जंगली फूल बात उन दिनों की है, जब बबूल के पेड़ों में सूरजमुखी की तरह बड़े बड़े फूल हुआ करते थे। उन्हीं दिनों एक माली ने अपनी क्यारी तरह-तरह क...
जंगली फूल
बात उन दिनों की है, जब बबूल के पेड़ों में सूरजमुखी की तरह बड़े बड़े फूल हुआ करते थे। उन्हीं दिनों एक माली ने अपनी क्यारी तरह-तरह के फूलों से सजा रखी थी। पूरब में बरगद और पश्चिम में पीपल सरीखी चीन की दीवारें थी, जो फूलों को तेज धूप से बचती थीं। माली ने क्यारी के चारों तरफ किनारे-किनारे पर बबूल के कंटीले झाड़ भी लगा रखे थे।
जहाँ एक ओर चम्पा चमेली के फूल क्यारी को महकाने में लगे थे, तो वहीं क्यारी के बीचों बीच गेंदा और गुलाब में मुस्कुराने की होड़ लगी थी। और हाँ! किनारों पर लगे बबूल भी इतने सतर्क थे कि कोई भी उनके काँटों को पार करके फूल नहीं चुरा सकता था ।
समय आगे बढ़ता रहा। क्यारी में कौन कौन से फूल आये गये इसका पता भी न चला; और न ही ये पता चला कि बबूल का फूल कब जूही के फूल को अपना दिल दे बैठा। उन दोनों के बीच में जो दूरी थी, वह बबूल को बहुत खटक रही थी। बबूल की दीवानगी उस चरम सीमा पर थी; जहाँ वह जूही को पाने के लिए माली से ही नहीं, बल्कि अपने परिवार से भी बगावत कर सकता था। लेकिन ऐसा करने के पहले उसने अपने परिवार के सामने अपनी इच्छा जाहिर की।
यह जानकर कुछ परिजन बेहद खुश हुये , लेकिन अधिकांश कट्टर साम्प्रदायिक एवं परंपरावादी थे। इस इच्छा अनिच्छा के घमासान में बबूल परिवार टूटने की कगार पर था, इसलिए इस समस्या को सुलझाने के लिए सभी बबूलों ने अपने बुजुर्ग पीपल दादा की सलाह लेना बेहतर समझा । और इस कारण सभी बबूल पीपल दादा के पास गये।
इसी सिलसिले में पीपल दादा बबूल के फूल को समझाने की कोशिश करते हैं कि बेटे! प्रेम कुछ भी पाने की लालसा नहीं है, बल्कि कुछ देने की आतुरता है....और भला तुम जो खड़े भी हो तो अपने पैरों पर नहीं तो फिर जूही के लिये कैसे सीन्चोगे ? बबूल का फूल बीच में ही बोलता है कि दादाजी! मुझे नहीं चाहिये ऐसे आराम की जिन्दगी जिसमें जूही शामिल नहीं हो, भले ही इसके लिये मुझे मेहनत मजदूरी से गुजारा करना पड़े ।
पीपल दादा तुरंत आगे पूछते हैं कि तो क्या जूही भी इसके लिए तैयार है? बबूल का फूल बताता है कि नहीं, अभी तो उससे कोई बात नहीं हुई है । पीपल दादा रौब में कहते हैं कि साफ साफ बताओ , अभी तक जूही से कोई बात नहीं हुई से क्या मतलब है? बबूल का फूल बताता है कि अभी तो उसने जूही से प्यार का इजहार भी नहीं किया है। पीपल दादा बबूल के फूल से पूछते हैं कि जब तुमने जूही से अपने प्यार का इज़हार तक नहीं किया तो फिर ये बात का बतंगड़ बनाने की क्या ज़रूरत थी?
बबूल का फूल बताता है कि दादाजी! यदि मैं पहले ही उससे कोई वादा कर देता ; और आप सभी उसे अस्वीकार कर देते तो मैं उसे क्या मुँह दिखाता? पीपल दादा दिखावटी गुस्से में कहते हैं कि अरे मूरख ! जब प्यार का इजहार ही नहीं हुआ है तो ये वादे बीच में कहाँ से आ गये? उन्होंने आगे पूछा कि जूही तुमसे प्यार करती है तो बबूल ने धीरे-से कहा कि शायद! पीपल दादा पूछते हैं कि शायद का क्या मतलब है? बबूल का फूल बताता है कि दादाजी! वो मुझे बहुत प्यार से देखती है, वो अपने दरवाज़े पर बैठी मेरा इंतज़ार करती है; और मुझे देखकर मुस्कुराती भी है । इन सभी बातों से जाहिर है कि प्यार भी करती होगी।
अब पीपल दादा समझ गये कि मामला इक तरफ़ा है। इसलिए वो समझाते हैं कि देखो बेटा! यह तुम्हारी गलतफहमी भी हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है है कि वो तुम्हें किसी हमदर्दी के कारण देखती हो, और किसी दूसरे का इंतज़ार करती हो। जहाँ तक मुस्कुराने की बात है तो लोग व्यंग्य में भी मुस्कुराते हैं । इसलिए तुम अपने दिल में किसी तरह का वहम मत रखो , और पिछ्ली सभी घटनाओं को महज एक इत्तिफाक समझकर भूलने की कोशिश करो। यह सुनकर बबूल के फूल की दीवानगी आहत हुई । वह आगे बोला कि नहीं दादाजी! ऐसा कभी नहीं हो सकता । यदि जूही मेरे प्यार को ठुकरा भी देगी, तो भी मैं उसे अपनी ताकत से छीन लूँगा!
