1. गीत - दिन लगता है दिन लगता है अब यार , जैसे थम गया है आज। दिन ढ़लता नहीं , चैन आता नहीं। जब हम साथ थे , तब दिन लगत...
1.गीत- दिन लगता है
दिन लगता है अब यार,
जैसे थम गया है आज।
दिन ढ़लता नहीं,
चैन आता नहीं।
जब हम साथ थे,
तब दिन लगते दौड़ते।
पर आज क्यों वक्त नहीं गुजरता?
दिल मेरा बहुत तड़प रहा।
यदि अपना वश चले तो
पल दिन-रात कर दें।
और कट जाये दिन जुदाई के
महीने का दिन कर हम मिल जाये।
फिर मेरी एक बात सुनो,
अब तुम भी ना जलाओ।
मैं हूँ एक वियोगी जो
मुझ पर रहम करो॥
एकबार तुम भी अपने
दिल की आवाज सुनिये।
- रतन लाल जाट
2.गीत- जबसे मुझे तू मिली
जबसे मुझे तू मिली
तो ऐसा लगा कि-
दिल को प्यार मिल गया
देखते ही तुझे
खुद को मैं भूल गया
और सपने तेरे सँजोने लगा
जब तुमने पलटकर देखा
तो धड़कन मेरी रूक गयी
बस खोया-खोया सोचने लगा
तू कौन है?
और क्या है?
जादू क्यों चलाया?
मुझ पर अपना।
जो मैं खुद से बेकाबू हो गया
तेरे बिना जीना भी मुश्किल हो गया
अब जाऊँ तो मैं कहाँ? कहाँ है तेरा बसेरा?
कौन बतायेगा मुझको? कहाँ है मेरी दिलोजां?
हरपल याद सताती
दिल को ना चैन कहीं
एक तड़प है सदा
आग दिल में जलाती
आँखों से बरसात होती
रातभर नींद ना आती
पागल मैं हो गया
तुम बिन मर जाऊँगा
कोई ना दर्द यह पूछेगा
ना किसी को कह पाऊँगा
कहना अगर किसी को चाहूँगा
तो कोई विश्वास ना करेगा
सब कहेंगे पागल मुझे
कौन दिल से लगायेगा
- रतन लाल जाट
3.गीत- प्यार है बाँटना
प्यार है बाँटना,
कभी ना माँगना।
रब ने हमें भेजा,
काम यह करना॥
चाहे दुनिया मेँ
कितनी नफरत हो?
पर हम फैलाये
प्रेम-मोहब्बत को॥
बस हमको है देना
बदले में कुछ नहीं लेना
तभी सच्चा रिश्ता
प्यार यह कहलाता
जन्नत बन जाती दुनिया
सब मानती हमको अपना
दिल को शुकून मिलता
और वो रब आशीष देता
- रतन लाल जाट
4. गीत- नाम प्रभु का
नाम प्रभु का जप तू मेरे मन।
कभी छोड़ ना उसका दामन॥
सुख-दुख में पल-पल याद रख।
बिन उसके कुछ नहीं हैं जग॥
सारे रिश्ते-नाते उसकी कृपा से।
सदा ही फलते-फूलते॥
नहीं रहना है, उस जगह जहाँ नहीं तुम।
आँखों में और दिल में बसे हो तुम।।
दुनिया में डगर कठिन है प्यारे।
कदम-कदम पर बिछे हैं काँटे॥
मेरा भरोसा है तेरे नाम पर।
पार लगाओ तुम नाव भवसागर॥
दिल नाजुक धागे,
बहुत लगते हैं कच्चे।
पता नहीं पलभर में,
क्या हो जाये?
मुझको वो शक्ति दो भगवन।
भूल ना जाऊँ मैं सत्संग।
पालनहारे को सबकी फिक्र है?
जो कभी ना किसी को मारे।
हार गया हूँ मैं सबकुछ।
पर जीत मिलेगी मुझको तेरे दर।।
- रतन लाल जाट
5.गीत- रे मनवा
जग में रहकर सुख-चैन से जो चाहे जीना।
रे मनवा तुम एक बात यह सदा याद रखना।।
हम सबको जन्म दिया है उसने।
अपना-पराया कोई नहीं वहाँ है॥
भक्ति उसकी आनन्द है।
प्रेम भी बड़ा पावन है॥
नाम उसका मनभावन और दर्शन भी सुहाना।
वो दाता हम सबका और हम दास है सदा॥
उसको ही दिल में बसाना है।
वो ही सच्चा अपना यारा है॥
एकपल भी ना भूलना है।
दिन-रात माला वो जपना है॥
सदा साथ है सबके वो एक अटल ठिकाना।
नामुमकिन है अपना उससे बिछुड़ना।।
- रतन लाल जाट
6.गीत- हमने इस धरती का नीर पीया
हमने इस धरती का नीर पीया।
सौंधी मिट्टी के संग खूब जीया॥
फिर कैसे रह पाएंगे? हम तेरे बिना।
माँ तेरे हालात को, कभी बिगड़ने देंगे ना॥
तेरी सुन्दरता में चाँद चार लगाने की ठानी है।
मनभावन हरियाली को चादर मखमली बनानी है।।
आओ, मिलकर हवा में प्यार की महक घोलें।
पानी में हम अमृत-सा एक रस तो भर दें॥
नफरत से देखो यह गन्दगी और कचरा।
कचरे को हटाकर बना दो एक रंगीन दुनिया॥
अपना प्यारा घर सारी दुनिया को बना लें।
सुखद सपने छोड़ हम औरों के दुख बाँटें॥
दिल अपना मक्खन-सा खूब शीतल हो।
आँखों में दया का भरा सागर हो॥
तो सारा जग एक सितारा बन जगमगायेगा।
और जीवन-बगिया को सावन झूम लहरायेगा।।
- रतन लाल जाट
7.गीत- ममता का है जग में मोल ना कोई
ममता का है जग में मोल ना कोई।
बाँध सका ना आज तक इसको कोई।।
ममता सबको हँसाती है।
देती सदा ही खुशी है॥
यह सबसे अनमोल है।
अपने जीवन का मूल है॥
इसमें है सागर जितनी गहराई।
और छाया अम्बर की तरह छाई॥
ममता परायों को अपना बनाती है।
रूखे दिलों में प्रेम-धारा बहाती है॥
इसकी प्रीत हमेशा सच्ची है।
लगती वो एक खुदा के जैसी है॥
सारी मोह-माया है दासी इसकी।
सारे सुखों की यह कहलाती है जननी॥
- रतन लाल जाट
8. गीत- एक माँ
एक माँ अपने लाल को, बड़े प्यार से झूलाती।
कभी नहलाती उसको, कभी खाना खिलाती।।
रोज लोरी सुनाती है वो, और ताली बजाकर हंसाती।
फूली नहीं समाती वो, खुद अपने को भूल जाती॥
देखो, ममता है एक मैया की,
ऐसी है ना जग में और किसी की।
माना है सबने एक भगवान उसको,
जो बेटे के लिए क्या-क्या कर जाती।।
अपने बेटे में हरपल खुद को पाती है वो,
बेटे में ही देखती है सपनों की दुनिया प्यारी।
समझो, उनके इन नेह के धागों को,
जुदा कभी होंगे नहीं जब तक है जिन्दगी॥
माँ एक माँ है, चाहे कैसी भी हो?
बेटे के लिए तो वौ है खुदा से बड़ी।
बेटा भी आखिर बेटा है चाहे कैसा भी हो?
हर अपराध है माँ क्षमा कर देती॥
जग में होती है सबसे ही निराली वो,
हमको जन्म दे-देकर नया पाठ पढ़ाती।
हर दुख-दर्द से बचाये कौन उसको?
जिसने कभी जननी की सेवा ना की॥
- रतन लाल जाट
9.गीत- ए माँ!
ए माँ! जब से खुदा ने जग भेजा।
तब से ही मैंने तेरा आँचल थामा॥
अब तू मुझको कभी दूर करना ना।
वरना छोड़के तुझको मैं जाऊँ कहाँ?
मेरा भगवान है तू मेरी माँ!
जन्नत लगता है तेरा साया॥
और कहीं ना है इतनी ममता।
चाहे कोई कितना ही सीने से लगाता॥
दर्द हो मुझको, तो भीगे तेरे नैना।
गुनाह करूँ मैं, फिर भी कर दे क्षमा॥
रब ने भी बस तुझको ही ढ़ूँढ़ा।
तेरे सिवा और यहाँ है भी क्या?
- रतन लाल जाट
10. गीत- नन्हें-मुन्ने बच्चे
कभी हँसते-रोते, कभी गिरते-संभलते।
कभी नाचते-गाते, कभी झूमते चलते बच्चे॥
हाथ पकड़कर चलते हैं धीरे-धीरे।
कुछ बोलते हैं तो भी अटकते हुए॥
गली-गली में, झूण्ड और टोले में।
पत्थर-खिलौने से खेलने लग जाते।।
मार खाकर माँ के आँचल में छुप जाये।
झूठ भी सच्चा जान पराये को अपना माने।।
कोमल काया कागज कोरे।
जो भी लिखो, वो बन जाये॥
साहस-हिम्मत भर दें।
तो आसमां के तारे तोड़े।।
दिल इनका सच्चा है।
विश्वास भी समझो, पक्का है॥
जान देकर भी हार ना माने।
थकान का कभी नाम ना ले।।
इस गुलशन दुनिया में।
फूल हैं ये खुशियों के॥
खिलाये हैं चुन-चुनके।
उस रब ने अपने हाथों से।
सूखे ना ये कलियाँ, कभी ना मुरझाये।
इनकी खुशबू सारे चमन को महकाये॥
भाँत-भाँत के रंग-बिरंगे।
श्याम-सलौने, नन्हें-मुन्ने बच्चे।।
- रतन लाल जाट
11.गीत- मुन्ना
सूना-सूना कर गया।
अपने घर को मुन्ना॥
दिन वो कितने रहेगा?
ननिहाल से कब आयेगा॥
तेरे खिलौने हैं, अब तेरी यादें।
तू दूर है, फिर भी लगता पास में॥
ऐसा क्यों मुझको लग रहा है?
जैसे तू सामने मेरे चल रहा है॥
तूतलाकर बोलता था।
जो दिल खामोश कर गया॥
खिलखिलाकर तेरा हँसना।
मुझको बार-बार है रूलाता॥
फिर भी तेरी एक तस्वीर है।
यादें अभी तक बहुत शेष हैं॥
क्यों गिन-गिनके दिन गुजरे?
मुश्किलों में भी दिल खुश है॥
एकदिन सूरज निकलेगा।
जब तू वापस आयेगा॥
मुरझाये चमन बसंत-सा।
तू फिर मुस्कुरायेगा॥
- रतन लाल जाट
12.गीत- एक गुलशन हिन्दुस्तान है
हम अपनों के वास्ते, एक गुलशन हिन्दुस्तान है।
गैरों और बेईमानों के लिए वो ही कब्रिस्तान है॥
तुम ना दो, साथ कभी रावण का।
मिलकर देखो, सपना रामराज का॥
हम हिन्दुस्तान के सच्चे है वीर।
दुश्मन तुझको रख देंगे चीर॥
सरहद पार कोई आये, नहीं इतनी हिम्मत-गुमान है……
हाथ जो उठेगा, लाखों को दफना देगा।
पैरों तले जो कुचलेगा, पाताल में वो धस जायेगा॥
कभी आँख ना उठाना तू।
फिर अपनी सूरत ना दिखाना तू॥
हर एक दिल की ये, अधूरी दिल्लगी-अरमान है……
फूल बिछाकर स्वागत करना, सदियों से जानते हैं हम।
धूल चटाकर नरक पहुँचाने का, हुनर भी आजमाते हैं हम॥
हाथ मिलाया तो कभी सर कटाया।
माफी नहीं दुश्मन का है अब सफाया॥
दुनियावालों रहना बचके, हम देते यही फरमान है………
- रतन लाल जाट
13.गीत- गुरु तुम
इस मन-मंदिर में एक दीपक समान हो, गुरु तुम।
इस तम भरे संसार में प्रकाश करते हो, गुरु तुम॥
तुम बिन अपनी मझधार फँसी नैया।
बिन आपके कैसे पार लगेगी नैया॥
एक इशारे से बदल जाये जीवन-धारा।
अपने कानों में जब हुँकार भरते हो, गुरु तुम………
इस जग में बिन स्वार्थ कौन-किसका?
