जियोपैथिक स्ट्रेस -डॉ दीपक कोहली- हर सजीव या निर्जीव वस्तु में अपनी एक ऊर्जा होती है। पृथ्वी की विभिन्न प्रकार की ऊर्जाएं हैं, कुछ मानव स्वा...
जियोपैथिक स्ट्रेस
-डॉ दीपक कोहली-
हर सजीव या निर्जीव वस्तु में अपनी एक ऊर्जा होती है। पृथ्वी की विभिन्न प्रकार की ऊर्जाएं हैं, कुछ मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं, और कुछ हानिकारक हैं। जियो का अर्थ है पृथ्वी, पाथोज का अर्थ है परेशानी, अर्थात पृथ्वी से मिलने वाली परेशानी। इसलिए इसे "जियोपैथिक स्ट्रेस" नाम दिया गया है।
पृथ्वी के आकार की तुलना एक नारियल से की जा सकती है जिसका व्यास 12,756 किमी. है। नारियल की ऊपरी कठोर सतह की तुलना पृथ्वी के ऊपरी आवरण के साथ की जा सकती है जिसकी गहराई लगभग 7 किमी तक है। उसके नीचे तरल मैग्मा जिस पर पानी पर लकड़ी के गुटकों की तरह कोन्टिनेन्ट्स के टुकड़े तैरते रहते हैं। पृथ्वी के मध्य में कोबाल्ट और निकिल नामक पदार्थ गरम पिघली हुई तरल स्थिति में होता है। यही पिघला पदार्थ पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अस्तित्व के लिए उत्तरदायी होता है। कभी-कभी हमारे कोन्टिनेन्ट्स के तैरते हुए टुकड़े इधर-उधर हो जाते हैं जिन्हें भूगर्भ वैज्ञानिक प्लेट्स टैक्टोनिक्स कहते हैं।
वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि इन टुकड़ों के बीच जो घर्षण शक्ति उत्पन्न होती है स्थिरता की स्थिति आने तक वे अपने आपको सन्तुलित करती रहती है। इस सन्तुलन के दौरान इस समायोजन के अन्तर्गत जो तरंगें पृथ्वी के अन्दर उत्पन्न होती हैं उन्हें टाला नहीं जा सकता है। यही भूकम्प तथा ज्वालामुखी फटने आदि घटनाओं का मुख्य कारण होता है। इन प्लेट्स टैक्टोनिक्स के प्रभाव के कारण पृथ्वी के अन्दर छोटी बड़ी टूट-फूट या गड़बड़ी होती है, यही जियोपैथिक स्ट्रेस का मुख्य कारण होता है।
चूंकि तेजी से गतिमान चुम्बकीय तरंगें इन टूटे-फूटे रास्ते से गुजरने के लिए संघर्ष करती है तथा पृथ्वी के अन्दर पानी भी इन छोटी बड़ी दरारों से होकर तेजी से बहता है जब चुम्बकीय क्षेत्र भी इस पानी के साथ विद्यमान होता है तो इनके टकराव से नकारात्मक रेडियेशन निकलती हैं। ये रेडियेशन सभी के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं। खदानें खोदना, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को छेड़ना एक मनुष्य जनित कारण है। जियोपैथिक स्ट्रेस को कई लोग कई नाम से जानते हैं यह निम्न प्रकार हैः
1. वाटरलाइन- पृथ्वी के अन्दर भूकम्प आने के बाद बहुत हलचल हो जाती है जिसके कारण पृथ्वी के अन्दर ही अन्दर बहुत उथल-पुथल होती है जो पृथ्वी के अन्दर एक तनाव उत्पन्न करती है। इस उथल-पुथल की वजह से कभी-कभी पृथ्वी के अन्दर कुछ खाली स्थान उत्पन्न हो जाता है जो कुछ मीटर से लेकर हजारों मीटर तक हो सकता है। इस खाली स्थान में कहीं बहुत अधिक गहराई या ऊँचाई होने के कारण यह पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्राकृतिक बहाव में रूकावट पैदा करता है जिसके साथ बहने वाले पानी में कई प्रकार के हानिकारक रसायन भी मिले होते हैं जिससे यह प्रक्रिया एक विद्युतीय ऊर्जा उत्पन्न करती है जो पृथ्वी की सतह से निकलकर अन्तरिक्ष में जाती है। यह विद्युतीय ऊर्जा मनुष्य जाति के जीवन के लिए बहुत ही हानिकारक होती है।
