1.कविता- कुछ और ऐसा अब तक आपने जो-जो कहा था लोगों ने वो पूरा मन लगाकर किया पूर्ण बहुमत से जोश-होश से आपकी बात मानकर बजाये थाली-घण्टी...
1.कविता- कुछ और ऐसा
अब तक आपने
जो-जो कहा था
लोगों ने वो
पूरा मन लगाकर किया
पूर्ण बहुमत से
जोश-होश से
आपकी बात मानकर
बजाये थाली-घण्टी आदि
पूरे जोर-शोर से
फिर एकदिन
दीपक-मोमबत्ती
जलाकर फैलायी
चारों ओर रोशनी
अंधेरी रात में
बहुत अच्छा लगा
सबके मन में
एक अलग ही आनन्द था
इसलिए अब आगे भी हो
कुछ और ऐसा
रोज नहीं तो
कम से कम महीने में
एकबार हमें कहना
गाय-पशु आदि की
सार-संभाल करने
और चारे-पानी को
तो कभी अपने घर-मोहल्ले की
साफ-सफाई के लिए
इसी तरह एकदिन
प्रेम से मिलना-जुलना
परिवार संग दिन बिताना
माँ-बाप की दुआ पाना
कभी किसी गरीब की
यथोचित सहायता करना
और गर्मी में
पक्षियों के लिए
परिंडे बंधवाना
तो कभी बरसात में
कहना होगा कि
हर एक व्यक्ति
अपने-अपने नाम का
लगाये एक पौधा
और सर्दी आये तो
जरूरतमन्दों को
बाँट दे घर में
यूं ही रखे ऊनी कपड़े
फिर देखना
धीरे-धीरे
कैसे देश अपना बदलेगा
खुशहाल हो जायेगा
हर जन को
अहसास सुख होगा
इसलिए आप हमें
याद दिलाते रहना
क्योंकि कोई चाहिए
राह दिखाने वाला
करने वालों की
कोई कमी नहीं हैं
आज भी कई लोग हैं
जो औरों के हित मरते हैं
जान की परवाह किये बिना
बस, आप तो कहो
कुछ और ऐसा
- रतन लाल जाट
2.कविता- लॉकडाउन में पहली बार
खत्म हो गये
झंझट कई सारे
लॉकडाउन में पहली बार
सोचा खुद अपने बारे में
और किया वो काम
जो मन भी में था
लॉकडाउन में पहली बार
जी-भरकर
खूब नींद निकाली
घर-परिवार संग
कई सारी बातें की
समय पर खाना खाया
हररोज आराम से नहाया
लॉकडाउन में पहली बार
कमरे में आयी धूप देखी
और रात को छिटकती
चाँदनी भी निहारी
लॉकडाउन में पहली बार
देखा दाना चुगते पक्षी को
फिर भरते हुए
उड़ान उनको
साथ ही देखा
उगते सूर्य का
वो मनोरम नजारा
और साँझ की
सुन्दर गोधूलि बेला
लॉकडाउन में पहली बार
सँजोया ख्वाब कोई
देखा सपना रात में भी
याद है वो अब भी
क्योंकि मुश्किल से
फुर्सत मिली है
लॉकडाउन में पहली बार
- रतन लाल जाट
3.कविता- प्रकृति-शक्ति
प्रकृति में है बड़ी शक्ति
छेड़छाड़ करो ना कभी
क्योंकि होती है सीमा सबकी
यदि जान-बूझ लांघता कोई
तब प्रकृति अशांत हो उठती
सब कुछ पुनः बदलती
इसलिए प्रकृति में संतुलन है जरूरी
चाहिए पेड़, पशु-पक्षी और कीट-पतंगे सभी
धूप के साथ छाया भी
सर्दी के बाद गर्मी-वर्षा भी
सुबह के बाद जरूरी है रात भी
फिर क्यों बदलना चाहते प्रकृति
एक समय के बाद कल्याणकारी
पलट कर हो जाता है नुकसानकारी
हवा जहर हो जाती
और हलाहल पानी
अन्न हर लेता जिंदगी
जमीन श्मशान बन जाती
इसलिए रहने दो जो है प्रकृति
- रतन लाल जाट
4.कविता- वह प्यार है
वासना में डूबकर
बाहर आ जाने के बाद भी
जो बाकी बच जाये
दिल में एक सफेद कागज की तरह
वह प्यार है
जब बार-बार मना करने पर भी
दिल में अगर आये ख्याल एक ही
तो समझ लें कि
वह प्यार है
जब बेवजह नजर
कई लोगों के बीच
अगर एक-दूसरे को ढूंढ ले तो
वह प्यार है