आप और मैं अपवाद सब रिश्तों का॥
जब कोई मुश्किल में साथ होगा ना।
फिर भी रहकर साथ चलते हो, गुरु तुम………
खुद काँटों की डगर पर चलना।
औरों के हित नयी राह बनना॥
कर्म करते हुए आगे बढ़ना।
फल अपने आप मिलेगा कहते हो, गुरु तुम………
- रतन लाल जाट
14.गीत- जय-जय-जय माँ दुर्गा की
उद्धार भक्तों का करने वाली
नाश दुष्टों का करने वाली।
तू है महाकाली जय भवानी
जय-जय-जय माँ दुर्गा की-२
हजार हाथ है जिसके
संहार करती है चक्र से।
एक कर में कमल महके
दूजे कर में त्रिशूल धरे॥
सिर पर रत्नजड़ित मुकुट चमकता।
सजी गले पर असुर-मुण्ड-माला॥
सिंह की सवारी करने वाली
जय-जय-जय माँ दुर्गा की………
जिसके नाम से असुर काँपे
तीनों लोक जिसको नित धावे।
कभी भयंकर रूप बनाये
कभी मैया का प्यार लुटाये॥
सुनती सबकी है लाख दुआ।
करती है सबकी संकट-रक्षा॥
दुखियों का दर्द दूर करने वाली
जय-जय-जय माँ दुर्गा की………
नित नाम पुकारूँ मैया मैं
सदा विश्वास रखूँ चरणों में।
तेरे सिवा उबारे कौन मुझे
शरण में जाऊँ और किसके?
हम पर रखना आँचल की छाया।
गलती अपनी माफ करना माता॥
प्रेम की बरसात करने वाली
जय-जय-जय माँ दुर्गा की………
तू क्षमतावान है
तू बड़ी दयावान है।
तेरी महिमा अपरम्पार है
तेरी कृपा से भव-पार है॥
निर्बल को सबल तू बना।
दानव को मानव तू बना॥
असंभव को संभव करने वाली
जय-जय-जय माँ दुर्गा की………
हरख-हरख तेरा जस गायें
तन-मन अपना भूल जायें।
धर्म-कर्म-भक्ति सब माँगें
साहस-शक्ति-विश्वास जागे॥
सारी धरती को रूप देवी माना।
हरकहीं बस तुझको ही पाया॥
मंगल सकल जग का करने वाली
जय-जय-जय माँ दुर्गा की………
- रतन लाल जाट
15. गीत-जब हिन्दू और मुसलमान गले मिले
जब हिन्दू और मुसलमान गले मिले।
तो लगा जैसे दो भाई बरसों बाद मिले॥
इस संसार-सागर में फूल खिले।
प्रेम-खुशहाली के रंग-बिरंगे॥
गीता इनके हाथ में।
कुरान भी है साथ में॥
आगे बढ़ रहे हँसते हुए।
इंसानियत का पाठ पढ़ाते॥
दोनों परस्पर प्रेम लुटाते हैं।
ईद-होली साथ मनाते हैं॥
चाहे रंग-रूप, वेशभूषा अलग है।
पर भाव सबके दिलों में एक हैं॥
भारत की पहचान ये।
देश की आबरू है इनमें॥
एक-दूजे के बिन अधूरे।
जैसे गगन बिन चाँद-सूरज के॥
जग ने हमसे ही सीखा है।
अनेकता में भी एकता है॥
तकदीर लिखते हैं अपने हाथों में।
एकदिन मंजिल पार कर ही लेते।।
- रतन लाल जाट
16.गीत- तिरंगे के नाम पर
तिरंगे के नाम पर
जीवन कुर्बान कर-२
चले गये जहान् से
वतन को आजाद कर-२
अब ना कभी तिरंगे पर
लगने दो ना कलंक-२
इसकी छाँव में हँसके
माता की गोद में सोकर-२
सारे नाते छोड़के
देश को आजादी सौंपकर-२
नहीं डिगा सके लोभ धन-दौलत के
नहीं डरा सके फाँसी बन्दुक सलाखें-२
प्यार वतन से करके
कर दिये कुर्बान जानो तन-२
- रतन लाल जाट
17.गीत- इस सफर में
इस सफर में रास्ते
बड़े मुश्किल है
कंकड़-पत्थर और काँटे
हर कदम पर है
ना कहीं फूल मिलेंगे
ना ही खुशबू मनचली है
दिल में यदि जुनून है
तो चलना नहीं रूकना है
जो अब तक ना थका
वो आगे बढ़ता ही गया
दिल में गुनगुनाता
जीत का एक तराना
मंजिल से भी आगे
अब निकलना है
सब लोग कहते हैं
मगर करते कम हैं
कहने वाले खूब हैं
जो कहते ही हैं
करना वो ही है
जो दिल कहता है
ना बुरा करना
ना ही सोचना
और बोलना
कभी झूठ ना
बात यह याद रखना है
राही चलने वाले
- रतन लाल जाट
18.गीत- प्यार जब किसी से पहली बार
प्यार जब किसी से पहली बार होता है।
तो पहले कुछ ऐसा-वैसा होता है॥
लड़ाई-झगड़ा और कुछ चक्कर-वक्कर चलता है।
हँसना-रोना और रोना-हँसना हरदिन होता है॥
प्यार में एक रूठता है।
तो दूसरा उसे मनाता है॥
ना वो सोता, ना जागता है।
एक रोता है, तो दूसरा ना हँसता है॥
यही हमने देखा और सुना है।
सबने भी तो यही कहा है॥
प्यार से है बड़ी खुशी ना कोई।
जीना अकेले सजा है सबसे बड़ी॥
प्यार अपनों से दूर लेकर जाता है।
वो किसी और को अपना बनाता है॥
जो जलता है उसको और जलाता।
दिन-रात चलता है फिर भी ना थकता॥
प्यार की गाड़ी चलती रहती है।
जब तक जिन्दगी अपनी है॥
कब नैया डूब जाये मालुम क्या है?
जब दिल की डोरी टूटते देखा है॥
हँसके यारों करना है प्यार
कभी ना मानो तुम हार
जीत मिलती है दिलवालों को
प्रेम-इतिहास बदल देते हैं वो
प्यार को कभी कम ना समझना है।
प्यार तो कहने से कभी ना होता है॥
दिल का सौदा, पैसों से बड़ा।
जानों-तन फिदा, फिर भी है गम ना॥
तभी तो प्यार को खुदा जाना है।
प्रेमी को हमने फरिश्ता माना है॥
झूठ ना थोड़ा भी इसके आगे चलता।
छल-बल दिल सच्चा कभी ना करता॥
बस, पावन ही पावन प्यार होता है।
प्यार बिना सारा संसार सूना है॥
- रतन लाल जाट
19.गीत- क्यूँ
दिल से कोई दूर ना जाता है क्यूँ?
बिन अकेले दिल ये रोता है क्यूँ?
कोई समझाये कि- प्यार होता है क्यूँ?
दिल से कोई दूर ना जाता है क्यूँ?
लोगों को हँसते-रोते देखा है।
दिल टूटते और बिखरते देखा है॥
फिर भी प्यार के पीछे पागल हैं क्यूँ?
दिल से कोई दूर ना जाता है क्यूँ?
एकपल की दूरी दिल को तड़पाती है।
लाखों खुशियाँ भी फीकी लगती है॥
बस, उसके मिलते ही जन्नत लगता है क्यूँ?
दिल से कोई दूर ना जाता है क्यूँ?
खुद से बढ़कर वो जैसे खुदा है।
दिल के लिए तो जैसे दुआ है॥
बिना उसके जिन्दगी पल ना चलती है क्यूँ?
दिल से कोई दूर ना जाता है क्यूँ?
- रतन लाल जाट
20.गीत- तेरे प्यार में
तेरे प्यार में आँखें खुली-खुली रहती है।
दिन-रात कभी ना एकपल भी सोती है॥
दिल में चुभते हैं बाण प्रेम के मीठे-मीठे।
फिर भी ना चीख कोई सुनायी देती है॥
दर्द ही दर्द बन गया है कहानी मेरी।
कौन सुलझाये अबुझ है पहेली मेरी॥
दुनिया भी मुझको ना प्यारी लगती है…….
फूलों के मौसम भी है पतझड़ यहाँ।
होती है कभी प्रेम की रिमझिम ना॥
बस, तेरे सिवा जन्नत भी भाता नहीं है……
- रतन लाल जाट
21.गीत- औलाद के खातिर
माँ-बाप अपनी औलाद के खातिर
सब दुख हँसके सहा करते हैं।
पर जब औलाद दुख देकर
फटकारे तो रो-रोके जीया करते हैं॥
दिल उनका एक पत्थर-सा
लगते ही चोट मानो टूट गया है।
जिसके लिए देखा था सपना
उसके लिए खुद को कुर्बान किया है॥
उन सपनों को करना पूरा तो
दूर की बात है।
अब हम उनको कभी
फूटी आँख तक ना सुहाते॥
अपना जीवन दुख में कटे
संतान कभी ना दुख में रहे।
वो टूटके मर जाये
पर खून अपना कभी ना रुके॥
आशीष हम दिन-रात
यही दिया करते हैं।
बदले में उनको चाहे
धिक्कार ही धिक्कार मिलता है॥
वो सूखकर काँटा हो गये
अब रहा है बाकी क्या?
तुम फूल से प्यारे हो
लहराते रहना है सदा॥
आँसू भी अपने मोतियों की बन गये माला।
उम्र तू अपनी संतान को लग जाना॥
उनकी नफरतों में भी वो
एक प्यार देखा करते हैं।
खुद हारके भी जीत
उनकी ही पुकारा करते हैं॥
- रतन लाल जाट
22.गीत- ना वो डरते हैं
काँटों पर चलने से कभी ना वो डरते है।
मंजिल खुद चलकर बुलाने को आती है॥
मुसीबतों से ना वो कभी डरके रूकते।
हर कदम बस हँसके ही बढ़ाते रहते॥
मुकाम उनका दूर नहीं हैं।
सपनों में दम जिनके हैं॥
मेहनत से तकदीर अपनी सँवारे।
बैठे ना कभी हिम्मत वो हारे॥
सागर से मोती खोज लाते हैं।
अम्बर के तारे भी तोड़ लाते हैं॥
गीत गाते हुए तूफानों से टकराते।
खोज निकाले घोर अंधकार में राहें॥
सूरज नया उगाने का जज्बा है।
गुलशन में हजारों गुल खिलाना है॥
- रतन लाल जाट
23.गीत- धीरे-धीरे हम
धीरे-धीरे हम अपने दिल को मना ही लेंगे।
तेरे बिना हम जीना भी इसको सीखा ही देंगे॥
दूर रहके भी खुश हम रहेंगे।
यादों में भी हँसकर हम जीयेंगे॥
चेहरे पे मायूसी, आँखों में है खामोशी।
लबों पे चुप्पी, बातों में है बेचैनी॥
हाल अब हम अपना बदल ही देंगे………
अकेले में आहें भरते हैं रो-रोकर
अपनों से दूर रहते हैं पराये बनकर
खुशी ना मिलती है किसी और से मिलकर
दुख ही दुख जिन्दगी है तुमसे बिछड़कर
दुख से अब हम नाता तोड़ ही देंगे…………
साथ तेरा निभायेंगे दूर होके भी
दिल से ना बिसरायेंगे मरके भी
वादा तो वादा है तोड़ेंगे ना कभी
भले ही जुदा हो जाये आज ही
प्यार करके हम बेवफा नहीं बनेंगे……….
- रतन लाल जाट
24.गीत- तेरी हर एक मुलाकात
तेरी हर एक मुलाकात, बनाती है पल-पल यादगार।
तेरी हर मुस्कान, खिलाती है जीवन में गुल हजार॥-२
नाम तेरा लब से निकला, गीत वो दिल का बन गया।
एक शब्द भी दिल से निकलना, वरना दुर्भर हो गया॥
तेरी दुनिया बड़ी दिलदार, दिलाती है जन्नत याद……
तुम बिन इस दुनिया में, अकेले हम रहते हैं।
कोई ना अपना यहाँ है, सिवा कहीं भी तेरे॥
तेरी अदाएँ आज, मधुर बनती है दिन-रात……
- रतन लाल जाट
25.गीत- खुदा खुद न आ सके
खुदा खुद न आ सके, हर पुकार सुनके।
आये भी तो कैसे, हजार राहें चलके॥
रूप कोई ना कोई पल में वो धर के।
ना आये तो किसी ओर को भेज दे॥
मगर ना टूटने दे विश्वास किसी का।
हर एक का ख्याल दिन-रात रखता॥
कभी निराश न तुम होना, विश्वास उस पर रखके।
पत्थर के फूल और हो जाये सेहरे में सागर।
कंकड़ से मोती और अमृत भर जाये गागर॥
अनहोनी को होनी करता, उसके आगे कौन चले?
वो चाहे जिसको हराये चाहे तो उबारे।
आँधी में दीप जलाये बिन कहे सब जाने॥
फिर क्यों तू घबराता, अब उसको भूलके।
- रतन लाल जाट
26.गीत- क्यों दिल को
क्यों दिल को मेरे पागल कर दिया तूने?
