(रमेशराज) ।। एक अच्छे बाल साहित्यकार भी हैं रमेशराज।। +निश्चल ---------------------------------- रमेशराज जी से मेरा कोई बहुत पुराना या लम्बा...
(रमेशराज)
।। एक अच्छे बाल साहित्यकार भी हैं रमेशराज।।
+निश्चल
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रमेशराज जी से मेरा कोई बहुत पुराना या लम्बा परिचय नहीं है। लेकिन जितना भी परिचय है उसमें, उन्हें और जानने-समझने की जरूरत होती है। वे सामान्य वेश-भूषा वाले असाधारण व्यक्तित्व हैं। आप जब सासनीगेट के ईसानगर में, संकरी-सी गली में दुकानदारी करते देखेंगे तो आपको आश्चर्य ही होगा कि यह व्यक्ति इतने शोरगुल-व्यवधान में दूकानदारी के बीच भी इतना शांत रहकर साहित्य की साधना में रत है। आज जहाँ लोग बहुत बढ़िया स्टडीरूम बनवाकर और शानदार ऑफिसनुमा कमरे में बैठकर घंटों बर्बाद कर ढंग की एक रचना नहीं कर पाते, ऐसे में रमेशराज जी इन सब विषमताओं में अनेकानेक रचनाओं को यों ही रच डालते हैं।
आप जब रमेशराज जी के पास जाते हैं तो उन्हें कई तरह से जानने का अवसर मिलता है। जब उनसे किसी विषय पर बात की जाये तो वे उस विषय को पूरी तरह से खंगाल देते हैं। चाहे साहित्य हो, राजनीति हो, क्रिकेट हो, सामाजिक विषय हो, इतिहास हो या और भी कुछ, उन्हें हर तरह का ज्ञान है, और उसके प्रति अपनी सटीक व स्पष्ट सोच भी है। रमेशराज जी को यूं तो मैं नाम से और कभी-कभार की मुलाकातों के आलावा ज्यादा नहीं जानता था। और इन सब मुलाकातों में मेरे मन में केवल यह छवि थी कि जैसे बहुत से कवि हैं, ऐसे ही एक कवि रमेशराज भी हैं। लेकिन ऐसा नहीं था। वो ऐसे आकाश हैं, जिसको जितना देखो, उतना ही विस्तृत-विशाल हो सकता है कि कुछ पाठकों को ऐसा लगे कि मै उनकी केवल तारीफ कर रहा हूँ। बल्कि ऐसा नहीं है, आप जब तक रमेशराज जी के साथ कुछ समय अनौपचारिक रूप से नहीं बिताएंगे, तब तक हो सकता है, ऐसा लगे।
मैं बाल-रचनाकारों की पत्रिका ‘ अभिनव बालमन ‘ की प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली कार्यशाला के लिए किसी स्थायी रूप से सन्दर्भदाता की तलाश कर रहा था। ऐसे में रमेशराज जी को जब पत्रिका देने गया तो उनसे कुछ बातें हुईं। बातों ही बातों में बात ग़ज़ल पर आ गयी। क्यों कि मैं ग़ज़ल के बारे में बहुत से लोगों से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता रहा था सो मैंने भी इसके बारे में बात की। धीरे-धीरे रमेशराज जी की कुछ परतें मेरे सामने खुलीं और मुझे लगने लगा कि यह सज्जन मुझे जो चाहिए वो बता सकते हैं। इस तरह मेरा स्वाभाविक रूप से उनकी ओर रुझान हुआ। इसी दौरान मैंने उनसे कार्यशाला में कविता के लिए सन्दर्भदाता के रूप में उन्हें आने का आमन्त्रण दिया। सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि ये काम है तो मुश्किल, लेकिन करूंगा। इसके बाद उनसे मुलाकातें होती रहीं और वे ‘ अभिमन बालमन ‘ द्वारा आयोजित कार्यशाला सृजन-12 में अपनी गठिया की बीमारी और तेज गर्मी जिसमें 44 से 45 तक तापमान रहा, के बावजूद नियमित रूप से आये और बाल रचनाकारों को कविता की बारीकियां सिखायीं।
कार्यशाला के बाद जब मैं थोड़ा जिम्मेदारियों से हल्का हुआ, तो अपनी रचनाओं की छायाप्रति लेकर उनके पास जा पहुंचा। रचनाओं का पुलिंदा मैं उनके पास छोडकर आ गया। एक दिन बाद उनका फोन आया कि भाई रचनाएँ परमार्जित करने का समय साथ बैठें तो बेहतर होगा। मैं तो जैसे यह चाह ही रहा था तो मैंने झट से हाँ कर दी। अब तो रमेशराज जी के साथ तीन-चार घंटे बैठकर चर्चा करने का , समझने, सीखने का अवसर मिलने लगा। मैं संतुष्ट था कि मुझे जिसकी तलाश थी, मैं उसे पा चुका था।
