1.कविता- आज ही के दिन रतन लाल जाट आज ही के दिन हम मिले थे जब तुमने प्यार से कहा था लेकिन यकीन नहीं हुआ कि व...
1.कविता- आज ही के दिन
रतन लाल जाट
आज ही के दिन
हम मिले थे जब
तुमने प्यार से कहा था
लेकिन यकीन नहीं हुआ
कि वह तुम ही हो
या सपनों की कोई परी
पर दिल को देखो
यह हार गया
और सब मान लिया
कि तुम मेरे अपने हो
इसके बाद तो
मिलन बढ़ता गया
हर रोज होने लगा
कभी तुम आते
कभी मैं आ जाता
कभी नाराज होते
कभी हम हंसते
यह प्यार बढ़ता ही गया
देखो, कितना गहरा हो गया
जो शुरू हुआ था
आज ही के दिन
2.कविता- तुम ही
रतन लाल जाट
तुम मेरा जीवन हो
तुम मेरा आधार हो
तुम्हारे बिना कुछ नहीं हूं मैं
क्योंकि मेरा सब कुछ तुम हो
तुमसे ही सांसे हैं
तुमसे ही ख्वाब सारे
देखो, इस दिल में
तुम हमेशा हो
और हाँ आज भी
तुम ही हो
3.कविता- कवि तुम
रतन लाल जाट
अपने दुख पर कभी मत रोना
तुम औरों के दुख भी हरना
तब सत्य ही कहलाओगे कवि तुम
अपने के लिए तो पशु-पक्षी भी जीते
मानव अपना छोड़ पराये-हित जीते
और मानव को मानव बनाओगे कवि तुम
गीत ना गाना अपनी फूटी किस्मत के
ऐसा राग गुनगुनाना जो औरों की तकदीर बदल दे
तब खुदा की तरह खुदा कहलाओगे कवि तुम
जब आँसू गिरे तो अमृत बना देना
कभी खून तो कभी जल बना देना
इसलिए व्यर्थ ना जीवन गँवाओगे कवि तुम
सुख में भी बेचैनी है
दुख में भी खुशी है
जग को कुछ देकर जीओगे कवि तुम
कोई कुछ छुपाता है या छिपवाता
कवि छुपी कहानी को भी उजागर करता
अपने को भी कभी ना बख्शोगे कवि तुम
4.कविता- कितना अजब
रतन लाल जाट
खुशी उसकी हँसाती है हमको
गम उसका रूलाता है हमको
जीने से जीते है
मरने से मरते है
जड़ सूख गई है
तो फूल मुरझाना है
बात मालुम है सबको
दीपक से पतंग दूर ना जाता
चाँद से चातक रूठ ना जाता
सूरज से अलग किरण है क्या
परमात्मा से दूर आत्मा है कहाँ
हर कोई कहता है हर एक को
फिर भी बादल बिना बरसातें
पानी में आग जलती हम पाते
अँधेरे में आँखें बंदकर चल जाते
जीत नजदीक देख रूकते क्यों
कितना अजीब लगता है बोलो
5.कविता- शिक्षा पाकर
रतन लाल जाट
मैं पढ़-लिखकर नाम कमाऊं
दर-दर भटककर ना मर जाऊं
शिक्षा पाकर खुद दीप बनूँ
और हर जगह उजाला करूँ
कोरा ज्ञान है किस काम का
थोथा अभिमान है किस बात का
ज्ञान वही सार्थक है जो यथार्थ पर हो
मान वही है जिसमें अभिमान ना हो
खुद शूल पर चलके जहर पीना
औरों को शूल ना चुभे अमृत देना
हाँ, इसी में कुछ सार है
दुनिया बस निस्सार है
जन-हित सर्व-धर्म जानिए
स्वार्थ छोड़ परमार्थ साधिए
6.कविता- बेटी बनके
रतन लाल जाट
भैया के साथ मुझे भी जग में आना होगा
पापा, स्कूल मुझे भी हररोज जाना होगा
बेटी बनकर नाम तुम्हारा रोशन करना होगा
पुत्र से बढ़कर काम कोई बड़ा करना होगा
इतना ही नहीं, करुँगी संकट में रक्षा तुम्हारी
भाई आँसू देगा तो मैं चेहरे पर मुस्कान लाऊँगी
गम का नाम मिटाकर लाऊँगी हजारों खुशी
तांडव करने की जगह रचूँगी एक नयी सृष्टि
7.कविता- फिर से है जागना
रतन लाल जाट