अब हरपल रोते रहते हैं हम अकेले॥
कुदरत ने भी किस्मत अपनी, किस मिट्टी से बनायी?
चले थे जिधर भी कहीं, हर तरफ ठोकर है खायी॥
सच कहते हैं जो प्यार की राहों पे चलते।
भूलकर भी ना प्यार कभी करना है पगले॥
एक अंधा ईश्क का दरिया है, जिसकी ना कोई गहराई।
ऐसी आग लगी है दिल में, कभी ना वो बुझ पायी॥
दिन-रात जगते हैं ना सोते बस हरदम तड़पे।
चलते-चलते पुकारे नाम भी हम उसका लेते॥
सब कहते प्यार दिवाना, फिर नरक क्यूँ है लगता?
मिलके जब कोई बिछड़ा, तो दिल क्यूँ रोता है भला?
आहें भर-भरके मँझधार नैया प्यार की चले।
ना जाने कब डूबे दिल ही दिल से उबरे?
- रतन लाल जाट
27.गीत- उड़ रही हवा नशीली
उड़ रही हवा नशीली।
आ गयी रूत फागुन की॥
दिल में नयी उमंगे लहराने लगी।
तन को जैसे कोई झकझोर रही॥
फागुन का है महिना, प्यार लेकर आया।
मिल जाये आँखें ना, डरता है मेरा जीया॥
बागों में जब कोई फूल खिलता।
तो दिल में तीखा शूल चूभता॥
सुध-बुध भी अपनी भूल बैठे सभी
लगे भँवरे कलियों पर मंडराने।
घूँघट खोल देखे कोई शरमाके॥
यौवन का दरिया कगार छलका है।
अंगूरी महुए से रस टपका है॥
भर आया यौवन, रोक सके ना कोई
तन-मन झूमके नाचे मोर।
कहीं पायल बजाये शोर॥
अंग-अंग में आया है जोर।
दिल ना रूकता लगाये दौड़॥
बंधन सारे दिवानगी, पल भर में तोड़ चली
- रतन लाल जाट
28.गीत- लाल गुलाबी गाल तेरे
लाल-गुलाबी गाल तेरे
रंग-बिरंगी गुलाल उड़े।
रंग सातों लगे नजर आने
आँखें झूकी प्रेम-बरसाये॥
कहीं उड़ती है चुनर तेरी
होंठों पर भी है सरगम प्यारी।
नशा मदहोश बनाता है सजनी
दिवानों में भरता है दिवानगी॥
थाम के दिल कोई बैठे तो कैसे बैठे?
जोबन जोगन का करे जब कई ईशारे॥
अन्दर ही अन्दर छुटने लगी पिचकारी।
सारे के सारे दिल को रंग डाली॥
कोई अपने मितरा संग मिलके
रंग लगाये एक-दूजे को झूमके।
कहीं सखियाँ-सखियाँ घर-आँगन में खेले
रंग लगाये गुलाल उड़ाये पायल छनकाये॥
पेड़ों पर निकले पत्ते नये
फूल हजार देखो खिल गये।
मधुमास आया कोयल के सुर मीठे
देखके दिल धड़के सुन्दर नजारे॥
- रतन लाल जाट
29.गीत- इंतजार
इंतजार नाम ही देता है बेचैनी
फिर कैसे कोई ना सहता है बेचैनी
इंतजार में आँखें रहती है खुली-खुली
चाहते हैं फिर भी कभी ना ये बन्द होती
बस, दिन-रात तेरा इंतजार
हुआ है अब बुरा हाल
इंतजार में खामोशी सब सूना है हरघड़ी
जैसे कुछ ठहर-सा गया है अभी-अभी
करे कोई इंतजार पिया का
कोई दिन ढलने व उगने का
खाना-पीना तक भूल गये सजनी
देखो, जाग गया हूँ सपने में भी
इंतजार ही इंतजार है अब तेरा यार
इस दुखद कहानी को खत्म कर दे आज
पता नहीं है किसी को भी
ना खबर है इस इंतजार की
- रतन लाल जाट
30.गीत- जीत के आना तुम
जीत के आना तुम दुआ है दिल की
फिर हाथ ना आयेगा मौका ऐसा कभी
तन-मन लगाके रहना डटके
ना बैठना हिम्मत हारके
डिग ना पाये विश्वास अपना
संकट में भी साहस रखना
इतिहास बदल जायेगा कुछ पल में ही
सिर्फ नहीं है ये काम अपना
देश के लिए है नाम करना
आ रही है हर तरफ से पुकार
कभी तो होगा सपना साकार
रंग बदलने लगा है अब वक्त भी
- रतन लाल जाट
31.गीत- प्रेम की हर कदम पर
प्रेम की हर कदम पर होती है परख
लोगों को ये मजा देती दिल की तड़प
प्यार में रोते देखा है
प्यार में मरते देखा है
प्यार को ना कभी दम घुटते देखा
प्यार को ना कभी घुटने टेकते देखा
प्रेम-परीक्षा का मुश्किल होता है अवसर
मीरा ने भी पी लिया था अमृत मान जहर
सब कुछ एक-दूजे को सौंप दिया
दुनिया को सारी अब छोड़ दिया
जीना-मरना अपने लिए है एक जैसा
संग अपने डर है अब कैसा
डूब जायेंगे गहरा है प्रेम-सरोवर
सह लेंगे प्यार में सारे गम और सितम
- रतन लाल जाट
32.गीत- चाहे हम एक-दूजे से
चाहे हम एक-दूजे से दूर रहते हैं
फिर भी दिल अपने संग रहते हैं
जब कभी मिल ना हम पाते हैं
तब यादों में एक-दूजे को याद आते हैं
ना भूल पाते हैं एक पल भी
चाहे ना हो कमी कुछ भी
कह ना पाये थे बातें जो हम मिलके कभी
अब अकेले ही कहते हैं वो बातें सभी
शायद दिल की बात दिल सुन जाते हैं
प्यार मिटता नहीं है इन दूरियों से
जुदाई से होता है मजबूत बंधन ये
जब कभी हम मिलेंगे तो बदल जायेंगे नजारे भी
अपने आगे झूकना होगा जालिम जमाने को भी
दीवाने बस इतनी ही कहानी सुनाते हैं
- रतन लाल जाट
33.गीत- रास्ते भी अपने
रास्ते भी अपने अब बदल गये हैं
कहाँ से होकर कहाँ तक चल दिए हैं
हम और तुम हैं अब अलग-अलग
एएक रास्ता तेरा है तो एक रास्ता मेरा है
यकीन ना अब होता
पहले जो कुछ था
जैसे एक सपना
बनके वो गुजर गया
नजारे भी जैसे बदल गये हैं
दिन बचपन के आते याद
जब ना कोई हो अपने पास
अब हम इनके ही साथ
पल-पल जी रहे हैं आज
सब कुछ जैसे थम गये हैं
तेरे-मेरे बीच में आये हैं कई सारे
कहीं हम खोये तो कहीं तुम खो गये
अब लगते हैं अनजान से
जो पहले कभी एक जान थे
संग अपने ही सब बदल गये हैं
- रतन लाल जाट
34.गीत- कैसे मैं चैन से जीऊँ
कैसे मैं चैन से जीऊँ
जब तुम नाराज रहती हो
कैसे मैं जी भरके हँसू
जब तुम उदास रहती हो
एकपल भी तेरे बिना
दिल ना दूर कभी जाए
फिर नाम सुन जुदाई का
तन-मन ये काँप जाए
कैसे मैं तुमको भूल जाऊँ
जब तुम ही मेरा जीवन हो
लगता है अब तन मन से दूर हैं
और अपना जन्नत हो गया नरक जैसे
कैसे मैं रिश्ता तोड़ जाऊँ
जब खायी है जन्मों की कसम हो
दिन-रात जिसके सपने
देख-देखकर हैं जीते
बिन उसके जीवन ये
अब सूना-सूना-सा लगे
कैसे मैं अपने को पूरा पाऊँ
जब तुम ना मेरे साथ हो
- रतन लाल जाट
35.गीत- इस दिल के दो टुकड़े
इस दिल के दो टुकड़े
एक तुझमें है एक मुझमें
यहाँ मैं हूँ वहाँ है तू
फिर भी है साथ क्यूँ
दूरी भी अब ना दूरी लगती
जिन्दगी बस तुझसे ही चलती
नहीं तुम रहो तो फिर हम कैसे
एक कागज है एक कलम
अब नहीं कोई दिल में भरम
बस, विश्वास ही जिन्दा रखता
हर मुश्किल में हौसला मिलता
फिर भी क्यों पागल ना समझे
एक ना एक दिन बादल आसमां में छाएंगे
कभी ना कभी तो नदी-सागर आपस में मिलेंगे
मधुमास भी आएगा
सर्द मौसम जाएगा
मिलन आज नहीं तो कल होना है
- रतन लाल जाट
36.गीत- सबके ज्ञान-चक्षु खोल दे माँ
सबके ज्ञान-चक्षु खोल दे माँ
अज्ञान में कोई कभी जीये ना
हमको ऐसी भक्ति और शक्ति चाहिये
जो हर बुराई से सबको निजात दिलाईये
फिर जग को रोशन तू कर देना
अब नहीं अन्धकार रहे
ना कोई घुट-घुटकर मरे
ऐसी दया-कृपा तू रखना
- रतन लाल जाट
37.गीत- बनके जो देखा यारा
बनके जो देखा यारा
पल भी ना चैन आया
तू ही तू दिल पे छाया
नहीं फिर कोई सुहाया
अपना था जो हमने खोया है
नहीं था पास वो आज पाया है
नशे ने हमको बनाया
एक पागल-सा दिवाना
सुंदर लगने लगे नजारे
दिल को अब लगते प्यारे
फिर क्यों हो तुम न्यारे
आओ ना तुम संग मेरे
रंग दिल को लगाया
प्रेम-रस में डुबाया
ख्वाब हम नये देखने लगे
एक-दूजे के सपने सँजोने लगे
दिल का एक रोग लगाके
दुनिया के दुख सारे मिटाये
अब अपना तुझको बनाया
साथ कभी ना छोड़ जाना
- रतन लाल जाट
38.गीत- तेरी मोहब्बत का असर
तेरी मोहब्बत का असर है ये
जीवन को जन्नत बना दिया है
दिल में अपने फूल खिले हैं
गर्मी के मौसम में बसंत छाया है
दुनिया रोकेगी हरपल टोकेगी
तुमको ना वो कुछ आराम देगी
मगर एकदिन तेरा प्यार ही
संवार देगा जिन्दगी तेरी
जीत के भी वो रुक ना पाए
संग तेरे है एक मसीहा जैसे
दर-दर भटके
लाख ठोकर खाए
जान की ना परवाह है
बस, तुझपे ही जीये-मरे
अब तुम देखो दिल में
बस गये हैं भगवान् जैसे
खुदा मेरा तू प्यार मेरा तू
दुनिया है तू रहनुमा भी तू
बिन तेरे क्या हूँ मैं
गुलशन है बिन सौरभ जैसे
- रतन लाल जाट
39.गीत- प्यार में बस प्यार में
प्यार में बस प्यार में
हाँ प्यार में सब प्यार में
जीते-मरते भी तो प्यार में
वरना क्या है इस संसार में
जान भी जाए तो प्यार में
रग-रग में नस-नस में वो है बसा
चांदनी और फूलों की खुशबू सा
सोचता हूँ तो बस यही
मर भी जाऊँ तो गम नहीं
रहे सलामत सच्चा जो प्यार है
पहले तो दिल टूटे थे
रोये थे और तड़पे थे
अब मिले हैं चुपके से
दिल को भी ना खबर है
यार ही मेरा तू वो प्यार है
- रतन लाल जाट
40.गीत- कितने सपने
कितने सपने दिल में
सजाये हैं हमने-2
करना है पूरे तू अकेले
वरना ख्वाब मेरे अधूरे-2
सपना कोरा सपना रह जाए ना
यही मुझको हरपल डर है लगता
इस डर के आगे है मंजिल अपनी
चलना है हमको बस रुकना नहीं
मेरे अरमान तेरे कदमों में
दिलोजान सब कुर्बान तुझी पे
गिर मैं जाऊँ तुम ना फिसलो
गलती है जो मेरी माफ तुम करो
मैं दुःख में जीऊँ तुम सुख में रहो
मर जाऊँ मैं पर तुम जिन्दा रहो
सब सुन ले बात ये रब सुन ले
दिल जो कहता है हम वही करें
- रतन लाल जाट
41.गीत- तो कितना अच्छा होता
अगर हम ना मिलते
तो कितना अच्छा होता
ना घूट-घूट जीते
ना हाल बुरा होता
ना ही प्यार होता
ना ही गम उठाते
जीवन अपना
