रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों? आत्माराम यादव पीव

SHARE:

रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों ? आत्माराम यादव पीव महर्षि वाल्मीक रचित रामायण हो या गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित्र म...

रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों?

आत्माराम यादव पीव

महर्षि वाल्मीक रचित रामायण हो या गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित्र मानस, दोनों में बालकाण्ड,अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, उत्तरकाण्ड नामकरण कर रामकथा के प्रसंगों को इन काण्डों में समाहित किया है जिसमें सुंदरकाण्ड नामकरण किए जाने की विशेषताओं का रहस्य विरले ही समझ पाते है विशेषकर वे लोग जो नित्य प्रतिदिन सुंदरकाण्ड का पाठ करते है वे इससे भलीभाँति भिज्ञ है। “ रामायण जनमनोहरमादिकाव्यम”” रामायण जन जन को प्रिय है यह आदिकाव्य है जिसके सभी पात्र ओर उनकी कथायेँ सुंदर है इसलिए काण्ड का नाम सुंदरकाण्ड रखा गया। रामायण सबके मन में बसी होने से मनोहर है ओर सुंदरकाण्ड अत्यंत मनोहर ओर सर्वश्रेष्ठ है। सर्वश्रेष्ठ बतलाते हुये कहा है – “”सुंदरे सुंदरों राम: सुंदरे सुंदरी कथा। सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किन्न सुंदरम। “” सुंदरकाण्ड में राम सुंदर है, सुंदर की कथाएँ सुंदर हैं, सुंदर में सीता सुंदरी है , सुंदर में क्या सुंदर नहीं है?  सुंदर में राम की कथा नहीं है, भक्त हनुमान की कथा ओर सीता की व्यथा हृदय को द्रवित कर देती है, यही सुंदरतम है, प्रश्न उठता है फिर सुंदरे सुंदरों राम: क्यो कहा गया है? सुंदर काण्ड के दो प्रमुख ओर प्रधान चरित्र है सीता ओर हनुमान। हनुमान तो भक्त है ओर सीता शक्ति है ओर राम शक्तिमान। श्रीराम सीता अभिन्न है उन्हे प्रथक करके नही देखा गया है, क्योंकि सीता के हृदय में राम बसे हैं ओर ऐसा कोई पल नहीं आया जब सीता ने राम को विस्मृत किया हो तथा हनुमान ने भी जो भी पराक्रम दिखाये, कही आभास नही होने दिया की वे उनके द्वारा किए गए है, अहंकाररहित हनुमान ने जो भी दुर्गम, दुर्जेय वीरोचित कार्य किए उस सभी कार्य का श्रेय उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को दिया है, यही सुंदर कथा है, जो सुंदरकाण्ड की शोभा बढ़ाती है।  

