कोरोना संकट की कहानी वो बेचारा सा बड़ा आदमी.... * व्योमेश चित्रवंश उनका नाम पंडित डॉ0 चन्द्रकेतु उपाध्याय, त्रिकालदर्शी ज्योतिषाचार्य,एम0ए0 ...
कोरोना संकट की कहानी
वो बेचारा सा बड़ा आदमी....
* व्योमेश चित्रवंश
उनका नाम पंडित डॉ0 चन्द्रकेतु उपाध्याय, त्रिकालदर्शी ज्योतिषाचार्य,एम0ए0 (ज्योतिष), पीएच0डी0 है ।साई मंदिर के पास उनका आफिस कम चैम्बर है। मन्दिर वाली गली में मिठाई व पूजन सामग्री के शामिलात दुकान के बगल में 8 बाई 10 के कमरे में। मिठाई और पूजन सामग्री वाले दुकान का पहले हिस्सा था पर वक्त की नजाकत और ग्राहकों का मिजाज सही ढंग से मापने वाले गुप्ता जी ने साई मन्दिर बनने के बाद अपने घर के सामने वाले हिस्से में दुकान बनवाते समय उसे बीच में पार्टीशन दीवार डालकर अलग कर दिया था। सबसे पहले गुप्ता जी ने उसमें मिठाई की दुकान खोली। बृहस्पतिवार के दिन साईबाबा का दिन होने के कारण अपनी पत्नी भी साथ बैठाना शुरू किया। फिर दुकान के अगले भाग में पीले गेंदों की माला लगाकर खुद बैठने लगे और मिठाई की दुकान पूरी तरह अपनी धर्मपत्नी को ही सुपुर्द कर दिया। उसी समय पं0 चन्द्रकेतु जी ने उनसे मिलकर बगल वाले खाली 8 बाई 10 वाले दुकान को भाड़े पर लेने की इच्छा जताई तो गुप्ता जी ने चार हजार रूपये प्रतिमाह के भाड़े पर बिना कोई सिक्योरिटी राशि लिये इस शर्त के साथ पंडित जी को किराये पर रखा कि वे अपने पूजापाठ की सारी सामग्री गुप्ता जी की ही दुकान से खरीदवायेंगे। पंडित जी भी सही जगह की उपयोगिता समझ कर राजी हो गये। धीरे-धीरे पंडित जी के कारण गुप्ता जी की और गुप्ता जी के वजह से पंडित जी की दुकान जम गयी। गुरूवार को तो गुप्ता जी उनकी पत्नी और पंडित जी तीनों लोग व्यस्त रहते। बाकी दिनों भी पंडित जी के आफिस कम चैम्बर में दो चार महिला पुरूष ग्राहकों को हमेशा देखा जाने लगा।
पंडित डा0 चन्द्रकेतु उपाध्याय जी मूलतः मध्य प्रदेश के उत्तरी नीमच के रहने वाले हैं। वे कक्षा आठ की परीक्षा देने के बाद काशी के संकठा मन्दिर वाली गली में स्थित गुरूकुल में पढ़ने के उद्देश्य से आये तो गुरूकुल पाठशाला से पूर्व व उत्तर मध्यमा करने के बाद भी वापस मध्य प्रदेश नहीं गये। गुरूकुल में ही भण्डारी जी से सेटिंग करके उन्होंने दोनों समय के भोजन व्यवस्था का प्रबन्ध कर लिया और वहीं सिद्धेश्वरी गली में एक गुजराती परिवार के यहाँ किराये पर कमरा लेकर रहने लगे। चन्द्रकेतु ने स्वयं की पहचान बनाने की एक ललक थी वे अपनी पहचान नीमच के बजाय काशी के पढ़े लिखे विद्वान ब्राह्मण के रूप में बनाना चाहते थे सो उन्होंने अपना सारा ध्यान कर्म धर्म ध्यान साधना के अपने पढ़ाई में लगाया और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और फिर ज्योतिष में आचार्य करके यहीं के होकर रह गये। आचार्य के अध्ययन के दौरान ही वे अपने गुरूजी के साथ रूद्राभिषेक आदि कर्मकाण्डों में उनके सहयोगी बनकर जाने लगे थे और गुरूजी कृपा से धनोपार्जन भी होने लगा था। उसी दौरान परिवार वालों ने विवाह के लिए दबाव बनाना प्रारम्भ कर दिया। प्रारब्ध को स्वीकार करते हुए चन्द्रकेतु ने नीमच के ही एक कुलीन परिवार के ब्राह्मण इण्टर पास कन्या से विवाह कर लिया और विवाहोपरान्त पत्नी को लेकर काशी ही आ गये। आचार्य पाठ्यक्रम पूर्व होने तक गुरू जी ने उन्हें पूर्णतया कर्मकाण्डी ब्राह्मण के रूप में प्रतिस्थापित करा दिया था। तो बहुत तो नहीं, पर आवश्यकतानुसार संतोषजनकआय प्राप्ति भी होने लगी थी। कर्मकाण्ड करते हुए एवं विभिन्न जजमानों के यहाँ उनके भाग्य पत्रिका का ऑकलन करते-करते समय के आवश्यकतानुसार गुरू जी के ही परामर्थ पर चन्द्रकेतु ने चक्रवर्ती (पीएच.