अपने गांव में आया हूं... शहर की धूप छोड़ बरगद की छांव में आया हूँ मैं बरसों बाद अपने गांव में आया हूँ... हाइवे नहीं ,पगडंडियों से भ...
अपने गांव में आया हूं...
शहर की धूप छोड़ बरगद की छांव में आया हूँ
मैं बरसों बाद अपने गांव में आया हूँ...
हाइवे नहीं ,पगडंडियों से भरा रास्ता मिलता है
सुना है मेरे गांव में ,सुकून सस्ता मिलता है
मैं मिलने पुरानी यादों से शहर की अलगाव से आया हूँ
मैं बरसों बाद अपने गांव में आया हूँ...
जुगनू की चमक के आगे
स्ट्रीट लाइट की चकाचौंध भी फीकी लगती है
एसी कूलर से भी ठंडी मेरे गांव की हवाएं चलती हैं
मैं वाटर पार्क छोड़ ,चढ़ने पटवारी की नाव पे आया हूं
मैं बरसों बाद अपने गांव में आया हूं...
शहर जैसा होशियार नहीं है, लेकिन मेरा गांव ग्वार नहीं है
ना भीड़ है ना शोर शराबा है , मेरे गांव में ना ही
दिखावा है
मैं रोजर्मरा की बेचैनी छोड़ ,नए बदलाव में आया हूँ
मैं बरसों बाद अपने गांव में आया हूं...
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ये कैसा शहर है
यहां इंसान -इंसान से बेखबर है
कहीं हंसी के ठहाके है कहीं गम के सैलाब ,
एक ही मोहल्ले में दो- दो मंज़र है।
जान के भी अजनबी ,बनते हैं लोग आजकल
चुपचाप से रखते हैं , फिर भी ,एक दूसरे पे नज़र
है।
ये कैसा शहर है
खुद को भी पहचानना मुश्किल सा लगता है
गाड़ियों की भीड़ दिखती है रास्ता नहीं दिखता
समय की रेस में सब भागे जा रहे हैं
ना सुबह का पता ना शाम की खबर है
अरे ये कैसा शहर है
हर आदमी गम छुपाता मिले
कभी तो कोई मुस्कुराता मिले
खुशियों के लिए कमाए जा रहे हैं
और खुशियां ही गंवाए जा रहे हैं
खुद से सब इतने लापरवाह और बेखबर है
कोई जानता ही नहीं यहां पर
किसका पहला और किसका आखिरी सफर है।
यह कैसा शहर है
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रिश्ते
कुछ रिश्ते जाने पहचाने कुछ अनजान हो गए।
हाय हम अपने मायके में ही मेहमान हो गए।।
जाने क्यों मुझको एक बात यह खलती है।
मेरी आने जाने की तारीख निकलती है।।
बचपन की यादें मन में कौंधती है।
मायके की गली में जब गाड़ी मुड़ती है।।
मेरे चेहरे पर सब खुशी ढूंढते हैं।
कितने दिन रहोगी पड़ोसी पूछते हैं।।
मां के चेहरे पर खुशी बार-बार होता है।
मेरा आना भी उनके लिए त्यौहार सा होता है।।
जाते ही पल- पल घड़िया गिनती रहती हूं।
कुछ पल में ही सारी खुशियां बुनती रहती हूं।।
आंगन बगीचा घर का कोना कोना निहारती हूं।
खामोश होठों से अपनी बीती यादें पुकारती हूं।।
जिम्मेदारियों का बोझ कंधे से उतारती हूं।
बहू से बेटी वाला कुछ दिन गुजारती हूं।।
कुछ छूट न जाए सामान मां कहती रहती है।
अनजाने में ही मुझको ताना देती रहती है ।।
जब भी जाती हूं सिलसिला हर बार होता है।
एक बैग से बैग हमेशा चार होता है ।।
कुछ थोड़े दिन रहू ससुराल से अनबन समझते हैं।
क्यों बेटी को सब हमेशा पराया धन समझते हैं।।
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माँ - 1
तेरा मेरा क्या होता है सास बहू के रिश्तों में
घर की छोटी छोटी खुशियां बट जाती है किश्तों में
