यहाँ रक्त श्वेत हरित का बह रहा त्रिधारा। नील चक्र में मारकर पापी को उबारा।। तीन नदियों का जल प्रयाग में अमृत बनकर, क्यों समुद्र में मिल...
यहाँ रक्त श्वेत हरित का बह रहा त्रिधारा।
नील चक्र में मारकर पापी को उबारा।।
तीन नदियों का जल प्रयाग में अमृत बनकर,
क्यों समुद्र में मिलकर हो जाता है खारा।।
गुरु गुड़ ही रहा, शिष्य शक्कर हो गया।
शक्कर बनाते बनाते स्वयं सो गया। ।
अपने को खोकर सबके मस्तिष्क में,
प्रेम ज्ञान के पौधा का बीज बो गया।।
कितने बार यहाँ मरा, कितने बार जीया हूँ।
अपवाद का हलाहल, नीलकंठ सा पीया हूँ।।
रोज मुझे लतियाते हैं पाले भेड़ बकरियां,
बड़ी मुश्किलों से अपना होठों को सीया हूँ।।
आठों पहर करता रहा इंतजार।
आँखों में छलक आया तेरा प्यार।।
फिर भी तू न आया देवता मेरे,
तेरे विरह ही मुझको है स्वीकार।।
आते हैं यहाँ सभी अकेला।
जाते हैं यहाँ सभी अकेला।।
चार दिवस के इस जिन्दगी में,
लगाते हैं यहाँ मिलन मेला।।
गर्वीली गरीबी सीना तान कर कहती।
हमारे बिना संसार की होगी कुकुरगति।।
ये न घर के होंगे और न घाट के होंगे,
बिना पति के चिता में जल होंगे सभी सती।।
किसानों का सोना खलिहान पर।
बदली छायी है आसमान पर।।
गुहार लगा कर थक गये किसान,
फिर भी विश्वास है भगवान पर।।
चमन चमन में सुमन खिले हैं।
वर्षा से ये भुवन गिले हैं।।
क्यों करते बदनाम भ्रमर को,
क्षितिज में भूमि गगन मिले हैं।।
वो दास था सदा, पति बन न सका।
वो रास था सदा, यति बन न सका।।
वो ताश था सदा, बन न सका भिति,
वो फांस था सदा, रति बन न सका।।
घर को अपना घर न समझना।
ससुराल को ही घर समझना।।
बेटी के लिए तो ठीक था,
पर उसका बेटा को कहना।।
मैं बूँद ही सही, सागर बनने की चाह नहीं।
मैं दूध ही सही, अमृत बनने की चाह नहीं।।
मैं लौह ही सही, चाह नहीं सोना बनने की,
मैं शून्य ही सही, अनंत बनने की चाह नहीं।।
मैं प्रेम न करूँ, तो दिल डाँटता है।
मैं कर्म न करूँ, तो दिल डाँटता है।।
दिल डाँटता है,यदि देश पर न मरूँ,
मैं सत्य न कहूँ, तो दिल डाँटता है।।
नाती पोतों से भरा हुआ मेरा जीवन।
लोग कहते हैं सभी इसी को सुखी जीवन।।
मैं कैसे बतलाऊँ पल पल सूख रहा हूँ,
अब है खाली ठूंठी जीवन, सूखी जीवन।।
दर्द ने दरवाजे पर दस्तक दिया।
मुस्कुराकर मैंने भी मस्तक लिया।।
कभी वो चित करे, कभी मैं चित करूँ,
इस तरह से होता है अठखेलियां।।
घर में चुपचाप बेहोश हो।
दारु पीकर सब मदहोश हो।।
जय बोलो इन युवाजनों की,
नया सोच हो, नया जोश हो।।
पी लिया पी लिया, प्रेम रस मैंने पी लिया।
ओ पिया ओ पिया, मुझको तू जिया तू जिया।।
तुमने मुझे क्या किया, एक पल लगे न जिया।
रावण ने हरण किया, जैसे माता सिया।।