हम अकेले ही जीते
दर्द ना चुभन
धड़कन में ना हलचल
आँसू ना कोई मुस्कान
नाराजगी ना अनबन
मोहब्बत से होते अनजान
ना होता अपना यह हाल
नजरों के तीर
ना करते दिल घायल
सोते ही आ जाती नींद
ना कोसते अपना तकदीर
ना कभी मिलते
ना ही होते हम जुदा
जन्मों-जन्मों के
होते ना बंधन कोई रिश्ता
- रतन लाल जाट
42.गीत- तुम जो नहीं
तुम जो नहीं तो कुछ भी नहीं
ऐसा लगता कि जिन्दगी ठहर गयी
जैसे चाँद बिना है रात सूनी
या दीप बिना है गुल रोशनी
तेरी हँसी खिलती कली
बूंद गिरी आँसू मोती
ऐसे बसी मेरे दिल में है तू
जैसे मन्दिर की एक मूरत है तू
चैन आता नहीं बस आग है जलती
साथ एक पल ना नसीब है जुदाई
हाल-ए-दिल सब अनजान
तू ही खुदा तू ही भगवान्
तुमको ही सौंपा है जीवन
फिर ना क्यों हो कुरबान
कान्हा की गूंजे बांसुरी
तो लहराती है प्रेम-फुलवारी
- रतन लाल जाट
43.गीत- दिल का राज
दिल का राज दुनिया क्या जाने
इस रिश्ते को वो क्या नाम दे
इस अहसास को अनजान क्या जाने
दर्द-ए-दिल की पुकार कैसे सुन पाये
कोई कैसे दिल की हसरत समझे
आँखों से यदि आँखें ना मिले
कब वो इसको जान पाये
दिल में कभी ना झाँक पाये
दुनिया की रस्में एक बंधन है
तोड़ना चाहे कोई फिर भी ना टूटे
इनमें क्या है सार कोई बताये
खुशियों की जगह क्यों सताये
निस्वार्थ अब है शंका के घेरे में
अवसरवादी मुखिया बन बैठे हैं
सब आज ही सब पाना चाहते
कल की है अब फिक्र किसे
जैसे कल कभी ना होगा
सच कब्र में चला जायेगा
- रतन लाल जाट
44.गीत- दिल लगता
ना महल में दिल लगता
ना धन-दौलत से कोई रिश्ता
लाखों अपने फिर भी अनजां
खुद से बेगाने क्या है अरमां
खाने-पीने का खयाल है नहीं
जीने-मरने की फुर्सत है नहीं
ना कोई काम है कहीं
पागल मन ये ना मानता
दिल के पास आके
कोई तूफान जैसे गुजरे
छुअन उसकी दिल को हिलाके
एक हवा चले बनके नशा
- रतन लाल जाट
45.गीत- बस तेरा
हम तो बस तेरा
करते हैं इन्तजार सदा
मिलना एक पल का
फिर होना है जुदा
दिल ने देखे थे सपने जो मिलके
उसके लिए सारी रात सोये ना जागे
सुबह से चले हैं मंजिल को पाने
फूलों की जगह काँटे हैं बिछे
मिल पाना तो दूर था
ठीक से देखा भी ना
दबे पाँव वापस लौटे
कल मिलेंगे यह सोचे
रास्ते अपने चल निकले
रोते दिल को बहलाके
कल किसी ने देखा है
सच कब होगा सपना
मौसम बदले नजारे खिले
फिर नसीब अपने क्यूँ ना बदले
और कितना इन्जार है करना
बस कर बस खेल अपना
- रतन लाल जाट
46.गीत- निकले थे हम
निकले थे हम मोहब्बत दूर जाना है
लेकिन इसके पास और आते ही गये हैं
हमने सोचा कि उसकी याद ना आयेगी
लेकिन मालूम हुआ कि अब जान जायेगी
पहले थे अपने गम कई
फिर भी ना था शिकवा कोई
अब गम नहीं है फिर भी चेहरे पे शिकन है
पहले कुछ ना था सिवा इस मुस्कान के
अब तेरे वास्ते है जीवन-मरना
कई रास्ते हैं लेकिन मंजिल ना
अब भूलना चाहूँ ये गली मुश्किल होगा
भूलने से पहले मुझे सब खोना होगा
कब डूब चुके थे हम दरिया में
मालुम होता तो कभी ना उतरते
- रतन लाल जाट
47.गीत- तू ही मेरी सब है
तू ही मेरी सब है, तू ही मेरी दुनिया
तू ही मेरा रब है, तू ही मेरी जाँ
धड़कन में सरगम तेरी
हर पुकार है बस तेरी
तुमसे ही जिन्दा है खुशी मेरी
संग तेरे मस्ती में जिन्दगी मेरी
कहूँ मैं और क्या है सब तुझको पता
जानते हो तुम पहले से चाहूँ जो मैं कहना
सपनों में तस्वीर है तेरी
गैरों में एक तू है मेरी
जिन्दगी की किताब में हमने है लिखी
हर एक कहानी बस तेरी और मेरी
तू ही दिल का दिल है, तू ही मेरी यारा
तुझसे ही रोशन हूँ मैं, तू ही मेरा जहां
- रतन लाल जाट
48.गीत- कौन जीवन-साथी
कौन जीवन-साथी कैसे मैं जानूँ
इन तस्वीरों को भला समझ ना पाऊँ
तन-मन ये अपना कैसे मैं सौंपूँ
देखा ना कभी तो दिल कैसे खोलूँ
दीवाना-पगला-सा कहता है कोई
दगाबाज ये दुनिया लगती रे हाय
डरता है दिल मेरा किस्मत पे रोय
अनजान! तुझको अपना कैसे मैं मानूँ
दूर से जो दिखता है
प्यारा वो बड़ा लगता है
फिर रिश्ता वो बोझ बनता है
साथ छोड़ दे तो कैसे मैं जीऊँ
दिल की बात जो जाने
बिन कहे सब कुछ माने
सपनों पे जान लुटाये
कौन है ऐसा कहाँ मैं खोजूँ
यहाँ तो चलते-फिरते सौ-सौ वादे हैं करते
छोटी-छोटी बातों पे दुश्मन जान के बनते
मझधार में फँसाके बन जाते किसी के अपने
पहले इम्तिहान हो फिर वरमाला मैं डालूँ
मम्मी-पापा है मेरे भगवान
उन पर जीवन मेरा कुर्बान
जीना-मरना पहले इनके नाम
सपना साकार हो इनका दुआ मैं मांगूँ
- रतन लाल जाट
49.गीत- तुझको तो पता है
तुझको तो पता है
दिल में किसके क्या है
मगर दुनिया की नजरों में
गुनाह अपना क्या है
किसी को दिल से चाहा
तो हमने जान दी लूटा
हँसने से उसके हँसते थे
मरने से ना हम डरते थे
बोलो ये भी कोई खता है
क्या इसकी भी कोई सजा है
नींद में भी सपने देखूँ
प्यार करने से ना मैं डरूँ
जहर पीकर भी जिन्दा हूँ
सुख में भी है ये गम क्यूँ
दिल बस यही सोचता है
खेल अभी तो खेलना बाकी है
- रतन लाल जाट
50.गीत- छोड़ के ना जाना
छोड़ के ना जाना
हूँ मैं तेरा दीवाना
मर जाउँगा वरना
एकदिन ये देख लेना
एकपल भी ना गुजरे
दिल रोये और तड़पे
तुम बिन ना कुछ भी हम
तुम सागर तो किनारे हम
अपने वादे हैं सपने तेरे
खुद से क्यों हम है बेगाने
मुश्किल होगा तुमको भी जीना
रोकोगे भला खुद को कितना
याद तो आ ही जायेगी
आँखों में सूरत अपनी होगी
थामोगे कितना कदमों को
बस सपनों में होंगे हम ही तो
पतंग से डोर छुट जाती
तब वो ना कभी उड़ पाती
प्यार पे पहरा क्यों है लगाया
मरता नहीं है प्यार दीवानों का
- रतन लाल जाट
51.गीत- दिल में उड़ा
दिल में उड़ा कोई गुब्बारा
गुब्बारे में है तू बन हवा
चेहरा भी तेरा है गुलाब-सा
खुशबू गुलाब की है नशा
तन-मन में एक हलचल
लहर-सी दिल में सिहरन
जैसे दास्तां दर्द की खत्म
कैसे कहूँ ये क्या हुआ
चुटकी में गायब तन्हाई
देखो कहाँ अब वो गई
जिन्दगी बसंत-सी खिल गई
महकने लगा सब ये नजारा
आँसूं मेरे क्यूँ दर्द के दिल में
रंग हजार बनके आये संग तेरे
जी ना हम पाये तुम बिन है अधूरे
प्यार से रोशन गुलशन है यहाँ
- रतन लाल जाट
52.गीत- जब मैं तुझको देखता हूँ
जब मैं तुझको देखता हूँ
तो खुद को भूल जाता हूँ
तेरी आँखों में मेरी आँखें
तेरी बातें मेरे दिल की बातें
बिन कहे सब समझ जाता हूँ
क्या तेरा हाल है
मुझको तेरा ख्याल है
मर जाऊं मैं गम नहीं है
बस तुम पे ही जीता-मरता हूँ
जब कभी सपने में भी
बात हो तुमसे बिछड़ने की
तब दिल की तड़प बढ़ जाती
हाल मेरा अजीब कर जाती
ऐसा रोग मुझको लगा है क्यूँ
तुमसे ही जन्नत मेरा
तुम बिन मैं हूँ क्या
तेरी साँसों से दिल धड़के
दर्द तेरा आँखों से छलके
इस प्यार को मैं नाम क्या दूँ
- रतन लाल जाट
53.गीत- आजा अब आजा
आजा अब आजा आजा तू आजा
दिल ने है पुकारा तुझको बहुत बुलाया
अरमानों के आंगन में
कब से तुझको बसाये
आ अंधियारे जग में
तू उजास एक कर दे
नहीं कोई चाँद है ना कोई सितारा
प्रेम-धार बहेगी बन दरिया
महकेंगे फूल इस बगिया
गुनगुनायेगा मन भंवरा
नाचेंगे अंग-अंग मयूरा
रंग-बिरंगी रूत तू बनके छा जा
- रतन लाल जाट
54.गीत- हल्के-हल्के, चलते-चलते
हल्के-हल्के, चलते-चलते
एक ऐसा मुकाम कोई आये
जहाँ हम दोनों मिल जायें
हल्के-हल्के चलते-चलते
दिल की करनी है बातें
फिर कैसे होगी ये रातें
हल्के-हल्के चलते-चलते
मदहोश हम तुमसे
पागल है कब से
हल्के-हल्के चलते-चलते
नजर मिली दिल खिले
लब ना हिला हम बहके
हल्के-हल्के चलते-चलते
हो रहा वो दिन रंगीन है
फिर क्या कोई कमी है
हल्के-हल्के चलते-चलते
- रतन लाल जाट
55.गीत- क्या-क्या करना
क्या-क्या करना क्या ना करना
हमको यह बताता है यार अपना
सूर्य समान रोशन हो अपना जीवन
चाँद जैसा चेहरा हो अपना प्रीतम
पल-पल साथ उसका खूब प्यार दिया
हाथ पकड़कर साथ चले
दिल लगाकर खुद मिले
खुद को भूल गया उस पर कुरबां
क्या-क्या करना क्या ना करना
यह हमको बताता है यार अपना
- रतन लाल जाट
56.गीत- जब हम मिलते नहीं
जब हम मिलते नहीं
और मिलना नामुमकिन हो जाता
दिल से दिल मिलते कभी
जब सपना कोई आता
तन को हम भूल जाते
यहाँ से वहाँ घूम आते
सारी दूरी लाँघ जाते
पल में ही चल आते
इस दुनिया में कोई
क्या किसी को रोक पाया
ना किसी को खबर चलती
ना कोई नजर कभी लगती
जब तक सोये रात ढलती
तब तक जाते समन्दर पार कहीं
तुमको खबर ना चलती
ना ही मैं कुछ बताता
आँखें खुलते ही जन्नत गुम
कहाँ था मैं और कहाँ तुम
चलता रहे सदा प्रेम-सरगम
हँसना है हमको चाहे हो गम
प्यार करते दीवाने सभी
तो मरते दम तक है निभाना
- रतन लाल जाट
57.गीत- जब कभी जी मेरा घबराये
जब कभी जी मेरा घबराये
हर कदम पर अँधेरा कोई छाये
तब मैं कहूँ तुझको आके
क्यों ऐसा हुआ है हाल बता दे
क्या हुआ क्या किया
बताऊँ पल-पल की खबर
ना झिझकुं ना डरूं
सच कहूँ जो हो दिल में सब
हर मुश्किल हल हो जाये