डी.) पाठ्यक्रम में अध्ययन के लिए नामांकन लिया एवं तीन वर्ष में पीएच डी. की उपाधि भी प्राप्त कर लिया। इस मध्य उनकी पत्नी ने उन्हें दो बार पिता की उपाधि से भी अलंकृत करा दिया। बढ़ते परिवार, बढ़ती महगाई गुरूजी का अन्य शिष्यों पर ध्यान, आवास समस्या आदि को दृष्टिगत रखते हुए चन्द्रकेतु ने एक बार यूं ही अपने एक जजमान से चर्चा किया तो उसने पंडित जी को वरूणापार के नयी बसती हुई कालोनियों में रहने का सुझाव दिया। उसी जजमान ने यह भी बताया कि उसका स्वयं का एक फ्लैट अयोध्याधाम कालोनी के नये अपार्टमेण्ट में रिक्त पड़ा है। पंडित जी चाहे तो वह वहाँ किराये पर रह सकते है, हाँ किराया आदि के सम्बन्ध में पंडित जी उसे जजमान न मानकर फ्लैट का मालिक मानते हुए हर महीने के प्रथम सप्ताह में किराये का भुगतान करते रहेंगे तो उसे अपने बैंक के ईएमआई (मासिक किश्त) को भरने में सुविधा रहेगी। चन्द्रकेतु ने अपनी पत्नी से बात किया तो उसकी बाहें खिल गयी। वह स्वयं अब मोहल्ले के बसाहट वाले कई किरायेदारों के ऑगन वाले घर से निकल कर टी.वी.धारावाहिक में दिखाये जाने वाले एकाकी फ्लैट और उससे बनते अपार्टमेण्ट के परिवार का हिस्सा बनने को आतुर थी। साथ ही उसे बच्चों के विषय में भी तो सोचना था। अगले अप्रैल में माही का नाम सेण्ट मेरी या सेण्ट जोसेफ में लिखवाने का कोई फायदा तब तक नहीं मिलना था जब कि इस आठ किरायेदारों वाले ऑगन के किराये वाला घर न छोड़ा जाये।
अस्तु, चन्द्रकेतु पक्के महाल के गली कूूंचे वाले बनारस को छोड़कर सहित वरूणापार वाले शहरी वाराणसी में आ गये। पर यहाँ आने के बाद पता चला कि पुराने मोहल्ले जैसा आदर और पहचान यहाँ नहीं है। यहाँ रास्ते में आते-जाते हर कोई उन्हें पंडित जी जय-जय, पालागी या महादेव का जयकारा नहीं लगता। यहाँ हर तीसरे चौथे किसी अड़ोसी-पड़ोसी या दुकानदार, सेठ जी का बुलावा नहीं आता। ऐसे वक्त में चन्द्रकेतु की पत्नी ने उन्हें समझाया और अपार्टमेण्ट कल्चर के तौर तरीके बताते हुए उन्हें खुद के रंग-ढंग परम्परागत पद्धति से बदल कर आधुनिक करने की सलाह देते हुए आशान्वित किया कि उसने टी.वी. में बहुत सारे ज्योतिष गुरूओं को देखा है जिन्हें पूरा देश उनके श्रद्धालुओं सहित देखता है और लक्ष्मी की ज्योतिषी महाराज सहित भक्तजनों पर कृपा आती है। पत्नी अब अपार्टमेण्ट वाले अपने किटी क्लब की सहेलियों के साथ रोज शाम कालेज के मैदान में टहलने और बृहस्पतिवार को साई बाबा के मन्दिर जाने लगी थी। हालांकि चन्द्रकेतु पर अभी तक जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द द्वारा साई बाबा के ऊपर उठाये गये सवालों का प्रभाव व्याप्त था। ऐसी स्थिति में जब पत्नी गुरूवार को देर तक अपनी किटी सहेलियों के संग साई बाबा मन्दिर में रहती तो माही और सिमरन को देखने के लिए उन्हें विवशतः घर पर रहना होता। ऐसे में एक