आजादी शाम होने को था मैं तैयार हुए नवीन का इंतजार कर रही थी उसका अभी तक कोई पता नहीं था, कई बार फोन भी ट्राई कर चुकी थी लेकिन नॉट रिचेबल आ र...
आजादी
शाम होने को था मैं तैयार हुए नवीन का इंतजार कर रही थी उसका अभी तक कोई पता नहीं था, कई बार फोन भी ट्राई कर चुकी थी लेकिन नॉट रिचेबल आ रहा था!
अब तक दामिनी का कई बार फोन आ चुका था, मैं उससे कई बहाने बनाये जा रही थी 'बस यार तैयार हो रही हूँ, अभी निकल रही हूँ.
पर अब तो हद हो गई थी 6 बजने वाले थे नवीन का अब तक कोई पता नहीं था, जबकि जाते वक्त मैंने बोला भी था आज जल्दी आ जाना दामिनी के वहाँ जाना है उसके बेटी का बर्थडे हैं और हाँ कोई गिफ्ट भी लेते आना..
हाँ आ जाऊँगा बोल के गया था और अब तक ना आना और फोन भी ना लगना गुस्सा आ रहा था मुझे और टेंशन भी हो रही थी कम से कम एक फोन ही कर देता पर नहीं... (मैं सोच ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी दरवाज़ा खोला तो सामने नवीन खड़ा था)
देखो प्रिया तुम चली जाओ मैं नहीं आ पाऊँगा और हाँ गाड़ी में गिफ्ट है ये लो चाभी निकाल लेना।(दरवाज़ा खोलते ही वो बोल पड़ा)
तुम नहीं आ रहे? क्या मतलब हैं तुम्हारा? हाँ चले जाऊँ मैं अकेले और तुमने जो दामिनी से आने के लिए बोला था उसका क्या? (मैंने तेज आवाज़ में एक साथ कई सारे सवाल पूछ पड़ी)
मैं नहीं आ रहा बस मुझे बहुत सारे काम अधूरे पड़े हैं उन्हें पूरा करना है इसलिए तुम्हें जाना है, तो जाओ वरना मत जाओ ,मुझे फोर्स मत करो।(उसने गाड़ी की चाभी मेरे हाथ पर रखकर अन्दर जाते हुए बोला)
मैं वही खड़ी उसे अन्दर जाते हुए देख रही थी, कैसे बदल गया था ये। पहले तो मन में आया मैं भी ना जाऊँ फिर दामिनी से किया आने का वादा भी तो निभाना था।
मैंने अपना पर्स उठाया और दामिनी के घर चल दी (घर से थोड़े ही दूर पर था दामिनी का घर)
मुझे पहले ही आ जाना चाहिए था, नहीं करना चाहिए था नवीन का इंतजार मुझे ,मैं अच्छी तरह जानती तो थी उसे, नहीं आने वाला था वो मेरे साथ, बस तसल्ली के लिए इंतजार किया की शायद वो साथ चला आये इन्हीं बातों में उलझी मैं दामिनी के घर जा पहुँची।
प्रिया नवीन नहीं आया? (दामिनी ने मुझे गले लगाते हुए पूछा)
ना दरअसल उसे कुछ काम था आने वाला था पर काम की वजह से..... (कहते- कहते मैं रुक गई)
चल कोई ना आजा अन्दर मैं तेरा ही इंतजार कर रही थी।
कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद मैं घर आयी तो नवीन लैपटॉप लिए सोफे पर बैठा बैठा सो गया था, मैंने लैपटॉप बन्द किया और उसका पैर ऊपर कर उसपे कम्बल डाल दिया, पहले सोचा जगाऊँ फिर सोचा नहीं रहने देती हूँ क्या पता अधूरा काम नींद खुले तो पूरा करे, मैं अपने कमरे में आ गई।
कमरे में आयी तो बहुत रोना आ रहा था कपडा़ चेंज कर बिस्तर पर लेटे मैं सोचने लगी, क्या यही है मेरी ज़िन्दगी? क्या यही करना चाहती थी मैं? ऐसे ही कितने सवालों में मैं उलझती जा रही थी और ना जाने कितने ही ऐसे असंख्य सवाल मेरे मन को छलनी कर रहे थे।
शादी को डेढ़ साल हो गया था, मेरे और नवीन के बीच हमेशा मनमुटाव रहता था, मुझे समझ नहीं आता था की मैं उसे नहीं समझती या वो मुझे नहीं समझता?
