(रमेशराज) तेवरीकार रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं -डॉ. भगत सिंह --------------------------- तेवरीकार रमेशराज का नाम हम सबके मध्य किसी पर...
(रमेशराज)
तेवरीकार रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं
-डॉ. भगत सिंह
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तेवरीकार रमेशराज का नाम हम सबके मध्य किसी परिचय का मुहताज नहीं है। फिर भी “साहित्यश्री” परम्परानुसार मैं इनका सूक्ष्म परिचय सबके सम्मुख रख रहा हूँ।
श्री रमेशराज का पूरा नाम रमेशचन्द्र गुप्त है। इनका जन्म 15 मार्च 1954 को मथुरा रोड स्थित अलीगढ़ के ‘एसी’ गाँव में लोकसाहित्य के चर्चित कवि रामचरन गुप्त के परिवार में हुआ। पिताश्री गुप्त के साहित्यिक संस्कारों के बीच पले-बढ़े, हिंदी और भूगोल में स्नातकोत्तर श्री रमेशचन्द्र गुप्त साहित्य जगत में ‘रमेशराज’ के नाम से पहचाने जाते हैं। इनके प्रकाशित कवि-कर्म को निम्नांकित शीर्षक के मध्य बांटा जा सकता है –
1.सम्पादित कृतियाँ 2. स्वरचित कृतियाँ
सम्पादित कृतियों में- ‘ अभी जुबां कटी नहीं’, ‘कबीर जिंदा है’, ‘इतिहास घायल है’ , ‘एक प्रहार : लगातार’ जैसे तेवरी-संग्रह हैं।
स्वरचित कृतियों में- ‘तेवरी में रस-समस्या और समाधान‘, ‘विचार और रस’, ‘विरोधरस’, काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण’ में कवि की गूढ़ एवं गहन चिंतनशीलता से साक्षात्कार होता है। ‘ कविता क्या है’ आपकी आलोचनात्मक कृति है। श्री राज को प्रमुख ख्याति उनके कवि-कर्म के रूप में मिली है। ‘ऊधौ कहियो जाय’ तेवरी-शतक और लम्बी तेवरियों के रूप में तेवर-शतक-‘ दे लंका में आग’, ‘जै कन्हैयालाल की’, ‘घड़ा पाप का भर रहा’, ‘मन में घाव नये न ये’, ‘धन का मद गदगद करे’, ‘ककड़ी के चोरों को फांसी’, ‘मेरा हाल सोडियम-सा है’, ‘रावण कुल के लोग’, ‘अंतर आह अनंत अति’, और ‘पूछ न कबीरा जग का हाल’ नामक कृतियाँ हैं। ‘शतक ’ शीर्षक के अंतर्गत ‘जो गोपी मधु बन गयीं’, ‘देयर इज एन ऑलपिन’, ‘नदिया पार हिंडोलना’ [दोहा शतक ], ‘मधु-सा ला’ [चतुष्पदी शतक ], ‘पुजता अब छल’ [हाइकु शतक ] जैसी कृतियों को समाहित किया गया है। मुक्तछंद कविता संग्रह के रूप में ‘ दीदी तुम नदी हो‘, ‘वह यानि मोहनस्वरूप’ शीर्षक से प्रकाशित कृतियाँ हैं। इसके अतिरिक्त ‘राष्ट्रीय बाल कविताएँ’ नामक बालगीत संग्रह भी है।
राष्ट्रीय मंचों के साथ कवि ने अपनी रचनाओं का विभिन्न आकाशवाणी केन्द्रों से पाठ किया है। कवि रमेशराज को ‘उ.प्र. गौरव’, ‘तेवरी तापस’, ‘शिखरश्री’, ’परिवर्तन तेवरी-रत्न’, जैसी उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है। जैमिनी अकादमी से ‘सम्पादक रत्न’ , हिमालय और हिंदुस्तान फाउन्डेशन ने उनके प्रकाशन कार्य और लेखन पर सम्मान-पत्र दिया है।
राष्ट्रीय एकीकरण परिषद् की अलीगढ़ इकाई के पूर्व अध्यक्ष एवं सार्थक सृजन [ साहित्यिक संस्था ], संजीवन सेवा संस्थान [सामाजिक संस्था ] एवं उजाला शिक्षा एवं सेवा समिति के आप आज भी अध्यक्ष हैं। दैनिक जागरण समाचार पत्र में स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सम्बद्ध श्री रमेशराज ‘ तेवरीपक्ष ‘ त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का 30 वर्षों से सम्पादन कर रहे हैं।
रमेशराज जी की रचनाशीलता बहुआयामी है। आलोचक, निबन्धकार, गीतकार, हाइकुकार, कहानीकार, लघुकथाकार, ग़ज़लकार एवं तेवरी विधा के संस्थापक सूत्रधार के रूप में इनकी विशिष्ट पहचान है।
