1 मुश्किलें हो जाएँ हवा चंदा सूरज गगन के तारे, गाते हैं सब संग हमारे । शुभ्रा रजनी श्यामा रश्मि दोनों ही मन से ये पुकारे ।। उप...
1
मुश्किलें हो जाएँ हवा
चंदा सूरज गगन के तारे, गाते हैं सब संग हमारे ।
शुभ्रा रजनी श्यामा रश्मि दोनों ही मन से ये पुकारे ।।
उपवन सदा चहकते ही रहें,
गुलशन में गुल महकते ही रहें,
आबो हवा हो सुगंधि भरी,
डूबों हुओं को सदा ही उतारे।।
उमंगें हो मन की सदा ही जवां,
बने दास्तान ए दर्द ही दवा।
हो जाए मुश्किल तेरी हर हवा,
दिलों की सभी धड़कनें यह पुकारें।।
साहिल सदा ही बुलाते रहें
झूले चमन के झुलाते रहें ।
मंजिल सदा ही हो कदमों पड़ी,
हर एक जर्रा किरण का पुकारे ।।
2
महकाओ फूलों से दामन सभी का
स्नेह का दीपक प्रेम की बाती,
जगमग चमके अमावस की राती ।।
संघर्ष खत्म हों सबके ही सारे ,
रोशन है जब तक नभ में सितारें,
मिट जाएँ दूरी सबके दिलों की,
पुकारे मेरा मन यही दिन राती ।।
भटके हुओं को भी मिल जाए मंजिल,
झूमें खुशी से सभी हैं जो तंगदिल,
करों से जो रोशन दीपक करो तुम,
निर्बाध जलती रहे उसकी बाती ।।
कारण खुशी का सभी की बनो तुम,
काँटें पदों से सभी के चुनो तुम,
महकाओ फूलों से दामन सभी का,
हो जाए निर्मल सभी जग के पापी।।
रोशन तुमको भी होना है एक दिन,
ग़म जो मिले सबको खोना है एक दिन,
जहाँ में बसाना प्यार भरी दुनिया,
मगर रहना दिल में हरदम हो साथी ।।
3
पिया की खोज
दिल ने पुकारा जिसको दिल ने दुलारा जिसको।
शहजादी सपनों की पिया ने पुकारा तुझको ।।
धरती में ढूँढा, ढूँढा गगन में,
मंथर पवन से पूछा ढूँढा अनिल में
गगनचुम्बी बर्फीले शिखरों से पूछा
शूलों में ढूँढा फूलों में ढूँढा
अलि भी ये बोला देखा न उसको।।
ख्वाबों में खोजा, हकीकत में खोजा
टूटे हुए दिल के टुकड़ों में खोजा
कूचों से पूछा, गलियों से पूछा
फिज़ा ने भी कुछ भी बताया न मुझको।।
चंदा से पूछा सितारों से पूछा,
दिल को गुदगुदाती बहारों से पूछा।,
संध्या से पूछा पूछा दिवस से,
दे न पाई रजनी भी किरण एक मुझको।।
4
प्यार की भेंट
सीने पर उठाकर भार घना,
चुपचाप सहे तुम जाती हो।
हो धारण करने वाली तुम,
धरती तो तभी कहलाती हो ।।
सागर-सा हृदय पाया तूने
पिता परमानंद पाया तूने।
सागर के सभी गुण हैं तुझमें
रत्नगर्भा तभी तो कहलाती हो ।।
सह शान्त भाव से सभी व्यथा
कहती न किसी से अपनी कथा ।
गुण हैं अनुपम लासानी तेरे,
गुणागार तभी तो कहलाती हो ।।
तुझ पर ही छायादार तरु
तुझ पर ही बसा विकराल मरु
शूल और फूल की तुम रक्षक
जीवनाधार तभी तो कहलाती हो ।।
तूने होम किरण पर खुद को किया,
जरा जाहिर न मन का भेद किया
खुशी माँगी किरण हित सूरज से,
रवि सखा तभी कहलाती हो ।।
5
धरती की पुकार
हे भास्कर ! प्यासी है तेरी धरती,
एक बूँद पानी की खातिर ----।
छटपटा रही है।
ध्यान रखता है ,----
अम्बुद भी ,
चातक की प्यास का ।
गहन ,विस्तृत सागर ---
यद्यपि ,
आच्छादित किए है, तेरी-
इस निधि को ।
हिमाच्छादित पर्वतेश्वर यद्यपि करता हैशृंगार,
तथापि
तुच्छ हैं सभी, और
आश्रित हैं वे भी ---।
तुम्हारे ही ।
इसीलिए हे भानूदय !
