साक्षात्कार इंद्रधनुषी वैश्विक बेहतर समय रच सकें मेरी यही कामना है . विवेक रंजन श्रीवास्तव A 1 , शिला कुंज , नयागांव , जबलपुर *विज्ञ...
साक्षात्कार
इंद्रधनुषी वैश्विक बेहतर समय रच सकें मेरी यही कामना है .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
A 1 , शिला कुंज , नयागांव , जबलपुर
*विज्ञात : विवेक जी, वैसे तो आप किसी परिचय के मोहताज नहीं है। लेकिन फिर भी हमारे पाठक आपका परिचय आपके शब्दों में जानना चाहते हैं ?
*विवेक रंजन : विज्ञात जी, अपने मुंह अपनी क्या कहना , संकोच होता है . किन्तु इतना बताना चाहता हूं कि खुद अपने आप को ही नही पहचान सका हूं अब तक . हर बार सेल्फी एक नया ही रूप खींच दिखाती है . व्यवसाय से विद्युत मण्डल में मुख्य अभियंता हूं . इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेडुएट हूं . मन से कवि , लेखक , स्वभाव से व्यंग्यकार हूं . १२ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं . नाट्य लेखन के लिये साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश से सम्मान मिल चुका है . नियमित पढ़ता हूं , परिणामतः पढ़ी पुस्तक की चर्चा भी करता रहता हूं .
*विज्ञात : विवेक जी, साहित्य के प्रति आपकी रुचि कैसे जागृत हुई ?
*विवेक रंजन : साहित्य मुझे विरासत में मिला है .मेरे पूज्य पिताजी प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्ध हिन्दी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान हैं . मेरी किशोरावस्था मण्डला में मां नर्मदा के तट पर , मेकल पर्वतो के सुरम्य जंगलो के परिवेश में बीती है . मुझे याद है हाईस्कूल पूरा करते करते मैंने जिला पुस्तकालय मण्डला , व श्रीराम अग्रवाल पुस्तकालय मण्डला की लगभग सारी साहित्यिक किताबें पढ़ डाली थी .
*विज्ञात : विवेक जी, साहित्य से पृथक अभिरुचि के विषय क्या क्या हैं ?
*विवेक रंजन : नई तकनीक में मेरी अभिरुचि हमेशा से रही है . तकनीकी विषयों का हिन्दी में लेखन इसी वजह से किया है . पर्यटन , नाटक ,मंच संचालन, फोटोग्राफी से भी गहरा लगाव रहा . कालेज में मैँ फोटोग्राफी क्लब का अध्यक्ष था , वे दिन थे जब डार्करूम में लाल लाइट में सिल्वर आयोडाइड से फिल्म धोई जाती थी . मुझे फोटोग्राफी में अनेक पुरस्कार भी मिले . उद्यानकी में रुचि है , मेरे बनाये ४० वर्ष पुराने बोनसाई अभी भी मेरे बगीचे में मुझसे बातें करते हैं .
*विज्ञात : विवेक जी, आपकी पसंदीदा विधा अथवा रस कौन-कौन से हैं, जिसके कवि आपको सबसे अधिक अच्छे लगते हैं ?
*विवेक रंजन : विज्ञात जी, वीर रस सदाबहार होता है , जो उत्साह , आशा का संचार करता ही है . श्रंगार प्रिय है . व्यंग्य की अभिव्यंजना लुभाती है .
*विज्ञात :साहित्य की एक वह विशेष बात क्या रही जिसने आप को हिन्दी साहित्य सेवा और निःशुल्क प्रकाशन के लिए सबसे अधिक आकर्षित किया ?
*विवेक रंजन : जंगल में मोर नाचा किसने देखा ? जब कुछ कुछ नाचना आने लगा , मतलब जब स्कूल कालेज की पत्रिकाओ में छपा तो उत्साह बढ़ता गया . पाठको से मिली प्रशंसा से प्रकाशन की ओर झुकाव हुआ .
*विज्ञात : विवेक जी, आप अपने प्रकाशन के माध्यम से साहित्य सेवा करते आ आ रहे हैं, इस सेवा भावना के पीछे वो कौनसी शक्ति है जिसको आप श्रेय देना चाहोगे ? अर्थात प्रेरणा स्रोत किसे मानते हैं ?