मेरे पति की मां हो तो मेरी भी मां बन जाओ ना
गलती पर ताना मत मारो प्यार से समझाओ ना
मेरा पति बेशक मुझको जान से प्यारा है
कैसे भूलूं मुझसे पहले उन पर अधिकार तुम्हारा है
नहीं बंटेगा प्यार तुम्हारा तुम इतना घबराओ ना
मेरे पति की मां हो तो मेरी भी मां बन जाओ ना
मां बेटे के रिश्तों में फूट में कैसे डालूंगी
किस मुंह से मैं फिर अपने बच्चों को पालूंगी
मैं अपनाऊं परंपरा तुम्हारी तुम ,नयी पीढी अपनाओ ना
मेरे पति की मां हो तो मेरी भी मां बन जाओ ना
जिस आंगन से आई हूं मैं उस की राजदुलारी थी
अपने मम्मी पापा की बेटी में जान से प्यारी थी
नहीं बनना है बहु तुम्हारी तुम मुझको बेटी बनाओ ना
मेरे पति की मां हो तो मेरी भी मां बन जाओ ना
मां तुम जैसे बोलोगी मैं वैसे ढल जाऊंगी
तुमने अगर साथ छोड़ा तो एक कदम नहीं चल पाऊंगी
मैं कुछ सीखूंगी खुद से कुछ तुम मुझे सिखाओ ना
मेरे पति की मां हो तो मेरी भी मां बन जाओ।।
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बच्चे
तब कितना मस्ती करते थे और शोर मचाते थे
बिना किसी भी टेंशन के जब हंसते गाते थे
कितना भी थक जाते तो आराम नहीं होता
अब बच्चों का बचपन वाला शाम नहीं होता।।
सब दोस्तों के संग कितना घूमा करते थे
चॉकलेट बिस्किट मिल बांट कर खाया करते थे
मम्मी की जब डांट सुनी तो रोना आता था
फिर दादी की कहानी सुनकर सोना आता था
अब गूगल यूट्यूब नन्ही हाथों के मित्र बन गए हैं
भोले भाले मन पर कैसे कैसे चित्र बन गए हैं
सारा दिन लगे रहते हैं कोई विराम नहीं होता
अब बच्चों का बचपन वाला शाम नहीं होता।।
तब मां के हाथों की रोटी कितनी मीठी लगती थी
बड़े प्यार से कुछ भी दे दे अच्छी लगती थी
अब पिज़्ज़ा बर्गर के बिना कोई काम नहीं होता
अब बच्चों का बचपन वाला शाम नहीं होता।।
नए कपड़े जब मिलते थे किसी त्योहारों में
सीना तान के जाते थे तब दोस्तों यारों में
रोज पहनते नए कपड़े कोइ त्यौहार नहीं होता
अब बच्चों का बचपन वाला शाम नहीं होता।।
गिल्ली डंडा टूट गए हैं लुकाछिपी छूट गए हैं
बचपन के ये सब खिलौने बच्चों से ही रूठ गए हैं
वक्त भी हर वक्त मेहरबान नहीं होता
अब बच्चों का बचपन वाला शाम नहीं होता।।
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सोच बदल डालो अपना
हालात बदल जाएंगे कुछ बात बदल जाएंगे
माना कि कोई तुमको अनदेखा करता है
रिश्तों में अक्सर लेखा-जोखा करता है
मौन रहो उन बातों पर
सब कुछ नहीं है तेरे हाथों में
जो वक्त बुरा है तेरे लिए वो वक़्त बदल डालो
हालात बदल जाएंगे कुछ बात बदल जाएंगे
खुशियों को ढूंढो जो तुम्हारे पास भटक रही है
चलती फिरती जिंदगी कैसे अटक रही है
डर लगता है अंधेरों से डर वो रात बदल डालो
हालात बदल जाएंगे कुछ बात बदल जाएंगे।
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ख्वाहिश
ख्वाहिश किसे नहीं होती है आसमान में उड़ने की
लेकिन पंख कहां सबको मिल पाता है,,,,,
कोई उड़ जाता है नील गगन में,,,,
कोई धरती पर रह जाता है,,,,
डाल पर बैठा एक परिंदा अपनी मस्ती में गाता है
