हरिशंकरी : पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व -डॉ दीपक कोहली-

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हरिशंकरी : पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व -डॉ दीपक कोहली- हरिशंकरी, जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि हरि अर्थात भगवान विष्णु एवं शंकर अर्थात भगवान ...

हरिशंकरी : पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व

-डॉ दीपक कोहली-

हरिशंकरी, जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि हरि अर्थात भगवान विष्णु एवं शंकर अर्थात भगवान शिव, की छायावाली। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू मान्यता में पीपल को श्री विष्णु व बरगद को श्री भोले शंकर का स्वरूप माना जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार पार्वती जी के श्राप वश विष्णु-पीपल, शंकर-बरगद व ब्रहमा-पाकड़ वृक्ष बन गये। इसीलिए पीपल, बरगद व पाकड़ के सम्मिलित रोपण को ‘हरिशंकरी‘ कहते हैं। हरिशंकरी की स्थापना एक परम पुण्य व श्रेष्ठ परोपकारी कार्य है। हरिशंकरी के तीनों वृक्षों अर्थात पीपल, बरगद और पाकड़ को एक ही स्थान पर इस प्रकार रोपित किया जाता है कि तीनों वृक्षों का संयुक्त छत्र विकसित हो व तीनों वृक्षों के तने विकसित होने पर एक तने के रूप में दृष्टिगोचर हों। हरिशंकरी का रोपण वैसे तो पूरे भारतवर्ष में किया जाता है किन्तु उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, मऊ व आसपास के जनपदों में विशेष रूप से किया जाता है।

हरिशंकरी के तीन वृक्षों में प्रथम है पीपल। पीपल को संस्कृत में पिप्पल (अर्थात इसमें जल है), बोधिद्रुम (बोधि प्रदान करने वाला वृक्ष), चलदल (लगातार हिलने वाली पत्तियों वाला), कुन्जराशन (हाथी का भोजन), अच्युतावास (भगवान विष्णु का निवास), पवित्रक (पवित्र करने वाला), अश्वत्थ (यज्ञ की अग्नि का निवास स्थल) तथा वैज्ञानिक भाषा में फाइकस रिलिजिओसा कहते हैं, जो मोरेसी कुल का सदस्य है।

यह सर्वाधिक ऑक्सीजन प्रदान करने वाला वृक्ष है। चिड़िया इसके फलों को खाकर जहां मल त्याग करती हैं वहां थोड़ी सी नमी प्राप्त होने पर यह अंकुरित होकर जीवन संघर्ष करता है। दूर-दूर तक जड़ें फैलाकर जल प्राप्त कर लेना इसकी ऐसी दुर्लभ विशेषता है जिसके कारण इसका नाम संस्कृत में पिप्पल (अर्थात इसमें जल है), रखा गया है। वैज्ञानिक भी इसे पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक महत्व का वृक्ष मानते हैं। औषधीय दृष्टि से पीपल शीतल, रूक्ष, वर्ण को उत्तम बनाने वाला तथा पित्र, कफ एवं रक्तविकार को दूर करने वाला है।

इस वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ (अश्वत्थः सर्व वृक्षाणाम)। इस वृक्ष के रोपण, सिंचन, परिक्रिमा, नमन-पूजन करने से हर तरह से कल्याण होता है और सभी दुर्भाग्यों का नाश होता है। जलाशयों के किनारे इस वृक्ष के रोपण का विशेष पुण्य बताया गया है, (इसकी पत्तियों में चूना अधिक मात्रा में होता है जो जल को शुद्ध करता है)। ध्यान करने के लिए पीपल की छाया सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, रामचरितमानस में वर्णन है कि काकभुशुण्डि जो पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे (पीपर तरू तर ध्यान जो धरई)। वृक्षायुर्वेद के अनुसार, ‘जो व्यक्ति विधि पूर्वक पीपल वृक्ष का रोपण करता है, वह चाहे जहाँ भी हो, भगवान विष्णु के लोक को जाता है।‘

इसी कड़ी में दूसरा वृक्ष है बरगद। इसे संस्कृत में वट (घेरने वाला), न्यग्रोध (घेरते हुए बढ़ने वाला), बहुपाद, रोहिण व यज्ञावास कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे बैनयन ट्री तथा वनस्पति विज्ञान की भाषा में फाइकस बेन्गालेन्सिस कहते हैं, जो कि मोरेसी कुल का सदस्य है।

यह सदाहरित विशालकाय छाया वृक्ष है, जो पूरे भारत में पया जाता है। इसकी शाखाओं से जड़ें निकल कर लटकती हैं जो जमीन में प्रवेश करने के बाद अपनी शाखा को अपने माध्यम से पोषण व आधार प्रदान करने लगती है। इस प्रकार बरगद का वृक्ष अपना विस्तार बढ़ाता जाता है। इसी कारण यह अक्षयकाल तक जीवित रहने की क्षमता रखता है। अतः अत्यधिक पुराने बरगद वृक्षों को प्राचीन काल में अक्षय वट कहा जाता था। इसकी छाया घनी होती है।

इसके फलो को मानव व पशु-पक्षी खाते हैं, जो शीत व पौष्टिक गुणयुक्त होते हैं। इसके दुग्धस्राव को कमरदर्द, जोड़ों के दर्द, सड़े हुए दांत का दर्द, बरसात में होने वाली फोड़े-फुन्सियों पर लगाने से लाभ मिलता है। इसकी छाल का काढ़ा बहुमूत्र में तथा फल मधुमेह में लाभप्रद है।