जब कसम खा जायें
जुदा होने की हजार बार
और अगले ही पल
सब कुछ भूलकर
मिलने को आ जायें तो
वह प्यार है
जब हर बंदिश छोटी लगे
दूरी बस नाम ही रह जाये
उस वक्त पूरी दुनिया में
दिखाई देता है
वह प्यार है
- रतन लाल जाट
5.कविता- तुमसे बात करके
मन में छायी उदासी थी
दिल में एक खामोशी थी
ना उमंग कोई बची थी
बस निराशा ही चारों ओर थी
उस दौर में एक हलचल हुई
जब याद मुझको तेरी आई
फिर देर किस बात की थी
मैंने ठान ली तुमसे बात करने की
और नसीब था कि बात हो गई
आसमां में छायी घटा बादल की
सहसा रिमझिम बरस होने लगी
हवाएँ मधुमास की गुनगुना उठी
मोर नाच उठे कोयल गाने लगी
चारों ओर छा गयी हरियाली
नदियाँ कलकल बहने लगी
- रतन लाल जाट
6.कविता- याद तो आ ही जाती है
जब सुनी-सी आवाज आती है
जाना-पहचाना चेहरा दिखता है
सुबह कोई सपना टूटता है
या लब्ज कोई सुनायी देता है
तब तुम्हारी याद बहुत आती है
चमकती आँखें में
होठों की मुस्कान से
चलने के अंदाज में
बोलने के लहजे से
तुम्हारी याद बहुत आती है
- रतन लाल जाट
7.कविता- दिल की दुनिया
सुबह से शाम तक
बड़ी भीड़ के मध्य
बहुत मुसीबत झेल
दिल में उसे याद रख
करना इंतजार और
मन ही मन
सोचना कई सवाल
करना अकेले ही बात
कि यह-यह कहना है आज
इसके बाद जब होता
कुछ क्षण का मिलना हमारा
तब जाकर ही सुकून मिलता
मानो एक बोझ उतर-सा गया
- रतन लाल जाट
8.कविता- क्या यह आसान है
उसने पलभर में फोटो फाड़ दिये थे
यहाँ तक की सारी चैट मिटा दी
और कहा कि मैंने तुम्हें छोड़ दिया है
पर बताओ तुम क्या यह आसान है
दिल में बसी यादों का एलबम
अनायास होठों पर आये लब्ज
धुंधलके में दीवार पर बना चित्र
सपने में आकर मिलता कोई शख्स
इन सबसे दूर जाना असंभव है
या कहें कि वो और आ जाते नजदीक है
- रतन लाल जाट
9.कविता- अपना
जब कोई मारने को दौड़े
तब बीच में आकर कूद पड़े
वो सच में अपना है
जो तमाशा नहीं देखता है
हर दुख में साथ अपने
खड़ा नजर आता है
क्योंकि दिल में उसके
अपना प्यार छुपा है
- रतन लाल जाट
10.कविता- मैं भी चाहता हूँ दौड़ लगाऊँ
देखता हूँ बच्चों को
बिना डर के
बेहिचक दौड़ लगाते
हवाओं से भी आगे
तब याद आती है
बचपन की
जब एक खिलौने में
सारे सपने सजते थे
छोटी सी बात पर
रोते हुए हँस देते थे
ना किसी बात की कमी थी
सब पर अपनी ही चलती थी
मन आये तब सोना-जागना
जी चाहे तब खाना-पीना
नहाते हुए नाचना-गाना
नाव कागज की चलाना
लकड़ी के रॉकेट उठाना
मन चाहे खेल खेलना
कभी चोर कभी सिपाही बनना
बहुत जी चाहता है
उस जीवन को पुनः जीना
- रतन लाल जाट
11.कविता- क्योंकि वह घर वाली है
पैरों की आहट से पहचाने
शक्ल देख सब कुछ जान जाये
बिना कहे ही चाय ले आये
और हाथ-पैर दबाने लग जाये
वो अपनी जीवन संगिनी है
आँखों की भाषा समझती जाती है
हर गिला-शिकवा भूला देती है
झगड़ा करके माफी माँगती है
रूठते ही मनाने लगती है
वो अपनी चिर-सहचरी है
- रतन लाल जाट
12.कविता- आखिर में
आखिर में इंसान को क्या चाहिए
न धन-दौलत न बंगला-गाड़ी चाहिए
उसे हर दुख-दर्द में कोई अपना चाहिए
