कहानी *परिवर्तन* - वंदना पुणतांबेकर

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वंदना पुणतांबेकर   कहानी       *परिवर्तन*                           शर्माजी अपनी 10 साल पुरानी फटफटिया स्कूटर को जोर लगाकर स्टार्ट कर रहे थे...

वंदना पुणतांबेकर

  कहानी
      *परिवर्तन*

                  
      
शर्माजी अपनी 10 साल पुरानी फटफटिया स्कूटर को जोर लगाकर स्टार्ट कर रहे थे। स्कूटर थोड़ी देर में भूटर-भूटर की आवाज से चालू हो गई। थोड़ी ही दूरी पर लल्लन की पान की दुकान से शर्माजी ने पान खरीदा और मुंह में पान दबाए लल्लन से बतियाने लगे।सरकारी माड़ साहब जो ठहरे! हमारे शर्माजी.. स्कूल जाने की कौनों जल्दी नहीं....,गली में जो मिलता उनसे 5 मिनट बतिया के ही आगे बढ़ते...," क्या बात है शर्माजी आज स्कूल नहीं जाना क्या...?, इत्ती देर तो तुम कबहू ना खड़े रहत...,आज का बात हो गई..?शर्माजी-"अरे हम तो जा ही रहे थे,हम जावेगे तबहु तो स्कूल खुलेगा ना!हाँ... हाँ..... सरकारी माड़ साब जो ठहरे...? लल्लन ने जोर से ठहाका लगाया।आगे जाकर भूरी काकी मिल गई.तो दस मिनिट उससे भी बतिया लिए।शर्माजी स्कूल पहुंचे तो देखा... स्कूल के बच्चे बाहर बस्ते पटककर खेल रहे थे। शर्माजी को देखते ही सभी बच्चे अपना-अपना बस्ता उठा कर खड़े हो गए।आखिर रोब था शर्मा जी का! "अरे बसंत इधर तो आ जरा...., बसंत नवी कक्षा का छात्र था। दौड़कर आया...जी माड़ साब का हुकुम...? ये ले उधर जाकर मेरे स्कूटर तो लगा दे!हव कहकर बसंत ने स्कूटर लगा दी! परिसर में सन्नाटा सा फैल गया था। टीन का दरवाजा खोलकर सभी बच्चे अपनी -अपनी कक्षा में चले गए।

आज एक नई मैडम आने वाली थी...,यह बात शर्मा जी को एकदम याद आई उन्होंने अपनी टेबल कुर्सी दीनू चपरासी से साफ करवाई...., "बोले- जा... जल्दी कमरों की झाड़ू लगा दे..?, "जी साब... कहकर दिनू अपने  काम पर लग गया। मटके में पानी भरना, झाड़ू लगाना यही उसका काम था. अकेले शर्मा जी ही वहां के हेडमास्टर थे। 1 दीनू काका और एक बिमल जी के अलावा कोई नहीं था। पढ़ाई के नाम पर ठेंगा! जब मन में आता तभी पढ़ाई होती.. विचारे बिमल जी ही सभी विषयों को पढ़ाते... आज एक नई मैडम की भर्ती हुई थी। सबको उनका ही इंतजार था। दस मिनट बाद स्कूल के बाहर एक रिक्शा आकर रुका! 22 साल की मनीषा जिसे सरकारी नौकरी लगी थी। वह अपनी खुशी से मिठाई का डब्बा साथ लाई थी। कि वहां के स्टाफ को खिलाएगी। जैसे ही रिक्शा रुका....दीनू काका उसे देखकर भागते हुए अंदर गए... घबराकर-साब... साब... वो दीदी आ गए जो आने वाले थे..., शर्मा जी ने फटाफट जेब से कंगी निकाली और जल्दी से बाल बनाने लगे। पान खाए होठों पर जीभ घुमाते हुए दरवाजे की और ताकने लगे। मनीषा जैसे ही अंदर पहुंची तो उसने देखा स्कूल के नाम पर दो कमरों का बरामदा का बना हुआ था। 20 22 बच्चे टीचर्स के नाम पर उसे कोई नजर नहीं आया।

अंदर गई तो देखा एक अजीब सा आदमी पान खाया हुआ तोंद निकालकर कुर्सी पर बैठा था! हां वह शर्मा जी ही थे। उसे देखकर बोले- "मैडम आप आ गए अब तो स्कूल का उद्धार हो  ही जाएगा... मनीषा को वहां का माहौल जरा भी अच्छा नहीं लगा! पिता की जगह यह सरकारी नौकरी लगी थीं।झक मारकर करनी ही पड़ेगी। शर्माजी लार टपकाते हुए...," क्या नाम है तुम्हारा..?, यहां कमरा मिल गया क्या....? जी अभी नहीं आज ही आई हूं... 1 तारीख से जॉइन करना है, उसके पहले देख लूंगी। आज तो स्कूल और गांव देखने आई हूं। शर्माजी बोले- "अरे हमारा दो मंजिला मकान है ना..,  ऊपर दो कमरे हैं, वह हम तुम्हें दे देंगे। और हमारे  साथ ही रोज स्कूल आया जाया करो...,चलो अभी हमारे घर चलकर मकान देख लो..,मनीषा को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें! पिता की उम्र के थे।तो हां कहकर वह  शर्माजी के साथ उनके घर चल पड़ी। "मरता क्या न करता" वाली कहावत यथार्थ होती नजर आई। घर घुसते ही शर्माइन चिल्लाई....,
"अरे..., अभी तो एक घंटा पहले गये थे..?,इतनी जल्दी काय वापस आ गए... हमाओ तो अभी खाना भी नाहीं बना है और जे कौनों लिबालाये...?,अरी भागवान सब यही पूछ लेगी के अंदर भी आने देगी...., आइए... आइए...मास्टरनी जी कहते हुए वह अंदर चले गए। पीछे-पीछे मनीषा भी अंदर चली गई।