इस वृक्ष में भगवान शंकर का निवास माना जाता है। कथा सुनने के लिए इस वृक्ष की छाया उत्तम मानी जाती है। वटवृक्ष के विस्तार करने की अदम्य क्षमता व अक्षयकाल तक जीवित रहने की सम्भावना इसे पूज्य बनाती है। कहा जाता है कि सीता जी ने वनवास की यात्रा में बरगद के वृक्ष की पूजा की थी।

वट सावित्री व्रत पति की लम्बी आयु के लिए ज्येष्ठ अमावस्या को महिलाओं द्वारा किया जाता है। वृक्षायुर्वेद के अनुसार घर के पूरब में स्थित बरगद वृक्ष सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है।

बरगद का वृक्ष भारत का राष्ट्रीय वृक्ष भी है। यह अत्यंत पवित्र वृक्ष माना जाता है एवं इसके नीचे मंदिर भी बनाये जाते हैं। इसके बढ़े आकार के कारण यह अत्यंत छायादार वृक्ष भी है। भारत में बरगद के दो सबसे बड़े पेड़ कोलकाता के राजकीय उपवन में और महाराष्ट्र के सतारा उपवन में हैं। आज भी बरगद के वृक्ष को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिंदु माना जाता है और आज भी गांव की पंचायत इसी पेड़ की छाया में सम्पन्न होती है।

हरिशंकरी का तीसरा वृक्ष पाकड़ है। पाकड़ को संस्कृत में प्लक्ष (नीचे जाने वाला), पर्कटी (सम्पर्क वाली), पर्करी, जटी कहते हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा में इसे फाइकस इनफेक्टोरिया कहते हैं जो कि मोरेसी कुल का सदस्य है।

यह लगभग सदा हरा भरा रहने वाला वृक्ष है जो शीत ऋतु के अंत में थोड़े समय के लिए पतझड़ में रहता है। इसका छत्र काफी फैला हुआ और घना होता है। इसकी शाखायें जमीन के समानान्तर काफी नीचे तक आ जाती हैं। जिससे घनी शीतल छाया का आनन्द बहुत करीब से मिलता है। इसकी विशेषता के कारण इसे प्लक्ष या पर्कटी कहा गया जो हिन्दी में बिगड़कर क्रमशः पिलखन व पाकड़ हो गया। यह बहुत तेज बढ़कर जल्दी छाया प्रदान करता है। शाखाओं या तने पर जटा मूल चिपकी या लटकी रहती है। फल मई-जून तक पकते हैं व वृक्ष पर काफी समय तक बने रहते हैं। गूलर की तुलना में इसके पत्ते अधिक गाढ़े रंग के होते हैं जो सहसा काले प्रतीत होते हैं। जिसके कारण इस वृक्ष के नीचे अपेक्षाकृत अधिक अंधेरा प्रतीत होता है।

यह घनी और कम ऊँचाई पर छाया प्रदान करने के कारण सड़कों के किनारे विशेष रूप से लगाया जाता है। इसकी शाखाओं को काटकर रोपित करने से वृक्ष तैयार हो जाता है। औषधीय दृष्टि से यह शीतल एवं दाह, पित्त, कफ, रक्त विकार को दूर करने वाला है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार नौ द्वीपों में एक द्वीप का नाम प्लक्ष द्वीप है जिस पर पाकड़ का वृक्ष है। मान्यता के अनुसार पाकड़ वनस्पति जगत का अधिपति व नायक है और याज्ञिक कार्यों हेतु श्रेष्ठ छाया वृक्ष है। नारद पुराण के अनुसार ब्रह्रमा जी ने विश्व में साम्राज्यों का बंटवारा करते समय पाकड़ को वनस्पतियों का राजा नियुक्त किया। वृक्षायुर्वेद के अनुसार घर के उत्तर में पाकड़ का वृक्ष लगाना शुभ होता है।

इस प्रकार हरिशंकरी के तीनों वृक्षों पीपल, बदगद व पाकड़ का अत्यन्त ही महत्व है। हरिशंकरी में तमाम पशु-पक्षियों व जीव-जन्तुओं को आश्रय व खाने को फल मिलते हैं। इस प्रकार हरिशंकरी के रोपण से इन जीव-जन्तुओं का आशीर्वाद मिलता है, इस पुण्यफल की बराबरी कोई भी दान नहीं कर सकता।

हरिशंकरी कभी भी पूर्ण पूर्णरहित नहीं होती है, वर्षभर इसके नीचे छाया बने रहने से पथिकों, विश्रान्तों एवं साधकों को छाया मिलती है। इसी की छाया में दिव्य औषधीय गुण व पवित्र आध्यात्मिक प्रवाह निसृत होते रहते हैं, जो इसके नीचे बैठने वाले को पवित्रता, पुष्टता और ऊर्जा प्रदान करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता संरक्षण की दृष्टि से पीपल, बरगद व पाकड़ सर्वश्रेष्ठ प्रजातियां मानी जाती हैं। हरिशंकरी का रोपण हर प्रकार से महत्वपूर्ण एवं पुण्यदायक कार्य है। इसे धर्म स्थलों, विश्राम स्थलों पर रोपित करना चाहिए। हमें इसके पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व के सम्बन्ध में सभी को विशेषकर बच्चों को बताना चाहिए ताकि हमारी यह धरोहर अनन्तकाल तक बनी रहे और इसके लाभ प्राप्त करती रहे।

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लेखक परिचय

*नाम - डॉ दीपक कोहली

*जन्मतिथि - 17 जून, 1969

*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )

*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।

*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।

*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )

*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।

*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।

*पुरस्कार-

1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994

2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005

3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015

4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014

5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015

6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016

7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016

8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017

9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018

10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018

11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019

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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )

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रचनाकार: हरिशंकरी : पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व -डॉ दीपक कोहली-
हरिशंकरी : पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व -डॉ दीपक कोहली-
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