फंस जाता है दाना के लालच में,,,,
शिकारी जब जाल बिछाता है,,,,
मन बड़ा चंचल है प्राणी सरपट दौड़ता जाता है
अकल उसे तब आती है,,,,
जब औंधे मुंह गिर जाता है,,,,,,
क्या लेकर आए हो जग में क्या लेकर जाओगे
मिट्टी के मानव हो प्राणी,,,,,
मिट्टी में ही मिल जाओगे,,,,,,
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माँ -2
मैं बहुत निशब्द हूँ ,इस शब्द के लिए
मां के उपकार और कृपा के लिए।
मेरे अस्तित्व का आधार हो तुम
मां मेरा पहला ,,प्यार हो तुम।
ममतामयी हृदय ,करुणा से भरी
अपनी संतान के लिए ,जो हर वक्त है खडी़।
मैं धूप हूं अगर ,तुम छांव हो मां
मैं राही हूं अगर, तुम पड़ाव हो मां।
निश्छल प्यार, तुम लुटाती आई हो
मेरे दुख को अपने आंचल से, मिटाती आई हो।
तुम्हारे कर्ज का ,,,,कर्जदार हूं मैं
तूने जो बनाया,,,, ,वह आकार हूं मैं।
समेट लेना मुझको ,अगर बिखर जाऊंगा
तुम्हारे आशीष से ,मैं संवर जाऊंगा।
जन्म देने वाली जन्मदाता को नमन
मुझे रचने वाली इस विधाता को नमन।
कभी उलझनों में जो उलझ जाता हूं
कभी खुद को सबसे निर्बल पाता हूं।
चिंताएं मेरी तब ,,,,,दूर हो जाती है
दौड़ा दौड़ा जब, तुम्हारे पास आता हूं।
निस्वार्थ प्रेम,, तुम कैसे कर पाती हो
अपने बच्चों से ,कभी न कुछ मांगती हो।
हे ज्ञानदाता ,,मुझे ज्ञान इतना दो
सही मार्ग पर चलूं ,मुझे ध्यान इतना दो।
अद्भुत हर ,,,,,स्वरूप में हो तुम
माँ ,बहन, पत्नी ,के रूप में हो तुम।
ढल जाती हो ,,,,हर किरदार में माँ
तुम सा ना कोई ,,,व्यवहार में है मां।
सुन रहा अगर ,,,,,,तू सुन मेरे प्रभु
प्रथम है मेरी मां ,,,,, द्वितीय है तू ।
लिख दिया मुझे ,,मैं क्या लिखूं तुम्हें
जब भी मैं जनम लूं,, बस पाऊं मैं तुझे।
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तेरी मुस्कुराहटें
मेरे दिल पे दस्तक देती जो आहटें हैं
हां वो तेरी मुस्कुराहटें हैं।
कभी धूप तो कभी छांव में
मेरे हर हाव-भाव में
उमड़ती घूमड़ती जो चाहते हैं
हां वो तेरी मुस्कुराहटे हैं।
मैं तुम्हें बताऊं प्रिय कैसे
मानो लगता हो जैसे
सूखे पत्तों पर ओस की बूंद गिरी हो
अरसे बाद बेचैनी को चैन मिली हो
मेरी हर उलझनों को जो सुलझाते हैं
हां वह तेरी मुस्कुराहटे हैं
गर्मी की तपिश में बारिश की फुहार हो तुम
जैसे पतझड़ में बसंत की बहार हो तुम
पास रहकर भी एक इंतजार हो तुम
प्यार से भी मीठी जो लगे वो तकरार हो तुम
अक्सर मैं खुद से करती हूं वो यही बातें हैं
हां वो तेरी मुस्कुराहटे हैं।
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दुनिया
कभी किसी ने झुकाने की कोशिश की
कभी किसी ने गिराने की कोशिश की
हम फिर भी खड़े बनके ढाल हो गए
तभी हम आज दुनिया के लिए कमाल हो गए।
कुछ भी तो ना था हमारे दामन में
बस हौसलों का फूल था मन के आंगन में
हमने उसे धैर्य से सींचा ,प्रेम से खिलाया
फूल खिल के बेमिसाल हो गए
तभी हम आज दुनिया के लिए कमाल हो गए।
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स्मृति ए कुमार
मुजफ़्फरपुर
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