दो अलग विचारों के लोगों को बाँध दिया गया था एक ऐसे बंधन में जिसे तोड़ना इतना आसान नहीं था।
मैं एक स्वतंत्र विचारों की थी, जबकि नवीन को समाज की रुढियों ने जकड़ रखा था, उसे लगता था महिलायें चारदीवारी में ज्यादा सुरक्षित हैं बाहर की दुनिया उनके लिए नहीं है, आज के जेनेरेशन में भी वह ऐसा सोचता था, शादी के पहले तो वो ऐसा नहीं कहता था फिर शादी के बाद ये बंदिश कैसी, जब भी मैं उससे अपनी नौकरी की बात करती वह झल्ला उठता था, मैंने अपने सपनों को पीछे छोड़ बस टीचिंग ही तो करना चाहती थी, कौन सा दूर जाना था पास में ही तो था कॉलेज , ना जाने क्या प्रॉब्लम थी उसे? ऐसे बहुत सारे प्रश्न थे मेरे मन में।
आज के उसके इस व्यवहार से मैंने तय कर लिया था चाहे जो हो जाए कल मैं इससे बात करके रहूँगी, नहीं रह सकती मैं एक कैद पक्षी के भाँति इस चारदीवारी में, जब और किसी बात से इसे प्रॉब्लम नहीं हैं तो फिर मेरे नौकरी करने से क्यों दिक्कत है इसे, इसी उधेड़बुन में ना जाने कब मुझे नींद आ गई।
सुबह नींद खुली तो नवीन बैड पर बैठा लैपटॉप में कुछ कर रहा था।
गुड मॉर्निंग प्रिया उठ गई तुम!
गुड मॉर्निंग बोल के बैड से उतरी तो सोचा अभी पूछ लुँ की "नवीन आज तुम्हारे जाने के बाद मैं दामिनी से मिल आऊँ ताकी उसके कॉलेज जा कर मैं अपना रिज्यूम दे आऊँ ,दामिनी बता रही थी सीट खाली है सो मैं अप्लाई कर देती हूँ ,फिर सोचा अभी हाइपर हो जाएगा पहले नहा धो लूँ ब्रेकफास्ट करते वक्त पूछ लूँगी।
नवीन आ जाओ ब्रेकफास्ट तैयार हैं (मै नाश्ता प्लेट में लगाते हुए बोली और हिम्मत करके सोचा पूछ लूँगी)
अगर आज नवीन ने मना कर दिया तो ये मेरी तीसरी नाकाम कोशिश होगी।
प्रिया तुम भी बैठो (नवीन कुर्सी पर बैठते हुए बोला)
क्या हुआ प्रिया? (उसने मेरे तरफ देखकर पूछा)
हाँ.... मैं सोच रही थी कि.....
क्या प्रिया बोलो?
नवीन वो मैं तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद घर पर अकेली रह जाती हूँ, बहुत बोर होती हूँ मैं, तो........
हां तो बुला लो नैना दी को कुछ दिनों के लिए (मेरे बात को बीच में काटते हुए नवीन बोला))
नहीं नवीन दी के ऊपर बहुत जिम्मेदारी है, उनके दो बच्चे, जीजु और फिर स्कूल भी देखना होता है वो नहीं आ पायेंगी मैं सोच रही कि मैं भी कॉलेज जॉइन कर लूं तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद मैं कॉलेज चली जाऊँगी और फिर कॉलेज में कम समय ही देना होता है तो तुम्हारे आने के पहले आ भी जाती मेरी बोरियत भी मिट जायेगी और मैं घर भी देख लुंगी, नवीन प्लीज .....
