योग की तकनीक दीपक दीक्षित योग की सरल परभाषा पतंजलि के योग सूत्र के एक ही वाक्य में मिल जाती है -‘ योग चित्तवृत्ति निरोधम ’ अर्थात चित्त या...
योग की तकनीक
दीपक दीक्षित
योग की सरल परभाषा पतंजलि के योग सूत्र के एक ही वाक्य में मिल जाती है -‘योग चित्तवृत्ति निरोधम’ अर्थात चित्त या मन की अपने ही स्वभाव से मुक्ति.
मन का केंद्र बिंदु हमारा दिमाग है. इसका स्वभाव है अपने आप में ही उलझकर रह जाना. हम अपने विचार, भावनाओ और कर्मो में बुरी तरह उलझे रहते हैं . एक आम इंसान के जीवन में विचार, भावनाओ या कर्मो की अंधी चलती ही रहता है. हमारे त्रि-आयामी व्यक्तित्व की पहचान ही इन तीन चीजों से है.
इसी सूत्र को आधार बना कर योग में प्रारंभ में तीन मुख्य तकनीक बनाई गयी जिन्हें कर्मयोग ,ज्ञानयोग और भक्तियोग के नाम से जाना जाता है. कालांतर में इनमें से अनेकों तरह के योग की तकनीक विकसित की गयी. भिन्न भिन्न - समय पर तथा भिन्न - भिन्न जगह पर योग के रहस्य को समझने के लिए कर लोगों ने जिस जिस विधि का प्रयोग किया उसको अनुयायियों ने हर बार एक नया नाम दिया . इस तरह योग की अनेक विधियाँ जैसे राजयोग, हठयोग, सहज योग ,पावर योग ,कुण्डलिनी योग आदि का जन्म हुआ . कुछ विधियाँ तो व्यक्ति विशेष के नाम पर बन गयी है जैसे बिक्रम योग , ऐयांगर योग इत्यादि .
आइये योग की तीन मुख्य तकनीक या विधियों को एक एक करके समझते हैं.
यह भावना आधारित तकनीक है जिसमें समर्पण का भाव सर्वोपरीय होता है. एक भक्त योगी को जीवन में जो कुछ भी मिलता है वह उसे वैसा ही स्वीकार कर लेता है और उसका आनंद लेते हुए बिना किसी शिकायत के जीता है.
किसी भी भक्त का परिचय उसके अपने भगवान के बिना अधूरा है. अत: हर भक्त योगी के साथ उसका भगवान् जुड़ा होता है. यह भगवान् किसी भी रूप में हो सकता है. उसके जीवन में जो भी होता है उसे वह अपने भगवान् की कृपा का प्रसाद मानता है. कुल मिला कर भक्त योगी का जीवन आडम्बरहीन और सरल होता है.
भक्त योगी का जीवन मूल रूप से उसकी भावनाओं से प्रभावित होता है. अत: उसके जीवन में आमजन जैसी हिसाब-किताब की चिख -चिख या तनाव पूर्ण भाग दौड़ के लिए कोई स्थान नहीं होता. वह तो बड़ा संतोषी व्यक्ति होता है.
एक भक्त योगी के व्यक्तित्व को महाकवि सूरदास या कृष्ण की दीवानी मीरा बाई के व्यक्तित्व के उदाहरणों से समझा जा सकता है.
एक स्वस्थ व्यक्ति के बायोलॉजिकल तल पर जैसे एक लय में रक्त का प्रवाह होता रहता है ऐसा ही उसका जीवन भी दुनिया के आडम्बरों से अलग सीधा सादा चलता रहता है.
भक्ति योग का अर्थ है सच्चे मन से पूर्ण समर्पण. भक्त योगी का अपना कोई अस्तित्व जैसे होता ही नहीं. वह तो अपने भगवान् की भक्ति में डूबा रहता है. इस प्रक्रिया में वह न सिर्फ अपने व्यक्तित्व को ही बल्कि अपने आस पास के वातावरण को भी पवित्र कर देता है.
यह एक कर्म पर आधारित तकनीक है. इसमें कर्म को प्रधानता दी जाती है.
योग की इस विधि का ज्ञान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था और हमारे पौराणिक ग्रन्थ महाभारत का वह अध्याय जिसमें इसका वर्णन है वह भगवत-गीता के नाम से जाना जाता है.
कर्म योग में कर्तव्य का भाव सर्वोपरीय होता है. कर्म योगी को तो बस अपना कर्तव्य करते जाना है और परिणाम की चिंता ईश्वर पर छोड़ देना है.