न फेसबुक न व्हाट्सएप की मित्रता चाहिए
आखिर में इंसान को अपनत्व और प्रेम चाहिए
उसे हजारों लाइक कभी नहीं चाहिए
इसलिए इंसान को मुसीबत में साथ चाहिए
न उसे कभी झूठे वादे और ख्वाब चाहिए
- रतन लाल जाट
13.कविता- कहने-सुनने पर
कभी-कभी लोग
बिना किसी ठोस सबूत
एक-दूसरे की देखादेखी
बिना सोचे-समझे
कही-सुनी बात
अटल सत्य मान
करते हैं खूब
लेकिन जाते हैं भूल
इसकी वास्तविकता
तह तक पहुँचे बिना
हाँ में हाँ मिलाते हैं
या अपनी ओर से
कुछ और जोड़ भी देते
तो इस प्रकार सत्यता
दूर रह जाती है सदा
- रतन लाल जाट
14.कविता- अत्याधुनिकता के नाम
आज्ञा का उल्लंघन
अपनी मनमर्जी
न आगे-पीछे की सोच
केवल एक ही सनक
हम पुराने ख्यालों के नहीं
आधुनिक युग के हैं
हमें किसी की कुछ
कहने-सुनने की जरूरत नहीं
और नहीं दूसरोँ की
बकवास सुनने का समय
घर-परिवार एक जंजाल
रिश्ते-नाते स्वार्थ के बंधे
क्या है दया-प्रेम
रखो अपने काम-काम से काम
या मुँह में छुरी बगल में राम
इसी मंत्र का करो जप
तभी मिलेगी सफलता के साथ
अपार ख्याति और पहचान
- रतन लाल जाट
15.कविता- लड़कियों के बारे में
उसे पता ही नहीं था
कब का विवाह हो गया
पढ़ना चाहती थी
पर एक ना चली
लोक-लाज और समाज के आगे
पढ़ाई छोड़ दी
सारे सपने भूला दिये
जैसे वो कुछ नहीं है
केवल दूसरों के लिए
एक मशीन के
जब चाहो तब काम लो
ज्यादा कुछ कहे
तो डरा-धमका दो
कुछ नहीं कर पायेगी
ज्यादा करेगी तो
जान से जायेगी
इक्कीसवीं सदी में भी
एक लड़की की यही कहानी
- रतन लाल जाट
16.कविता- एक ही सोच है
लड़की नाम सुनते ही
सबकी सोच बदल जाती
नौकरी-पेशा नाम से ही
होती है नफरत भारी
और जब देख ले कहीं
किसी ओर देखते भी
तो लगता है गुनाह ही
चाहे उसे कुछ नहीं मालूम
पर लोगों की नजर में है नामाकूल
वह बन जाती
कुलक्षणी और अपराधी
हर जगह होती बदनामी
चाहे कुछ भी नहीं की गलती
- रतन लाल जाट
17.कविता- खोखलापन
लोगों को नहीं सुहाता
कोई जीवन में आगे बढ़ता
प्रेम से घर-परिवार कैसे चल रहा
और क्यों सुख-चैन से रोटी खा रहा
यह सब कुछ अपने पास क्यों नहीं
इसकी भी कुछ करते हैं फिक्र नहीं
और कहाँ है फुर्सत अपने बारे में
कि हम भी कुछ सोचें और विचारेँ
पर दुसरों के सुख से दुखी हैं
अपने दुख की नहीं चिंता है
- रतन लाल जाट
18.कविता- अनजान अभिभावक
शिक्षक समाज की नजर में
बैठे-बैठे तनख्वाह ही लेते हैं
और करते कुछ नहीं हैं
बस स्कूल जाते और लौट आते
अभिभावक कभी नहीं पूछते
अपने बच्चों के बारे में
मानो उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं हैं
चाहे बच्चे कुछ काम करे
शिक्षक से अनजान अभिभावक है
जो समझते शिक्षक की ही सब ड्यूटी है
ज्यादा होशियारी करेंगे
तो ट्रांसफर पक्का क्योंकि सत्ता अपनी है
इससे ज्यादा कुछ नहीं सोचते
- रतन लाल जाट
19.कविता- पाँच साल में एकबार ही
बिना किसी आत्मियता के
केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए
लोगों का परस्पर गले लगना
हाथ मिलाकर चलना
मुँह पर झूठी हाँ
पीठ पीछे वार करना
पता नहीं चलता है कि
किसके मन में क्या है