देखो प्रिया मैं तुमसे पहले भी कह चुका हूँ बार-बार एक ही बात कहना अच्छा नहीं लगता (मेरे बातों को बीच में काटता हुआ बोला और नाश्ता छोड़कर चला गया)
उस समय बहुत रोना आ रहा था, मुझे पता नहीं क्या दिक्कत थी इसे मेरी नौकरी से बता देता तो भी तसल्ली हो जाती।
बहुत देर तक मैं स्थिर वही बैठी रही जैसे एक बार फिर मेरी स्वतंत्रता को छिन कर कैद कर लिया गया हो, ऐसा तो नहीं सोचा था मैंने, अपने सपनों को फिर एक बार नवीन के पैरो तले रौंदते देखते रह गयी थी मैं, पहले माँ पापा ने शादी करके मेरे सपनों को कैद किया और जिससे शादी हुयी उसने मेरे सारे सपने तोड़ कर चकनाचूर कर दिया।
क्यों सुन रही थी मैं नवीन की बातों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए ही तो मैं शादी नहीं करना चाहती थी कि किसी की कोई रोक टोक नहीं होगी ,अपनी मरजी से जीना चाहती थी अपना जीवन, पर एक अकेली लड़की को समाज कहा जीने देता, बिन ब्याही लड़की तो जैसे समाज का कलंक हो, करनी तो पड़ती एक न एक दिन शादी मेरी भी हो गयी थी.......
शाम को नवीन बहुत देर से घर आया आते ही बोला मैं खाना खा कर आया हूँ तुम खा लो।
पिछले कुछ दिनों से नवीन ज्यादा बदल गया था उसे मेरी कोई फिक्र नहीं थी। सुबह जल्दी चले जाना और शाम को देर से आना उसकी आदत हो गई थी, जब भी कुछ कहने की कोशिश करती तो मेरी बातों को सुने बिना ही घिसे कैसेट की तरह एक ही बात कहता देखो प्रिया मैं नहीं चाहता की तुम जाकर कही कोई नौकरी करो।
मैंने बात बन्द कर दी थी नवीन से जरुरत से ज्यादा नहीं बोलती थी मैं उससे उसके ऑफिस जाने के बाद जब मैं अकेली होती तो ऐसा लगता था कि मुझे बिना पिंजरे के कैद किया गया हो ऊब गयी थी मैं ऐसे जिन्दगी से...
हम लोग के बीच की दूरियाँ बढ़ने लगी थी हमारा रिश्ता उस रबड़ की भाँति हो गया था जिसके दोनों सिरों को खींचा जा रहा था कब टूट जाय कोई भरोसा नहीं था। मैं शायद माँ के उन बातों से अबतक टिकी थी "शादी के बाद पति ही एक लड़की का संसार होता है उसका परमेश्वर होता है, एक अकेली लड़की को समाज कभी इज्जत नहीं देता "
ये समाज क्यों सोचता है कि लड़की अकेली है इसका मतलब वह गलत ही है, उसके पास भी हृदय हैं, उसके भी कुछ सपने कुछ फीलिंग हैं वो खुद अपनी जिम्मेदारी उठा सकती हैं। कई रातों से मैं सो नहीं पायी थी मन एकदम अशान्त रहने लगा था, ऊब गई थी मैं ऐसे घुट -घुट कर ये घुटन दिन प्रतिदिन असह्य होती जा रही थी। मन में ख्याल आया एक और आखिरी बार कोशिश करके देख लेती हूँ शायद मान जाय। शाम को नवीन घर आया मेरे पूछने पर उसने बहुत ही तीखा जवाब दिया "प्रिया तुम समझती क्यों नहीं हो मेरी समाज में कुछ रेपोटेशन है क्यों खराब करना चाहती हो तुम और हां......