दिल को मेरे थामके,
हाथ पकड़ चलने लगे
जीतने को मेरे गम
खुद की ना खबर है
फिर कैसे दुःख मुझको सताये
- रतन लाल जाट
58.गीत- किताबों में जिसका नाम मैं पढ़ता था
किताबों में जिसका नाम मैं पढ़ता था
और वो ही मुझको हर कहीं दिखता था
फिर उसका ही नाम मैं लिखके मिटाता था
बस इसके सिवा और ना कुछ मैं करता था
आज-कल जैसे कुछ बदल-सा गया है
वो हसीन मौसम भी बदल गया है
क्या मैं सोचता था और क्या हो रहा है
इसका कभी मुझको एहसास क्यों ना हुआ था
हर इक चेहरे में रंग उसका आये नजर
हर इक वो रस्ता याद में जाये गुजर
कहाँ हूँ मैं और वो बुलाये किधर
समझ नहीं अब कुछ मुझको आता था
- रतन लाल जाट
59.गीत- तेरे दिल में है
तेरे दिल में है हर एक ख्वाहिश मेरी
तेरे प्यार में सागर जितनी है गहराई
सबसे ज्यादा हूँ मैं तुझको प्यारा
आज ये मैंने तेरी आँखों से जाना
छुप-छुपकर टकटकी लगाती है तू
मैं ना देखूँ तब तक देखतीती है तू
दूर हो कितने भी यादें मिला ही देती
गुम हो जाओ दिल ढूंढ लेता है हर कहीं
नाराजगी है कितनी कैसे मैं बताऊँ
शिकायत भी है इतनी कर ना पाऊँ
फिर भी अपनी आँखें मिल ही जाती है
तब मालुम हुआ यह अलग ही कहानी है
जो जन्म-जन्म से अपने साथ है जुड़ी
नाता अपना टूटेगा ना कभी बंधन-डोरी
- रतन लाल जाट
60.गीत- किस्मत को
किस्मत को कोई क्या बदलता है
किस्मत के हाथों सब बदलता है
ये मौसम ये नजारे
मिलन और जुदाई
मंजिल और रास्ते
कभी धूप-परछाई
होनी कोई टाल नहीं सकता है
वादे पूरे होंगे जब किस्मत हो
सपने भी सच होंगे नसीब हो
हम वापस मिलेंगे वो मिलाये
हम साथ ना है जब तक वो चाहे
पल-पल जिन्दगी में रंग तब भरता है
- रतन लाल जाट
61.गीत- तू जो चाहे
तू जो चाहे वो ही करना
सब कुछ अपना है सौंपा
फिर डर है दिल में किसका
जब तक हैं साथ ही जीना-मरना
हारकर भी हार ना माने
टूटकर भी बिखर ना जाये
मरना तेरी हर एक राह में
रूकना नहीं जब तक चाह है
यही हो विश्वास दिल में रखना
अँधेरे में दीप बन तू जलता रहे
हर खामोशी में भी तू कुछ कहता रहे
हाथ पकड़कर चलना तू
दिल में उतरकर बसना तू
फिर कौन है जो हमको रोक पायेगा
- रतन लाल जाट
62.गीत- हमरी नजर में
हमरी नजर में तुमरी कोई औकात नहीं
चाहे तुम हो परी या हो कोई कुड़ी प्यारी
देखना नहीं है मुड़के कभी तुझे
चलते रहना है बिना एकपल रूके
कहती रहे तू रूक जाने को
सहती रहे तू दिल में दर्द को
गुस्सा ऐसा है जो आँख बड़ी दिखायी
थम-सी गयी तेरी धड़कन
होने लगी है एक हलचल
जाये तो अब तू किधर
जब सामने है ना कोई घर
प्रेम नैया किनारे पर कभी चलती है नहीं
- रतन लाल जाट
63.गीत- तो क्या करे
हर किसी से कोई बात करे तो क्या करे
दिल का राज भी किसी को बताये तो क्या बताये
दो लब्ज ही काफी है बात अगर कोई समझता है
जैसे कि एक तुम हो जो बातों में गुम कर देते
कहता रहूँ तो मैं बस कहता रहूँ दिन-रात तुझे
सुनता रहूँ तो बस तेरी सुनता ही रहूँ मैं
कुछ ऐसी कहानी है अपनी उसे समझे कौन समझे
दिन ढल जाता रात हो जाती फिर भी बात रह जाती है
कलियाँ दिल की खिल जाती ऐसी हँसी की बौछार होती है
कितने भी हो गम रंग बदलके जिन्दगी सँवर जाती है
जब हम मिलते तो बहार आ जाती है
चारों तरफ प्यार की बरसात हो जाती है
- रतन लाल जाट
64.गीत- ना हमने खुद कभी जाना
ना हमने खुद कभी जाना
किसी को भी है पता ना
फिर कैसे कब यह हो गया
औरों ने भी ना कभी सुना
सबसे पहले तो कॉल दिल को आयेगा
फिर वो मैसेज वापस मन में बजेगा
तुमको तो पता वक्त आने पर चल जायेगा
यदि कोशिश करो तुम पहले खुद जानना
गुलशन की खुशबू कभी तो आयेगी
चुपचाप बसंत को हवा पहुँचायेगी
लब ना बोलेंगे फिर भी आँखें तो कह देगी
सीखो तुम बस जरा-सा इन्तजार करना
दिल में प्यार और वफा है
गम नहीं चाहे होना जुदा है
एकदिन दिल की दुआ
सुनता जरूर है खुदा
- रतन लाल जाट
65.गीत- आयी है घड़ी इम्तिहान की
आयी है घड़ी इम्तिहान की
देखकर तू घबराना है नहीं
एकपल भी कम ना हो विश्वास तेरा
हर जख्म दिल में छुपाकर सहन करना
हिम्मत हारके कभी बैठना है नहीं
दिल में एक ललक है
फिर ये कैसी दूरी अब है
साथ एक प्यार है तो हजार है
बिन प्यार तो जग भी सूना है
फिर क्या जीत अपनी नहीं पक्की है
आँखों में जिसकी तस्वीर सदा
जैसे फूल में खुशबू है सदा
वैसे तन-मन में है प्रीत उसकी
- रतन लाल जाट
66.गीत- तुझी को ख्याल में रखूँ
तुझी को ख्याल में रखूँ
बस तुम्हीं पे जान मैं दूँ
नहीं किसी की फिक्र करूँ
बस तेरी ही चाहत रखूँ
तेरी बातें दिल की किताबों में
लिखी है मैंने आँसुओं के मोतियों से
चेहरा तेरा प्रेम-स्याही से
चित्र-सा बनाया है मैंने
पूछ ले जरा दिल से तू
रंगी है फूल-सी तू
छाया है तेरा ही जादू
एक ऐसी कहानी तू
है मेरे दिल की आरजू
पलके कमल चेहरा गुलाब
आँखें बादल लब शबाब
यकीन इनपे क्यों ना करूँ
सर्दी में गरमी गरमी में नरमी
दिल का भरम कर दे नरम
नहीं कोई परी है तू
ना चाँद-सी है तू
एक डोर मैं और पतंग तू
- रतन लाल जाट
67.गीत- नींद ना आये
कोई कहे नींद ना आये
मैं कहूँ सपनों में वो छाये
भूख ना लागे प्यार बिना
पिया नाम भावे संसार सूना
दिल की प्यास ना जाये बिन प्रेम-रस पिया
बस आँसू छलकाये जैसे लहू सफेद हो आया
मीरा को नजर आये
चारों तरफ कान्हा रे
राम सिया नाम पुकारे
नाम वो ही जपे रे
हाल मेरा क्या है मैं बेहाल हूँ
मैं जानूँ या जिसको है पता वो इंसान तू
दर्द ये किसको कहे बेदर्द को यूँ
मैं तड़पूँ या तू जलाये धूँ-धूँ
और सबको तो अपनी पड़ी है
कहाँ किसको जरूरत हुई है
कहे ना पाऊँ ना कोई समझे
बिन कहे संदेशा तू पढ़ ले
- रतन लाल जाट
68.गीत- आज सब कुछ हल्का-हल्का है
आज सब कुछ हल्का-हल्का है
दिल का दर्द भी मिट गया है
लगता है अब हर नजारा रंगीं है
और दुनिया भी बहुत हसीन है
बात करते ही सूरत उसकी देखके
मन के अरमान सारे और साकार हुए सपने
जन्नत यहीं मुझको जैसे मिल गया है
चेहरा था गुमसुम-सा
दिल भी रहता खामोश था
फिर ऐसा चला जादू उसका
बेरंग भी मैं रंगीन हो गया
आशा की किरणों से हुआ एक सवेरा है
रहते थे अकेले हैं अब भी अकेले
मगर ना जाने क्यूँ दुनिया साथ लगे
दिन में अंधियारा आता नजर हमको है
रात देखो आज कैसी जगमग है
असर ये हुआ बस प्यार का असर है
- रतन लाल जाट
69.गीत- सब कुछ पा लिया
सब कुछ पा लिया, फिर भी थे खोये-खोये
सब कुछ खोकर भी, अब हम सब पा गये
खोना भी हमको खुशी दे गया
पाया था वो ही जख्म दे गया
साथ सबके रहकर हम रहते हैं अकेले
बस, तुमको पाकर जैसे हम जन्नत में हैं
मौत आये जब तक ना हम जुदा हो
तेरा-मेरा रिश्ता सबसे ही न्यारा हो
और ना कोई सपना, ना कोई मेरा अरमान है
तू मेरा भगवान और सारा संसार है
- रतन लाल जाट
70.गीत- एक इजहार है
ये प्यार का एक इजहार है
अपने विश्वास का एक इम्तिहान है
फिर कौन है जो इसमें ना शामिल है
उससे जैसे पागल कौन अभागा है
आज हर सजना अपने साजन का करती है इन्तजार
देखके चाँद को दोनों बांहे फैलाकर करते हैं इजहार
आंखों में बसे थे अब दिल में उतर गये हैं
सारी दूरियाँ मिटाकर आपस में मिल गये हैं
इतना प्यार पहले कहाँ छुपा था
अब नहीं रहेगा प्रेम-गीत अधूरा
साथ मिलकर हम आज गुनगुनायेंगे
अपने प्यार की दास्तां सुनायेंगे
- रतन लाल जाट
71.गीत- ए रात काली
ए रात काली तू है सच ही काली
जो करवाती है करतूतें सब काली
खबर नहीं चलती है तेरी दुनिया में किसी को
पल में इंसान कितने रूप-रंग बदल देते हैं वो
करते काम भी जो काले हैं
और काले बन जाते जो गौरे हैं
शर्म नहीं आती नजर भी बच जाती
कोई तो तेरे नशे में खुद को भूल जाता
हवस कोई मिटाने को बाजार तक जाता
कारोबार काला भी इन रातों में पनपता
जो कोई यहां आये उसका भी मुंह काला
कभी तो आने दे किरण उजाली
कहाँ गुम हो गया है ये चाँद भी
- रतन लाल जाट
72.गीत- अपने माँ-बाप हैं
वो तो अपने माँ-बाप हैं
उनसे अलग क्या भगवान है
खुदा खुद इनमें आकर बसा है
तुमको नहीं कुछ भी पता है
उनका प्यार कुछ नहीं मांगे
दिन-रात बस तुम्हारी दुआ करे
कभी ना तुमसे चाहते कुछ है
देना तुमको अपना सब चाहे
मरके भी बचाये जीवन अपना
जहर पीकर सीचें अमृत हमेशा
माँ-बाप अपने पालनहार है
पाते इनकी दुआ से जीवन है
- रतन लाल जाट
73.गीत- तेरी एक हाँ से
तेरी एक हाँ से
आती-जाती साँसे
रुक जाती मेरी है
वरना कब से
निकलने को
ये जान खड़ी है
रोकने वाले समझाकर हार गये बेचारे
मगर दिल ये किसी की एक ना बात माने
बस तू ही इस दिल का एक सहारा है
जैसे पतंग और एक डोर का होता है
जबसे हम बिछड़े
हाल बहुत बुरा है
रो-रोकर आँखें
अब सूख गयी है
हरा-भरा दिल मेरा
खिला कमल चेहरा
बागों में नाच उठा
मन का ये मयूरा
अब ना कहीं जाना
ना ही मुझको रुलाना
जुदाई औ’गम तेरा
सहा जाये नहीं है
- रतन लाल जाट
74.गीत- ए भारत के वीरों
ए भारत के वीरों!