इन चर्चाओं के दौरान रमेशराज के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानने को तो मिला ही, साथ ही साहित्य की विविध विधाओं के बारे में ईमानदारी से जानने और सीखने को मिला। इसतरह रोज की चर्चाओं और मार्गदर्शन के साथ जहाँ मेरी रचनाएँ परिष्कृत हो रहीं थीं, वहीं मैं भी अपने आप को परिष्कृत पा रहा था। रमेशराज जी की छंद पर जो पकड़ है और केवल पकड़ ही नहीं, जिस प्रकार से वे सामने वाले को समझाते हैं, उससे भी महत्वपूर्ण कि उसे संतुष्ट करते हैं, वो अपने आप में अभिनव है। वे जब रचनाओं पर अपने विचार देते हैं तो एक अच्छे सर्जन की तरह उसके खराब अंगों को न केवल निकाल देते है और उसके मूल स्वरूप को भी विकृत नहीं होने देते। वे आपको उपदेश नहीं देते, बल्कि आपके साथ में कलम लेकर साथ-साथ आपकी भावनाओं को महसूस कर, जैसा आप चाहते हैं, उसको सटीक ढंग से ठीक करने का माद्दा रखते हैं। इसी के साथ वे अपने ज्ञान को किसी पर लादते नहीं। बल्कि सहज भाव से वे आपको और आप उनको उनके विचारों को स्वीकार करते हैं। वे आत्म-प्रशंसा करने या करवाने वालों में से नहीं हैं, बल्कि हर सही बात को प्रखरता से रखते हैं। उनके साथ और रचना परिष्कार कराने के बाद आप यह महसूस करते हैं कि अब कोई भी इस रचना में दोष नहीं निकाल सकता। लेकिन इस सबके बावजूद वे सहज भाव से कहते हैं कि हो सकता है कुछ गड़बड़ी रह गयी हो।
अपनी दूकान की प्रमुख व्यस्तताओं के अलावा वे दैनिक जागरण समाचार पत्र के चण्डीगढ़ संस्करण के लिए भी लेख लिखा करते हैं। उनकी निर्लिप्तता देखिए कि वे तमाम लेख जिनका कि उनको बाकायदा मानदेय मिलता है, के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने प्रकाशित लेख वाला दैनिक जागरण मंगाकर संग्रह करने की कोशिश नहीं की। जबकि आजकल तो लोग अख़बार में नाम आने भर से उसकी कटिंग हाईलाइट करके अपने पास सुरक्षित कर लेते हैं।
इस सबके साथ ही रमेशराज जी केवल अभ्यास ही नहीं करते वरन वे चिन्तन और शोध कर नयी बातें खोजते हैं। यह सब तर्क की कसौटी पर सम्पन्न होता है। तभी तो रसों के विविध रूपों का विश्लेषण करने के बाद उन्होंने एक नये रस-‘विरोधरस ’ की स्थापना की है।
काव्य की विविध विधाओं पर आपका पूरा अधिकार है। यही नहीं आपने कुंडलिया, तेवरी, ग़ज़ल, दोहे आदि में नये-नये दुष्कर प्रयोग किये हैं। रमेशराज जी की एक खासियत यह और है कि वे अपनी रचनाओं में हिंदी के ही शब्दों का अधिकतर प्रयोग करते हैं। जहाँ आज कोई साहित्यकार आवश्यक हो न हो अन्य भाषाओँ के शब्दों का प्रयोग करते हैं, ऐसे में रमेशराज जी बड़ी सरलता और सहजता से हिंदी के शब्द सटीक ढंग से अपनी रचनाओं में पिरो देते हैं। उनकी यह खूबी उनके पास आने वालों को एक प्रमाण देती है कि अपनी भाषा में जब पर्याप्त शब्द-भंडार है तो कहीं और भटकने की आवश्यकता क्या है
रमेशराज जी उन कार्यों को करने में आनन्द लेते हैं या ये कहा जाये कि जोखिम उठाते हैं, जिनको करने में शायद ही कोई लाभ प्राप्त हो। बाल रचनाकारों की पत्रिका ‘ अभिनव बालमन ‘ में हम बाल रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित करते हैं। ऐसे में एक समस्या यह आती है कि कक्षा 6 या उससे ऊपर की कक्षाओं के बच्चों को यदि कहा जाये कि आप कविता की रचना करो तो वे किस प्रकार अपने भावों को कविता में पिरोयें ? ऐसे में रमेशराज जी से चर्चा हुयी और मैंने उनसे कहा कि ‘क्यों न आप बच्चों को कविता लिखने के गुर सिखाएं ?’ उन्होंने सहज भाव से इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। जब उन्होंने पहली किश्त लिखी तो बोले-‘ वास्तव में यह कठिन कार्य है कि बच्चे के स्तर पर जाकर उसे यह सिखलाया जाये कि कविता की रचना कैसे की जा सकती है ?’ तब मैंने कहा कि ‘ यह काम केवल आप ही कर सकते हैं। वरना तो लोग यह सोचते हैं कि इतनी माथा-पच्ची इसके लिए करेंगे, उतनी देर में तो जाने कितनी रचनाएँ रचकर अपना भंडार बढ़ाएंगे और पुरस्कार की लाइन में जुगाड़ लगायेंगे।’ यहाँ एक बात और जोड़ना चाहूँगा कि जिस प्रकार स्वयं पढ़ना आसान है, अपेक्षाकृत किसी और को पढ़ाने के, ऐसे ही कविता रचने से अधिक किसी बच्चे को सिखाना दुष्कर है कि कविता किस प्रकार रची जा सकती है। क्योंकि यह कार्य केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो न केवल बच्चों जैसा मन रखता हो बल्कि आचार्य जैसा ज्ञान भी रखता हो। इसी के साथ रमेशराज जी की नियमितता और तत्परता देखिये कि आज इस ‘ आओ बच्चो कविता सीखें ‘ स्तम्भ की पांच किश्तें प्रकाशित हो चुकी हैं और न जाने कितने बाल रचनाकार इस स्तम्भ से लाभान्वित हो रहे हैं। इस सबके पीछे एक बात और द्रष्टव्य है कि रमेशराज जी ऐसा इसलिए भी कर पाते हैं कि वे स्वयं भी एक अच्छे और चर्चित बाल रचनाकार हैं।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि लोग जब बाल साहित्य के बारे में ढंग से जानते भी नहीं थे, तब वे न केवल बाल कविताएँ रचा करते थे बल्कि उस समय की स्थापित बाल एवं अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रमुखता के साथ वे प्रकाशित भी हुआ करते थे। उनकी बाल कविताओं में बीस-पच्चीस साल पहले वो ताजगी और नयापन था, जो आज बड़े-बड़े बाल साहित्यकार बहुत कोशिश कर भी नहीं ला पाते हैं। उनकी रचनाओं में समानता, नैतिकता आदि के भाव इस प्रकार हैं कि बच्चे आसानी के साथ गाते-गाते, खेल-खेल में कविता के फूल को पकड़े हुए उसमें से नैतिकता, ज्ञान, सौहार्द्र आदि की खुशबू को महसूस कर प्रसन्न हो जाता है और यह खुशबू उसके मन में जाकर उसके व्यक्तित्व का निर्माण करने में सहायक होती है।
रमेशराज जी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं में से एक पहलू है कि वे धैर्यवान बहुत हैं। वे रचना करते समय जल्दबाजी में कभी नहीं रहते। वे रचना-परिमाण बढ़ाने के बजाय रचना के परिणाम, प्रभाव और मूल्य पर विशेष ध्यान देते हैं। उनके तेवरी-शतकों में आप देख सकते हैं कि वे किस तरह, न केवल छंद बल्कि कथ्य से भी सबको आश्चर्यचकित कर देते हैं।
रमेशराज जी की एक और विशेषता है कि वे केवल अपने ही बारे में नहीं सोचते बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी आगे बढ़ाने, सिखाने का भी प्रयास करते हैं। उनके साथ जो लोग रहे हैं, उनमें से कई आज अच्छे रचनाकार हैं और वे रमेशराज जी की ही तरह किसी पौप्यूलरटी या दिखावे के बिना अपने श्रेष्ठ रचनाकर्म में रत हैं। आप जब रमेशराज जी के पास जायेंगे तो अवश्य ही किसी न किसी की रचनाएँ उनकी पारखी नज़र में होंगी। इस तरह से वो जो अपना समय देकर औरों के समय को मूल्यवान बनाते हैं, वास्तव में उनका यह अमूल्य योगदान प्रणम्य है।
कहा जाता है कि संसार में एक चीज़ ऐसी है जो आप एक से मांगते हैं तो हजार लोग देते हैं, वो है सलाह। किन्तु जो चीज़ रमेशराज जी से मिलती है, सच में वह हजारों में से एक है। एक अच्छा व्यक्ति जो सबके हितों की सोचता है, वो है रमेशराज।
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निश्चल,
सम्पादक-अभिनव बालमन, शारदायतन, पंचनगरी, सासनीगेट, अलीगढ़-202001,
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