       रामायण के प्रत्येक काण्डों का नामकरण करते समय व्यक्तित्व, चरित्र, जीवन ओर स्थान विशेष प्रासंगिक रखे गए है जहां हरेक व्यक्तित्व के चरित्र व गुणों के प्रगट होते ही उनके गुणों की सर्वोत्तमता शिखर पर देखने को मिलती है। बालकाण्ड में राम के बचपन के बाल स्वरूप से ताड़का-सुबाहु वध, अहिल्या उद्धार, धनुष भंग कर सीता स्वंवर का चित्रण है तो उत्तरकाण्ड में रावण वध का चरित्र के पश्चात को विस्तार रूप दिया गया है।  अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड ओर किष्किंधा काण्ड में अयोध्या का उल्लेख, वन प्रदेशों का उल्लेख के आलवा किष्किंधा का उल्लेख है। राम ओर रावण के युद्ध को लंका काण्ड नाम दिया गया जबकि सुंदरकाण्ड इन सारे पहलुओ से प्रथक है ओर यह नाम सर्वथा उच्चासन पर होने से अन्य किसी कथा या प्रसंग सुंदरकाण्ड के आसन पर आसीन नही हो सका है। सुंदरकाण्ड में सभी के चरित्र है विशेषकर इसमें सीता ओर हनुमान की कथा सुंदर है। सीता शक्ति है ओर राम शक्तिमान है।  शक्ति ओर शक्तिमान के अनन्य भक्त हनुमान है। शक्तिस्वरूप सीता का हृदय श्रीराम को नहीं छोड़ सकता है। राम के सौंदर्य को लेकर सीता त्रेलोक्य सुंदरी है अतएव राम ही सीता बनकर सुंदर हो रहे है।  रामतापनीय उपनिषद में कहा गया है – यो वै श्रीरामचन्द्र:स भगवान, या जानकी भुभूर्व:। स्वस्तस्ये वै नमो नम:।“ श्रीराम साक्षात भगवान है ओर देवी जानकी रमा है। राम ही जानकी है, इसीलिए राम के सौंदर्य में ही राम मानस- सरो-भरालिका सौंदर्य है। सुदरकाण्ड में जिस कुंतलाकुल कपोलसुंदरी सीता के रूप गुण का विकास है, वह क्या जाग्रत क्या स्वप्न, सर्वदा श्रीराम के चरण कमलों में सब कुछ समर्पित है इसलिए कहा गया है “”सुंदरे सुंदरों राम:।“” वाल्मीक जी रचित सुंदरकाण्ड में उन्होने हनुमान के चरित्र को प्रधानता देते हुये उच्च शिखर पर रखा ओर हनुमान के समक्ष रावण की तुलना करते हुये हनुमान के सामने रावण को अति तुक्ष्य मानकर कहा है – “”न मे समा रावणकोटयोधमा: रामस्य दासोंहमपारविक्रम:। “” रावण जैसे करोड़ों अधम मेरी समता नहीं कर सकते। मैं श्रीराम का दास हूँ। अत: मेरे पराक्रम का कोई थाह नहीं पा सकता है। राम का दास होने के कारण मुझमे अपार विक्रम है।“ दास होने से जहां इतना शौर्य –वीर्य प्रस्फुटित हो उठता है ,वहाँ भक्त का सौंदर्य भगवान का ही है। इसी से “सुंदरे सुंदरों राम:”  कहा गया है। “”सुंदरे सुंदरों राम:”” का अर्थ तो यहा प्रगट हो गया किन्तु सुंदर में सभी सुंदर है इसका अभिप्राय समझने के लिए कथा के मूल में हनुमान ओर सीता के समस्त गुण विकास को समझना होगा तभी सुंदरकाण्ड के सुंदर होने का रस्वास्वादन प्राप्त हो सकेगा।

       गोस्वामी तुलसीदास ने सुंदर काण्ड की पहली ही चौपाई की शुरुआत सुंदर वचनों से की है कि - “”जामवंत के वचन सुहाए, सुनि हुनुमंत हृदय अति भाए।“” वे हनुमान को अपने विस्मृत हो चुके पराक्रम की याद कराने के बाद उन्हे अपने बल का बखान करते हैं जो एक ऋषि के श्राप से वे भूल चुके थे। हनुमान जी को स्मरण आता है तो उसकी परीक्षा के लिए वहाँ एक पर्वत का प्रसंग गोस्वामी जी रखते है कि - “” सिंधु तीर एक भूधर सुंदर “”  में सुंदर शब्द का पहली बार उल्लेख किया ओर हनुमान जी जैसे ही उस पर्वत पर पाँव रखकर कूदते है तो वह पर्वत पाताल में धस जाता है। सुंदरकाण्ड में सुदर क्या है हनुमान का स्वरूप जो भीमाकर कर लिया है जो अगाध गगनाकार सागर को लांघने के लिए है। शत योजन सागर को पार करते समय देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने सुरसा को विघ्न बनाकर प्रस्तुत किया जो उन्होने अपने बुद्धिबल  से सुरसा की परीक्षा पास करने के लिए सुरसा के शरीर के आकार से दुगुना चौगुना रूप धरने के बाद उनके मुख से वापिस आकार विदा मांगी। मैनाक पर्वत समुद्र से आ जाना ओर हनुमान से कहना की थक गए होंगे विश्राम कर ले ओर कुछ भोजन ग्रहण कर ले तब हनुमान द्वारा कहना की “राम काज किन्हे बिना मोहि कहा विश्राम।“” मैं राम के काम से जा रहा हूँ इस समय मुझे भोजन ओर विश्राम के लिए समय नहीं है मुझे शीघ्र जाना है, हनुमान की बात सुनकर मैनाक पर्वत सागर में लौट जाता है। हनुमान सागर लांघते आगे बढ़ते है तभी एक निशाचर जो आकाश में उड़ने वाले पक्षियों जीव जन्तुओ की परछाई सागर के जल में पड़ते ही उनकी परछाई पकड़ उन्हे खा जाती है वह राक्षसी हनुमान की परछाई पकड़ लेती है हनुमान जी तुरंत उसे मारकर समुद्र पार कर लंका पहुचते हैं। जिसपर तुलसीदास जी सुंदर शब्द का दूसरी बार प्रयोग कर लिखते है कि – “”कनककोट विचित्रा मनि कृत सुन्दरायतना घना””  अर्थात लंका का वह सोने का परकोटा रंग विरंगी मणियों से जड़ा है जिसके अतिसुंदर घर है।  लंका पहुचकर हनुमान जी द्वारा दक्षिण किनारे से त्रिकुट शिखर पर चढ़कर लंकापूरी को देखना, संध्याकाल मसक/मच्छर के समान सूक्ष्म शरीर धारण कर लंका में प्रवेश करते समय राक्षसीवेश धारण करने वाली लंकिनी को घूंसा मारकर रक्तरंजित करनातथा लंकिनी द्वारा हनुमान को लंका के विनाश के प्रसंग सुनकर शुभ संकेत देना सुंदर ही तो है जिसका विस्तार से पढ़ने के बाद सुंदरकाण्ड के अन्य प्रसंगो का सुंदरतम वर्णन से सभी आभिभूत होते हैं ओर हनुमान के द्वारा उनके मार्ग में बाधक बनी तीन स्त्रियों के साथ अपनाए गए व्यवहार उनकी बुद्धि का प्रमाण है जहां वे पहली स्त्री सुरसा के सामने विनय करते है, दूसरी स्त्री सिहिंका को यमलोक पहुंचाते हैं ओर लंका को एक मुसठिका मारकर ठीक करते हैं।

