"कोरोना वायरस से बचने के लिए क्वारंटाइन और आइसोलेशन " -डॉ दीपक कोहली- वैश्वीकरण ने विभिन्न समाजों और अ...
"कोरोना वायरस से बचने के लिए क्वारंटाइन और आइसोलेशन "
-डॉ दीपक कोहली-
वैश्वीकरण ने विभिन्न समाजों और अर्थव्यस्थाओं के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके कारण विश्व में विभिन्न लोगों, क्षेत्रों एवं देशों के मध्य अन्तःनिर्भरता में वृद्धि हुई है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (COVID-19) के संक्रमण से पूर्व वैश्वीकरण के पक्ष में उपर्युक्त तर्कों को सुनना आम बात थी। कोरोना वायरस की महामारी आज भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बनकर खड़ी है। अब पूरी दुनिया में इसका असर भी दिखने लगा है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्वीकरण के कारण आपसी संपर्क बढ़ने से पूरा विश्व इस गंभीर बीमारी के प्रति सुभेद्य हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 190 देशों में 1,000,000 से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से बचने का प्राथमिक उपचार क्वारंटाइन व आइसोलेशन विधि है। सामान्यतः "क्वारंटाइन" शब्द लैटिन भाषा के शब्द क्वारेंटेना (Quarantena) से बना है। जिसका मूल अर्थ ‘40 दिन के समय’ से है। इसका मतलब संगरोध या संगरोधन या किनारे पर आने-जाने से रोकना है। ऐसी कोई बीमारी, जिसकी मानव से मानव में स्थानांतरित होने की पुष्टि हो चुकी है और उस दौरान यदि किसी व्यक्ति के संक्रमित होने की आशंका होती है, भले ही उसमें संक्रमण के लक्षण न प्रकट हुए हो तो भी उस व्यक्ति की गतिविधियाँ को एक स्थान विशेष में सीमित कर दिया जाता है।
दरअसल, पुराने समय में जिन जहाज़ों में किसी यात्री के रोगी होने या जहाज़ पर लदे माल में रोग प्रसारक कीटाणु होने का संदेह होता था, तो उस जहाज़ को बंदरगाह से दूर चालीस दिन ठहरना पड़ता था। प्राचीन काल में विभिन्न समाजों ने संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिये संगरोध का सहारा लिया है, तथा यात्रा व परिवहन पर प्रतिबंध लगाया है। इतना ही नहीं संक्रमित व्यक्तियों के संक्रमण मुक्त होने तक समुद्री संगरोध (Maritime Quarantine) का भी सहारा लिया। ग्रेट ब्रिटेन में प्लेग को रोकने के प्रयास के रूप में इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी। वर्ष 1824 में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल ने अपने एक आदेश में कहा कि किसी संक्रामक रोग के प्रसार की आशंका में राज्य के पास क्वारंटाइन कानून और स्वास्थ्य आपातकाल के दिशा-निर्देशों को लागू करने का पूर्ण अधिकार है। बैक्टीरिया या वायरस संक्रमण के तेजी से हो रहे प्रसार को कम करने के लिये क्वारंटाइन को सबसे प्रभावी और पुराना तंत्र माना जाता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के रखरखाव और बीमारियों के संचरण को नियंत्रित करने के लिये दुनिया के सभी न्यायालयों द्वारा कानूनी रूप से अनुमोदित किया गया है। यह दर्शाता है कि चिकित्सा जगत ने क्वारंटाइन विधी को संक्रामक बीमारियों के प्रसार को रोकने में एक प्रभावी उपाय के रूप में मान्यता दी है।वर्ष 1377 में यूरोप महाद्वीप में तेज़ी से फैल रहे प्लेग के प्रसार को रोकने के लिये ग्रेट काउंसिल (Great Council) ने पहली बार मेडिकल आइसोलेशन बिल को पारित किया। आइसोलेशन के अंतर्गत 30 दिन की समयावधि को निर्धारित किया गया, जिसे ट्रेंटिनो नाम दिया गया। जब इस समयावधि को बढ़ाकर 40 दिन कर दिया गया तब इसे क्वारंटाइन नाम से जाना जाने लगा।
सामान्य रूप से "आइसोलेशन" प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित हो जाता है। इस प्रक्रिया में संक्रमित व्यक्ति को अन्य गैर संक्रमित लोगों से अलग कर दिया जाता है ताकि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में न स्थानांतरित हो पाए। वहीँ क्वारंटाइन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब किसी समूह या समुदाय के संक्रमित होने की आशंका व्यक्त की जाती है।