*विवेक रंजन : मेरे पिता , मेरी विदुषी लेखिका माँ तो मेरी प्रेरणा हैं ही . फिर विवाह हुआ तो वह भी एक साहित्यिक परिवार में . मेरे स्व श्वसुर स्व वासुदेव प्रसाद खरे की देवयानी हिन्दी का महाकाव्य है . पत्नी कल्पना स्वतंत्र लेखिका हैं , वे मेरी हर रचना की प्रथम श्रोता होती हैं . उनकी प्रेरणा से मेरा उत्साह निरंतर बना रहता है .
*विज्ञात : विवेक जी, आपके जीवन में कोई ऐसी विशेष घटना जो प्रेरणादायक रही है और आप उसे गर्व से साझा करना चाहते हैं ?
*विवेक रंजन : जीवन निरंतरता का ही दूसरा नाम है . जब मेरी पहली बेटी हुई तो हमारे जीवन में एक नया उजास महसूस हुआ . साहित्य के क्षेत्र में कहूं तो साहित्यिक सामाजिक कार्यो के लिये गाडफ्रे फिलिप्स रेड एण्ड व्हाइट पुरस्कार मिला , साहित्य अकादमी का सम्मान भी उल्लेखनीय रहा .
*विज्ञात : विवेक जी, आपको क्या लगता है एक लेखक की कलम का उद्देश्य आत्मसुखाय चलना सही होता है या साहित्य और समाज का कल्याण करते हुए ?
*विवेक रंजन : आपने स्वयं प्रश्न में ही उत्तर भी दे दिया है . यह बिल्कुल सही है कि रचना आत्म सुख देती है , किन्तु उसमें समाज कल्याण अंतर्निहित होना ही चाहिये अन्यथा रचना निरर्थक रह जाती है .
*विज्ञात : विवेक जी, आप साहित्य सेवा कर रहे हैं ऐसे में आपके साहित्यकार होने पर आपके मित्र और परिवार के लोग आपको कितना पंसद करते है ?
*विवेक रंजन : साहित्य ने मुझे सदैव समाज में , मेरे कार्यक्षेत्र में एक अलग पहचान दी है . मुझे साहित्यकार होने के नाते बहुत सम्मान से लोग सुनते व स्वीकारते हैं . इंजीनियर होने के नाते तार्किक रूप से मैं स्पष्ट बात करता हूं , और साहित्यिक जिम्मेदारी मुझे मृदु भाषी बनाती है , कुल मिलाकर व्यक्तित्व ऐसा बन गया है कि मित्र परिवार सभी कुछ ज्यादा ही पसंद करते हैं .
*विज्ञात :विवेक जी, आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रति आप क्या दृष्टिकोण रखते हैं? आपके विचार से साहित्य को और समृद्ध बनाने के लिए क्या क्या कदम उठाये जाने चाहिए ?
* विवेक रंजन : साहित्य , अपनी भूमिका स्वयं निर्धारित करता रहा है . कोई भी काम विचार के बिना नही हो पाता . साहित्य विचार देता है . कभी पत्रिकाओ का बोलबाला था , अब ई प्लेटफार्म बढ़ गये हैं , जिनने पत्रिकाओ को स्थानापन्न कर दिया है . ई बुक्स आ रही हैं , पर आज भी प्रकाशित किताबो और साहित्य का महत्व निर्विवाद है . साहित्य हमेशा से राजाश्रय की चाह रखता है , क्योंकि विचार अमूल्य जरूर होते हैं , पर उसका मूल्य कोई चुकाना नही चाहता . सरकार को साहित्यिक विस्तार की गतिविधियो को और बढ़ाने की जरूरत है .
*विज्ञात : विवेक जी, जो नए लेखक या कवि आ रहे हैं उनके लिए आपका दृष्टिकोण ? उनके लिए क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
*विवेक रंजन : मैं देखता हूं , नई पीढ़ी छपना तो चाहती है , पर स्वयं पढ़ना नही चाहती . इससे वैचारिक परिपक्वता का अभाव दिखता है . जब १०० लेख पढ़ें तब एक लिखें , देखिये फिर कैसे आप हाथों हाथ लिये जाते हैं . गूगल त्वरित जानकारी तो दे सकता है , ज्ञान नही , वह मौलिक होता है , नई पीढ़ी में मैं इसी मौलिकता को देखना चाहता हूं .
*विज्ञात : विवेक जी, हमारे लिए कोई दिशा निर्देश देना चाहें तो स्वागत है
*विवेक रंजन : विज्ञात जी आपने बेहद महत्वपूर्ण तथ्यों पर यह साक्षात्कार लिया है , आपके प्रति मैं हृदय से आभारी हूं . साहित्य के माध्यम से हम सब एक इंद्रधनुषी वैश्विक बेहतर समय रच सकें मेरी यही कामना है .
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