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये ऋण जारी करने और पालन करने के लिये निर्धारित गहरी आर्थिक मंदी को दूर करने के बारे में एक तीक्ष्ण बहस को पुनर्जीवित किया है।
यूरो मुद्रा का प्रयोग करने वाले 19 देशों में से 9 देशों ने सामूहिक ऋण प्रपत्र के प्रस्ताव को स्वीकार किया है।
दूसरी ओर इस तरह के सामूहिक ऋण प्रपत्र के विचार, जिसे ‘कोरोना बॉण्डस’ कहा जाता है को जर्मनी, नीदरलैंड, फिनलैंड और ऑस्ट्रिया द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है। इन देशों के समूह को फ्रूगल फोर (Frugal Four) कहते हैं।
यूरोज़ोन के 9 देशों ने एक सामूहिक ऋण प्रपत्र जारी करने का आह्वान किया था जिनमें स्पेन, इटली, फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, आयरलैंड, पुर्तगाल, ग्रीस और स्लोवेनिया हैं।
9 देशों ने यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने यूरोपीय संस्था द्वारा जारी किये गए एक सामूहिक ऋण प्रपत्र पर कार्य करने की आवश्यकता पर बल देने की बात की।
यूरोज़ोन के 9 देशों ने सामूहिक ऋण प्रपत्र को स्वीकृति देने का निवेदन किया वहीँ यूरोज़ोन के अपेक्षाकृत रूप से संपन्न राष्ट्रों ने सामूहिक ऋण प्रपत्र का विरोध किया।इन संपन्न राष्ट्रों का मानना है कि कोरोना बॉण्डस के कारण उनकी अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव उत्पन्न हो जाएगा।
जबकि सामूहिक ऋण प्रपत्र का समर्थन करने वाले देशों का मानना है कि जर्मनी, फिनलैंड आस्ट्रिया तथा नीदरलैंड जैसे देशों ने यूरोपीय संघ से सर्वाधिक आर्थिक लाभ प्राप्त किया है, ऐसे में यह उन देशों का नैतिक कर्तव्य है कि वह इस संकट की घड़ी में यूरोज़ोन के अपेक्षाकृत कमज़ोर देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करें।
सामूहिक ऋण प्रपत्र का समर्थन करने वाले देशों को प्रो बॉण्डस कंट्री कहा गया तो वहीँ इसका विरोध करने वाले देशों को फ्रूगल फोर कंट्री कहा गया।यूरोपीय संघ द्वारा घोषित किये गए आर्थिक उपाय कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिये यूरोपीय संघ ने 540 बिलियन यूरो का आर्थिक पैकेज जारी किया है। यूरोपीय संघ ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन खोलने, यूरोपीय निवेश बैंक की उधार क्षमता बढ़ाने और यूरोपीय आयोग की 100 बिलियन यूरो की बेरोज़गारी बीमा योजना को लागू करने का भी निर्णय किया है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने अगले 9 महीनों में 750 बिलियन यूरो की राशि के साथ परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम का विस्तार करने का निर्णय लिया है। यूरोपीय संघ ने संपन्न सदस्य राष्ट्रों से कोरना वायरस से अत्यधिक पीड़ित अन्य सदस्य राष्ट्रों की सहायता करने की भी अपील की है।
वर्ष 1998 में यूरोपीय संघ के 11 सदस्य राष्ट्रों ने यूरोज़ोन के मानदंडों को पूरा किया जिससे यूरोज़ोन अस्तित्व में आया।
यूरोज़ोन का आधिकारिक शुभारंभ 1 जनवरी 1999 को हुआ।यूरोज़ोन 27 यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों में से 19 राष्ट्रों का एक मौद्रिक संघ है जिसने यूरो को मुद्रा के एकमात्र कानूनी निविदा के रूप में अपनाया है।इसमें ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, साइप्रस, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड्स, पुर्तगाल, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया और स्पेन शामिल हैं।
कोरोना बॉण्ड का लाभ यह है कि वे यूरोपीय देशों को आवश्यक वित्तीय सहायता प्राप्त करने की सुविधा देंगे।
कोरोना वायरस से अत्यधिक प्रभावित देश अपने राष्ट्रीय ऋण का विस्तार किये बिना आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों द्वारा एकता के प्रदर्शन से यूरोप के सभी राष्ट्रों के बीच इस संकट से निकलने का विश्वास मज़बूत होगा।
कोरोना बॉण्ड का एक नुकसान यह है कि यह सदस्य राष्ट्रों की आवश्यक रूप से ऋण वहनीयता की शक्ति में वृद्धि नहीं करेगा।यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच एक सामूहिक ऋण प्रपत्र के कार्यान्वयन में भी बहुत समय लग सकता है। यह देरी उन देशों के लिये उचित नहीं है, जिन्हें तत्काल आर्थिक सहायता की आवश्यकता है।फ्रूगल फोर देशों का किया जाने वाला विरोध यूरोपीय संघ के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। ऐसे में इस आशंका को भी बल मिलता है कि ब्रिटेन की भांति कहीं अन्य देश भी यूरोपीय संघ से अलग होने का निर्णय न कर लें।
कोरोना बॉण्ड को लेकर उत्पन्न विवाद मुख्य रूप से अधिकार व कर्त्तव्यों के मध्य संघर्ष का परिणाम है। जहाँ एक ओर इटली जैसे राष्ट्र हैं जो इस महामारी से अधिक संकटग्रस्त हैं तथा सहायता हेतु प्रयासरत हैं। वहीँ दूसरी ओर जर्मनी जैसे राष्ट्र हैं जो इस संकट से कम प्रभावित हैं, परंतु अन्य देश की आर्थिक सहायता करने का बोझ स्वयं पर नहीं लेना चाहते हैं। पूर्व में इस प्रकार की सामूहिक ऋण प्रक्रिया ब्रेक्ज़िट जैसे संकट को भी जन्म दे चुकी है। अतः यह आवश्यक है कि इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों पर अधिक सावधानी रखी जाए। इस समय सभी राष्ट्रों को यह समझना होगा कि राष्ट्र हित, मानवीय हितों से बढ़कर नहीं हो सकता है। इस संकट को सामूहिक प्रयत्न से ही दूर किया जा सकता है।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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