ओह अब समझी क्यों नहीं जाने देते हो तुम्हारी रेपोटेशन खराब हो जाएगी आज के जमाने में भी तुम ये सब सोच रहे हो ,किस दुनिया में जी रहे हो नवीन तुम ,अगर तुम्हारी रेपोटेशन इतनी ही खराब हो रही हैं तो छोड़ क्यों नहीं देते तुम मुझे हा.. ,क्यों मार रहे हो मुझे घुट-घुट कर, घुटन होती हैं मुझे यहाँ ( नवीन के बात को बीच में काटकर मैंने एक ही साँस में कह डाली थी ये सारी बातें)।
दूसरे दिन नवीन के ऑफिस जाने के बाद मैंने काम खत्म कर गाँव वाले घर पर गई जहाँ नवीन के मम्मी पापा रहते थे, वहाँ जाकर मुझे एक सुकून का अनुभव हुआ। दो छोटे छोटे कमरे, एक छोटा सा और चारदीवारी के भीतर आम के दो तीन पेड़ छोटे -छोटे फूलों के पौधे जो मालिक के अभाव में सूख रहे थे मन को एक असीम सुख दे रहे थे। मैंने जल्दी -जल्दी सफाई़ की और घर के तरफ बढ़ी।
शाम के 7 बज रहे थे नवीन घर आ गया था।
कहा गई थी? आते ही नवीन पुछ पड़ा मेरा जवाब न पाकर वह फिर पूछूं कहा गई थी प्रिया?
मैं बैठते हुए शान्त लहजे बोली नवीन अब मैं यहाँ नहीं रहूँगी, ऊब गई हूँ मैं।
गॉव वाला घर मैंने साफ कर लिया है वही रहने वाली हूँ मैं और हा दामिनी के कॉलेज में जो सीट खाली थी मैंने अप्लाई कर दिया है कल जा रही हु वहाँ कभी -कभी वीक-एन्ड पर आ जाना अगर तुम्हारी मरजी हो तो जबरदस्ती नहीं है कोई।
क्यों जाना चाहती हो तुम वहाँ? क्या पड़ी हैं तुम्हें नौकरी की? क्या कमी हैं तुम्हें यहाँ? मैं जितना कमाता हुँ कम है क्या वो? (एक साथ कई सारे सवाल पुछ पडा़ वो)
बात पैसों की नहीं है नवीन ना ही कोई कमी है मुझे और कोई शिकायत भी नहीं है तुमसे मैं....
फिर क्यों...
मैं स्वतंत्र रहना चाहती हूं। नवीन यहाँ चारदीवारी में घुटन होती है मुझे। और यहाँ से बाहर मैं जा नहीं सकती, क्योंकि तुम्हारा रेपोटेशन खराब हो जाएगा ना , पूरे दो साल हो गये हैं हमारी शादी को। कभी जानना चाहा है क्या चाहती में हूं मैं क्या पसन्द है मुझे कभी समय दिया है मुझे,खुद तो कभी समय दिया नहीं और अगर मैं नौकरी करुं तो तुम्हारा रेपोटेशन खराब हो जाएगा, मैं भी इंसान हूं नवीन ,मेरी भी भावनाएं हैं (नवीन के बातों को बीच में काटते हुए बोल गई थी मैं सबकुछ ) रोते हुए कमरे में चली गई।
कुछ देर बाद नवीन कमरे में आया सोच लिया है तुम्हें जाना है?
हाँ
कुछ देर कमरे में सन्नाटा रहा नवीन उठ के कमरे से बाहर चला गया।
सुबह नवीन जल्दी ऑफिस चला गया आज भी उसे फुरसत नहीं थी मैंने काम निपटा के बैग पैक किया अभी निकलने वाली तभी नवीन घर आ गया था कितने दिन के बाद वो आज जल्दी घर आया था पता नहीं क्यों! 3 बजने वाले थे, मैंने ऑटो में समान रखा ओर खुद भी बैठ गई। वहाँ पहुँची तो शाम होने थी मैं बैग एक कोने में रख बाहर आकर आम के पेड़ के पास खड़े होकर डुबते सूरज को देख रही थी, इस डुबते सूरज के साथ मैं छोड़ आई थी सब पीछे।
एक अजीब से सुकून का अनुभव हो रहा था जैसे किसी पिंजरे में बंद पक्षी को एक लंबे अरसे के बाद स्वतंत्र किया गया हो.........
_ संजना पटेल
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