शहीदी दिवस उनको भी याद करो जो लौट के घर को न आये, गांधी, बापू की धरती को, जिन्होंने है जन्नत बनाये. उनको भी याद करो जो लौट के घर को न आय...
शहीदी दिवस
उनको भी याद करो जो लौट के घर को न आये,
गांधी, बापू की धरती को, जिन्होंने है जन्नत बनाये.
उनको भी याद करो जो लौट के घर को न आये.
बलिवेदी को परिणय वेदी, फांसी को वरमाला गाये.
वे भी तो अपनी भरी जवानी में, देश को प्राण चढ़ाये.
माँ चुनरियां धानी बनी रहे,
खुद को बसंती बनाये.
जिनको फिकर नहीं, अपने घरों की, देश को घर जो बताये.
हँसते हँसते फाँसी जो झूले,
भारत को अमर बनाये.
आज शहीदी दिवस पर 'किशन' क्यूँ,
आँख तेरी भर आये.
उनको तो याद करो, जो लौट के घर को न आये......
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योजना
चलो अब फिर से योजना बनाते हैं, सारे विश्व को फिर से समझाते हैं.
शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, पर्यावरण, पर्यटन, बागवानी,
कृषि, जनसंख्या, परिवार, अर्थव्यवस्था की योजनाएँ बनाते हैं.
सर्व शिक्षा अभियान को सारे जग में फैलाते हैं,
स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन
की दिशा निर्देशों को अपनाते है.
न्याय सस्ता, सुलभ और गरीबों, मजलूमों के हक में हो,
ऐसा कोई नया कानून हम सब बनाते हैं.
पर्यावरण की भी कुछ देखभाल ऐसी हो
कि मानवता पर लोभ लिप्सा हावी न हो जाए,
ऐसा पर्यावरण संरक्षण का कठोर नियम बनाते हैं.
जिससे कोई चीन का वुहान न बने,
सारा विश्व ही कब्रिस्तान न बनें,
ऐसी कोई नई योजना को अमलीजामा पहनाते है.
प्राकृतिक सुषमा तो ऐसी हो कि
आधी से अधिक बिमारियाँ नैसर्गिक प्राकृतिक
निरिक्षण से ही दूर हो जाए,
प्रकृति चिकित्सा का कुछ ऐसा आयाम, सोपान बनाते हैं.
बागवानी, कृषि की पुरानी परिपाटी को संवृद्धि करते हुए,
नये तकनीकों का उपयोग कर,
भारत कृषि प्रधान देश था,
है और रहेगा, सिन्धु नदी घाटी की संस्कृतियों का
पुनः सृष्टि कर,
वेदों की ऋचाओं को सार्थक, सफलीभूत बनाते हैं.
जनसंख्या का मानवीय संसाधन के रूप में
उपयोग करते हुए,
इसकी मेधा, सर्जना,
शक्ति को और प्रखर,
प्रबलतम बनाते हैं.
परिवार नाभिकीय परिवार न हो,
संयुक्त हो, जिसकी प्रशंसा संयुक्त राष्ट्र संघ ने की हो,
जहाँ चार पीढ़ियां एक साथ ज्ञान,
अनुभव का पीढ़ियों में स्थानांतरण करते हो,
ऐसी योजना हमें बनानी है.
अर्थव्यवस्था भी सुगठित हमें बनानी होगी,
आज की नहीं कि गरीब और गरीब होता जाय
और अमीर और अमीर होता चला जाय,
धन का वितरण ऐसा होना चाहिए कि
कबीर की यह उक्ति प्रासंगिक बन जाय कि
साईं इतना दीजिये जामे कुटुबं समाय,
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय.
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लक्ष्मण रेखा
लक्ष्मण रेखा खींच ली पर किया क्या इसका अनुमान.
है नहीं आसान यह है नहीं आसान.
नहीं माना माता जानकी ने पार की लक्ष्मण रेखा.
देखा क्या हाल हुआ, रावण ने अशोक वाटिका में रखा.
रोते रोते राम लखन का हाल हुआ बेहाल .
तुम भी मानों बात मेरी, निकलो न घर से यार.
तोड़ो न यह लक्ष्मण रेखा, मच रहा हाहाकार.
वैश्विक महामारी कोरोना को हराना है,
हमारे घर में ही रहने से, भारत देश को बचाना है.
गर नहीं माने बात तो यह याद रखना,
खुद को भी बचाना मुश्किल हो जायेगा.
लाकडाउन का रखों ख्याल, जीवन बने बेमिसाल.
लक्ष्मण रेखा ना तोड़ो यार, जीवन बन जाएगा बेकार.
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संयम
संयम का यह वक्त है, देश करे पुकार.
अब तो जनता मान ले, वक्त की ये धार.