कौन अपना हमारा है
क्योंकि दिल की जगह
केवल दिमाग है
परिवार से ऊपर
कोई स्वार्थ है
कोई नहीं गँवाना
चाहता है अवसर
यह पाँच साल में
एक बार ही आता है
- रतन लाल जाट
20.कविता- गरीबी
गरीब की इज्जत
जूती बराबर
और बहू-बेटी
जोरू अपनी
जब चाहे
उसे मारे
खूब चिल्लाये
कोई ना सुने
कहीं नहीं
चलती है
क्योंकि पहचान
गरीबी है
थानेदार कहता कि
औरत को भेज दे
मुखिया कहता
मकान बेच दे
या साहूकार को
जमीन गिरवी रख दे
बेचारे की कहाँ चलती है
रोजी-रोटी की मजबूरी है
सब कुछ सहना पड़ता है
जान-बुझ कर अंधा बनता है
- रतन लाल जाट
21.कविता- रिश्ते को रिश्ता ही बना रहने दीजिये
रिश्ते को रिश्ता ही बना रहने दीजिये।
रिश्तों में कभी आग ना लगने दीजिये॥
माँ-बाप को रूप भगवान का मानिये।
और भाई-बहन को अपना ही जानिये॥
यारों को यार ही रहने दो।
यारी में जहर ना घोलो॥
जिसने भी तोड़ा रिश्तों को।
कभी ना जुड़ पाया फिर वो॥
पति-पत्नी एक-दूजे से बंधे हैं।
दाम्पत्य-प्रेम वो कभी ना टूटें॥
जिसने भी कोशिश की, बगिया उजाड़ने की।
उसके पहले ही चुभने लगे काँटे उसको कई॥
रावण और बाली ने भी तोड़े रिश्ते।
जो नासूर बनकर ही अंत उनका बनें॥
राम ने बहुत मर्यादा से निभाये रिश्ते सारे।
इसीलिए वो मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये॥
रिश्तों से ही अपनी एक पहचान है।
वरना फिर क्या हम इन्सान है॥
- रतन लाल जाट
22.कविता- अपने देश में
अपने देश में दर-दर भटकते लाचार-बेचारों को।
देखा है मैंने कई जगह पर तड़पते हुए उनको॥
कोई हार जाता है दो जून की रोटी जुटाने को।
रोते हैं बच्चे टूटे हुए एक खिलौना जोड़ने को॥
दूसरी तरफ कई रंगीन तस्वीरें हैं।
जो अपने को अमीर मान बैठे हैं॥
नहीं है खबर दिन और रात की उनको।
ऐशो-आराम में लुटा देते हैं हजारों॥
एक तरफ कोई सुन्दर बाला, अपनी किस्मत को रोती है।
कौन पूछता है आज कला, दिल में ही वो घुटती है॥
हर रोज बीमारी से मर जाते, बेचारों का हाथ तंगी है।
किसी के घर जन्म हो, तो भी होता उनको गम है॥
और कोई खर्च करने को,
दिन-रात हैं चिंता में वो……….
इक्के-दूक्के लोगों के गगन छूती हैं इमारतें।
जो मुफ्त हराम के पैसे से बनी हुई हैं॥
किस्मत के मारे देखो उनको, जो फूटपाथ पर भी ना बस पाते हैं।
आजादी के सपने लगने लगे हैं, कोरी-कल्पना हो कोई जैसे॥
अब कौन गाँधी है? कहाँ आजाद-भगत वो,
हर तरफ गद्दारों को ही तुम देखो………
फूल-बगिया में जी-जीके, ऊब गये हैं तन-मन उनके।
काँटों पर चलते-चलते, हार गये हैं कई जिन्दगी से॥
दिन में भी सूरज छिपता-सा नजर आता है।
काली-आधी रात में भी कोई चाँद उगाता है॥
भारत माता रोती हुई सिसक रही हैं क्यों?
भूख-प्यास की तड़प से पहले जुर्म लाखों………
दिल में कटार-सी चुभती है, आँखें भीगी ही रहती है।
माँगता हूँ अब तलवार मैं, पाप की बलि चढ़नी है॥
हरियाली पर कालिख जम गयी है।
पावन गंगा अब कीचड़ बन गयी है॥
फिर भी नहीं हैं फिक्र किसी को,
सब अपना-अपना स्वार्थ साधे जो………
- रतन लाल जाट
23.कविता- कुदरत का खेल
कुदरत का खेल देखो, कितना अनोखा है?