आज घड़ी है जागो॥
दुश्मन से जा टकराओ।
उसे मौत की नींद सुलाओ॥
कभी हम पर आँख उठाये तो
उसका नामों-निशान मिटा दो।
ए भारत के वीरों……….
अब दुश्मन के खून से खेलो जीभर होली।
घर उसके फोड़कर पटाखे मनाओ दिवाली॥
शेर हो तुम हिन्दुस्तानी।
कब सियारों से बाजी हारी॥
एक जान के बदले हजारों जान ले लो।
ना डरो कभी किसी से पीछे हटो।।
ए भारत के वीरों……….
हिन्दुस्तान पर कोई आँख ना उठाये।
आज ही दुश्मन के छक्के छुड़ायें॥
लोहा नहीं कोई लेना हमसे।
करो या मरो अब ठानी है॥
देश का मस्तक ना झुकने देंगे।
तिरंगा हम सदा ऊँचा रखेंगे॥
हिमालय पार यदि दुश्मन करे तो,
सिर काटकर गंगा में बहा दो।
ए भारत के वीरों……….
- रतन लाल जाट
75.गीत- मेरी बहना की शादी है
मेरी बहना की शादी है,
सबको उसमें ही आना है।
वो हमारे जिगर का टुकड़ा।
सबकी आँखों का है तारा॥
अपनी सखियों की हमजोली।
लगती है बीच उनके परी-सी॥
हर दिल में तड़प है,
हँसती आँखें भी नम है।
आयेगी बरात, नाचेंगे सब सज-धजकर।
फिर भी होगा दिल, सूना-सूना हरदम॥
जब बहनां छोड़कर, जायेगी घर-आँगन।
सखियाँ रोयेगी अकेले, फूट-फूटकर॥
तब घर लगेगा पराया।
कोई नजर ना अपना आयेगा॥
सब बुलायेंगे उसे।
दिल की गहराई से॥
यह अवसर भावभीन है।
हर दिल में प्रेम-दुलार है॥
किसे अपनी बात सुनाये।
कैसे इस दर्द को भुलाये॥
बार-बार कहती है।
बेटी अपने दिल से।।
‘ना जाने कब वापस आऊँगी?
अपनों से मैं कब मिल पाऊँगी?
मैं हूँ एक चिड़िया, बन्द पिंजरे की।
जाने कब तक रहूँगी भूखी-प्यासी।।
- रतन लाल जाट
76.गीत- रामा हो
रामा हो, रामा हो-२ कछु कृपा करो।
संकट में शक्ति दो, भक्तों को मुक्ति दो।
रामा हो, रामा हो-२
आप विष्णु जगपति, लक्ष्मीनारायण हो।
सत्य हो, शिव हो, सुन्दर हो॥
रामा हो, रामा हो-२
आपके नाम खुद देवता जपते हैं।
दर्शन आपके बड़े ही भाग से मिलते हैं॥
एकबार फिर हमको, मर्यादा आप सिखाओ।
राजा और प्रजा का, धर्म हमें बतलाओ॥
रामा हो, रामा हो-२
भाई को भाई का प्रेम मिले।
हे दीन-दुःखी पर करूणा बरसे॥
एक पति-पत्नी के बीच में,
कभी ना कोई दूसरा आये।
मात-पिता का वचन निभाके,
संतान कभी उनका दिल ना तोड़े॥
गुरू का आशीष हो, शिष्य भी समर्पित हो।
रामा हो, रामा हो-२
- रतन लाल जाट
77.गीत- चाहे वो बाहर से
चाहे वो बाहर से
कितने दूर रहते हैं
मगर दिल ही दिल में
तो प्यार बसाये हैं
बात यह सच है
लेकिन कोई यकीन ना करता है
बस चुप-चुपके
हसीन सपने देखते हैं
जिससे हम प्यार करते हैं,
कभी ना दूर हो पाते हैं।
करके झगड़ा कुछ देर में,
उस झगड़े को भूल जाते हैं॥
विपरीत इसके देखो खेल,
बाहर से कितना ही रखते हैं मेल?
मगर दिल में रहती है दरार,
तो कुछ भी कर लो ना होता कभी प्यार।।
प्यार नहीं कहने से होता।
दौलत से कभी नहीं बिकता॥
प्यार दो दिलों का मिलन है।
मौत भी इसे अलग ना कर सके॥
तलवार से तीखा ये, बम से है भारी।
तीर से नुकीला है, गोली से तेज गति॥
कभी ना टूटने वाला,
मजबूत है इसका ये धागा।
जिसकी डोर-पताका,
तीन लोक में उड़ती है सदा॥
इसके जैसा नहीं कोई प्यारा है।
इसका यहाँ नहीं मोल, अनमोल होता है॥
जिसका नाम है खुद भगवान।
बन जाये मानव भी तब बलवान॥
प्रीत है अमर नाम,
कभी ना माने हार।
दुनिया से बेखबर
दिल में है ठहराव।।
- रतन लाल जाट
78.गीत- मेरे दिल में जो
मेरे दिल में जो, मेरे मन में वो।
वो एक चाँद-परी, जान से लगती जो प्यारी।
कैसे उसको भूल जाऊँ मैं?
नाम उसका होंठों पर आ ही जाये॥
एक ऐसी वो लकीर है, कभी ना जो मिटे।
लगती एक तस्वीर वो, काँच से भी नाजुक है जो
इस जीवन बगिया में एक गुलाब है।
इस मन-मंदिर में भगवान है॥
अच्छा नहीं लगता, कभी दूर जाना।
मगर वश किसका तकदीर पे चलता?
कहना है दिल की बातें जो, जानता है दिल भी उनको
अपनी आँखों का नूर।
जीवन लड़ी का मूर॥
इस तन-मन में एक पारस।
जैसे प्रेम की है वो पारख॥
दूर ना कभी जाना है।
नहीं कुछ औरों के वश में जो, है अपने हाथ में वो
- रतन लाल जाट
79.गीत- देखो, क्या नजारा है
देखो, क्या नजारा है?
दुनिया में वो प्यारा है॥
रस्ता एक, हो गया बन्द।
आगे देख, कई गये खुल॥
अपनों की नहीं कोई कमी है।
बस, अपना बनना बाकी है॥
फूल नहीं तो, कलियाँ खिली है।
सागर नहीं, नदियाँ तो बही है
आज नहीं वो साथ।
कल तो होंगे ही पास॥
समय के हाथ नहीं कुछ निश्चित।
प्यार के नाम हजारों है दिल॥
दिल से जो प्यार करे, कभी ना वो हार माने।
हँसता रहे वो हमेशा, जो औरों को भी हँसाये
जीना-मरना बस में नहीं।
रोना-हँसना तो हाथ में सही॥
एक माँ नहीं, तात नहीं।
प्यार नहीं, पिया भी नहीं॥
लेकिन है सभी के सभी।
यहाँ नहीं तो वहाँ पे सही॥
धरती सबकी माँ, तात है आसमां।
प्रकृति-प्रेम है तो सुन्दरता मानो प्यार जैसे
- रतन लाल जाट
80.गीत- एकदिन उठ जायेगी अरथी
एकदिन उठ जायेगी अरथी।
रह जायेगा यहाँ बस रोना ही॥
जी ले जीवन मानव प्यारे तू।
इस धरती पे सबसे न्यारा है तू॥
क्योंकि सब तेरे हाथों गुलाम है।
जो तुरन्त तेरे आदेश को माने॥
सुनके आवाज तेरी, गूँजे आसमां-धरती…………
कोरी बातें रह जाती है धरी की धरी।
काम करके जाओ तो यादें जरूर रहेगी॥
प्यार की कहानी एक,
बड़े प्यार से तू लिख।
जो सच्ची है, पक्की है।
वो अटल है, अमर है॥
चाहे मच जाये यहाँ प्रलय भारी।
या तूफान के संग आये आँधी………………
सिर्फ नाम रहेगा,
तेरा काम बोलेगा।
प्यार करेगा सलाम,
कई जन्मों के पार।
गगन में तू तस्वीर बन,
सितारों बीच हो जगमग।
चाँद भी आये देखने,
फिर लगे वो खुद कोसने।
कि- उनसे मिलना है,
जाऊँ मैं किस गली?
कैसा रूप-रंग है?
बताओ वेशभूषा उनकी……………
- रतन लाल जाट
81.गीत- मत भूलो पुरानी बातें और रीतें
मत भूलो, पुरानी बातें और रीतें-२
बातों में उनके एक संसार छिपा है।
मानव का सुखद जीवन भी बसा है॥
रामायण-महाभारत से कुछ सीखो।
पथ अपना और मंजिल खुद ढूँढ़ो॥
राम का आज्ञा पालन।
और माँ का प्यार लालन॥
भाई के प्रति भाई समर्पण।
राजा-प्रजा, पति-पत्नी और मित्र-धर्म॥
धर्म यही पहचान हमारी है।
मानव-रूप में इसीलिए॥
वरना हम भारत-भूमि पे,
जन्मों-जन्मों आने को तरसते………………
महाभारत मचा संग्राम,
सबकुछ हो गया बर्बाद।
नहीं लगा किसी के कुछ हाथ।
अंत में सबने मिलाये फिर हाथ॥
करना युद्ध नहीं, बैर नहीं,
नहीं करना छल-कपट।
मर्यादा भंग ना हो कभी,
व्रत हो सत्य-अहिंसा अटल॥
जो कुछ पहले अच्छा होता था।
आज हमें उसको दोहराना॥
हुई थी जो भूल कभी यहाँ।
अब ना हो जाये वो कहीं दुबारा॥
फिर एक नया संसार बसाना है।
पशु-पक्षी से मानव बेहतर बनाना है॥
संस्कार अपने कभी ना छुटे।
रिश्ता एक रिश्ता सलामत रहे………………
क्यों रखते हैं? बैर-भाव एक-दूजे से।
आपस में हमको क्या बाँटना है लड़के?
हमारा-तुम्हारा मालिक एक ही है।
हम दुश्मन तो फिर बात बुरी है।।
इन्सान का काम पहला इन्सानियत रखना।
कभी हो हैवान ना, ना धर्म अपना छोड़ना॥
अमर-प्रेम के पुजारी तुम बन जाओ।
संग ऐसा हो कि- जन्मों तक दूर ना हो॥
इतना खुद को भगवान मत समझो।
पुरानी पीढ़ी को तुम व्यर्थ ना मानो॥
पादप जड़ से थमा है।
बिन पादप फूल-पत्ती कैसे?
और फिर इच्छा फल की,
एक कोरी कल्पना है…………………
- रतन लाल जाट
82.गीत- नहीं हम हारने वाले
नहीं हम हारने वाले,
कभी ना थकने वाले।
दिन-रात मेहनत करके,
मंजिल-पार हम करते॥
रूकना हमको आता नहीं।
बढ़ना आगे सीखा है यही॥
मौत से ना कभी डरते हम।
प्राणों का सौदा करते हम।।
चाहे दुश्मन हो या कोई संकट हो।
बना दे सागर में रस्ता, बसा ले आँधी में बसेरा।
खुद हमसे हार जाते हैं झंझट।
छिपकर वो मुख पे कर लेते घूँघट॥
देखते हैं मंजिल तक बढ़ते हमको,
हिम्मत नहीं कि- रोक सके वो।
इरादा अपना पक्का है,
वादा करके निभाना है।
हार-जीत से ना डरना है,
बस, मंजिल तक सफर करना है॥
वो खड़ी है इन्तजार में,
मंजिल अपना रस्ता निहारे।
फिर क्यों थककर बैठ जायें?
आगे बढ़ो, इतिहास लिख डालें॥
- रतन लाल जाट
83.गीत- छुपाकर दिल ही दिल में प्यार
छुपाकर दिल ही दिल में प्यार,
बन गये हैं हम-तुम अनजान।
कोई पहचान सके ना हमको
हम एक-दूजे के प्रेमी हैं बरसों।
मेरे यारा तू है सदा मुझको प्यारा।
मगर यहाँ है रखना थोड़ा फासला॥
कहीं खबर ना लग जाये किसी को,
दुनिया से बचकर आगे बढ़ना हमको।
इसी बात को लेकर हम आज
कर रहे हैं यह नाटक खास……………
मगर आँखें अपनी रूके कैसे?
देखते ही वो मिल जाती है।
कुदरत भी देखो, कितना शैतान है वो?
हरकहीं हमको मिलाता है जो।
मेरे सनम, रहना अलग।
थोड़ा हँसना, थोड़ा झगड़ना।
और ना हो खबर, किसी को ये जादू-चमत्कार
वरना मच जाये, अगले ही पल हाहाकार……………
अपने प्यार को यूँ ही दिल में बसाकर
तुम करना मुझसे बात कुछ हटकर।
मैं करूँगा बहाने सौ-सौ बार
झूठ बोलूँगा बस प्यार में एकबार।
कहीं तुम हो ना जाओ मुझसे नाराज
याद रखना मेरे सनम कुछ ऐसे हैं हालात…………
क्या गुजरती है प्यार में?