तेवरी के इस सारस्वत साधक के लिए डॉ. मधुर नज़्मी ने बड़ी सार्थक टिप्पणी की है –“ हिंदी नवगीत , हिंदी ग़ज़ल की स्थापना के लिए साहित्य में जो श्रम राजेन्द्र प्रसाद सिंह, डॉ. शम्भूनाथ सिंह और दुष्यंत कुमार ने किया, उसी अंदाज़ में रमेशराज ने ‘ तेवरी विधा’ के लिए श्रेष्ठ कार्य किया है और कर रहे हैं।
रमेशराज का कवि अपने आस-पास की राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक विकृतियों और विसंगतियों को लेकर क्षुब्ध होता है। वह अपनी तेज-तर्रार तेवरियों से वर्तमान व्यवस्था बदलाव लाना चाहते हैं –
जितने वे शालीन साथियो
उतने ही संगीन सुनो, अब तो नया विकल्प चुनो।
छल-प्रपंच के बल सारे खल
कुर्सी पर आसीन सुनो, अब तो नया विकल्प चुनो।
वह इस सिस्टम को बदलना भी चाहता है और दुखियारों के आंसू भी पौंछना चाहता है-
इस सिस्टम से लड़ना हमको
अब जुल्मी पर वार करें, चलो दुखों के गाल छरें।
इस निजाम की आज पीठ पर
चाबुक जैसी मार करें, चलो दुखों के गाल छरें।
कवि जानता है, व्यवस्था-परिवर्तन आसान न हीं है, इसके लिए लड़ाई लम्बी चलनी है और इसके लिए वह तैयार भी है। रमेशराज की रचना-दृष्टि तीखापन, रोष, क्रोध या सामाजिक विकृतियों, विसंगतियों को ही नहीं दर्शाती,बल्कि मन की कोमल अनुभूतियों को भी लिए हुए है-
नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये
इस लड़कपन बंक चितवन में इशारे से प्रिये !
प्यास देते आस देते खास देते रस-सुधा
हैं अधर पर सुर्ख सागर के नज़ारे-से प्रिये !
इनकी रचनाएँ वक्रोक्ति और ध्वन्यात्मकता को प्रकट करने के साथ-साथ छान्दस अनुपालन के लिए भी पहचानी जाती हैं। इन्होने गीत ग़ज़ल ही नहीं, दोहा, हाइकु, के साथ-साथ दो-दो तीन-तीन छंदों को जोड़ या तोड़ कर लघु व लम्बी तेवरियाँ प्रस्तुत करने के अनूठे और नवोन्मेषी प्रयोग किये हैं। जनकछ्न्द जैसे नये छंद में लिखा है और स्वयं भी छंद के क्षेत्र में सर्पकुण्डली राज छंद जैसे अभिनव प्रयोग किये हैं।
प्रयोगधर्मी कवि, कहानीकार, निबन्धकार, समालोचक, समीक्षक, सम्पादक, प्रकाशक, सबको जोड़कर रखने की सांगठिक शक्ति से पूर्ण, बाल व नव रचनाकारों को कविता की बारीकियों को सहजता से समझाकर उनमें रचनाशीलता के अंकुरों को सींचकर फलदार वृक्ष बनाने की अद्भुत क्षमता से पूर्ण “विरोधरस ” को रस-विधान के अनुसार हिंदी साहित्य के सम्मुख रखने वाले इस कवि का रचना-कार्य पर्याप्त मूल्यांकन की सार्थक अपेक्षा रखता है।
अलीगढ़ जनपद में जन्मे इस नवोन्मेषी रचनाकार रमेशराज को “ साहित्य-श्री “ सम्मान -2015 मिलने की हार्दिक बधाई।
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डॉ.भगतसिंह, सचिव-सार्थक सम्वाद, 19/ 146, गाँधीनगर, अलीगढ़-20201
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रमेशराज की तेवरी
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आजकल दीवार-सा कुछ भी नहीं
अब हमारे बीच रंजिश-प्यार-सा कुछ भी नहीं।
कह रहा वो कर हवाले आग के
बर्फ के ऊपर रखा अंगार-सा कुछ भी नहीं।
हो नहीं सकती कभी घायल हवा
तू भले तलवार है, तलवार-सा कुछ भी नहीं।
बल्ब-सी तेरी दलीलें हैं भले
किन्तु तेरे पास विद्युत-तार-सा कुछ भी नहीं।
एक आशय लय-भरा परिचय-भरा
जब मिला इस बार तो उस बार-सा कुछ भी नहीं।
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