       सुंदरकाण्ड के कथा वर्णनों में माता सीता की खोज में हनुमान लंका के हर महल ओर घरों का अन्वेषण करते हैं। गोस्वामी जी लिखते हैं “ मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा, देखे जंह तंह अगनित जोधा। गयउ दसानन मंदिर माहीं, अति विचित्र कहि जात सो नाही। “” हनुमान ने हर घर जिन्हें मंदिर कहा गया है में सीता की तलाश की परंतु उन्हें असंख्य योद्धा दिखे । रावण के महल में भी देखा जो विचित्र बना हुआ था जहा भी सीता नही दिखी।  तब हनुमान को एक सुंदर घर दिखा जिसमें रामनाम अंकित था तुलसी की पुजा होती थी तब उन्होंने सोचा यहा निश्चरों के बीच कौन सज्जन पुरुष है “” लंका निसिचर निकर निवासा, इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।  मन महु तरक करें कपि लागा, तेही समय विभिसनु जागा। “” हनुमानजी ने ब्रम्हण का वेश धर कर विभीषण से मिले जहा से उन्हे सीता माता के अशोक वाटिका में होने कि जानकारी मिली ओर वे सीतामाता से मिलने के लिए अशोकवाटिका कि ओर चल दिये। “एकवेन्णी कृशां दीनां मलिनाम्बरधारिणिम । भूमौ शयानां शौचंती रामरामेति भाषिनिम॥ “ हनुमान जी ने अशोकवाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी पर माता जानकी को देखा,मानो कोई देवांगना एक वेणी धारणकिए हुये है ओर उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो, आकृति दीन थी, वस्त्र मलिन थे ओर चिंतन कि मुद्रा में राम राम कि रट लगाए हुये थी। हनुमान जी ने जनकनंदिनी के दर्शन रात में किए तब बीस भुजा वाले नीलांजन राशि के समान रावण का सीता के पास आना ओर सीता के दर्शन कर अपनी कठोर ओर कटु वाणी बोलना ओर सीता का उत्तर प्रतिउत्तर सुनकर जानकी के वध के लिए रावण का खड़ग उठाना ओर मन्दोदरी  द्वारा उसे रोका जाना, रावण का सीता को दो माह का समय देना तथा राक्षसीगण को सीता को भयभीत करने के आदेश के उपक्रम में सीता को उत्पीड़न करना ओर धमकी देना कि “”मास दिवस महूँ कहा न माना तो मैं मारिब काढ़ि कृपाना।“” त्रिज़टा का स्वप्नवृतांत सुनाकर राक्षसीवृंद को भयभीत ओर निंदित करना , सीता का रुदन करना ओर प्राणत्याग कि चेष्टा का भाव लाने पर हनुमान द्वारा अवसर जानकार सीता को रामवृतांत सुनाना ओर फिर राम द्वारा दी गई मुद्रिका/अंगूठी सीता को प्रदान कर उनका विश्वास अर्जित करने के लिए अंगूठी सीता जी से सामने डाल दी।  “तब देखि मुद्रिका मनोहर, राम नाम अंकित अति सुंदर। “  सीताजी अंगूठी पहचान कर हर्ष ओर दुख के साथ व्याकुल हो गई तब हनुमान से वानरराज सुग्रीव से मित्रता कि बात बताकर वानरों के बल बुद्धि का बखान कर कर उनकी ताकत का भरोसा दिलाया जिसपर पर संतुष्ट होकर सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया – “आशीष दीन्ही रामप्रिय जाना होहु तात बल सील निधाना । अजर अमर गुन निधि सुत होहु। करहु बहुत रघुनायक छोहु।“  सीता जी से अजय अमर होने का आशीर्वाद प्राप्त कर हनुमान जी ने उनसे कहा माँ मुझे भूख लगी है अगर आप कहे तो मैं अशोकवाटिका से कुछ पल खा लूँ –“लागि देखि सुंदर फल रूखा।“  इसके बाद आज्ञा पाकर अशोकवाटिका में सुंदर फलों का आहार कर वाटिका उजाड़ना, रावण के सेना ओर उसके बेटे अक्षयकुमार को मारना फिर मेघनाथ द्वारा हारने कि स्थिति में हनुमान पर ब्रम्हपाश छोडना ओर हनुमान का उसमे बंधाना, रावण की सभा में जाना, रावण को उपदेश देना, रावण का क्रोधित होना, पूंछ में आग लगाना ओर उस आग से हनुमान द्वारा पूरी लंका का दहन करना,सागर में पूंछ बुझाकर वापिस सीता के पास अशोकवाटिका में आना उनसे चुड़ामणि लेकर सागर के पार आना, वानर साथियों के साथ मिलना। मधुबन के फल खाना ओर उसे उजाड़ना, राम जी के पास सीता का संदेश सुनाना, राम द्वारा हनुमान को गले लगाना सुदरकाण्ड की ये सारी कथाएँ बड़ी ही सुंदरतम है।