2. हार्टमैन ग्रिड्स - एक जर्मन चिकित्सक ने प्राकृतिक रूप से धारण किये हुए कुछ लाइनों का निरीक्षण किया जो उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी के अन्दर से गुजरती है। उन्होंने इन्हें नकारात्मक ऊर्जा वाली लाइनों के रूप में परिचित कराया जो तनाव का मुख्य स्रोत है। उन्होंने इनके साथ ही साथ सकारात्मक ऊर्जा वाली लाइन भी ढूंढ़ी। जहां पर दो लाइनें मिलती हैं वह उनका केन्द्र बिन्दु होता है। वहां पर दो गुनी सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह रेडियेशन पृथ्वी की सतह से ऊपर उठकर अन्तरिक्ष तक जाती है इनका जाल पूरी पृथ्वी पर फैला हुआ है।
3. करी लाइन - ये प्राकृतिक रूप से विद्युत तरंगें धारण की हुई लाइनें होती हैं। डा0 मैमफ्रैड करी और विटमान ने इनको खोजा था। उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की तरफ इनकी ऊर्जा प्रवाहित होती है। डा0 करी ने यह निरीक्षण किया था कि इन लाइनों के केन्द्र बिन्दु पर अगर कोई व्यक्ति समय व्यतीत करता है तो उसको कैन्सर जैसी बीमारी होने की सम्भावना अधिक रहती है।
4. ब्लैक लाइन्स - ये लाइन भी प्राकृतिक रूप से ऊर्जान्वित होती हैं। ये कहां से निकली अभी तक नहीं जाना जा सका है। इन लाइनों का जाल हार्टमैन और करी लाइनों के समान नहीं है। इन लाइनों को फेंगशुई में बहुत ही हानिकारक ऊर्जा के रूप में बताया गया है। मि0 विलहैल्म रिच ने काली, चमकदार और कठोर तेज ग्रिड के रूप में इनकी व्याख्या की है।
5. ले लुईस - हमारे पूर्वजों ने पत्थरों में स्त्री और पुरूष ऊर्जा के बारे में व्याख्या की है। जब हम किसी चट्टान को पत्थर या हथौड़े से तोड़ते हैं तब अग्नि उस चट्टान से बाहर निकालती है जो पुरूष ऊर्जा धारण किये हुए रहती है। छेनी, हथौड़े आदि का प्रयोग करके पत्थर को एक आकार दिया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि हम पत्थर के अणुओं के बीच जो आणविक बन्धन होता है उसकी शक्ति के विपरीत जाकर पत्थर को तोड़ रहे हैं। इस तोड़ने की प्रक्रिया के अन्तर्गत जो ऊर्जा निकलती है जिसके परिणामस्वरूप पत्थरों के किनारे से ले लुईस रेडियेशन प्रवाहित होती है वह हानिकारक होती है। उपरोक्त निम्न प्रकार की कुछ प्राकृतिक नकारात्मक ऊर्जाएं हैं जिन्हें जियोपैथिक स्ट्रेस कहा जाता है।
कुछ मानव निर्मित नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करने वाली वस्तुएं भी हैं जो आजकल बड़ी मात्रा में बीमारियों का कारण बन रही हैं। मानव निर्मित नकारात्मक ऊर्जा प्रवाह करने वाले उपकरण हैं जैस हाईटेंशन लाइन, ट्रांसफार्मर, मोबाइल टावर, मोबाइल और अन्य विद्युतीय उपकरण जो प्रतिदिन हम प्रयोग करते हैं। विद्युतीय चुम्बकीय तरंगें हमारे पर्यावरण में बहुत सारे तनाव का कारण बन रहा है जो मनुष्य पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव डालता है। संचार व्यवस्थायें जैसे- रेडियो, टी0वी0, फोन आदि भी हानिकारक रेडियेशन प्रदान करते हैं। हमारे पास करोड़ों की संख्या में फोन, टी0वी0, कंप्यूटर व लैपटाप हं जिसका इस्तेमाल हम विज्ञान के लाभ का उपयोग करने के लिए करते हैं। विभिन्न स्थानों में नेटवर्क को पहुंचाने के लिए इमारतों की छत पर या किसी ऊंचे स्थान पर टावर आदि लगाये जाते हैं। ये टावर ट्रान्सफार्मर से भी अधिक हानिकारक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