दिन उन्होंने मार्केटिंग चैनल पर ज्योतिष की शतप्रतिशत फल देने वाले आश्चर्यजनक वस्तुओं पिरामिड, कच्छप, बम्बू, पाथरा फायर, फार्च्यून विश, लक्ष्मी नारियल, गोमती चक्र, रूद्राक्ष को देखा और पत्नी की बातों में दम पाकर उन्होंने इस दिशा में प्रयास प्रारम्भ किया। पत्नी द्वारा ही उन्हें गुप्ता जी के खाली दुकान की जानकारी मिली तो गुप्ता जी से बातचीत कर उनके शर्तो पर राजी हो, चन्द्रकेतु जी ने अपनी ज्योतिष दुकान नहीं (क्षमा कीजिएगा चन्द्रकेतु जी को उसे दुकान कहना कदापि पसन्द नहीं) ज्योतिष कार्यालय और परामर्श केन्द्र का उद्घाटन किया। उद्घाटन के पूर्व कार्यालय में बड़ा सा नियोन लाईट वाला बोर्ड लगाया गया। ज्योतिष विचार कार्यालय एवं परामर्श केन्द्र, त्रिकालदर्शी, ज्योतिषाचार्य चक्रवर्ती पं0 डॉ0 चन्द्रकेतु उपाध्याय जी एम.ए. (संस्कृत एवं ज्योतिष) पीएच डी (सं.सं.वि.) कुण्डली, वास्तु सामुद्रिक एवं अंकशास्त्र। कार्यालय के अन्दर एक डबल कैबिनेट वाली शानदार मेज के साथ ऊँचे पुस्तवाली बड़ी सी रिवाल्विंग चेयर और उस पर गेरूये रंग का तौलिया बिछा दिया गया। पंडित जी ने नया एचपी का लैपटाप सामने टेबुल पर रखा और उसका कनेक्शन लक्ष्मी गणेश के मूर्ति वाले छोटे से लकड़ी वाले पूजाघर के नीचे साइड टेबुल पर रखे प्रिन्टर से कनेक्ट कर दिया। कार्यालय में घुसते ही गेरूये रंग का वालटूवाल पर्दा ठीक सामने खूब बड़े से डबल फ्रेम में लगाया हुआ लाल सनील के पृष्ठभूमि में उभरता हुआ श्रीयन्त्र। सामने रखी हुई चार आरामदेह कुर्सियां। पंडित जी की पत्नी ने आरती उतार कर अपनी किटी पार्टी की समस्त सहेलियों के साथ कार्यालय में प्रवेश किया और नारियल फोड़ शंख बजाकर पं0 डॉ. चन्द्रकेतू उपाध्याय जी का ज्योतिष विचार केन्द्र की औपचारिक शुरूआत हो गयी।
अब इसे श्रीयन्त्र का चमत्कार कहिये या मन्दिर के बगल में स्थित गुप्ता जी के दुकान पर साईबाबा का प्रभाव, पंडित जी की ज्योतिषी भी चल निकली। सुबह कार्यालय खुलते ही दो चार लोग आना शुरू करते और देर शाम तक कार्यालय में परामर्श लेने वाले आते रहते। पंडित जी के बताये उपाय यथा यन्त्र, वास्तु सामान आदि गुप्ता जी के यहाँ मिल जाते जिसके लिए अब उन्हें हर हफ्ता दालमण्डी और हड़हा सराय जाना भी भारी नहीं लगता। एक ग्राहक एजेण्ट के सलाह औथ सहयोग से ईएमआई सिस्टम से पंडित जी के हाथ में अब उनके पुराने वीवो मोबाइल के बदले सैमसंग का नया माडल ए 80 फैण्टम और एप्पल का नये ब्राण्ड वाला दो मोबाइल आ गया था। पिछले नवरात्रि में उन्होंने एक्टिवा की 5 जी माडल वाली स्कूटी लिया था। जिन्दगी महादेव के कृपा से मस्त चल रही थी। ईएमआई सही समय पर खाते से कट जाती। सिमरन का नाम भी अच्छे अंग्रेजी स्कूल में लिखवा दिया था। इस होली बीतने के बाद उनकी योजना हवाई जहाज से दक्षिण घूमने जाने की थी, पत्नी कई महीनों से इसके लिये कह रही थी।
इस बार आय अच्छी होने की संभावना थी। राशि एवं गोचर फल भी अनुकूल थे। चैत्र नवरात्रि में उन्होंने कई लोगों के यहाँ अनुष्ठान कराने को स्वीकरोक्ति भी दिया था। जिससे अच्छी कमाई होने की आशा में साई बाबा के कृपा से सब बढि़या चल रहा था।भगवान ने चाहा तो स्थिर जीवन प्रणाली सहज ढंग से चलने लगेगी। पर यह कोरोना ..........................
