25 अप्रैल परशुराम जयंती/ अक्षय तृतीया पर........ अवतारों में अद्वितीय परशुराम के नाम से जानी जाती है अक्षय तृतीया तिथि *************...
25 अप्रैल परशुराम जयंती/ अक्षय तृतीया पर........
अवतारों में अद्वितीय परशुराम के नाम
से जानी जाती है अक्षय तृतीया तिथि
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आवेशावतार परशुराम विष्णु के छठे अवतार
अक्षय तृतीया के पर्व भगवान परशुराम के जन्म से भी जुड़ा हुआ है । परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं । ब्राह्मणों के आदि देव परशुराम थे तो ब्राह्मण ,किन्तु उनका पराक्रम क्षत्रियों से कम नही था । वे रामायणकाल के श्रेष्ठ ऋषि थे। उनके पिता जमदग्नि ने उन्हें पुत्रयेष्ठि यज्ञ सम्पन्न कर उन्हें वरदान के रूप में प्राप्त किया था । उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार अर्थात अत्यंत गुस्सैल स्वभाव वाला अवतार माना जाता है । परशुराम जी शस्त्र विद्या के महान गुरु थे ।भीष्म पितामह सहित गुरु द्रोणाचार्य तथा कारण उनके ही शिष्य थे । हिन्दू धर्म ग्रंथों में यह माना जाता है कि रामायण और महाभारत काल के अलावा उनके शेष कार्यों में अभी " कल्कि- अवतार " होना शेष है । परशुराम जी का यही अवतार कलयुग के अंत का प्रतीक होगा । अपने पांच भाइयों में परशुराम जी सबसे छोटे थे साथ ही अपनी माता और पिता के बड़े आज्ञाकारी थे । अपने पिता की मौत( हत्या) का बदला लेने के लिए उन्होंने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रीय विहीन कर दिया । यह उनके पराक्रम का बड़ा उदाहरण हो सकता है ।
भगवान परशुराम अकेले ऐसे ऋषि और महान धनुर्धर हैं ,जिनका जिक्र रामायण से लेकर महाभारत और कल्कि पुराण में भी मिलता है । भार्गव गोत्र में उत्पन्न भगवान परशुराम ने अपने गोत्र में सबसे अधिक आज्ञाकारी होने का गौरव प्राप्त किया । माता- पिता और गुरुजनों का सम्मान करने वाले परशुराम जी ने सारी सृष्टि में पशु - पक्षियों ,वृक्षों- फलों - फूलों, की जीवंतता बनाए रखने का कर्तव्य पालन किया । पशु- पक्षियों की भाषा समझने वाले परशुराम जी उनसे बातें भी किया करते थे । उनके प्रेम के चलते ही नरभक्षी प्राणी भी उनके स्पर्श मात्र से उनके मित्र बन जाया करते थे । वाल्मीकि जी ने परशुरामजी को क्षत्रियों के साथ ही अनेक राजाओं का वध करने वाला ऋषि भी बताया है । यहाँ विशेष उल्लेखनीय है कि परशुराम जी ने उन्हीं क्षत्रियों का वध किया जो नीच प्रवृति के विचार रखते थे । कहते हैं 21वीं बार क्षत्रियों का वंश समाप्त कर परशुराम जी ने अपने प्रमुख शस्त्र फरसे तथा अपने खून से सने हाथों को समंत पंचक में धोया और फिर क्षत्रियों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा को शांत कर बैठ गए ।
भगवान परशुराम - महादेव के नाम से राजस्थान ,जोधपुर के पाली जिले में एक बहुत बड़ा मेला लगाया जाता है । उक्त प्रसिद्ध मेला प्रति वर्ष पाली जिले की बाहरी बस्तियों में धूम - धाम से लगाया जाता है । कहते हैं इस स्थान पर स्वयं भगवान परशुराम ने पूजा- अर्चना की थी । मेले वाला स्थान स्थानीय पर्वतीत क्षेत्र के उस स्थान पर है जो शांति पूर्ण परिवेश में पर्वत के नीचे की सबसे छोटी पहाड़ी पर स्थित है । हिन्दू धर्म- शास्त्रों के अनुसार भारतवर्ष में यही एक स्थान है जहाँ भगवान परशुराम के सम्मान में आराधना की जाती हैं । अगस्त और सितंबर के महीने में लगभग 5 से 10 लाख अनुयायी उक्त मेले में पहुंचकर अद्वितीय भगवान परशुराम के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं । इस मुख्य आयोजन के अलावा पूरे वर्ष राजस्थान का वह स्थान धर्मावलंबियों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है । इसी तरह भगवान परशुराम के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक केरल प्रदेश के त्रिवेंद्रम - थिरुवलम में है ,जहाँ ब्रह्मा,विष्णु,और महेश की भी प्रतिमा स्थापित है। श्रद्धालुओं द्वारा उन्हें भी पूजा जाता है । ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान परशुराम का फरसा अरेबियन सागर में गिरा था ।
अक्षय तृतीया के दिन विशेष फलदायी माना जाता है । आज के दिन किया गया दान अक्षय होकर मनोकामना पूर्ण करता है । शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि इस दिन शुरू किये गए काम का कभी क्षय नही होता । यही कारण है कि इस तिथि को अक्षय के नाम से संबोधित किया जाता है । नए व्यापार की शुरुआत के साथ ही संपत्ति की खरीदारी तथा विवाहादि कार्य भी बिना किसी संशय के किए जा सकते हैं । यह पर्व भगवान परशुराम सहित छह अन्य चिरंजीवों की शास्त्रोक्त विचारधारा का उल्लेख भी करता है । शास्त्रों में उल्लेख मिलता है --- "अश्वस्थामा बलिवर्यासो हनूमांश्च विभीषणः
कृपः परशुरामश्च सप्तैत चिरंजीविनः ।।
अर्थात अश्वस्थामा , बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य तथा परशुराम सहित कुल सात चिरंजीव हुए हैं , अर्थात सभी अमर हैं । शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय का जन्म भी इसी तिथि को हुआ था । प्रसिद्ध तीर्थ बद्रीनाथ के पट भी तीर्थयात्रियों के लिए आज के दिन ही खोले जाते हैं । वृन्दावन स्थित बाँके- बिहारी मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान के चरण दर्शन होते हैं , बाकी 364 दिन वे वडरों से पूरी तरह ढँके होते हैं ।
अक्षय तृतीया का पर्व जैन धर्मावलंबियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है । कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही जैन तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या के बाद पारायण किया था ,और गन्ने के रस का पान किया था । जैन धर्म को मानने वाले अक्षय तृतीया को इक्षु तृतीया के नाम से संबोधित करते हैं । एक ओर जहाँ जैन धर्म में अक्षय तृतीया को आदिनाथ भगवान के साथ जोड़ा जाता है, वहीं पूरे भारतवर्ष में राजस्थान ही एक ऐसा प्रदेश है जहाँ इस दिन सबसे अधिक बाल विवाह संपन्न होते हैं । ना- समझ उम्र में वैवाहिक गठबंधन कानून को अंगूठा दिखा रहा है । वैसे देखा जाए तो भगवान परशुराम की पराक्रम गाथा के साथ ही अनेक घटनाओं से जुड़े होने के कारण यह पर्व सब पर्वों से अलग महत्व रखता है ।
डॉ. सूर्यकान्त मिश्रा
( चंद्राश्रय कुंज )
न्यू खंडेलवाल कॉलोनी, ममता नगर
प्रिंसेस प्लैटिनम, हाउस नंबर 05
राजनांदगाँव, (छ. ग.)
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