आज हमको फिर से है जागना।
देश की सीमा पर मंडराये खतरा॥
जान की परवाह ना करना।
मौत को तुम गले से लगाना॥
मगर कभी आँच ना आ पाये।
भारत माँ की इस आन पे॥
सीना तान के करेंगे सामना।
आज हमको फिर से है जागना॥
वतन के खातिर मर मिटना भी।
हर किसी के नसीब लिखा नहीं॥
जो कोई आजादी की जंग में,
अपने प्राणों का बलिदान कर दे।
उसको जन्नत से भी आगे,
फिर यहीं जन्म मिलता है॥
जीते-जी कभी ना पीछे हटना।
आज हमको फिर से है जागना॥
आँखों से निकली है यह चिन्गारी।
काल बनकर बुलाती है माँ भारती॥
हिम्मत हो तो सामने आना।
हिन्दुस्तानी वीर से ना टकराना॥
खुद यम भी डरता है।
वीर ना कभी मरता है॥
यही एक है पहचान अपनी।
धरती पे नाम हिन्दुस्तानी॥
कभी ना थमें अपनी पताका।
आज हमको फिर से है जागना॥
8.कविता- सूरज भैया
रतन लाल जाट
देखो, सूरज भैया निकल आया।
पूरब दिशा में वो हँसता-हँसता॥
सारे दिन है थक जाता खड़ा-खड़ा।
फिर वो हँसते हुए पश्चिम में ढ़ल जाता॥
कभी ना वो रोता।
सबको खुशियाँ देता॥
नित करता है काम प्यारा।
दुःख में भी वो हँसता रहता॥
देखो, सूरज भैया निकल आया।
पूरब दिशा में वो हँसता-हँसता॥
जाते हुए हमको कह जाता।
विश्वास रखना, कल वापस मैं आऊँगा॥
अगले दिन वापस निकल आता,
समय से पहले ही सूरज भैया।
देखो, सूरज भैया निकल आया।
पूरब दिशा में वो हँसता-हँसता॥
सबका प्यारा वो कभी ना रूकता,
रात-दिन हरघड़ी चलता ही रहता॥
सीखा दो हमको भी राज अपना।
तेरी राहों पर चलते हुए कर जाये नया॥
देखो, सूरज भैया निकल आया।
पूरब दिशा में वो हँसता-हँसता॥
9.कविता- दोस्ती नाम है
रतन लाल जाट
दोस्ती नाम है, सबसे प्यारा यारों!
दो दिलों की जान है, यही समझो॥
दोस्ती दुनिया के गम सारे मिटा देती है।
ये कभी एक-दूजे को अकेला ना करती है॥
ना कोई रोता है, ना कोई झगड़ता।
बस, दोस्ती नाम एक रिश्ता है प्यारा॥
दिल की दोस्ती, सदा ही साथ रहती है देखो।
एक-दूजे के वास्ते, जान अपनी लुटाती है वो॥
किसी को हिम्मत नयी देती है दोस्ती।
मरते हुए को भी जीवन वो नया देती॥
दोस्ती में लोग, रोना देते छोड़।
आगे बढ़ करें खोज, भूल हर मोड़॥
दोस्ती कभी ना होती है पुरानी।
जन्मों तक है वो साथ निभाती॥
यही एक वो रिश्ता है।
जो बिन स्वार्थ बनता है।।
जिस पर नाज है दुनिया को,
वाह, क्या कमाल है देखो।
10.कविता- दोस्ती निभाना
रतन लाल जाट
दोस्ती निभाना
काम है आसान नहीं।
पहले-पहल होता झगड़ा
उसके बाद फिर दोस्ती॥
होले-होले दोस्ती के बंधन ये,
आपस की खींचातानी में मजबूती दे।
दोस्ती में टकरार है,
फिर भी एक विश्वास है।
दो दिलों में एक जान,
यही दोस्ती की पहचान॥
दोस्ती ना कुछ माँगती है।
बस, दिन-रात औरों को लुटाती है॥
इसकी अपनी खुशियाँ है नहीं।
बस, दोस्ती है सारी दुनियादारी॥
जुदाई का मौसम
या दुनिया का गम।
जन्मों के बंधन
या कोई हलचल॥
ना दोस्ती भूला सकते हैं।
हर कुर्बानी दोस्ती के नाम है॥
दुनिया में बस यही एक सच है।
वरना सारा संसार कोई जरूरत है॥
---
COMMENTS