पृथ्वी-पीड़ा का भान करो, और
अपनी सुनहरी सौगात से, सम्मानीय धरा का
सम्मान करो ।
6
शुभेच्छा
हर खुशी हो मुबारक तुझे ऐ सनम,
करते रहेंगे दुआएँ खुदा से ये हम
मौसम सदा ही बसंती मिलें
अधर प्रतिपल हों तेरे खिले
नम चक्षु तेरे कभी न मिलें
रंगीन उपवन तेरा ये रहे
बुलबुल सदा कूकती ही रहे
फूल भ्रमर कली को बनाता रहे
लटें हमेशा ही तेरी सजाता रहे
चाँद चौदहवीं का तुम हो मगर
रातें सदा ही तेरी पूनम बनें
जगमगाएँ सितारे तेरी जुल्फ़ में
ज्योत्स्ना तेरे मस्तक की बिंदिया बने ।
7
तम से क्यों घबराए प्यारे ?
क्या सोची थी निकली क्या है जीवन की तकदीर
सुनते थे लेकिन ये सच है, कि जीवन टेढी खीर।।
कौन नहीं अपने मन में अरमानों को बसाता है ?
कौन नहीं अभिलाषा मन में सुमन सुरभि की लाता है ?
कहो कौन जो इस दुनिया में न पथ-पुष्पिला चाहता है ?
कड़वे फल चखने का आदी हो गया अब ये शरीर ।।
मैंने भी प्यारो एक दिन, प्यार की दुनिया पाली थी,
चहुँ ओर सपनों में मेरे, पुष्पित एक-एक डाली थी,
अभिलाषित था मन मेरा यह, प्यार की गंध लुटाने को,
पुष्प-पत्र कोमल यह देखो बना नयन शहतीर ।।
जीवन को हर्षित करने हित आई मृदु मुस्कान,
विस्मित भय से, दूर गगन से देख रहा था चाँद,
थी भव्य भावना मन मंदिर की दिशा दिप्त थी प्यारी,
लेकिन तम ने दिया निशा का झिलमिल आँचल चीर।।
एक किरण आशा की अब भी मन मंदिर में बैठी है,
होगा सुरभित आँगन जग का बावरे मन से कहती है,
तम से क्यों घबराए प्यारे दूर सितारे चमक रहे,
है आज अमाँ तो, कल राका क्या, न देगी तम को चीर???
8
कण-कण होगा मलियाली
अभी अगर है रात का साया, कल फैलेगा सुबह का नूर ।
कण-कण जग का भासित होगा, होगी हर विपदा तब दूर ।।
है पथराई भूमि अभी तो कल वर्षा भी आएगी,
कलह क्लेश सभी के दिल के वो सारे धो जाएगी ।
महकेगा उपवन फिर से तब, नृत्य करेंगे वन में मयूर ।।
हर एक तरु की शाखा पर फिर छायेगी ये हरियाली,
मरु-भूमि का कण-कण इक दिन हो जाएगा मलियाली।
महकेगा मरु इक दिन सारा खिलें होंगे पद्म-प्रसून ।।
संचित रखो प्यारे अपने नयन का निर्मल नीर,
संकट में धीरज न खोते कभी भी जग में वीर ।
हो बेशक अभी रात जवाँ पर नहीं सवेरा दूर ।।
रजनी के होते भी देखो किरण आश की चमक रही,
फिर क्यों प्रिय मुख पर तेरे दुख की आभा दधक रही?
