"जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का वैज्ञानिक निस्तारण" -डॉ दीपक कोहली- हाल ही में ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण’ (Nat...
"जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का वैज्ञानिक निस्तारण"
-डॉ दीपक कोहली-
हाल ही में ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण’ (National Green Tribunal- NGT) ने कोविड-19 की महामारी को देखते हुए देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के अवैज्ञानिक निस्तारण से उत्पन्न जोखिम को कम करने हेतु आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अनुसार, देश के 2.7 लाख स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में से मात्र 1.1 लाख को ही ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Bio-Medical Waste Management Rules- BMWM Rules), 2016’ के तहत अधिकृत किया गया है। ऐसे में कोविड -19 की महामारी को देखते हुये जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के अवैज्ञानिक निस्तारण से उत्पन्न जोखिम को कम करने हेतु ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ और ‘प्रदूषण नियंत्रण समितियों’ को इस अंतर को कम करने के लिये प्रयास करने होंगे।
इसके अतिरिक्त ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central Pollution Control Board- CPCB) ने भी ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ और प्रदूषण नियंत्रण समितियों को कोविड-19 के दौरान जैव-अपशिष्टों के निस्तारण के लिये ज़रूरी दिशा-निर्देश जारी किये हैं। जैव चिकित्सा अपशिष्ट से आशय मनुष्यों या पशुओं के उपचार, चिकित्सीय जाँच या चिकित्सा से जुड़े शोध कार्यों या उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्टों से है।उदाहरण: संक्रमित रक्त या कोशिका नमूने, सीरिंज (सुई), बैंडेज, दस्ताने, मास्क या अन्य उपकरण आदि। भारत में मार्च 2016 में लागू ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के तहत जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। कोविड-19 संक्रमित मरीज़ों के लिये अलग आइसोलेशन वार्ड (Isolation Ward) वाले अस्पतालों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम- 2016, के तहत वार्ड में कलर कोडेड (Colour Coded) कूड़ेदान/बैग रखने जैसे प्रयासों के माध्यम से जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को अलग रखने की व्यवस्था करनी चाहिये।
कोविड -19 आइसोलेशन वार्ड से अपशिष्टों को एकत्रित करते समय अतिरिक्त सावधानी के रूप में दो परतों (Double Layer) वाले बैग या एक साथ दो बैग का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।अपशिष्टों को ‘कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोज़ल फैसिलिटीज़’ (Common Bio-medical Waste Treatment and Disposal Facilities- CBMWTFs) पर भेजने से पहले अलग भंडारण कक्ष में रखा जाना चाहिये या इसे आइसोलेशन वार्ड से सीधे CBWTF कलेक्शन वैन में रखा जा सकता है।
कोविड- 19 आइसोलेशन वार्ड से अपशिष्टों को निकालने के लिये प्रयोग होने वाले कूड़ेदान, ट्राॅली आदि पर ‘COVID-19' लेबल लगाया जाना चाहिये और वार्ड से निकलने वाले अपशिष्टों का अलग रिकार्ड रखा जाना चाहिये।
कोविड- 19 वार्ड में प्रयोग किये जाने वाले कूड़ेदान, ट्राॅली आदि की 1% सोडियम हाइपोक्लोराइट वाले घोल से प्रतिदिन सफाई की जानी चाहिये।
कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोज़ल फैसिलिटीज़’ अपशिष्ट निस्तारण के वे संयंत्र/केंद्र होते हैं जहाँ स्वास्थ्य क्षेत्र से निकलने वाले जैव- चिकित्सा अपशिष्टों के दुष्प्रभावों को कम करने के लिये वैज्ञानिक मानकों के तहत उनका निस्तारण किया जाता है। वर्तमान में देश के 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 200 अधिकृत CBMWTF सक्रिय हैं। CPCB ने स्पष्ट किया कि क्वारंटीन कैंप/सेंटर से आशय उन स्थानों से है जहाँ स्थानीय प्रशासन या अस्पताल के निर्देशों पर COVID-19 से संक्रमित या संक्रमण की आशंका वाले व्यक्तियों को 14 या इससे अधिक दिनों तक रहने को कहा गया है।क्वारंटीन कैंप से निकलने वाले सामान्य ठोस अपशिष्ट को स्थानीय शहरी निकाय द्वारा नियुक्त कर्मचारी को दिया जाना चाहिये या ठोस अपशिष्ट के निस्तारण के प्रचलित तरीकों से इसका निस्तारण किया जा सकता है।क्वारंटीन कैंप से निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के निस्तारण के लिये क्वारंटीन कैंप का संचालक/संरक्षक नज़दीकी CBMWTF संचालक को सूचित करेगा, CBMWTF संचालक की जानकारी स्थानीय प्रशासन के पास उपलब्ध होगी।
क्वारंटीन कैंप/क्वारंटीन होम या होम केयर से निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के तहत ‘घरेलू खतरनाक अपशिष्ट’ (Domestic Hazardous Waste) के रूप में चिन्हित किया जाएगा और इसका निस्तारण ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम’, 2016 के नियमों के तहत किया जाएगा।
CPCB के अनुसार, ये दिशा-निर्देश वर्तमान में COVID-19 के संदर्भ में उपलब्ध जानकारी और अन्य संक्रामक बीमारियों जैसे- HIV, H1N1 आदि के उपचार के दौरान बने संक्रामक अपशिष्टों के प्रबंधन में अपनाए गए तरीकों पर आधारित हैं। आवश्यकता पड़ने पर इनमें परिवर्तन किये जा सकते हैं।
फरवरी 2019 में संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत में लगभग 200 CBMWTFs संचालित हैं, जो कि हमारी वर्तमान आवश्यकता के सापेक्ष बहुत ही कम हैं।NGT की जाँच के अनुसार, देश में 2.7 लाख स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में से मात्र 1.1 लाख को ही ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के तहत अधिकृत किया गया है।ऐसे में यह आँकड़े वर्तमान में COVID-19 के संक्रमण की प्रकृति को देखते हुए एक गंभीर चुनौती की ओर संकेत करते हैं।वर्तमान में देश के बहुत से छोटे शहरों और कस्बों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये निर्धारित मानकों का पालन नहीं किया जाता है, इन क्षेत्रों में कोविड -19 के जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का वैज्ञानिक मानकों के तहत निस्तारण न होने से कोविड-19 संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
कोविड -19 के संक्रमण को रोकने में मानव संपर्क को कम करने के साथ ही जैव चिकित्सा अपशिष्टों से इस बीमारी के संक्रमण को रोकना बहुत ही आवश्यक है।छोटे कस्बों और नगरों में अपशिष्ट प्रबंधन और निस्तारण में लगे कर्मचारियों को उच्च कोटि के सुरक्षा उपकरणों के साथ ही मानकों के अनुरूप अपशिष्टों के निस्तारण के लिये प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।वर्तमान में कोविड -19 से संक्रमित या संक्रमण की संभावना वाले लोगों को क्वारंटीन कैंप या उनके घरों में रखा गया है।अतः ऐसे व्यक्तियों की देखभाल कर रहे लोगों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट और इसके वैज्ञानिक निस्तारण के तरीकों के संदर्भ में जागरूक किया जाना चाहिये।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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