हनुमानजी का सबसे बड़ा गुण ओर उनकी शक्ति अनेक स्थानों पर वर्णन गई है। वे दुरदर्शी थे कि सन्यासी का रूप रखकर निशाचर लोग छलते है,रावण के द्वारा सन्यासी के रूप में सीता का हरण जगजाहिर हो गया था । कालनेमि ने भी सन्यासी का रूप रखकर हनुमान को संजीवनी लाने से रोका था। दुरदर्शी हनुमान ने संभवतया ब्राम्हण रूप को उपयुक्त माना जो सत्य संभाषण ओर वेद पुराण ओर धर्म के आचार्य भी रहे इसलिए उन्होने ब्राम्हण का रूप रखा जिसका पहला प्रयोग हनुमानजी जी ने तब किया जब सुग्रीव को भय हुआ कि कोई मुनिकुमार उसके भाई बालि के भेजे उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं तब हनुमान ब्राम्हण वेष बनाकर रामलक्ष्मण के पास जाते हैं और सुग्रीव राम की मित्राता कराके दोनों का हित साधते हैं । विभीषण के पास भी वे रात्रि के अंत में ब्राम्हण बनकर जाते हैं और उनसे सीता अशोक वाटिका में बन्दिनी है, यह जानकारी प्राप्त करते है। आकार वे विचार करते हैं कि कैसे मैं जनकनंदिनी से बातें करूं कि सीता जी का विश्वास अर्जित कर लूं। यदि संस्कृत में वार्तालाप करूंगा तो कहीं वैदेही मुझे रावण समझ बैठे। अतः मैं जनभाषा में बातें करूंगा, यह विचार करने के बाद वे माता सीता के सामने अपने असली रूप वानर के रूप में परिचय देते हैं। या कहे जगजननी के  सामने भक्त जैसा है वैसे ही समर्पित होता है उनके सामने भक्त की माया का क्या मूल्य, वास्तविक रूप को माता स्वीकारती भी है। जब लक्ष्मण को शक्ति लगी तब वे संजीविनी बूटी लेने गये तो वे हक्काबक्का हो गये। वैद्यराज सुषेण ने बताया था कि संजीवनी का वृक्ष प्रकाशित रहता है। रात्रि में हनुमानजी ने पचासों पेड़ों को प्रकाशमय पाया। कोई दूसरा होता तो सोचता मैं क्या करूं चलो बता दूंगा वहां संजीवनी वृक्ष नहीं था, सारे वृक्ष प्रकाशमय थे, मैं किसे लाता? बुद्धि सागर हनुमान जी ने यह पर्वत खंड ही उखाड़ लिया जिस पर वे समस्त वृक्ष खड़े थे और प्रकाश दे रहे थे।