आइसोलेशन का कार्य स्वास्थ्य उपकरणों से लैस परिसरों यथा: हॉस्पिटल, मेडिकल सेंटर, मेडिकल कॉलेज इत्यादि स्थानों पर ही संभव है। जबकि क्वारंटाइन की प्रक्रिया अस्थाई तौर पर सीमित स्वास्थ्य उपकरणों से लैस स्थानों पर अपनाई जा सकती है। व्यक्ति स्वयं को होम क्वारंटाइन भी कर सकता है अर्थात अपने घर के किसी एक कमरे में ही अपनी गतिविधियों को सीमित कर ले। जहाँ आइसोलेशन का उद्देश्य संक्रमित व्यक्ति को पूर्णरूप से संक्रमण मुक्त करना है तो वहीँ क्वारंटाइन का उद्देश्य संक्रमण की आशंका वाले समूह या समुदाय की निगरानी करना है।कोरोना वायरस के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आइसोलेशन की कोई निर्धारित समयावधि नहीं है क्योंकि यह व्यक्ति के पूर्णतः संक्रमण मुक्त होने तक कार्य करती है। जबकि क्वारंटाइन की समयावधि 14 दिन निर्धारित की गई है।
वर्ष 1990 में गोवा में कार्यरत वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फेडरेशन के एक कर्मचारी को HIV वायरस के संक्रमण से पीड़ित पाया गया। उसे गोवा पब्लिक हेल्थ (अमेंडमेंट) एक्ट, 1957 द्वारा तत्काल 64 दिनों की क्वारंटाइन अवधि में रखा गया। परंतु उस व्यक्ति द्वारा सरकार के इस कृत्य को अपने मूल अधिकारों के हनन के रूप में देखा गया और मूल अधिकारों की पुनर्बहाली हेतु बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई।वर्ष 1990 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि एकांतवास में किसी व्यक्ति को रखना निश्चित ही उसके मूल अधिकारों का हनन है, परंतु यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से पीड़ित है जिसका प्रसार एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति में हो सकता है तब ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पब्लिक हेल्थ के विरुद्ध प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जनहित को ध्यान में रखते हुए गोवा सरकार के क्वारंटाइन अवधि के निर्णय को सही पाया गया। वर्ष 2014 में इबोला नामक संक्रामक बीमारी का इलाज़ करने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका की एक महिला स्वास्थ्यकर्मी को कुछ दिनों के लिये क्वारंटाइन अवधि में रखने का निर्णय लिया गया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर जनहित व जन स्वास्थ्य को वरीयता दी गई।
भारत में एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897 के अनुसार, किसी संक्रामक बीमारी के प्रसार की आशंका में केंद्र व राज्य सरकार को निरोधात्मक उपाय करने की शक्ति प्रदान की गई है। यद्यपि भारत में जनसंख्या घनत्व अधिक है, फिर भी सरकार एवं स्वयंसेवी संस्थाओं ने क्वॉरेंटाइन एवं आइसोलेशन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। जागरूकता में कमी के कारण लोग अस्थाई तौर पर निर्मित किये गए क्वारंटाइन सेंटर्स से भाग जाते हैं।क्वारंटाइन सेंटर्स में निवास कर रहे लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करते हुए आपस में वस्तुओं का लेनदेन करते हैं। लेकिन सरकार क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन के संबंध में समय-समय पर दिशा निर्देश जारी कर रही है। सरकार का पूरा प्रयास है कि क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाए। किंतु सरकार के साथ-साथ हमारा भी यह कर्तव्य बन जाता है कि स्वयं, परिवार, समाज एवं देश को दृष्टिगत रखते हुए कोरोना से बचने के लिए सरकार एवं चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा जारी दिशा निर्देशों का शत-प्रतिशत पालन करें। तभी जाकर हमको इस कोरोना वायरस की महामारी से मुक्ति मिलना संभव हो पाएगा।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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