जीवन में संयम बड़ा, होता महत्वपूर्ण अंग.
अनुशासन के बिना, चले न देश, न जीवन.
आज जरूरत संयम की, बात ये लो मान.
देश की है यह परीक्षा, इसको लो तुम जान.
संयम से जीवन बने, संयम से देश महान.
संयम जिसने तज दिया, देश बना मुल्क मसान.
संयम का व्यवहार कर, बने हैं लोग महान.
संयम ही आधार है, संयम राष्ट्र निर्माण.
संयम की ही बात कहे, तो तुम 'किशन' इसे मान.
संयम की है जरुरत, राष्ट्र करे आह्वान.
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लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं.
दिनाँक-२७-०३-२०२०
कभी कभी किताबों में हम जिंदगी ढूँढ लेते हैं.
कभी टीवी पर हम रामायण, महाभारत देख लेते हैं.
तेरी याद आते ही कोई गीत गुनगुना लेते हैं.
लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं.
पूरे परिवार संग अब जिन्दगी का मज़ा लेते हैं.
कभी अपने बच्चों संग हँसते तो कभी गा लेते हैं.
जिंदगी ऐसे ही कट रही है, हम संजीदा नहीं होते हैं.
प्यारी पत्नी की पलकों तले सुख का छाँव ढूँढ लेते हैं.
अब दुनिया को क्या ढूँढना हम अपनी दुनिया ढूँढ लेते हैं.
इक्कीस दिनों की है बस बात दो चार दिन ऐसे काट लेते हैं.
हम भँवर में भी बचने को किनारे ढूँढ लेते हैं.
आशिक मिजाज है हम आशिकाना ढूँढ ही लेते हैं.
दोस्तों से बचने का बहाना ढूँढ लेते हैं.
दिलबर से दिल लगाने का ठिकाना ढूँढ लेते हैं.
हम वो परवाने है जो शमा को ढूँढ लेते हैं.
इस विनाश में भी बचने का आशियाना ढूँढ लेते हैं.
मीरा ने कहा कन्हैया से हम 'किशन' को ढूँढ लेते हैं.
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हौसला
हौसला रख न ईश्वर को भूल, अच्छे दिन आएंगे, करो कबूल.
दु:ख भी कटता है और सुख भी कटता है.
दिन भी कटता है और रात भी कटती है.
पर ईश्वर को तू कभी न भूल,
भक्ति में हो जा मशगूल.
सिकन्दर भी आये, कलंदर भी आये.
न कोई रहा है, न कोई रहेगा.
करोना की औकात है बस इतनी कि इक्कीस दिन बाद वह खुद ही मरेगा.
दिन है ये भारी, सितम भी है भारी.
मगर क्या करे ये अलम भी है भारी.
वक्त का दरिया न रोके रुका है.
पहला गया था वैसे जाएगा यह भी.
हौसले से चींटी समन्दर पार कर जाती है और गीदड़ उसमें डूब मरता है.
हौसला सामान्य आदमी को असामान्य बनाता है.
वह इंसान में भगवान दिखाता है.
ईश्वर भी उसी की मदद करता है, जो हौसला कायम रखता है.
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सहयोग
आज समस्त विश्व को सहयोग की
परमावश्यकता है लोगों के सहयोग की.
इस विश्व विपदा की घड़ी में सहयोग की
मानवता को बचाने में सहायक होगी.
यह युद्ध अब वैश्विक हो चला है,
इसके तौर तरीके बदल गये हैं.
अब युद्ध अस्त्र शस्त्रों से नहीं धूर्तता से
थोपी जा रही है, जो कलंक है.
मानवता को शर्मसार करने वाला है,
आज आदमी आदमी के खून का प्यासा हो गया है.
उसकी आदमियत घास चरने चली गई है.
वह मानवता से खून की होली खेल रहा है.
ये इंसान को क्या होता जा रहा है.
हम स्वयं ही स्वयं के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.
कैसे ये धरा रहेगी, कैसे इसका अस्तित्व बचेगा,
कौन इसका तारनहार बनेगा.
आज सिर्फ और सिर्फ सहयोग से ही
इस धरा को बचाया जा सकता है.
मानवता को जिन्दा रखा जा सकता है.
बस इसी सहयोग की आवश्यकता है.
आज बस यही कारगर साबित होगा.
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श्रीराम जन्मोत्सव
आज अवतरित हुए है राम, धन्य धरा और धन्य अयोध्या धाम.
लेकर तेरा नाम राम है ऋषि मुनियों ने जीवन संसार सँवारा.
धन्य हुई है धरती अयोध्या, जिसके कण कण में श्रीराम बसे है.
परम पुनीत सलिला सरयू, घाट है जिसके उज्जवल हुए है.