न इधर के रहे, न उधर के रहे।
पेण्डूलम सा हम झूलते रहे।।
परदेशी समझकर सबने हमें,
दिल के भेद हमसे कभी न कहे।।
युवा में सोच हो, युवा में जोश हो।
परोपकार में मानस मदहोश हो।।
भ्रष्टाचार बेरोजगार को देख,
कैसे हमारे युवाजन न रोष हो।।
भारत के महाभारत में हाथ भाले होते हैं।
चोरी चकाड़ी में हाथ माला माले होते हैं।।
कोयले के दलालियों में हाथ काले होते हैं।
करते हैं गलत काम सब देखे भाले होते हैं।।
आँखों से सारा जग रोशन है।
आँखों के बिना तमस जीवन है।।
सृष्टि का सुन्दरता जी भर देख,
परम की रचना परम पावन है।।
दिवस भर के सब थके हारा।
निंदिया लगता सबको प्यारा।।
जो जागा है वो है पाया।
खोया है वो निंदिया माया।।
बिहान बेरा कुकरा बासा।
सूरज ने तारों को फाँसा।।
दुनिया भर में फेंका जाला।
काम में बने सब मतवाला।।
चूहों के बीच में मैं किताब जैसे।
बादल के बीच में मेहताब जैसे।।
मोहब्बत में लोग मिसाल देते हैं,
कोहरा से छाए आफताब जैसे।।
सपना सपना सपना तेरा।
लगता मुझको अपना मेरा।।
पावक के संग सात फेरा।
करके ले जा अपना डेरा।।
बीवी ने आभूषण बेच हमको बचाया।
सचमुच उसने सावित्री का पात्र निभाया।।
वरना हम भी आज तक मुंह छिपाते फिरते,
कलंक का चीरहरण हमारा रूकवाया।।
बाजार में बिके दलाल के सड़े टमाटर।
किसान ताकते रहे रखे ताजे टमाटर।।
बाजार के चकाचौंध से कौन बच पाया,
बारह महीने खाने लगे सड़े टमाटर।।
परसा फूले सेमल फूले और फूले सहकार
सरसों फूले सहजन फूले पाओ हमारा प्यार
सबसे समान स्वभाव से एक दूसरे से मिलकर
प्रकृति के सात रंगों से मनाएं होली का त्यौहार
नवरंग
सविता के नवरंग सबके अंतस को रंगे
60 साल का बूढ़ा भी दिखने लगे चंगे
गले मिले परस्पर होली के त्यौहार में
अंत में हम सभी यहां से जाएंगे नंगे
गोरी तेरी गालों में लगाऊँ लाल गुलाल।
मछली सा फँस गया मैं तेरी अँखियों के जाल।।
निकलने को छटपटाऊँ, फिर भी निकल न पाऊँ,
इतना मजा पाऊँ, तुमने कैसे किया कमाल।।
जब तक जीभ न जल जाए
चाय कभी मजा न आए
फूँक कर निभाओ रिश्ता
कभी जिभिया न जल जाए
मधुमास है, फिर भी प्यास है।
तुमसे मिलन की श्री आस है।।
गुलशन में खिले सुमन सारे,
मधुप से करे महारास है।।
दर्शन करवाईये अपना हृदय हार।
अपने अंगों से अहम अंगिया उतार।।
अपलक आँखें मेरी तुम्हें निहारती रहे,
हृदय से तुम्हें करता रहूँ अनुपम प्यार।।
मुखौटे लगाकर, निकला है मानव।
प्याज के समान छिले, निकलेगा शव।।
अंदर में भरा हुआ है कड़वाहट,
दिखाता रहेगा अपनी मीठी लव।।
बिगड़े मानव की संगति
पुरुष और प्यारी प्रकृति
स्वेद की बौछार हर पल
भूले योग की रीति नीति
बच्चे सबको प्यारे लगते हैं।
बच्चे सबको दुलारे लगते हैं।।
बच्चे हैं भविष्य के नागरिक,
