अपना अपना सच -------*****------ सुबह के नौ बज चुके थे। मुनिया के जागने की हल्की सी आहट हुई तो तुरंत उसके बिछौने की ओर दौड़ पड़ी कमला। उसके कान...
अपना अपना सच
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सुबह के नौ बज चुके थे। मुनिया के जागने की हल्की सी आहट हुई तो तुरंत उसके बिछौने की ओर दौड़ पड़ी कमला। उसके कान तो उधर ही लगे हुए थे कि जाने कब उठ जायेगी मुनिया। मुनिया को गोद में लेकर कमला कुछ देर तक बड़े प्यार से उसके बालों में ऊँगलियों से कंघी करती रही और फिर प्यार से बोली - - 'अरे रानी बिटिया को तो आज भी बहुत देर तक नींद आई, दो तीन दिन से खूब सो रही है बिटिया।'
चुलबुली और नटखट मुनिया थी तो केवल छैः साल की लेकिन बातों में बड़ों-बड़ों के कान काटती थी। मुनिया ने एक नजर बाजू की खटिया में सोये हुए अपने पिता नोहर की ओर देखा और कहा कि -- 'सुबह - सुबह बाबू के गाली गलौच, चिल्लाने की आवाज नहीं आ रही है ना इन दो तीन दिन में इसीलिए, वरना मैं कहाँ इतनी देर तक सोती हूँ।' फिर मुनिया ने एक नजर घर के चारों तरफ देखा। माँ ने झाड़ू-पोंछा कर लिया था,आँगन और परछी में गोबर भी लीपा जा चुका था,उधर चौके के पास पानी रखने की जगह में पीने के पानी की मटकी और कुछ छोट-मोटे बर्तन भी ताजा पानी से भरे हुए रखे थे। चूल्हे पर चढ़े बर्तन से खद -खद की आवाज के साथ भात पकने की महक भी आ रही थी। यानी माँ रोज की तरह ही सुबह चार बजे उठ गई थी, लेकिन बाबू क्यों नहीं उठा है? मुनिया ने सोचा , क्या आज भी काम पर नहीं जायेगा बाबू?रोज तो पाँच -छैः बजे तक उठ जाता था लेकिन पिछले तीन दिनों से बाबू ना तो जल्दी उठता था और ना ही घर से निकलता था। दिन भर घर में ही बैठा रहता था काम पर भी नहीं जा रहा था। मुनिया ने सोचा कि मेरी तो स्कूल में गर्मी की छुट्टियाँ हैं लेकिन बाबू को क्या हुआ है? ना तो काम पर जाता है और ना ही कहीं और। दिन भर या तो सोया रहता है या बाहर परछी में बैठे बीड़ी पीते हुए जाने क्या सोचता रहता है?माँ को बात बेबात गाली देना भी बंद कर दिया है बाबू ने इन दिनों। जाने क्या हो गया है बाबू को कि अब तो मेरे से भी खूब बतियाता है,प्यार भी करता है बल्कि तरह- तरह के खेल भी मेरे साथ खेलता है। कल तो जमीन पर खड़िया से जाने कैसी आड़ी सीधी लाईनें बनाकर और ईमली के बीजों से कौन सा खेल खेलना सिखा रहा था। वो खेल मेरे पल्ले ज्यादा तो नहीं पड़ा लेकिन मजा बहुत आया क्योंकि बाबू बता रहा था कि उस खेल में मैं ही बार-बार जीत रही थी।
मुनिया फिर सोचने लगी कि इन दिनों शाम को वो जोहन और बुधराम काका भी नहीं दिख रहे हैं जो बाबू को साथ में लेकर कहीं जाते थे और जब बाबू वापस लौटता तो माँ से खूब गाली-गलौच करता कभी कभी तो मुझसे भी गाली गलौच करता बल्कि मेरे से और माँ से तो मार पीट भी कर देता था। बड़े अचरज में है मुनिया। इस बदलाव के बारे में पूछना तो चाहती है पर पूछे किससे। डर भी लगता है कि यदि बाबू से यह सब पूछा तो ऐसा न हो कि बाबू नाराज हो जाए और ये सब बदल जाए और कल से फिर वही पुराना ढ़र्रा शुरु हो जाए। फिर भी आज अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाई थी मुनिया। बाबू से पूछने की हिम्मत तो फिर भी नहीं हुई लेकिन बड़ी हिम्मत से माँ के पास पहुँच गई और फुसफुसा कर पूछने लगी 'माँ,बाबू तीन दिनों से काम पर क्यों नहीं जा रहा है? तुमसे गाली-गलौच भी नहीं करता? जोहन और बुधराम काका के साथ जहाँ जाता था वहाँ भी नहीं जा रहा है? और तो और मेरे साथ प्यार से बातें करता है,मेरे साथ खेलता भी है। ऐसा अचानक क्या जादू हो गया माँ?