आज का दिवस महा पावन है, धरा पुलकित है चहूँ ओर छटा है.
घर घर आज बधैया बाजे, अयोध्या नगरी ललना बना है.
हम भी तो इस पुण्य धरा, तेरा यह यशगान कर रहे.
राह दिखाई जो बलिवेदी की उसकी तो पहचान कर रहे.
हम भी तेरे अंश को पाये, मानवता का त्रास हर सके.
आज के इस पुण्य दिवस पर तेरा ही जय गाने कर सके.
हममें ऐसी शक्ति भर दो, दलित, अछूत,
आदिवासियों के हित में ही कुछ काम कर सके.
नाम तेरा हो, गुणगान तेरा हो, विश्व मानवता भान कर सके.
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अनेकता में एकता
अनेकता में एकता, हिन्द की विशेषता, यही तो भारत वर्ष है.
याद करो इतिहास का पन्ना, कर्मवती ने गुहारा था,
हुमायूँ ने सेना लेकर बहन की राखी का कर्ज उबारा था.
मोहन को भजते है रसखान, रहीम को है भारतीय संस्कृति का भान.
अब्दुल हमीद भी था रक्षक, बम जो घट गयी किया आत्मोत्सर्ग.
हम दूर क्यों जाते है भाई, हमें याद आतें है अबुल कलाम भाई.
पाकिस्तान को सबक सिखाने को जिन्होंने मिशाईल आजमायी.
सादा जीवन था उच्च विचार, शिक्षा की पूँजी ही काम आयी.
ये जाति धर्म छोड़ो भाई, इसने ही तो भारत में आग लगायी.
ये घड़ी बड़ी है संयम की, यह वक्त देश में नाजुक है.
ऐसे मत बनों तुम आत्महंता, ये वक्त बड़ा ही विभाजक है.
हमने तो इस मिट्टी में कुछ संस्कार के बीज तो बोये है.
धरती की आन को रखने को कबीर,गौतम,
गांधी बोये है.
है आज जरूरत आदमियत की, मानवता की लाज बचानी है.
कुछ शर्म करो, कुछ शर्म करो ऐसे न इसको मिटानी है.
चाहे हो अलग पंथ हमारे, चाहे रवायत बिताने हो.
हम दिखे भले ही अनेक मगर भारत माँ की लाज बचानी है.
अलग अलग हम दिखें मगर अनेकता में एकता को दिखानी है.
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व्यापार
आज समस्त विश्व का व्यापार, हो गया है लाचार, कोरोना का है प्रसार.
चौपट है व्यापार, व्यापार का पहिया है अवरुद्ध, व्यापारी गण क्रुद्ध.
महामारी ने पाव पसारा है, मानवता पर संकट भारी है.
लोभ, लिप्सा, साम्राज्यवाद ने दानवता जगायी है,
सहस्त्र फणों की लोलुपता ने यह महामारी फैलायी है.
अर्थ की भूख ने आज ऐसा दिन दिखलाया है,
मर रहे लोग, तड़प रहे हैं लोग, चीत्कार
संसार भर में समाया है.
मानव की ये लिप्सा आज इतनी बढ़ जाएगी,
मानव-मानव का ग्रास बनेगा, सारी धरती थर्रायेगी.
अभी तो कलियुग का यह प्रथम चरण है,
मानवता को लीलने का ये अजब ढंग है,
शर्मशार है ये मानवता बेशर्म है ये मानव,
धिक्कार है इनका जीवन, चीत्कारे जन,
हाय व्यापार, हाय व्यापार, हाय व्यापार,
ये चीत्कार, ये चीत्कार, नर संहार!!!!!.
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मैं केवट हूँ.
मैं केवट हूँ, मैं केवट हूँ,
लहरों पर जीवन का व्यापार करता हूँ.
मैं मिलावट नहीं करता, जीवन का सार कहता है.
लोगों को पार पहुँचाना, मेरे जीवन का उद्देश्य है.
किन्तु मेरा जीवन किसी पार नहीं पहुँचता,
इसका अपार कष्ट है.
मुझे प्रसन्नता होती है मैं बिछड़ों को मिलता हूँ,
उनमें आस जगाता हूँ.
जल के भँवर में मेरा जीवन लहर लेता है,मैं
मस्ती का गीत गाता हूँ.
लहरों से याराना है मेरा, जल जीवन, जमीन ठिकाना है मेरा.
मुझे भी इंतजार है उस पार लग़ैया की,
जिसके पांव को पखारकर, मेरा भी जन्म सुधर जाये,
वो प्रभु श्रीराम कब आओगे, मेरे भगवन कब आओगे,
इस संसार सागर से कब पार लगाओगे, मेरे प्रभु कबआओगे
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
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