जैसे किसी भी खेल में कोई अच्छा खिलाड़ी अपनी पूरे योग्यता और शक्ति लगा कर निश्चिन्त रहता है और परिणाम को लेकर बिलकुल भी चिंता नहीं करता क्योंकि इस काम का दायित्व तो एम्पायर या रेफ्री का है. फिर उसे चाहे जीत मिले या हार ,उसको वह सहर्ष स्वीकार करता है और अगले खेल की तैयारी में जुट जाता है. इसी तरह कर्म योगी बस पूर्ण निष्ठा से उसके जीवन में जो भी परिस्थितियाँ आती हैं उनके अनुसार अपना सर्वश्रेष्ठकर्म किये जाता है और परिणाम को लेकर बिलकुल भी चिंतित नहीं होता. कर्म कर के ही वह जीवन का सम्पूर्ण आनंद उठाता है और उसके किये गए कार्यों का जो भी परिणाम आता है वह उसे सहर्ष स्वीकार कर अपने कर्म में जुटा रहता है.
आज हम सब ज्ञान के युग में जी रहे हैं. हममें से हर एक सत्य की खोज में लगा रहता है. किसी भी चीज़ को हम ऐसे ही नहीं मान लेते बल्कि अपने पास उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर हर चीज़ की जड़ तक जाना चाहते है. जहाँ तक संभव हो सके वहां हम अनुसंधान और प्रयोग के वैज्ञानिक माध्यम से सत्य को तलाश करते है.
पर सच की तलाश का मार्ग सरल नहीं है. हमारे आस पास सच और झूठ की ऐसी खिचडी पकी रहती है कि यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि क्या सच है और क्या झूठ. इस मकड़जाल को भेद कर सत्य तक पहुँचाने का मार्ग बड़ा कठिन है. ज्ञान योगी हर बात जुडी हुई सूचानाओं और मान्यताओं को परख कर परम सत्य तक पहुँचने का प्रयास करता है. सत्य और असत्य के बीच के इस भेद के रहस्य को समझने नाम ही ज्ञान योग है.
हालाँकि योग की तीनों तकनीक अंत में एक ही मंजिल पर पहुंचाती हैं पर आप कौन सी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहते हैं यह एक व्यक्तिगत चुनाव है. अगर इस चुनाव में कोई दुविधा हो तो इसे अपने व्यक्तित्व को आधार बना कर दूर करें.
जैसे अगर आप सीधे ,सरल और संतोषी प्रवृत्ति के व्यक्ति है तो आपके लिए भक्ति योग का मार्ग उचित रहेगा.
लेकिन अगर आप अति उर्जावान ,हर काम में हाथ बंटाने वाले और शांत न बैठने वाले किस्म के व्यक्ति है तो आपके लिए कर्मयोग का मार्ग उचित होगा.
और अगर आप तर्क आधारित वैज्ञानिक सोच रखते हैं और उद्यमी व् साहसिक प्रवृत्ति के हैं तो आपके लिए ज्ञान योग का मार्ग उचित रहेगा.
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लेखक परिचय
रुड़की विश्विद्यालय (अब आई आई टी रुड़की) से इंजीयरिंग की और २२ साल तक भारतीय सेना की ई.ऍम.ई. कोर में कार्य करने के बाद ले. कर्नल के रैंक से रिटायरमेंट लिया . चार निजी क्षेत्र की कंपनियों में भी कुछ समय के लिए काम किया।
पढने के शौक ने धीरे धीरे लिखने की आदत लगा दी । कुछ रचनायें ‘पराग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘अमर उजाला’, ‘नवनीत’ आदि पत्रिकाओं में छपी हैं।
भाल्व पब्लिशिंग, भोपाल द्वारा 2016 में "योग मत करो,योगी बनो' नामक पुस्तक तथा एक साँझा संकलन ‘हिंदी की दुनिया,दुनियां में हिंदी’ (मिलिंद प्रकाशन ,हैदराबाद) प्रकाशित हुयी है।
कादम्बिनी शिक्षा एवं समाज कल्याण सेवा समिति , भोपाल तथा नई लक्ष्य सोशल एवं एन्वायरोमेन्टल सोसाइटी द्वारा वर्ष २०१६ में 'साहित्य सेवा सम्मान' से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2009 से ‘मेरे घर आना जिंदगी’ (http://meregharanajindagi.blogspot.in/ ) ब्लॉग के माध्यम से लेख, कहानी , कविता का प्रकाशन। कई रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं तथा वेबसाइट (प्रतिलिपि.कॉम, रचनाकार.ऑर्ग आदि) में प्रकाशित हुई हैं।
साहित्य के अनेको संस्थान में सक्रिय सहभागिता है । राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कई गोष्ठियों में भाग लिया है। अंग्रेजी में भी कुछ पुस्तक और लेख प्रकाशित हुए हैं।
निवास : सिकंदराबाद (तेलंगाना)
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन
संपर्क : coldeepakdixit@gmail.com
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