अभी होली के पहले ही तो उन्होंने एक जजमान को बताया था कि इस वर्ष प्रमादी संबत का राजा बुध और मन्त्री चन्द्रमा होंगे जो कृषि व अनाज के लिए बहुत शुभ है। व्यापारिक व आर्थिक क्षेत्रों में तेजी आयेगी पर लोगों मे लड़ाई-झगड़े व आपसी असन्तोष बढ़ेगा और वर्षा अच्छी होगी। महगाई पर नियन्त्रण होगा वगैरह-वगैरह।
एक पखवाड़े पूर्व एकाएक प्रधानमन्त्री जी ने आठ बजे रात आकर उसी रात बारह बजे से पूरे देश में सारी व्यवस्था बन्द कर दिया। पंडित जी का कार्यालय, गुप्ता जी की दुकान, साई बाबा का मन्दिर, अपने अपार्टमेण्ट का गेट सब कुछ। पंडित जी परेशान हैं। एक सप्ताह तक तो किसी तरह खान पान की व्यवस्था चलती रही। पर अब अपार्टमेण्ट में पत्नी की किटी सहेलियों से कहना तो अपनी प्रतिष्ठा धूमिल करना है और गुप्ता, वह तो पहले अपना ही रोना रोते हुए किराया मॉगने लगेगा। अखबार में रोज निकल रहा है कि कन्ट्रोल की दुकान से निःशुल्क चावल आटा, दाल मिलने की व्यवस्था की है सरकार ने। पर इसके लिए राशन कार्ड दिखाना होगा। वे तो राशन कार्ड के पात्रों की श्रेणी में आते नहीं। ऊपर से सवर्ण और पढ़े-लिखे एम.ए., पीएच.डी। पंडित जी की पत्नी ने बताया कि आज घर में चावल, आटा, आलू सब समाप्त हो गया है। कल रात को तो हल्दीराम की भुजिया खाकर और पानी पीकर सभी सो गये थे। माही व सिमरन तो यह समस्या जानती नहीं, वे बार-बार खाने के लिए जिद कर रही है वो तो भला हो दूध वाले का, कि वह दूध देता जा रहा है। बिल्डिंग की लिफ्ट बन्द कर दी गयी है और सीढि़यों से चलकर दो बार से ज्यादा चौथे मंजिले पर चढ़ना उतरना भी अपने आप में एक समस्या है। अखबारों में छपा हे कि कुछ एनजीओ वाले साईबाबा मन्दिर पर आकर खाने के लिए पैक डिब्बे और आटा आलू चावल दाल बॉटेंगे। इसी आशा से पंडित जी उतर कर साई बाबा गये। वहाँ एक मैजिक वाहन खड़ा करके मोहल्ले के कुछ लड़के राशन का पैकेट बांट रहे थे। पंडित जी बड़ी उम्मीदों से वहाँ तक भी गये तभी उनमें से दो तीन लड़कों ने पंडित जी को देख कर प्रणाम किया और पंडित जी जबरदस्ती मुस्कराते हुए वहाँ से लौट आये। कल भी यही हुआ था। आज भी यही हुआ। पंडित जी समझ नहीं पा रहे थे कि वे राहत स्वयं सेवकों के प्रणाम के बदले किस तरह अपने खाली पड़े रसोई के लिए राशन मांगे क्योंकि वे तो बेचारे से बड़े आदमी थे.................................... ।
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