आनंदित होंगे परमानंद सारे संकट होंगे दूर ।।
9
तुम्हें शक्ति बनना है
जब तुम नहीं होते तुम्हारी याद होती है ।
नयनों ने जो की थी वही फरियाद होती है ।।
मैंने बस समझा है, नयनों की भाषा को
मेरे मन में बसी है जो तेरी उस अभिलाषा को
न तुम ही अकेले हो न मैं ही अकेला हूँ
हम दोनों ही क्यों फिर फरियाद करते हैं?
क्यों याद करूँ तुझको? भूला ही नहीं मैं जब?
झूले में बाँहों के, तेरी झूला ही नहीं मैं जब?
उमड़ी सी घटाओं से तेरे कुंतल हैं न्यारे,
खंजर हैं नयन तेरे कैसे हम बचें बेचारे?
अधरों की हॅँसी तेरी मेरे दिल में बसी वैरी,
तड़फाती है मुझको हर एक अदा तेरी,
गंगा-सा मन तेरा यमुना सा तन तेरा
जरा दूर अभी है वो जो घर है सखी तेरा।।
संगम हम दोनों का नहीं दूर है अब ज्यादा
एक बात मैं कहता हॅूँ, करो मुझसे ये वायदा,
तुम्हें मेरी शक्ति बनना है कमजोरी से ज्यादा
गोपी भी तुम ही हो तुम ही हो मेरी राधा ।।
10
विरह की पीड़ा
मेरे मन की व्यथा को पहचानो,
तुम पहचानो मेरी मजबूरी ।
कभी न समाए मन में हमारे
बीच बनी जो दैहिक दूरी।।
मिलन हमारा सात्विक होगा, आत्मिक होगा पहचानो
कभी भी प्रियतम अपने दिल से दूर मुझे तुम न मानो
हर एक रोम में मेरे बसे तुम ज्यों फूलों में बसी खुशबू
सुमन सुगंध में कहो कहीं क्या बनी कभी भी है दूरी?
रात अंधेरी विरह की पीड़ा तुझको जलाती मैं जानूँ
बच पाऊँगा इस अग्नि से मैं कैसे न ये जानूँ?
जल में जीवन जैसे समाया तुम हो समाए सांसों में
जल से जीवन की बोलो क्या कभी बनी है कब दूरी?
11
सफर के साथी
जो भी मिला मुझको जीवन सफर में
उसे मैं गले से लगाता चला ।
पड़ा सामने जो कभी दुख का बादल
हवा से उमंग की उड़ाता चला ।।
रिमझिम भी देखी घटा देखी मैंने ,
अतिवृष्टि की भी अदा देखी मैंने।
गिरि को उठाकर उसकी जगह से
जलद को मैं ठेंगा दिखता चला ।।
प्रलय की है चिंता मुझे न तनिक भी
करुणा से भरपूर हैं अब, थे तब भी
झरना झरे न नयन से किसी के
जल में नयन का चुराता चला ।।
थी दीप्त दिशाएं तिमिर ही से सारी
था तम गहनतम धरा से भी भारी
सूरज छिपा जो था अंबुद के पीछे
मैं रश्मि धरा को दिखाता चला ।।
12
दुनिया की तासीर
क्या सोची थी निकली क्या है, ख्वाबों की तासीर,
जिसे जिंदगी कहते हैं हम है वो टेढ़ी खीर ।।
हँसना चाहें हँस न सके हम,
अश्कों पर भी बंदिश है
हर एक मोड़ पर हर एक राह में
दुश्मन है और रंजिश हैं
कैसे किसी का करे यकीं अब हुआ दागी सच का चीर ।।
गम है अपना खुशियाँ पराई
दुनिया तनिक ये रास न आई ।
जिससे वफा की आशाएँ की
खिल्ली वफा की उसी ने उड़ाई
जीवन कश्ती फँसी भंवर में कैसे लगे अब तीर ?
संघर्षों में ही जो जीना ,
घूँट लहू का ही जो पीना
पिघल-पिघल कर ही जो गलना
तिल तिल करके ही जो जलना
पीता चल तू विष इस जग का और इस दुनिया की पीर ।।
13
अनिर्मित व्यक्तित्व
अनिकेतन!