एक साँस में इतने सवालों को सुनकर कमला के होठों पर एक गहरी हँसी तैरने लगी फिर बोली---' ज्यादा तो कुछ मुझे भी नहीं मालूम बिटिया लेकिन सुनती हूँ कि कोई 'कोरोना' आया है,जिसने सबको काम पर जाने से मना कर दिया है। सब काम धंधे बंद। वो बुधराम काका के साथ जाने वाली दारू दूकान भी। जो भी बाहर निकलता है ये 'कोरोना' उसको पकड़ लेता है, सुना है पुलिस वाले डण्डा भी मारते हैं। कहते हैं 'कोरोना' है,सबको अपने -अपने घर में ही रहना है।
मुनिया को खुशी भी हो रही थी और अचरज भी। उसने फिर पूछा 'लेकिन ये 'कोरोना'आखिर है क्या माँ?' इस बार कमला के पास कोई सही सही उत्तर नहीं था। वह भी 'कोरोना' के बारे में सुनी सुनाई ही जानती थी वह भी बहुत कम। उसने कहा --'ठीक ठीक तो पता नहीं बिटिया लेकिन कोई बता रहा था कि ये चीन देश से आया है कोई कहता है ये बिमारी है,कोई कहता है कि राक्षस है जिसके सिर पर बहुत सारे सिंग हैं लेकिन मेरे को तो लगता है कि कोई बड़ा साहब ही है क्योंकि उसकी बात सरपंच,कोटवार भी मान रहे हैं बल्कि अपने पटवारी साहब भी उसीकी बात मान रहे हैं, मेरे को तो पक्का भरोसा है कि ये 'कोरोना'कोई बहुत बड़ा साहब ही है। सबके सब उससे डर रहे है, सुना है कि ये सबके सब बोल रहें हैं कि 'कोरोना' है,कोई घर से न निकले,हम भी नहीं निकल रहे है, सबकी जरूरत का सामान ,खाने पीने का सामान घर में ही पहुँच जायेगा घर से बाहर मत निकलना। और क्या बताऊँ कल सुबह तो वाकई में घर के बाहर कोई खाने पीने का बहुत सारा सामान एक झोले में छोड़ गया है और तो और झोले में कुछ रूपये भी थे। बिटिया मेरे को तो लगा कि जैसे रामराज्य ही आ गया है।'
अब तो मुनिया को भी विश्वास हो चला था कि ये 'कोरोना' वाकई कोई बड़ा साहब ही है जिसके कहने से ये सब हो रहा है। अजीब सी खुशी हो रही थी मुनिया को,लेकिन उसे फिर कुछ सवाल सूझे - ' माँ ये 'कोरोना' साहब हमारे गाँव में पहली बार ही आये हैं ना? जल्दी तो नहीं चले जायेंगे? कुछ दिन तो और ठहरेंगे ना? कमला सवाल सुन तो रही थी लेकिन इनके जवाब उसके पास नहीं थे उसने पास ही बैठै नोहर की ओर देखा शायद वो इन सवालों के जवाब दे सके लेकिन नोहर की नजरें भी बता रही थी कि उसके पास भी इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। सवालों को अनसुना करते हुए कमला फिर मुनिया के बाल सहलाने लगी। मन ही मन तमाम भगवानों देवी -देवताओं को भी याद कर रही थी और मना रही थी - हे भोले बाबा,हे बूढ़ी माई, हे पीपल वाले बड़े देव, हे पीर बाबा,हे चिन्दी दाई बहुत दिनों बाद घर में इतनी सुख,शाँति,खुशी आई है,और कुछ दिन रोक ले 'कोरोना' को। उसको और थोड़ा रूकने को बोलना,रोक लेना 'कोरोना साहब को, रोक लेना थोड़ा और 'कोरोना बाबा' को अपने ही गाँव में,बड़ा उपकार होगा।
अब कमला को कोई कैसे बताये कि वो जिस 'कोरोना' के रूकने की मन्नत मना रही है वो 'कोरोना' आखिर है क्या? अजब था यह 'कोरोना' जिसको लेकर सबके अपने अपने डर थे, अपनी अपनी खुशी थी और अपने अपने सच भी।
--अशोक शर्मा,
'सोहन -स्नेह' , कॉलेज रोड,
महासमुंद 493445
छत्तीसगढ़,
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