" कोरोना को रोकने हेतु सोशल डिस्टेंसिंग या फिजिकल डिस्टेंसिंग" -डॉ दीपक कोहली- वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को रोकन...
"कोरोना को रोकने हेतु सोशल डिस्टेंसिंग या फिजिकल डिस्टेंसिंग"
-डॉ दीपक कोहली-
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन के आह्वान पर भारत में भी संपूर्ण लॉकडाउन की व्यवस्था को अपनाया गया है। लॉकडाउन की व्यवस्था के साथ ही ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की अवधारणा को अपनाया गया। पिछले कुछ दिनों से सोशल डिस्टेंसिंग शब्द काफी प्रचलित हो रहा है।
इस शब्द का प्रयोग लगातार प्रधानमंत्री जी द्वारा भी अपने भाषणों में किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय भी इसी शब्द का इस्तेमाल अपने दस्तावेज़ों और निर्देशों में कर रहा है, परंतु यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली पर ध्यान दें तो यह पाते हैं कि इसके द्वारा लगातार सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर फिजिकल डिस्टेंसिग की अवधारणा पर ज़ोर दिया जा रहा है। प्रारंभ में इस शब्द के प्रयोग को लेकर असमंजस था, लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा व्यापक रूप से इस शब्द का प्रयोग किया जा रहा है।
विशेषज्ञों का यह मानना है कि ये शारीरिक दूरी बनाए रखने का समय है, लेकिन साथ ही सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर एकजुट होने का समय है। नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेनियल एलड्रिच का तो यह मानना है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल न सिर्फ गलत है, बल्कि इसका अत्यधिक प्रयोग हानिकारक साबित होगा। एलड्रिच के अनुसार, यह समय अभी शारीरिक दूरी बनाए रखने और सामाजिक तौर पर एकजुटता प्रदर्शित करने का है।
प्रस्तुत लेख के माध्यम से सोशल डिस्टेंसिंग के साथ फिज़िकल डिस्टेंसिंग की अवधारणा को समझने का प्रयास किया जाएगा। इसके अतिरिक्त सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर फिज़िकल डिस्टेंसिंग शब्द के प्रयोग के कारणों पर भी विमर्श किया जाएगा। सोशल डिस्टेंसिंग से तात्पर्य समाजिक स्तर पर उचित दूरी बनाए जाने से है। सभाओं में शामिल होने से बचना, सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिवारिक कार्यक्रमों के आयोजन से बचना ही सोशल डिस्टेंसिंग है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर नहीं जाना चाहिये। किसी व्यक्ति से बात करते समय हमें किसी भी प्रकार से शारीरिक स्पर्श से बचना चाहिये। कोरोना वायरस से संक्रमित 1 व्यक्ति 5 दिनों के भीतर ही लगभग 2.5 व्यक्तियों तक इस वायरस का स्थानांतरण कर सकता है। इसकी भयावहता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 30 दिनों के भीतर ही इस वायरस का संक्रमण लगभग 406 व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है।
यदि इस वायरस से प्रभावित किसी व्यक्ति द्वारा 50% तक अपनी गतिविधियों को सीमित कर लिया जाता है तो अगले 5 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 1.5 व्यक्ति तक तथा अगले 30 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 15 व्यक्तियों तक सीमित हो जाएगी।इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति द्वारा 75% तक अपनी गतिविधियों को सीमित कर लिया जाता है तो अगले 5 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या .625 व्यक्ति तक तथा अगले 30 दिनों में संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 2.5 व्यक्तियों तक सीमित हो जाएगी।सोशल डिस्टेंसिंग के बेहतर क्रियान्वयन के लिये ही संपूर्ण लॉकडाउन की व्यवस्था की गई है।
सोशल डिस्टेंसिंग शब्द लम्बे समय से सामाजिक-सांस्कृतिक वर्चस्व बनाए रखने के लिये इस्तेमाल होता रहा है। ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ हमेशा शक्तिशाली समूह द्वारा कमजोर समूह पर थोपी जाती रही है। भेदभाव और दूरी बनाए रखने और अस्पृश्यता को अमल में लाने के तरीके के तौर पर इसका इस्तेमाल होता रहा है। प्रसिद्घ फ्रांसीसी समाजशास्त्री लुई दुमों के अनुसार, विश्व के कई देशों की विभिन्न जातियों में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिये पूर्व से ही प्रचलित है। यहाँ विवाह, खान-पान से लेकर छूआछूत तक ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का क्रूरतम रूप सामने आता रहा है। ऐसे में यह डर है कि कोरोना वायरस की ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ कहीं जाति प्रथा की ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के पुनरुत्थान का कारण न बन जाए। इसके साथ ही यह तर्क बार-बार दिया जा रहा है कि न छूकर किया जाने वाला अभिवादन, यानी हाथ जोड़कर दूर से किया जाने वाले नमस्ते, भारतीय परंपरा की श्रेष्ठता को दर्शाता है। पितृसत्तात्मक समाज में परिवार के अंदर भी स्त्री और पुरुष के बीच ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की दीवार बनाई गई है ताकि स्त्री को कमजोर होने का अहसास दिलाकर उसका शोषण किया जा सके। स्त्री के लिये ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ इस तरह से की गई है कि वह घर से बाहर ना निकल सके।
प्रत्येक समाज में गरीब और अमीर के बीच भी सोशल डिस्टेंसिंग व्याप्त है। इस प्रकार यदि कोरोना वायरस की सोशल डिस्टेंसिंग का फायदा उठाकर शक्तिशाली समूह सोशल डिस्टेंसिंग की पुरातन रूढ़िवादी अवधारणा को मजबूत करने में जुट जाते हैं, तो इस पर न सिर्फ नज़र रखने बल्कि इस विचारधारा के प्रतिकार करने की भी आवश्यकता है।
फिज़िकल डिस्टेंसिंग से तात्पर्य समाजिक दूरी के स्थान पर शारीरिक दूरी को बनाए रखने से है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक के अनुसार, इस वैश्विक महामारी से निपटने में फिज़िकल डिस्टेंसिंग नितांत आवश्यक है, परंतु इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम समाजिक स्तर अपने प्रियजन व परिवारीजनों से दूरी बना लें। तकनीकी के इस युग में हम फिज़िकल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए वीडियो चैट व वीडियो कॉलिंग के माध्यम से सामाजिक व आत्मीय निकटता को महसूस कर सकते हैं।
सोशल डिस्टेंसिंग से ऐसा प्रतीत होता है कि यह लोगों को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर रहा है, जबकि फिज़िकल डिस्टेंसिंग लोगों में शारीरिक दूरी को बनाए रखते हुए सामाजिक निकटता लाने पर फोकस करता है। सोशल डिस्टेंसिंग लोगों के बीच सामाजिक दूरी को बढ़ाकर उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है, जबकि फिज़िकल डिस्टेंसिंग लोगों में शारीरिक दूरी को बढ़ाते हुए भी सामाजिक रूप से निकट ला रहा है।
फिज़िकल डिस्टेंसिंग को मीट्रिक मीटर या सेंटीमीटर में मापा जाता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की भौगोलिक दूरी की माप करता है, जबकि सोशल डिस्टेंसिंग सामाजिक संबंधों के बीच की दूरी का एक मापक है। कोरोना संकट की इस घड़ी में स्पष्ट रूप से फिज़िकल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए समाजिक निकटता को बनाए रखने की आवश्यकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर फिजिकल डिस्टेंसिंग शब्द का प्रयोग अधिक औचित्यपूर्ण एवं समसामयिक है।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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