हर कोई ना समझे।
जो करता है प्यार,
वो ही जानता है॥
प्यार में दर्द जहर-सा
मगर समझ अमृत पीना।
नैनों से बहते हुए आँसू
लगते जैसे मोती की माला॥
हम सहन कर लेंगे हर गम
मगर प्यार में कुछ ना सहें अब।
इरादा है मेरा जो अटल सदा
मेरे दिलवर तुम ना छोड़ना
कभी मेरा हाथ, चलना तू साथ-साथ…………
- रतन लाल जाट
84.गीत- धरती के सुन्दर मुखड़े पे
धरती के सुन्दर मुखड़े पे,
छाये हैं बादल काले-काले।
जैसे उड़ता हो दुपट्टा मलमल-सा।
कभी आगे कभी पीछे जाये सरकता॥
क्योंकि इस प्यारे मुखड़े को,
कहीं देख ना ले आसमां वो।२-२
हो गये दिन कई उसको धूले हुए।
आज उमड़ आये हैं मेघा खूब नहलाने॥
बरसते पानी के धारों में,
धरती का रंग-रूप सजे।
यौवन उसका फले-फूले,
अम्बर भी नीचे झूक जाये॥२-२
आँखें इसकी प्यारी-प्यारी लगती है ताल-तलैया।
बाँहें लगती लम्बी-लम्बी जैसे हो पर्वतमाला॥
हरी-भरी गोद इसकी,
रंग-बिरंगी बगिया है चोली।
खुशबू आये बगिया में,
बरसता अमृत गोदी से॥२-२
कभी लगता धरती खड़ी,
कभी दिखता वो सोयी।
कहीं तन है गौरा-पतला,
तो कहीं है गहरा-काला॥
कभी इसके रूप पे, खुश हो जाये मेघा ये।
तो फिर कभी नाराज हो, चुपचाप वो गुजर जाये॥२-२
- रतन लाल जाट
85.गीत- परियों की रानी देखा तुझे
हो-३ परियों की रानी देखा तूझे,
होश खो हो गया हूँ पागल मैं।
तेरी बातों में भूल गया अपने,
दिखाये हैं तूने मुझे कई सपने॥
देखा जो सपना नींद उड़ गयी।
अब तक था अनजाना छायी दिवानगी॥
आँखों से देखूँ तो तेरे सिवाय कहीं नजर टिकती नहीं।
यूँ देखते हुए दिन ढ़ल जाये मगर निगाह हटती नहीं॥
वो मेरा क्या हाल कर गयी रे?
ऐसा मुझपे कैसा जादू कर गयी रे…………॥
अब बातों-बातों में तेरा नाम याद आ जाये।
कितना भी चाहूँ मैं रातभर नींद ना आये॥
हाल मेरा हो गया है एक पागल के जैसा।
बता ना सकूँ मैं भला वो कौन समझेगा?
अब तो अकेले किया करते हैं बातें।
सुन ले तू दिल की धड़कन मेरी रे…………॥
तेरे पास आने को बढ़ रही है बेचैनी।
बिन तेरे लगती है जिन्दगी वो अधूरी॥
पास मेरे आओ या मिलने को मुझे बुला लो।
स्वर्ग से उतर आ, नहीं तो मुझे भी लेके जा।
हूँ-३ जीना-मरना है हर हाल में संग तेरे।
रस्ता खो गया हूँ अब हाथ मेरा तू थाम ले रे…………॥
- रतन लाल जाट
86.गीत- नन्हीं दुनिया
बच्चों की अपनी, सपनों में सच्ची।
एक प्यारी-सी, नन्हीं दुनिया होती॥
उस दुनिया में नहीं कोई होता है पराया।
और नहीं कोई राज ही यहाँ छुपाया जाता॥
यहाँ सब मन के सच्चे हैं।
तन के कच्चे जो कोमल हैं॥
सबके दिलों पर वो राज करते हैं।
कभी ना उनको दर्दओगम सताते हैं॥
चला गया, वो बहुत प्यारा था।
मगर पास है, जो और भी प्यारा॥
हँसकर वो रूला दें,
रोकर वो हँसाये।
झगड़कर फिर मिलते,
एकपल भी दूर ना जाये॥
बच्चों की दुनिया में, सातों रंग मिलते हैं।
हर चीज से उनका नाता है,
यहाँ नहीं कोई छोटा-बड़ा है॥
सब एक जैसे आपस में समान।
नहीं होते हैं यहाँ गरीब-धनवान॥
अपनी दुनिया के दुःखों से,
इस दुनिया के सुख प्यारे हैं।
हम एक जख्म से टूट जाते,
वो सौ-सौ जख्म भूल जाते हैं॥
- रतन लाल जाट
87.गीत- आसमां के मालिक
ए आसमां के मालिक,
इस धरती पे उतर आ।
आकर तो देख जरा,
जो कुछ भी हो रहा॥
अपनों की पुकार सुन,
उनको बचाने आ जा।
अम्बर तेरा धरती तेरी,
सब कुछ है बस तेरा॥
फिर क्यों तू आँखें बन्दकर,
चुपचाप सबकुछ देख रहा।
यहाँ सच और झूठ का खेल देखो,
जो बार-बार सत्य को हरा रहा॥
इस अन्याय का अंत कर,
एकबार फिर अवतार ले यहाँ।
बढ़ रहा है पाप और पापी का मान,
धर्म के मार्ग पर इन्सान दर-दर भटक रहा॥
किसी एक के दिल का हाल नहीं,
है सकल जन की पुकार सुनके आ।
बहुत कुछ सहन कर लिया है,
अब और कुछ सहा नहीं जाता॥
आ जा मेरे राजा तू आ जा।
अपनों को बचाने आ जा॥
और ना कुछ देर कर,
अब तो तुझे आना ही होगा।
- रतन लाल जाट
88.गीत- इण्डिया का मुकाबला
कुछ भी कर ले, आज सारी दुनिया।
कर नहीं सकती, इण्डिया का मुकाबला॥
न्यू यंग इण्डियन है, गुड लाइफ इण्डियन है।
शेर-दिल इण्डियन है, ऑल द बेस्ट इण्डियन है॥
इण्डिया की बात है निराली, यहाँ हर चीज है खास पुरानी।
चाहे छोटा हो बच्चा, या फिर शेर हो बूढ़ा।
अलग सबसे है यहाँ जवानी, सच्ची है हर प्रेम-कहानी॥
बात आये जब हिन्दुस्तानी लड़की की।
तन-मन से होती है वो खूब प्यारी-सी॥
नहीं करती कोई बहाना, आता नहीं करना दिखावा।
जिधर भी देखो है सुन्दरता, कहीं दिल ना खो देना…………॥
बाहर से देखो तो लगती है वो भोली-भाली।
बात लड़ने की हो तो बन जातीती है रणचण्डी॥
नहीं करना टक्कर उससे, दुश्मन को वो राख कर दे।
उसको बचाने वाले, नहीं फिर भगवान है॥
अपने दिल की वो रानी,
कहती जो करके दिखाती।
वादा करती झूठा नहीं,
हर कसम वो निभाती॥
आँखें उसकी मदमस्त रहती है प्यार में।
होठों की लाली खूब सजती है चेहरे पे॥
छम-छम करती पायल बजती।
चम-चम करते कंगन जगमगाती॥
और भी देखो कानों का झूमका,
होश गँवा दे माथे की बिन्दिया।
दिल को जरा-सा तुम थाम लेना,
प्यार नहीं मिलेगा ऐसा वरना………॥
चाल-चलन की वो अच्छी है।
रंग-रूप की भी खूब प्यारी है॥
बात उसकी मतवाली है।
वो एक चाँद-सी परी है॥
चलती है डगर में तो, छेड़ना नहीं उसको।
पहनती है चप्पल वो, टकराने की भूल ना हो॥
नहीं वो कोई बात छुपाये, राज उसका समझ में ना आये।
जब वो थाम लेती है बैंया, तो लगाती है पार उसकी नैया।
कोई उसका दिल ना तोड़ना, मुश्किल है फिर उससे बचना………॥
- रतन लाल जाट
89.गीत- तूफान बनके वो आ गया
तूफान बनके वो आ गया।
सारी दुनिया पे देखो छा गया॥
बचना मुश्किल है अब पाप का।
वो अब मिटकर ही रहेगा॥
आँधी है वो या ज्वाला है।
भूचाल है या शोला है॥
बड़ा ही शेर भयानक दहाड़।
कहाँ जायेंगे सियार बचकर॥
आज घड़ी है जीत की।
खुल जायेगी पोल झूठ की॥
सबको बचाने वाला,
जो है सबका प्यारा।
फिक्र उसको अपनी हमेशा,
वो नहीं कभी हार सकता॥
प्यार को बचाता है प्यार यहाँ।
परायों को समझता है कोई अपना॥
जिगर है मेरा, जान है वो।
धरती-गगन अपना सबकुछ है वो॥
वो जिसके साथ है, कोई ना उसे मार सके।
मौत भी थम जाती, जब उसकी बारी आये॥
देखना है आज जादू उसका,
पानी में जो आग लगायेगा।
- रतन लाल जाट
90.गीत- छोड़के दुनिया
छोड़के दुनिया, चले गये कहाँ?
हम ढ़ूँढ़ते ही, रह गये यहाँ॥
बस, इतना ही था, साथ हमारा।
अब मिलना, बहुत मुश्किल होगा॥
फिर भी, याद है शेष तुम्हारी।
जो हमको, एहसास करायेगी॥
कि- तुम हो आसपास यहीं।
आत्मा खोज करेगी अपनी॥
नहीं हम पहले, कभी मिले थे।
यहीं तो अपना, मिलन हुआ था……॥
बन आये थे परदेशी,
सफर करने थोड़ा ही।
यात्रा आज पूरी हुई,
जाने की घड़ी है आयी॥
प्रेम ही अमर है, बाकी सब नश्वर है।
एकदिन जाना है, बात ये सच्ची है॥
हर हाल में सहना है,
जो उस विधाता ने किया।
कोई बच नहीं सकता है,
बना है उसे मिटना होगा…….॥
- रतन लाल जाट
91.गीत- जब माता हमको दूध पिलाती
जब माता हमको दूध पिलाती,
लगता है वो अमृत जैसा।
जब माता हमको गोद सुलाती,
लगता है वो इन्द्रलोक जैसा॥-२
माँ का आँचल मिला यदि हमको,
तो नहीं फिर जरूरत कोई हमको।-२
माँ का नाम प्यारा है,
सारे जग में उजियारा है।
माँ जैसा कोई भगवान नहीं,
माँ तो है खुद एक विधाता।
जब माता हमको दूध पिलाती,
लगता है वो अमृत जैसा…………
सोना-चाँदी माँ के कदमों में,
कुछ नहीं मिट्टी के बराबर है।
माँ का प्यार देखो, जो कितने
हीरे-मोती से बढ़कर है?-२
माता का त्याग है ऐसा,
कर्ज कभी ना ये उतरता।
माता हम पर दिन और रात
लाख उपकार करती, मुश्किल वो ऋण चुकाना?
जब माता हमको दूध पिलाती,
लगता है वो अमृत जैसा…………
वही माता है जिसने, राम-कृष्ण को पाला।
कभी कौशल्या बनके, तो कभी बन वो यशोदा॥-२
माँ के जैसा कोई होगा ना कहीं,
माँ ही तो है सूरज और चंदा।
जब माता हमको दूध पिलाती,
लगता है वो अमृत जैसा…………
- रतन लाल जाट
92.गीत- देखो, आ गयी है माँ!
देखो, आ गयी है माँ! सुनकरके वो पुकार तुम्हारी।
दर्शन देने आयी है भक्त! तुम आँखें खोलो अपनी-२
विश्वास नहीं हो रहा है मगर
भक्ति का है देखो यह चमत्कार
माता कभी अपने बेटे को,
संकट में अकेला नहीं छोड़ती।
देखो, आ गयी है माँ! सुनकरके पुकार तुम्हारी-२
क्यों इतने तुम दुःखी होते?
माँ का आशीष है साथ तुम्हारे॥
सच्चे मन से जो भक्ति करते हैं।
उन भक्तों की जरूर माँ सुनती है॥
मगर पहले परखती है माँ!
कि भक्त में है श्रद्धा कितनी?
देखो, आ गयी है माँ! सुनकरके पुकार तुम्हारी-२
चाहे कितने ही संकट आये?
भले दुश्मन सर पर मंडराये॥
कभी जिसका विश्वास ना उठ पाये।
वही माँ का सच्चा भक्त कहलाये॥
मालूम नहीं कब वो किस रूप में आ जाये?