   आज मनीषा को इस गाँव में आये हुए 6 महीने हो गए थे।वह शर्माजी की छिछोरे पन से वह बहुत परेशान हो गई थी। वह शर्माजी का मकान छोड़कर गली के कोने वाले मकान में चली गई थी। अब वह शर्माजी से बिल्कुल बात नहीं करती थी। बस अपने काम से काम रखती थी। 2 दिनों बाद ही शर्माजी की लड़की दुर्गा की शादी थी। शर्माइन भी शर्माजी की हरकतों से अच्छी तरह वाकिफ थी। मगर वह कुछ कर नहीं कर पाती थी। शर्माइन मनीषा के यहां शादी का कार्ड देने गई..,"बोली- "बेटा इनकी हरकतों का बुरा मत मानो तुम शादी में जरूर आना। शर्माइन स्वभाव से बहुत ही ममतामई थी। उसका मनुहार मनीषा ठुकराना सकीं। आज वह तैयार होकर शादी के लिए निकली ही थी देखा की गली में बराती नाच रहे थे। बैंड बज रहा था.. शर्माजी भी कोट पैंट पहने अपनी बड़ी सी तोंद लिए जबरदस्ती बैंड के साथ नाच रहे थे। हर आती-जाती औरतें काना-फूसी कर रही थी। कि... "भला छोरी का बाप भी कभी नाचे है.. "क्या घोर कलयुग आ गया है.., हाय-हाय ये आदमी तो एकदम बेसरम है..कहकर अंदर चली गई। सामने से जैसे ही मनीषा को आते देखा तो शर्माजी और जमकर नाचने लगे। जैसे कोई 25 साल का छोरा हो। मनीषा का मन हुआ कि वहां से वापस चली जाए। मगर वह शर्माइन का मनुहार ठुकरा ना सकी। अंदर जाने लगी तो शर्माजी ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और जबरदस्ती उसे नचाने लगे। यह तमाशा सभी आए हुए लोगों ने देखा, मनीषा  घबराकर अपना हाथ छूटाकर वहां से भाग खड़ी हुई।


सब कुछ समय रहते निपट गया था। लड़की विदा हो गई थी, मेहमान भी चले गए थे, 2 दिन पहले भरा भरा घर आज वीराना सा हो गया था। इस हादसे को सभी गाँव वालों ने देखा था। दो दिनों से मनीषा स्कूल नहीं आई थी। शायद ज्यादा घबरा गई थी,मां को फोन लगाया मां मुझे अब यहां नौकरी नहीं करनी है। लेकिन घर के हालत ठीक नहीं थे। घर में बड़ी होने के कारण होनहार और होशियार मनीषा को पिता की जगह सरकारी नौकरी लग गई थी। लेकिन उसे कहां मालूम था.. कि यह नौकरी उसके गले का फंदा बन जाएगी।वह ज्यादा कुछ माँ से कह ना सकी।
  दो दिनों से वह स्कूल नहीं आई! तो शर्माजी शर्माइन से बोले जाकर जरा देख तो आ..,छोरी को कुछ हो तो नहीं गाओ है..?दो दिनों से छोरी स्कूल नहीं आई है...,दो दिनों से वह काफी परेशान थी।शर्माजी की नजरों से बचना अब मुश्किल लग रहा था।  55 साल का बुड्ढा 22 साल की लड़की को कई महीनों से जीने नहीं दे रहा था। उसने अपना दुपट्टा गले में डालकर अपने आप को पंखे से लटका ही लिया था। कि यह नजारा शर्माइन ने देख लिया। और शर्माजी को  बुलाने किसी को भेज दिया।

शर्माइन जबरदस्ती दरवाजा खोलकर अंदर गई। तब तक मनीषा बेहोश हो गई थी। शर्माजी आए तो वह यह नजारा देखकर घबरा गए। मनीषा को पास के ही डॉक्टर के यहां ले गए। और समय रहते मनीषा को बचा लिया। उन्हें बहुत ही आत्म ग्लानि हो रही थी। कि यह हम हमने क्या कर दिया। आज छोरी को कुछ हो जाता तो बिन बाप की छोरी हमारी  बिटिया जैसी है ।उन्होंने मनीषा से माफी मांगी...,"बोले-भूल-चूक माफ करो बेटी.. हमारी अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए थे,जो हमने तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया। खुद शर्माजी ने मनीषा के तबादले की अर्जी लिखी और शहर के अफसर को फोन लगाकर कहा...," इस छोरी को यहां  का हवा पानी रास नहीं आ रहा.. उसे और कहीं भेज दो। शर्मा जी के बदलाव को देखकर मनीषा ने कहा- "मेरे पिता नहीं है...,आज आपने मुझे पहली बार बेटी कहा है., आप में इतना परिवर्तन आया है.. तो अब मैं यहां अपने आपको ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हूं। मेरे तबादले की अर्जी निरस्त कर दीजिए। शर्माइन को आज एक सुखद अनुभूति हो रही थी।  छिछोरे शर्माजी आज एक गंभीर शर्माजी नजर आ रहे थे।

मनीषा के व्यवहार ने उन्हें अच्छा इंसान बना दिया था। मनीषा की जिंदगी का यह नया सवेरा था। अब वह आजादी से सीना तानकर स्कूल जाती उसकी जिंदगी का यह एक नया "परिवर्तन"था
        वन्दना पुणतांबेकर
               इंदौर

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रचनाकार: कहानी *परिवर्तन* - वंदना पुणतांबेकर
कहानी *परिवर्तन* - वंदना पुणतांबेकर
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