हँसती आँखों में क्यों? आँसू देता है॥
कोई जुदा तन से हो, फिर भी दिल में तो रहता है।
चाहे-अनचाहे हमको, सबसे ही बिछुड़ना होता है॥
इसी का नाम ही तो जिन्दगानी है।
जिसमें सुख-दुख दोनों राजा-रानी है॥
अगर नसीब में सुख ही सुख हो, तो नहीं जीवन रसमय लगता है।
और दुख ही दुख में गुजारा हो, तो निश्चित ही सफर थमना है॥
एक-दूजे के बीच कौन है? जो नहीं मिलने देता।
जुदा उसको भी होना है, आज नहीं तो कल होगा॥
कभी हार मान लेते हैं जीत को भी हम।
सोचे बिना भी कुछ कर बैठते हैं हम॥
अपनों में भी लगने लगते हैं पराये हम।
कभी परायों को समझ लेते हैं अपना हम॥
बसंत ना हो, फिर भी रंग उड़ाते-फिरते।
रूत बदल जाये तो, दिल महक उठता है॥
- रतन लाल जाट
24.कविता- मेरा प्यारा हिन्दुस्तान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
गाँवों में है इसकी जान।
जहाँ चारो ओर हरियाली है लहराती।
हर दिल में है खुशहाली ये मतवाली॥
इस देश की शान निराली है।
इस देश की बात दिवानी है॥
आज यह कबुल
करता है सारा संसार।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
गाँवों में है इसकी जान।
लोग आपस में मिलजुलकर,
सुख-दुख जीते साथ रहकर।
नहीं धर्म की टकरार यहाँ,
नहीं होती है पाप और हिंसा।
वतन के दिल में साँच बसा है।
दया-करूणा का पल-पल डेरा है॥
देखकर शैतान भी
बन जाता है इंसान।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
गाँवों में है इसकी जान।
यह धरती जहाँ रंग-बिरंगे मौसम।
देखो, यहाँ पर नित बरसते सावन॥
हरदिन यहाँ कोई न कोई
मनाया जाता है तीज-त्योहार।
होली-दिवाली संग कहीं शादी
कहीं मेलों में उमड़े सैलाब॥
सारी दुनिया की जैसे
भारत लगता है शान।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
गाँवों में है इसकी जान।
उस विधाता ने जगत्-निर्माण किया।
इस भारत माँ को गुलशन बनाया॥
आते हैं दूर-दूर से उड़ करके कई मधुप यहाँ।
अमृत-सा मधु-पान करके भर जाता दिल उनका॥
नहीं मिलेगा कहीं बाग ऐसा
चाहे जाकर आओ स्वर्ग जहाँ
यहाँ खुद देवता भी
सदा करते हैं निवास।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
गाँवों में है इसकी जान।
गाँव की हर एक गली अपनी है।
यहाँ हर बाला बहिन लगती है॥
अनजान भी लगता है,
हमको जी-जान से प्यारा।
गरीब के खातिर कर देते हैं,
धन-दान सारा॥
दूर से दूर भी आकर, नदियाँ यहाँ मिल जाती।
मदमस्त हवा लाकर, पंछी जहाँ खूब उड़ाती॥
खुद से भी प्यारा लगता है
वतन का ये नाम।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
गाँवों में है इसकी जान।
- रतन लाल जाट
25.कविता- “सीखो एक फौजी से”
सीखो एक फौजी से
इस धरती माँ का प्यार है कितना?
वो हर एक हिन्दुस्तानी से
भाईचारा अपना जो रखता॥
सरहद पर मरते वक्त,
भूल जाते हैं अपने स्वार्थ।
याद रहता है उनको बस,
करना है अपना बाकी कर्म॥
और ना कोई शेष उनका है सपना।
सीखो एक फौजी से……………॥
निभाना है आज वचन,
जो हमनें खायी हैं कसमें।
अपने देश के खातिर,
जी-जान अपनी लगा दें॥
कोई हँसते हुए सीने पर गोली खाता।
तो कोई मुस्कुराके दुनिया छोड़ जाता॥
सीखो एक फौजी से……………॥
सारे वतन को अपना मानें।
कभी ना आपस में वो भेद रखें॥
साथ वो जीते-मरते, भाई और दोस्त बनके।
माँ की रक्षा में बेटों ने है बलिदान किया।
सीखो एक फौजी से……………॥
हम सबकी माँ एक है।
भारत तो अपनी शान है॥
हमको मिलता है यहाँ,
सुख-चैन भरा जीवन मिलता है प्यारा।
सीखो एक फौजी से……………॥
- रतन लाल जाट
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