"कालमेघ : कोरोना हेतु संभावित चमत्कारी औषधि" ---------------------------------------------------- ...
"कालमेघ : कोरोना हेतु संभावित चमत्कारी औषधि"
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-डॉ दीपक कोहली-
भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसंधान से यह उम्मीद जगी है कि औषधि पौधा कालमेघ कोरोना वायरस के संक्रमण को समाप्त करने हेतु कारगर सिद्ध हो सकेगा। "वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद" का "केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान" (सीडीआरआई ), लखनऊ एक नई डायग्नोस्टिक किट तैयार करने में लगा हुआ है अनुसंधानकर्ताओं का कयास है कि कोरोनावायरस को समाप्त करने हेतु कालमेघ एक अत्यंत चमत्कारी औषधि सिद्ध होगी।
वैज्ञानिक बताते हैं कि कालमेघ औषधि पौधे का प्रयोग बुखार एवं विषाणु के संक्रमण में किया जाता है। इस पौधे में विषाणु जनित रोगों को नियंत्रण करने की अपार शक्ति है।कालमेघ में 'एंडो ग्रेफीलाइट पैनीकुलेटम' पाया जाता है । यह एक टेट्रासाइक्लिक कंपाउंड है , जो विषाणु की प्रोटीन के साथ जुड़ता है और उसे समाप्त कर देता है । सीडीआरआई के वैज्ञानिक इसके प्रभावों का परीक्षण कर रहे हैं । उसके लिए एक हर्बल टीम तैयार की गई है । उम्मीद है कि जल्द ही कोविड-19 के हर्बल उपचार में सफलता प्राप्त होगी । सीडीआरआई संस्थान मॉडर्न मेडिसिन के तहत ऐसे मॉलिक्यूल की परख में जुटा हुआ है , जो कोरोना वायरस के उपचार में कारगर होते दिखाई दे रहे हैं।
सीडीआरआई के निदेशक डॉ तपस के कुंडू के अनुसार कोरोनावायरस से जंग में संस्थान 3 फ्रंट पर काम कर रहा है ।बहुत ही जल्द एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम डायग्नोस्टिक किट तैयार करने की कोशिश है । जो वर्तमान किट से अलग होगी । दूसरा देश में जहां भी औषधि अनुसंधान कार्य किया जा रहा है , वे कोविड-19 वायरस का प्रोटीन लेकर विकसित दवा को परखकर यह बता सकते हैं कि वह उपचार में कारगर होगी या नहीं । संस्थान ने ऐसे मॉलिक्यूल की पहचान की है जिन्हें कोविड-19 के उपचार के लिए संभावित मॉलिक्यूल के रूप में देखा जा रहा है।
आइए जानते हैं कि यह चमत्कारी औषधि प्रदान करने वाला पौधा कालमेघ कैसा होता है। कालमेघ दरअसल एक बहुवर्षीय शाक जातीय औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम "एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा" है। कालमेघ की पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है, जिसका औषधीय महत्व है। यह पौधा भारत एवं श्रीलंका का मूल निवासी है तथा दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। इसका तना सीधा होता है जिसमें चार शाखाएँ निकलती हैं और प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं। इस पौधे की पत्तियाँ हरी एवं साधारण होती हैं। इसके फूल का रंग गुलाबी होता है। इसके पौधे को बीज द्वारा तैयार किया जाता है जिसको मई-जून में नर्सरी डालकर या खेत में छिड़ककर तैयार करते हैं। यह पौधा छोटे कद वाला शाकीय छायायुक्त स्थानों पर अधिक होता है। पौधे की छँटाई फूल आने की अवस्था अगस्त-नवम्बर में की जाती है। बीज के लिये फरवरी-मार्च में पौधों की कटाई करते हैं।
पौधा कालमेघ
प्राचीन काल से ही भारतीय चिकित्सा पद्वति में कालमेघ एक दिव्य गुणकारी औषधीय पौधा है। जिसको हरा चिरायता, देशी चिरायता, बेलवेन, किरयित् के नामों से भी जाना जाता है। भारत में यह पौधा पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश में अधिक पाया जाता है। इसका स्वाद कड़वा होता है, जिसमें एक प्रकार क्षारीय तत्व-एन्ड्रोग्राफोलाइडस, कालमेघिन पायी जाती है जिसके पत्तियों का उपयोग ज्वर नाशक, जांडिस, पेचिस, सिरदर्द कृमिनाशक, रक्तशोधक, विषनाशक तथा अन्य पेट की बीमारियों में बहुत ही लाभकारी पाया गया है। कालमेघ का उपयोग मलेरिया, ब्रोंकाइटिस रोगो में किया जाता है। इसका उपयोग यकृत सम्बन्धी रोगों को दूर करने में होता है। इसकी जड़ का उपयोग भूख लगने वाली औषधि के रूप में भी होता है। कालमेघ का उपयोग पेट में गैस, अपच, पेट में केचुएँ आदि को दूर करता है। इसका रस पित्तनाशक है। यह रक्तविकार सम्बन्धी रोगों के उपचार में भी लाभदायक है। सरसों के तेल में मिलाकार एक प्रकार का मलहम तैयार किया जाता है जो चर्म रोग जैसे दाद, खुजली इत्यादि दूर करने में बहुत उपयोगी होता है। चिली में किए गए एक प्रयोग में यह पाया गया कि सर्दी के कारण बहते नाक वाले रोगी को १२०० मिलीग्राम कालमेघ का रस दिये जाने पर उसकी सर्दी ठीक हो गई। इंडियन ड्रग इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है कि कालमेघ में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पाई जाती है और यह मलेरिया और अन्य प्रकार के बुखार के लिए भी रामबाण दवा है। इसके नियमित सेवन से रक्त शुद्ध होता है तथा पेट की बीमारियां नहीं होतीं। यह लीवर यानी यकृत के लिए एक तरह से शक्तिवर्धक का कार्य करता है। इसका सेवन करने से एसिडिटी, वात रोग और चर्मरोग नहीं होते।
इस प्रकार कालमेघ का पौधा कोरोना वायरस का काल तो है ही । साथ ही अन्य कई रोगों में भी प्रभावी औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
सामयिक प्रस्तुति
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