मजदूर
धरा काशृंगार
तेरे ही करों से शोभता है।
हे!
जलधि को बाँधने वाले!
तुम ही तो हो,
जो
चुनौती देते गगन को।
हे!
बेशकीमती....
महलों का निर्माण करने वाले,
तेरे
सपनों के महल का
कब होगा निर्माण?
और...
कैसे ?
जाएगा आंका
सपने का मूल्य
तेरे !
14
चाँद चौदहवीं का
घनघोर काली घटाएँ
और दमकती दामिनी
प्रतीक यदि हैं दुख का,
तो क्यों करता है नृत्य
मयूर, होकर मदमस्त...?
रत्नाकर छिपाए यद्यपि है
गर्भ में रत्न-आकर
नदियाँ स्वयमेव करती हैं
अर्पण अथाह जलराशि
फिर करता क्यों है क्रंदन...?
होता पूर्ण है चंद्र
पूनम का, लेकिन
ग्रस लिया जाता है
पूर्णता को पूर्णेंदु की।
कदाचित उपमेय है इसीलिए
चाँद
चौदहवीं का!
15
मधुबन की लालसा
अरे मेरे मन
क्यों होता अधीर है?
देखकर क्रंदन
प्रतिरूप का अपने
जीया जीवन जटिल है
झंझावातों में।
झुलसाता रहा है दावाग्नि में।
ज्ञान है जबकि
छलकने हैं आँसू
अनवरत; निर्बाध फिर क्यों है लालसा
मधुबन की?
हो मलयवत
धरासम कर धारण शक्ति
धैर्य की।
और...
चलता जा
मूक
देने को प्रेरणा
समाए हृदय में संताप
समुद्र का।
16
यदि भुला दिया जाता
चिरकाल तक
जलने के उपरांत
शीतल, स्निग्ध अग्नि में
किया गया...,
शिकवा !..
यह
कि
याद नहीं किया गया?
क्यों?
... सच ही तो है।
सचमुच,
किया नहीं गया याद।
क्योंकि...
नहीं जा सका भुलाया ।
यदि
भुला दिया जाता तो...
संभव ही न था
कर पाना
याद....!
17
दर्शन तत्त्व से
ये अवलंबत जगत
मिश्रण है सप्त पदार्थों का
और ये सप्त पदार्थ....
मिश्रण हैं;
आश्रित हैं....
नव द्रव्यों के।
‘क्षिति’ नाम धैर्य,
जीवन है ‘अप’
प्रकाश नाम है ‘तेज’ का।
बहता जीवन,
शून्याकाश,
बलवान काल,
दिक् दस
परम तत्त्व देहिन,
सारथि मन...
इन्हीं का संयोग है...
ज्ञेयाज्ञेय जीवन !!!
18
पंखा
पंखा
सभ्यताओं का,
एक ऐसा अवयव
जिसे
जब चाहा
जिसने चाहा
आवश्यकतानुसार
घुमा लिया।
और
वह
सुरीली आवाज में
दर्दीला गीत
गुनगुनाते हुए
शीतल हवा
देने लगा।
19
दीपक तुम्हीं को जलाना पड़ेगा
दीपक स्नेह से भर - भर जलाओ,
धरा को उजाला तुम्हीं से मिलेगा ।
राह में है अभी अंधेरा अगर तो
उजाला तेरी ही राह से मिलेगा ।।
मंजिलें सभी पास आती रहेंगी,
ख़िजाएँ स्वयं दूर जाती रहेंगी।
अंधेरा धरा का मिटाने की खातिर,
दीपक तुम्हीं को जलाना पड़ेगा ।।
खुशियाँ तुम्हें हैं जगत को लुटानी,
अग्नि को भी करना है तुमको ही पानी ।
सूरज को जीवन अपना बनाकर,
दीपक की मानिद जलाना पड़ेगा ।।
चहुँ ओर होंगी तुम्हारे बहारें,
चमकेंगे नभ में जबतक सितारे ।
होकर शशीवत शीतल तुम्हीं को,
मेरे संग तराना ये गाना पड़ेगा ।।
COMMENTS