‘सुंदरे सुंदरी सीता “” के विषय में सुंदरकाण्ड, सीता के प्रधान चरित्र को प्रगट करता है यह अलग बात है कि हम अब तक हम भक्त हनुमान ओर अन्य प्रसंगो के चिंतन में खोये रहे। सम्पूर्ण नारी जगत को गौरवान्वित करने वाली सीता अपने नाम, रूप, गुण ओर चरित्र में सती के सतीत्व का तेज लिए हुये सर्वव्यपिनी चैतन्यस्वरूप त्याग की मूर्ति है। श्रीराम के निकट रहने के कारण वे जगदानन्दकारिणी है जो कुछ  देहविशिष्ट है सबकी उत्पत्ति,स्थिति ओर संहारणी सीतादेवी ही कही गई है इसलिए कहा गया है कि सीता ही प्रणय होने के कारण प्रकृति है। अध्यात्म रामायण में उल्लेख किया गया है कि “एको विभासि त्वं माया बहुरुपया। तथा- योगमायापि सीतेति।“” लोकविमोहिनी हरिनेत्रकृतालया श्रीसीताजी ने श्रीरामचन्द्र जी के अभिप्रायानुसार श्रीसीता जी राम के एक सर्वश्रेष्ठ भक्त को ज्ञान का पात्र जानकार एक वार तत्वज्ञान प्रदान किया था। श्रीसीता जी कहती है कि रामको परब्रम्ह सच्चिदानंद ही जानना चाहिए। एकमात्र सत्यवस्तु श्रीराम ही बहुरूपिणी माया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे है ओर सीता ही योगमाया है। “” मूलप्रकृतिस्वरूप होने से सीता सत्वरजस्तमोगुणात्मिका प्रकृति है जिन्हे त्रिवर्णात्मा साक्षात माया कहा है जो प्रपंच बीज, मायामयी कही गई है तथा वे अविद्यास्वरूपणी भी है ओर विघास्वरूपणी भी है। रामायण में जो कुछ होता है सीता उसकी कर्ता है,विश्व का सारा कार्य शक्तिरूप ही करती है। सीता हरण, रावण मरण सारे कर्म के मूल में कर्ता सीता कही गई है, वास्तव में निर्विकार एवं अखिल विश्व कि आत्मा सीता ही है। राम कुछ नहीं करते,जो कुछ होता है माया के गुणों के अनुग्रह से होता है।

       “”सकलकुशलदात्री,भक्तिमुक्तिप्रदात्री। त्रिभुवनजनयित्री दुष्टधीनाशयित्रिम॥

       जनकधरणीपुत्री दर्पिदर्पप्रहत्री। हरिहरविधिकत्री नौमि सदभक्तभत्रिम ॥

       भगवती सीता जी कि अपार महिमा है। वेद शास्त्र पुराण इतिहास तथा धर्म ग्रंथो में इनकी अनंत लीलाओ का शुभ वर्णन किया गया है। ये भगवान श्रीराम कि प्राणप्रिया आघ्याशक्ति है। इन्ही के भृकुटी विलास मात्र से उत्पत्ति  -स्थिति –संहारादि कार्य हुआ करते है।  श्रुति का वाक्य है –उत्पत्तिस्थितिसंहारकारिणी सर्वदेहिनाम। सा सीता भगवती ज्ञेया मूलप्रकृतिसंज्ञिता ॥ (श्रीरामतापनीय-उत्तराध्र्द) समस्त देह धारियों की उत्पत्ति,पालन तथा संहार करने वाली आघ्याशक्ति मूल प्रकृति संगयक श्री सीता जी ही है। अत: सुंदरकाण्ड में हनुमान ओर सीता का प्रसंग सुंदर है इसलिए  ‘सुंदरे सुंदरी सीता “” जैसे मांगलिक भाव का रसास्वादन लेने के लिए ही रामायण में काण्ड का नाम सुंदरकाण्ड रखा गया है जो उत्तम है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों? आत्माराम यादव पीव
रामायण में काण्ड का नाम सुन्दर काण्ड क्यों? आत्माराम यादव पीव
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg024eeArZlYGVBkJQDMEDkaQUmKNlOFzfNdoW56VOiNrpOrw5g1GkaaQdssQLBM9t0mh0HBMbHlZueSlUXJ5Xhf6VIqVPwvIkI5tRfs3WWDY2i81AEFIm48yZdsdiIcucxT9GD/s320/atmaram+yadav-770110.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg024eeArZlYGVBkJQDMEDkaQUmKNlOFzfNdoW56VOiNrpOrw5g1GkaaQdssQLBM9t0mh0HBMbHlZueSlUXJ5Xhf6VIqVPwvIkI5tRfs3WWDY2i81AEFIm48yZdsdiIcucxT9GD/s72-c/atmaram+yadav-770110.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/04/blog-post_31.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/04/blog-post_31.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content