सत्यवान सौरभ, नारी मूरत प्यार की, ममता का भंडार ! सेवा को सुख मानती, बांटे खूब दुलार !! तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास ! सोता हूँ ...
सत्यवान सौरभ,
नारी मूरत प्यार की, ममता का भंडार !
सेवा को सुख मानती, बांटे खूब दुलार !!
तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास !
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !!
बिटिया को कब छीन ले, ये हत्यारी रीत !
घूम रही घर में बहू, हिरणी-सी भयभीत !!
अपना सब कुछ त्याग के, हरती नारी पीर !
फिर क्यों आँखों में भरा, आज उसी के नीर !!
नवराते मुझको लगे, यारों सभी फिजूल !
नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते है भूल !!
रोज कहीं पर लुट रही, अस्मत है बेहाल !
खूब मना नारी दिवस, गुजर गया फिर साल !!
थानों में जब रेप हो, लूट रहे दरबार !
तब सौरभ नारी दिवस, लगता है बेकार !!
जरा सोच कर देखिये, किसकी है ये देन !
अपने ही घर में दिखें, क्यों नारी बेचैन !!
रोज कराहें घण्टियां, बिलखे रोज अजान !
लुटती नारी द्वार पर, चुप बैठे भगवान !!
नारी तन को बेचती, ये है कैसा दौर !
मूर्त अब वो प्यार की, दिखती है कुछ और !!
नई सुबह से कामना, करिये बारम्बार!
हर बच्चा बेखौफ हो, पाये नारी प्यार !!
छुपकर बैठे भेड़िये, देख रहे हैं दाँव !
बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव !!
मोमबत्तियां छोड़कर, थामों अब तलवार !
दिखे जहाँ हैवानियत, सिर दो वहीं उतार !!
जीवन में आनंद का, बेटी मंतर मूल !
इसे गर्भ में मारकर, कर ना देना भूल !!
बेटी कम मत आंकिये, गहरे इसके अर्थ !
कहीं लगे बेटी बिना, तुम्हें ये सृष्टि व्यर्थ !!
बेटी होती प्रेम की, सागर एक अथाह !
मूरत होती मात की, इसको मिले पनाह !!
छोटी-मोटी बात को, कभी न देती तूल !
हर रिश्ते को मानती, बेटी करें न भूल !!
बेटी माँ का रूप है, मन ज्यों कोमल फूल !
कोख पली को मारकर, चुनो न खुद ही शूल !!
बेटी घर की लाज है, आँगन शीतल छाँव !
चलकर आती द्वार पर, लक्ष्मी इसके पाँव !!
बेटी चढ़े पहाड़ पर, गूंजे नभ में नाम !
करती हैं जो बेटियाँ, बड़े -बड़े सब काम !!
बेटी से परिवार में, पैदा हो सम-भाव !
पहले कलियाँ ही बचें, अगर फूल का चाव !!
बिन बेटी तू था कहाँ, इतना तो ले सोच !
यही वंश की बेल है, इसको तो मत नोच !!
हर घर बेटी राखिये, बिन बेटी सब सून !
बिन बेटी सुधरे नहीं, घर, रिश्ते, कानून !!
सास ससुर सेवा करे, बहुएं करतीं राज ।
बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज ।।
आये दिन ही टूटती, अब रिश्तों की डोर !
बेटी औरत बाप की, कैसा कलयुग घोर !!
कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप !
सौरभ जीती लड़कियां, जाने कितने रूप !!
जीती है सब लड़कियां, कुछ ऐसे अनुबंध !
दर्दों में निभते जहां, प्यार भरे संबंध !!
रही बढाती मायके, बाबुल का सम्मान !
रखती हरदम लड़कियां, लाज शर्म का ध्यान !!
दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ !
बनती दुल्हन लड़कियां, पहने कंगन हाथ !!
छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार !
बनती है माँ लड़कियां, देती प्यार दुलार !!
माँ ,बेटी, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज !
गिरकर सम्हले लड़कियां, सौरभ आये रोज !
नींद गवाएँ रात की, दिन का खोये चैन !
नजर झुकाये लड़कियां, रहती क्यों बेचैन !!
कदम-कदम पर चाहिए, हमको इनका प्यार !
मांग रही क्यों लड़कियां, आज दया उपहार !!
बेटी से चिड़िया कहे, मत फैलाना पाँख!
आँगन-आँगन घूरती, अब बाजों की आँख !!
लुटे रोज अब बेटियां, नाच रहे हैवान !
कली-कली में खौफ है, माली है हैरान !!
आज बढ़े-कैसे बचे, बेटी का सम्मान !
घात लगाए ढूंढते, हरदम जो शैतान !!
दुष्कर्मी बख्शो नहीं, करे हिन्द ये मांग !
करनी जैसी वो भरे, दो फांसी पर टांग !!
बेटी मेरे देश की, लिखती रोज विधान !
नाम कमाकर देश में, रचें नई पहचान !!
बेटे को सब कुछ दिया, खुलकर बरसे फूल !
लेकिन बेटी को दिए, बस नियमों के शूल !!
सुरसा जैसी हो गई, बस बेटे की चाह !
बिन खंजर के मारती, बेटी को अब आह !!
झूठे नारों से भरा, झूठा सकल समाज!
बेटी मन से मांगता, कौन यहाँ पर आज!!
बेटी मन से मांगिये, जुड़ जाये जज्बात !
हर आँगन में देखना, सुधरेगा अनुपात !!
झूठे योजन है सभी, झूठे है अभियान !
दिल में जब तक ना जगे, बेटी का अरमान !!
अब तो सहना छोड़ दो, परम्परा का दंश!
बेटी से भी मानिये, चलता कुल का वंश!
बेटी कोमल फूल- सी, है जाड़े की धूप!
तेरे आँगन में खिले, बदल-बदलकर रूप !!
सुबह-शाम के जाप में, जब आये भगवान !
बेटी घर में मांगकर, रखना उनका मान !!
शिखर चढ़े हैं बेटियां, नाप रही आकाश !
फिर ये माँ की कोख में, बनती हैं क्यों लाश !!
माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान !
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान !!
माँ कविता के बोल-सी,कहानी की जुबान !
दोहो के रस में घुली, लगे छंद की जान !!
माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार !
माँ ही लय, माँ ताल है,जीवन की झंकार !!
माँ ही गीता, वेद है, माँ ही सच्ची प्रीत !
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत !
माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप !
मुझमें तुझमें बस रहा, माँ का ही तो रूप !!
माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम !
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम !!
✍सत्यवान सौरभ,
वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
333,परी वाटिका, कौशल्या भवन ,
बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333
twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh
दोहाकार परिचय
सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989
सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार
ईमेल: satywanverma333@gmail.com
सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
*अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989
प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन
प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन !
प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर
संपादन: प्रयास पाक्षिक
सम्मान/ अवार्ड:
1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004
2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005
3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006
4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006
5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007
6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008
7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015
8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019
9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020
10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा
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