आजकल बड़े-बड़े शहरों में बड़ी-बड़ी इमारतों पर ये टावर दिखायी देते हैं जो पंचभूत के आकाशीय तत्व को भी प्रदूषित कर रहे हैं। हम सभी माइक्रोवेव रेडियेषन पर रेडियो कम्पन शक्ति से प्रभावित हो रहे हैं। जियोपैथिक स्ट्रेस के केन्द्र बिन्दु की स्थिति और उनके प्रभाव- यूनीवर्सल थर्मा स्कैनर की सहायता से हम जियोपैथिक स्ट्रेस की लाइनें व उसका केन्द्र बिन्दु ढंढ़ सकते हैं। यदि जियोपैथिक स्ट्रेस का केन्द्र बिन्दु दक्षिण-पश्चिम में आ रहा है तो घर में पत्नी के बीच लड़ाई झगड़े होना, उनको स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होना, यदि कोई उस लाइन पर सो रहा है तो उसको शारीरिक रूप से बीमारी होना तथा मानसिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है। कभी-कभी यह पति-पत्नी के बीच तलाक भी करवा देता है। यदि इसका केन्द्र बिन्दु पूर्व-दक्षिण की तरफ होता है जो रसोईघर का स्थान होता है तो उस घर के सदस्यों को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है तथा घर की औरतों को शारीरिक व मानसिक समस्या भी हो सकती है। यदि इसका केन्द्र बिन्दु उत्तर-पश्चिम हो जो वायु का क्षेत्र व बच्चों का क्षेत्र माना जाता है तो उस घर के बच्चों की उन्नति ठीक प्रकार से नहीं होती है। वे पढ़ाई अच्छी प्रकार से नहीं कर पाते हैं तथा उनकी शादी व नौकरी आदि में विलम्ब होता रहता है तथा उनको शारीरिक व मानसिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। यदि इसका केन्द्र उत्तर-पूर्वी स्थान पर आता है तो उस घर में रहने वाले अपना नाम और ख्याति खोने लगते हैं तथा उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यापार आदि में भी हानि होती है।
80 प्रतिशत डाक्टर और वैज्ञानिक जियोपैथिक स्ट्रेस की तरंगों के बारे में जागरुक नहीं हैं जो बुरे भाग्य का कारण है। ये तंरगें 80 प्रतिशत परेशानियों और लम्बी बीमारियों की मुख्य जड़ है। यह जर्मनी, फ्रांस और अब भारत में भी वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुका है। हमारे पूर्वजों ने भी इस प्रकार की हानिकारक तरंगों के बारे में बताया था और ऐसे क्षेत्रों में न रहने की सलाह दी थी। यह विषय पर्यावरण सम्बन्धी विज्ञान के अन्तर्गत आता है। दुनिया में जर्मन पहले थे जिन्होंने इन तरंगों को न्यूट्रलाइज किया तथा आपराधिक समस्या और बीमारियों से बचने के लिए लोगों को रहने के लिए नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त घर प्रदान किये।
जियोपैथिक स्ट्रेस वाले स्थान पर छः महीने या उससे अधिक लगातार रहने पर आर्थिक व शारीरिक समस्याएं प्रारम्भ हो जाती हैं। यह मनुष्य के इम्यूनिटी सिस्टम को इतना कम कर देते हैं कि मनुष्य को कोई भी साधारण बीमारी आकर घेर लेती है। यदि व्यक्ति उसी ऊर्जा क्षेत्र में रह रहा है तो दवाई भी उस पर अपना 100 प्रतिषत प्रभाव नहीं दिखाती है और बीमारी बढ़ती चली जाती है। इसी प्रकार विद्युतीय शक्ति का भी मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब ऊर्जा एक कन्डक्टर के द्वारा बहती है तब यह निरीक्षण किया गया कि उसके चारों तरफ एक चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है। वैज्ञानिकों ने सेल्स पर इसके प्रभाव के बारे में अध्ययन किया है। मनुष्य की सेल रासायनिक तत्वों से मिलकर बनी है जो नान कन्डक्टर मैम्ब्रेन के द्वारा सुरक्षित होती है। विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की अपेक्षा कणों के रूप में कार्य करती है। कुछ विद्युत कम्पन शक्तियां दिखाई देने वाले स्पेक्ट्रा से आगे होती है। चुम्बकीय शक्तियों के कारण ही मुख्यतः हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते हैं।
