"जलीय आक्रामक विदेशी प्रजातियों से खतरा" -डॉ दीपक कोहली- पारिस्थितिकी में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रव...
"जलीय आक्रामक विदेशी प्रजातियों से खतरा"
-डॉ दीपक कोहली-
पारिस्थितिकी में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश के चलते न केवल स्वदेशी प्रजातियों के अस्तित्व के लिये खतरे की स्थिति बन गई है बल्कि इससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। भारत में बढ़ती इस समस्या के समाधान के लिये व्यापक शोध एवं अध्ययन की आवश्यकता है ताकि नीति निर्माण में इस समस्या को महत्त्व देते हुए आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
बादल फटने से आने वाली बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में जलीय आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश में वृद्धि हुई है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र, प्राकृतिक वास तथा देशज प्रजातियों को क्षति पहुँचती है। हाल ही में केरल विश्व विद्यालय द्वारा कराये गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई कि वर्ष 2018 में आई बाढ़ के चलते केरल की आर्द्र्भूमियों में कुछ हानिकारक मत्सय प्रजातियों [जैसे- आरापैमा (Arapaima) और एलिगेटर गार (Alligator Gar) ने प्रवेश किया। ये अवैध रूप से आयातित मत्सय प्रजातियाँ हैं जिन्हें देश भर में सजावटी और वाणिज्यिक मत्सय व्यापारियों द्वारा पाला जाता है।
अपने मूल क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों को विदेशी प्रजातियाँ कहा जाता है। इन्हें आक्रामक, गैर-स्वदेशी, एलियन प्रजातियाँ अथवा जैव-आक्रांता (Bioinvaders) भी कहा जाता है।
ये प्रजातियाँ किसी स्थान पर पाई जाने वाली स्वदेशी प्रजातियों से जैविक और अजैविक संसाधनों के संदर्भ में प्रतिस्पर्द्धा कर स्थानीय पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।
एलियन शिकारी मछलियाँ आसानी से नए पारिस्थितिकी तंत्र में खुद को आसानी से ढाल लेती हैं। एक बार पारिस्थितिकी तंत्र में ढल जाने के बाद ये मछलियाँ मूल प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने लगती हैं। उदाहरण के लिये- गोल्ड फिश, अमेरिकन कैटफ़िश, टाइनी गप्पी, थ्री-स्पॉट गौरामी।
*गोल्ड फिश: यह मछली जलीय वनस्पतियों के साथ ही मूल प्रजातियों के वंश-वृद्धि क्षेत्र को भी कम करती हैं।
*अमेरिकन कैटफिश: यह मछली अत्यधिक चराई (Overgrazing) की वज़ह से खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करती है। ये मछलियाँ शैवाल भक्षक भी कहलाती हैं।
वस्तुत: जब विदेशी प्रजातियों को जानबूझकर या अनजाने में एक प्राकृतिक वास में प्रवेश कराया जाता है तो उनमें से कुछ स्वदेशी प्रजातियों के पतन या विलोपन का कारण बनने लगती हैं। इन आक्रामक विदेशी प्रजातियों को आवासीय क्षति के बाद जैव-विविधता के लिये दूसरा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है।भारी बाढ़ के दौरान आक्रामक विदेशी मछलियाँ, जिन्हें घरेलू एक्वैरियम टैंक, तालाबों, झीलों और परित्यक्त खदानों सहित अवैध रूप से भंगुर प्रणालियों में रखा जाता हैं, आसानी से समीप की आर्द्र्भूमियों में प्रवेश कर जाती हैं।
धीरे-धीरे ये प्रजातियाँ पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन कर स्थानीय विविधता को क्षति पहुँचाने लगती हैं।
वर्तमान में भारत के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में ऐसी आक्रामक सजावटी और व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों के अवैध पालन, प्रजनन एवं व्यापार के संबंध में कोई सुदृढ़ नीति या कानून मौजूद नहीं है।
विदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियाँविदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियों में सबसे अधिक संख्या जीनस एसाइडिया (Ascidia) (31) की है।इसके बाद इस क्रम में आरथ्रोपोड्स (Arthropods) (26), एनालडि्स (Annelids) (16), सीनिडेरियन (Cnidarian) (11), ब्रायोजन (Bryzoans) (6), मोलास्कस (Molluscs) (5), टेनोफोरा (Ctenophora) (3) और एन्टोप्रोकटा (Entoprocta) (1) का स्थान आता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, टूब्रैसट्रिया कोकसीनी (Tubastrea Coccinea) अथवा ऑरेंज कप-कोरल, यह प्रजाति इंडो-ईस्ट पैसिफिक में पाई जाती है, लेकिन अब यह प्रजाति अंडमान निकोबार द्वीप समूह, कच्छ की खाड़ी, केरल और लक्षद्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही है।उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में अवैध रूप से आयातित सजावटी और व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों की स्टॉकिंग एक मुनाफे का व्यवसाय है। उत्तरी चेन्नई में कोलाथुर अपने सजावटी मछली व्यापार (80 से अधिक दुकानें) के लिये जाना जाता है और क्षेत्र के अधिकांश निवासी 150-200 विदेशी सजावटी मछली प्रजातियों के प्रजनन और बिक्री में संलग्न हैं। इन प्रजातियों के प्रजनन के लिये अधिकतर छोटे सीमेंट के गढ्ढों, मिट्टी के तालाबों, प्लास्टिक-लाइन वाले पूलों, होमस्टेड तालाबों आदि का उपयोग किया जाता हैं। इस क्षेत्र में आने वाली मौसमी मानसूनी बाढ़ विदेशी प्रजातियों के प्रजनन स्टॉक और वयस्क मछलियों को बहाकर ताज़े जल में प्रवेश करा देती है।
मानसून के मौसम में जलाशयों में वर्षा की मात्रा, जल स्तर और परिवहन, संचार और बिजली सहित आवश्यक सेवाओं के विषस्य में विवरण जारी किया जाता हैं लेकिन इससे जैव-विविधता को होने वाले नुकसान के विषय में कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
विभिन्न नदी प्रणालियों में पाई जाने वाली प्रमुख भारतीय मत्स्य प्रजातियां नील टीलापिया, अफ्रीकी कैटफिश, थाई पंगुस जैस कई विदेशी प्रजातियों के आक्रमण के कारण प्रभावित हुई हैं। ये स्थानीय जल निकायों से पहले से विद्यमान प्राकृतिक प्रजातियों के विलुप्त होने में भी योगदान करती हैं।हालाँकि जलीय जैव-विविधता के संरक्षण नीति के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके संदर्भ में केवल यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता हैं कि राज्य सरकार ने मानसून के मौसम में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के पलायन को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिये अभी तक कोई नीति नहीं बनाई है। हालाँकि इस समय विशेषज्ञों के परामर्श से एक नीति का मसौदा तैयार करने की आवश्यकता है।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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