पीपल दादा विषयवस्तु की गम्भीरता को भाँपकर अपने रुख में नर्मी लाते हैं। वो बबूल के फूल को समझाते हैं कि बेटा! हम जानते हैं कि तुम अपने गर्म खून और कंटीले हथियारों का इस्तेमाल करके जूही को पा सकते हो। लेकिन यह तो कोई प्यार नहीं है । यह तो सरासर अपहरण है जो हम कतई स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि हमें यहाँ पर फूलों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है; और हम अपना यह कर्त्तव्य अपनी जान देकर भी निभायेंगे। इसके लिए भले ही हमें तुम्हारा भी सिर कलम करना पड़े !
अपने रुख में अचानक आई हुई इस कड़वाहट को नियंत्रित करते हुये पीपल दादा समझाते हैं कि बेटा! किसी खजाने को लूटना हमारा इतिहास नहीं है, बल्कि सुरक्षा ही हमारा इतिहास और वर्तमान है, और यही हमारा भविष्य भी होना चाहिये। तुम्हारा नया खून भी फर्ज के लिए गर्म होना चाहिये! इन काँटों या हथियारों का इस्तेमाल अपनी व्यक्तिगत समस्याओं की बजाय सुरक्षा और शांति के लिए ही होना चाहिये। देखो! हमारे ये फूल भी माली को कितना प्रेम करते हैं कि ये अपना सिर कटाकर भी माली के लिए रोटी की व्यवस्था करते हैं!
पीपल दादा जब बोलते-बोलते थक गये तो एक गहरी सी साँस लेते हुए फुसफुसाते हैं कि यदि जूही तैयार होती तो भी बात कुछ सोचने लायक थी। खैर! इस बेतुकी बात को यहीं समाप्त करो। अब पीपल दादा की राय जानने के बाद सभी बबूल गहरे अंधेरे में लौटकर भूखे पेट ही सो जाते हैं। सभी के पेट खाली ज़रूर थे लेकिन दिन भर की थकावट गहरी नींद के लिए काफी थी। उधर प्रेमी बबूल को नींद कैसे आ सकती थी! क्योंकि सवाल उसकी जिन्दगी का था। वो ख्यालों में पीपल दादा की सभी बातें बार बार याद कर रहा था। तब उसका मन पीपल दादा के इन अंतिम शब्दों पर ठहरता है कि यदि जूही तैयार होती तो..... और वह सारी रात उजाले के इंतज़ार में जागता रहा !
अगले दिन सुबह जब सूरज की लाल किरणें बरगद के पत्ते गिन रही थीं, और सभी पेड़ पौधे सो रहे थे। तब उसी सन्नाटे में प्रेमी बबूल ने अपनी डाली झुकाकर जूही से कुछ कहा तो जूही के मासूम चेहरे पर घमंड साफ दिख रहा था। यह स्पष्ट नहीं था कि ये अहंकार मांसल सौंदर्य का है या आर्थिक सम्पन्नता का है। बबूल के फूल द्वारा अपने प्यार का इज़हार करने पर वह झल्लाकर बोली थी कि मैं देवताओं और राजाओं की दुलारी हूँ तो तुम किसके? मेरे पास खुशबू की बेशुमार दौलत है तो तुम्हारे पास क्या है? और तो और, तुम्हें सीने से लगाने के बाद मुझे खून से नहाना होगा। अब जब मेल किसी चीज़ का नहीं है तो ज़िन्दगी का कैसे?
यह जवाब पाकर बबूल भली-भांति समझ गया कि उसके फूल जंगली फूल हैं ! जिनका कर्त्तव्य फूलों को केवल प्रेम करना है, न कि उन्हें पाने की आशा करना! इसी वजह आज भी बबूल अपने फूलों को पूरी तरह से खिलने से पहले ही छोड़ देता है, ताकि वह बड़े होकर फिर वही जिद न करें ! और इस तरह उसमें बचते हैं केवल काँटे, किसी बगीचे की बाड़ी बनने के लिए... फूलों की सुरक्षा के लिये !
@ धर्मेन्द्र तिजोरी वाले "आजाद"
तेन्दुखेड़ा, जिला- नरसिंहपुर (म प्र)
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