कुछ रिसर्च पेपर सी0आर0डी0 के ऊपर आधारित हैं जिससे यह निष्कर्ष निकला है कि विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव मनुष्यों के सेल्स पर असर डालता है। 50 प्रतिशत लोगों में जो इस विद्युतीय क्षेत्र के आस-पास कार्य करते हैं कैन्सर होने की सम्भावना अधिक रहती है। इसलिए इनसे बचने की सलाह दी जाती है जैसे- ट्रांसफार्मर, टावर तथा अधिक वोल्टेज वाली लाइनें इत्यादि। धातु व चमड़े की कुछ वस्तुएं भी हानिकारक ऊर्जा प्रवाहित करती हैं। यदि धातु आदि की वस्तुएं जियोपैथिक स्ट्रेस क्षेत्र में रखी रहती हैं तो वे यह नकारात्मक ऊर्जा अपने में ले लेती हैं। फिर इन्फ्रारेन्ड के रूप में निकलती हैं जो कि बहुत ही हानिकारक हैं जैसे- आर्टीफिशियल, धातु व प्लास्टिक की वस्तुएं, कभी-कभी इमारत में जो कच्चा माल प्रयोग होता है जैसे- सरिया आदि, इन्टीरियर डिजाइनर जो टेढ़े-मेढ़े आकार घर में प्रयोग करते हैं जिनका अस्तित्व प्रकृति में नहीं हो, वे भी हानिकारक ऊर्जा देते हैं। मृत व्यक्ति की कुछ धातु की वस्तुएं, किचन के बर्तन जैसे तवा, कड़ाही आदि जो बहुत सालों से हम प्रयोग कर रहे हैं, तांबे से बने यंत्र, चांदी और सोने के आभूषण, एन्टिक वस्तुएं, दीवारों पर टंगे पुराने हथियार तलवार, खंजर आदि भी नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं , यदि ये जियोपैथिक स्ट्रेस वाले नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में रखे हुए हैं।
जियोपैथिक स्ट्रेस को पहचानने वाले प्राकृतिक स्रोत- कुछ प्राचीन चीजें भी हैं जिनके द्वारा कोई भी व्यक्ति यह जान सकता है कि यहां पर जियोपैथिक स्ट्रेस है या नहीं । किसी भी सामान्य व्यक्ति की यदि किसी एक स्थान पर जाकर नाड़ी की संवेदना बढ़ जाती है या वह उस जगह पर अपने आप को बहुत ही असामान्य महसूस कर रहा है तो वहां यह नकारात्मक क्षेत्र हो सकता है। व्यक्ति को रात में भयानक सपने आते हैं वह ठीक से सो नहीं पाता है लगातार एक ही स्थान पर दुर्घटना होना, किसी के स्वास्थ्य का लगातार खराब होना, बिल्ली, दीमक, मधुमक्खी और चमगादड़ ऐसे स्थान पर रहना पसंद करते हैं, कुत्ता और गाय ऐसे स्थानों पर नहीं बैठते हैं।
जियोपैथिक स्ट्रेस क्षेत्र में रहने से व्यक्ति में निम्न प्रकार के स्वास्थ्य से सम्बन्धित लक्षण दिखायी पड़ सकते हैं: पिण्डलियों में दर्द, क्रैम्प पड़ना, नींद न आना, सही निर्णय लेने में कठिनाई, आदमी घर की अपेक्षा बाहर अधिक आराम महसूस करता है। नींद में चलना, डरावने सपने आना मानसिक समस्या का सामना करना, निराशावादी होना, अचानक किसी की मृत्यु होना, आत्महत्या की प्रवृत्ति होना, लाइलाज बीमारी होना जैसे कैन्सर, डाइबिटीज, कौमा में जाना, हाइपर ऐक्टिव बच्चे, स्त्री का गर्भ धारण न करना, बार-बार गर्भपात होना या मानसिक या शारीरिक रूप से अविकसित बच्चे होना , बच्चों का पढ़ाई में ध्यान न देना, शादी या नौकरी में विलम्ब होना, घरेलू झगड़े बहुत अधिक मात्रा में होना आदि। हम यूनीवर्सल थर्मा स्कैनर की सहायता से किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को पहचान सकते हैं चाहे वह घर हो या किसी व्यक्ति के शरीर में। इसके द्वारा आपको आने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों से भी अवगत करा सकते हैं। हमने आधुनिक समय में इस ज्ञान में रुचि खो दी है, और अब इस पर वापस आ रहे हैं क्योंकि वहाँ जियोपैथिक तनाव संबंधित बीमारियों की संख्या में वृद्धि हुई है। असल में, भूमिगत जल धाराओं, विशिष्ट खनिज जमाओं, या अलग गलती लाइनों जैसे विभिन्न भूमिगत संरचनाएं, विशिष्ट विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों को फेंकती हैं जो मानव आवास के लिए हानिकारक हो सकती हैं।
__________________________________________________________________
लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
--
डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
COMMENTS