संकट में वायरस सारे लगते हैं।।
हर पल हड्डी को कुतर रहा है घुन।
मंजिल के सिवा नहीं है कोई धुन।।
वही जमाने में आगे बढ़ते हैं,
जो परोपकारी बनते दिल की सुन।।
किसी के कहने से पहले सुधर जाओ।
एक बादशाह की तरह जीने वालों ।।
पीड़ा तुम्हें बहुत ही ज्यादा होगा,
डंडा मारकर सुधारा जायेगा तो।।
मोहन मुरली बजाए
माधव मुरली बजाए
मुरली बजा बजाकर
गोपियों को रिझाए
सूर्य उदित के पहले जग जाओ।
तुम स्वास्थ्य का पहले पद पाओ।।
स्वस्थ बदन में स्वस्थ मन का वास,
ज्ञान को सारे जगत में लाओ।।
कच्चा मकान छप्पर छानी।
गरीब होते एक जुबानी।।
अपने घर आने वाले को,
सब कुछ दे देते हैं दानी।।
पृथ्वी ने परिधान दिया उतार
प्यास यहाँ है कोयल की पुकार
वसंत को दिया खुला आमंत्रण
आपस में मिल करने लगे प्यार
रवि को घेर रहा है बादल।
लेकर आकर अपनी दलबल।।
लुक छुप इधर उधर भगता,
जैसे हो कर्जदार घायल।।
दर्ज हुआ इतिहास में, ट्वेंटी ट्वेंटी साल।
कोरोना के कहर से, विश्व का बुरा हाल।।
दहशत में है जी रहा, पूरा मानव जाति।
प्रकृति से खिलाफ न रहे, कह रहे भली भाँति।।
जुआ सुरा अरु सुन्दरी, लाते महा विनाश।
इन तीनों से दूर रहो, तभी बचेंगे सांस।
घर अपने हम बंद है, सबका हुआ बचाव।
टूटेगा ये श्रृंखला, तीर लगेगा नाव।।
कोरोना वायरस है, बड़ा भयानक रोग।
ईलाज नहीं विश्व में, कुकर्म का फल भोग।।
डर में सारा शहर है, मारे अदृश्यमान।
जाये तो जाये कहाँ, किसी को नहीं भान।।
बंद पड़े हैं हृदय के, घंटी अरु घड़ियाल।
कोरोना के कहर से, हो रहा बुरा हाल।।
कुछ न कहेंगे हम तुम्हें, अपने अंतिम काल।
सभी फँसे हैं जगत में, मकड़ी सा ये जाल।।
कुर्सी का खेल बड़े
सब रहते यहाँ अड़े
मरे अभी गिनती में,
कतार अनगिनत पड़े
हवा में लाठी चला
हमें कुछ नहीं हासिल होगा
भूल जाना चाहता हूँ
कोरोना को
पर किसी से बात करता हूँ
तो हर कोई
कोरोना का रोना रोते हैं
प्रभु इस विपदा की घड़ी में
मुझे अच्छा बना दो
अच्छा बना दो, अच्छा बना दो
हमारे भाई बहन बेमौत मर रहे हैं
और हम घर में चैन से सो रहे हैं
हमें अपने स्वार्थ के सिवा
कुछ नहीं दिखाई दे रहा है
अब पता चला,
कि सड़े माँस खाने वाले
गंदों को हम क्यों न अछूत माने
जहाँ हैं वहाँ रहे
किसी से कुछ भी न कहे
कोरोना महामारी जैसे रावण का वध
करने के लिए आयें श्रीराम
सूक्ष्म वायरस जैसे कंस का वध
करने के लिए आयें श्रीश्याम
अरबों खरबों दीप जलाकर
सूक्ष्म जीव को समाप्त करेगा सामूहिकता
फिर भारत का विश्व पटल में लिखा जायेगा स्वर्णिम नाम
नयनों की भूल-भुलैया में
डूब डूब खो जाऊँ।
फिर भी प्रभु हर मोड़ों पर,
मेरे आगे तुमको पाऊँ।।
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