नहीं फिर कोई उसको कभी रोक पाये॥
भक्ति में है जादू शक्ति का,
जो बुला ले खुद शक्ति को ही।
देखो, आ गयी है माँ! सुनकरके पुकार तुम्हारी-२
दर्शन उसके करने है,
कहीं वो आकर चली ना जाये।
आँखें खुली रखना है,
नहीं तुम कभी निराश होना रे॥
आयेगी वो रखना तू द्वार खुला,
भक्ति के आगे झूकती है शक्ति ही।
देखो, आ गयी है माँ! सुनकरके पुकार तुम्हारी-२
- रतन लाल जाट
93.गीत- लेके बन्दूक, उठा ले तलवार
लेके बन्दूक, उठा ले तलवार
कस ले कमर, हो जा तू तैयार
देश के खातिर मरना है,
दुश्मन से आज लड़ना है।
जीना-मरना कभी नहीं डरना है,
तन और मन वतन से नहीं प्यारा है।।
चाहे दो पल की ही जिन्दगी हो।
गुलामी के हजार सालों से प्यारी वो॥
फिर अपना तो देश है हिन्दुस्तान
युद्ध में मर मिटना ही है अपनी शान
लेके बन्दूक, उठा ले तलवार
कस ले कमर, हो जा तू तैयार………
छोड़ दो सारी खुशियाँ, तोड़ दो अपनी बेड़ियाँ।
माँ पर आज संकट आया, कैसे हम चुपचाप यहाँ॥
बेटे की कुर्बानी से होती है परीक्षा ये,
चाहे तो जान से खेलना पड़ जाये।
प्यार अपने स्वार्थ का तू भूल के यार
वतन के प्यार में सब कर दे कुर्बान
लेके बन्दूक, उठा ले तलवार
कस ले कमर, हो जा तू तैयार………
वतन अपना है, नहीं डरना है।
आजाद रहना है, यही सपना है॥
वतन से बड़ा है कोई नहीं,
नहीं सरहद-सा मंदिर है कहीं।
जिसकी किस्मत में शहादत लिखी,
उससे अच्छी किस्मत और है किसकी?
जुर्म नहीं, दुःख सहा जाता।
वीर नहीं, कायर हार मानता॥
बलिदान होने तक जारी है अभियान
चैन नहीं जब तक जिन्दा है गद्दार
लेके बन्दूक, उठा ले तलवार
कस ले कमर, हो जा तू तैयार………
- रतन लाल जाट
94.गीत- मासूम बच्चों पर
फूल से कोमल मासूम बच्चों पर
ढ़हाये जा रहे हैं जुल्म यहाँ।
कोई ना करता दया उन पर
जमाना आँखें बन्दकर देख रहा॥
कितने भोले-भाले बच्चे हैं,
भगवान से भी सच्चे हैं?
कौन रखता है खयाल इनका?
बेचारे सड़क पर करते बसेरा॥
फिर कौन पढ़ाता है? नहीं कोई देखभाल करता।
माँ-बाप भी बच्चों की, मजदूरी से घर चलाते अपना॥
इन बच्चों का कोई कसूर है क्या?
जो चल पड़े इस रास्ते पे यहाँ…………॥
कभी इनको प्यार नसीब ना हुआ।
नहीं कभी भरपेट खाने को मिला॥
इनकी किस्मत में कहाँ बचपन के खेल-खिलौने?
पढ़ने की उम्र में ये दर-दर की ठोकर खा रहे हैं॥
एकबार इन बच्चों को अपना,
प्यार लुटाकर तो देखो जरा।
चोरी-हिंसा नहीं है उनका सपना,
धरती पर लायेंगे ये स्वर्ग सच्चा॥
इस छोटे-से तन में, एक बड़ा दिल है बसता।
बच्चे हैं मगर वो मनुज से ऊपर है देवता………॥
यदि इनकी आँखों से कोई आँसू ना पोंछ पाया।
मधुर मुस्कान को किसी ने गम में बदल दिया॥
तो फिर कैसे हम इनके जन्मदाता?
जन्मदाता से भी बढ़कर है शरणदाता॥
इनको अपनी शरण दे, गोद में है सुलाना।
जिन्दगी के दुःख-दर्द, हँसी-खुशी में बदलना…………॥
- रतन लाल जाट
95.गीत- भाग्य तेरा साथ निभायेगा
भाग्य तेरा साथ निभायेगा।
आगे से आगे तू बढ़ते रहना॥
मुड़के कभी पीछे ना देखना।
हो मंजिल पाने का ही सपना॥
कर्म से अपना बंधन जोड़े रखना।
कभी निराश होकर ना बैठना॥
कोरे-भाग्य भरोसे रहने वाला।
जीत नहीं हार ही प्राप्त करता॥
चाहे जितने संकट आये यहाँ।
मरते दम तक करे सामना॥
आधी रात में भी सूरज उग आयेगा।
उठते तूफान में भी तिनका ना हिलेगा॥
शेर को भी मार देता है खरगोश छोटा-सा।
और खरगोश से भी दौड़ जीत जाता है कछुआ॥
हाथी को चींटी ने यमलोक पहुँचा दिया।
साँप को मोर ने टूकड़े-टूकड़े कर दिया॥
शिवाजी ने मुगलों को हिलाकर रख दिया।
प्रताप ने अकबर को चैन से ना सोने दिया॥
झाँसी की रानी ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिया।
पन्ना ने बेटे का बलिदान दे उदय को बचा लिया॥
- रतन लाल जाट
96.गीत- घर छोड़ा
घर छोड़ा, प्यार भी रोका।
देश अपना, सबसे बड़ा॥
इस देश पर मरना।
अपने दिल का सपना॥
है हर एक हिन्दुस्तानी का-२
जब जंग छिड़ी हो।
देश पर संकट हो॥
तो देश रक्षा पहले हो।
बाकी सब काम रहने दो॥
वतन के नाम कुर्बानी लिख देना।
तुम भी अपना नाम अमर कर देना॥
दुश्मन थोड़ा पागल है।
नहीं उसको खबर है॥
जुर्म का फल उसको मिलेगा।
उस दिन शैतान निकल भागेगा॥
दिल उनमें भी है, एकदिन जाग उठेगा।
अपने किये पर, फिर बहुत पछतायेगा॥
पाक भी एक वतन है, वहाँ भी मानव है।
सब जगह आज शैतान, वो नहीं हमारा-तुम्हारा है॥
कोई अपने स्वार्थ के खातिर
मातृभूमि से सौदा कर
सुख-चैन पायेगा कैसे?
अपनों को बर्बाद कर जीयेगा कैसे?
अपना मजहब भी यह नहीं सिखाता।
ऊपरवाला भी तो हुक्म है नहीं देता॥
दोनों वतन एक ही माँ के दो बेटे हैं।
बेटे आपस में ही क्यों लड़ते हैं?
अपने तो अपने हैं, अंत में यही साथ निभाते हैं।
उनकी खुशी अपनी, एक जख्म दोनों को बर्बाद करता है॥
इतिहास यह गवाही देता, महापुरूषों ने भी यही कहा।
अब नहीं भूल करना, हरपल याद यह रखना।
हमसे ही संसार बना, नहीं तो है सब कुछ सूना॥
- रतन लाल जाट
97.गीत- हाथों में हाथ मिलाना है
हाथों में हाथ मिलाना है।
डगर पे फिर साथ चलना है॥
बैर-भाव आपस में भूलके।
दुनिया को स्वर्ग बनाना है॥
पत्थर से पत्थर मिलाके।
कई मंजिला मकान बना दें॥
दिल से दिल मिल जाये।
तो सारी मुश्किलें हल हो जाये॥
नहीं कुछ तेरा है, मेरा भी कुछ नहीं है।
तेरा-मेरा सब उसका ही है।
और उसका दिया सबकुछ अपना है……॥
अपने-पराये कोई नहीं,
सब देश भी हैं एक ही।
देखो, हवा भी सब ओर चलती,
बादल भी बरसते हैं हरकहीं पर भी॥
चाँद-तारे वो रात में, जगमगाते संसार में।
सारी दुनिया में, सूरज एक ही निकल उगे।
पानी भी एक है, जो सब ओर बहता है……॥
हवा को हम रोक ना पायें,
बादल को हम बाँध ना सके।
फूलों की खुशबू, बगिया से बाहर जाये,
सागर का पानी, कभी रूक ना सके॥
फिर जीना-मरना भी सबका है।
वही तो एक हम सबका राजा है……॥
हुक्म उसका टल ना पाये,
कब आँधी-बाढ़ आ जाये।
आपस में अलग हम हो जाये,
तो नाराज हमसे वो पेश आये॥
खून सबका एक है, दिल भी तो अपना एक है।
एक से एक मिल जाये, तो पूरे ग्यारह हो जाते हैं…….॥
यदि तीन से तेरह हो जायें,
तो एक भी ना हम बन पायें।
एकपल भी दूर हो जायें,
तो जन्मों तक ना मिल पायें॥
सबका यही कहना है, अब यही तो करना है।
इतने दिन बस कहते थे, आज करके दिखाना है……॥
- रतन लाल जाट
98.गीत- नहीं है यह शहर अपना
नहीं है ये शहर अपना,
घर भी नहीं है ये अपना।
जहाँ हमारा बसेरा,
वहीं है स्वर्ग अपना॥
अपने भी अब अपने रहे नहीं।
परायों को अपना मगर बनाते सभी॥
वो दिल भी है अपना नहीं।
जो तन में रहता है हरघड़ी॥
फिर औरों की क्या बिसात है?
जो कोई हो अपना, नामुमकिन है॥
रिश्ते-नाते बनते-बिगड़ते,
कब क्या हो जाये?
पिता जो है दादा, बेटा वो है पिता।
छोटा था वो बड़ा, बड़ा था जो बूढ़ा॥
और अपना वो परायों से भी हो जाता है पराया।
कोई अनजाना हो, लेकिन जीवनाधार बन जाता॥
जब नैया अपनी डूबती हो,
हम राह पर अकेले खड़े हो।
ऐसे में कोई पतवार बने जो,
हाथ पकड़ राह दिखाये हमको॥
तब कहना कि- कोई अपना।
नहीं तो ये संसार है बेगाना॥
जब अम्बर में चाँद हो,
नहीं जरूरत सितारों की।
मगर आये काली रात तो,
दिशा बताते हैं सितारे ही॥
बसंत में खिलते हैं फूल कई सारे।
तपती धूप में जो खिले, वो ही याद रहे॥
बनता-बिगड़ता खेल है यहाँ।
हार मिलती, तो कभी जीत यहाँ॥
कुछ भी यहाँ निश्चित है नहीं।
जीना-मरना और सुख-दुःख भी॥
ना जाने कब क्या हो जाये?
कली बिना फूल ही मुरझाये॥
यह छोटी-सी कहानी,
समझते हैं हम नहीं।
नहीं कोई मतलब है इसका,
फिर भी हम रखे हैं रिश्ता॥
- रतन लाल जाट
99.गीत- वो कितना सुन्दर सलौना होगा
वो कितना सुन्दर सलौना होगा?
मेरा है जो मेरे जैसा ही होगा॥
आँखों में नजर आ रहा,
हरपल मुझको वो चेहरा।
जो बड़ा ही प्यारा होगा………॥
मेरे जिगर का है वो एक टुकड़ा
और आँखों का एक तारा।
जगमग हो जाये संसार सारा,
कुछ ऐसा नाम करेगा हमारा॥
वो सबका हो दुलारा,
जो बड़ा ही प्यारा होगा………॥
इसके सिवा है अपनी माँ का प्राण-प्यारा।
वो जिस्म अलग है, मगर एक ही जान-सा॥
सारी खुशियाँ उसमें समायी है।
फिक्र नहीं अपनी, सिर्फ उसकी है॥
बिन उसके एकपल नहीं सुहाता।
वो जीवनहार मोतियों की माला॥
जो बड़ा ही प्यारा होगा………॥
एक चमन-सा महके, वटवृक्ष जैसे बढ़ता रहे।
निर्मल नीर धार बहे और खुशबू बनके लुभाये॥
बस, यही हमारा है सपना,
जो पूरा हो रब से करें दुआ।
वो एकदिन बनेगा सहारा,
जो बड़ा ही प्यारा होगा………॥
- रतन लाल जाट
100.गीत- श्याम रंग में रंग गयी दुनिया
श्याम रंग में रंग गयी दुनिया।
ब्रज ही नहीं, जगमग है मथुरा॥
राधा संग मीरा के भी कान्हा।
सारी गोपियों का है वो प्यारा॥
तीन लोक के स्वामी और वृन्दावन ग्वाला।
वासुदेव-देवकी संग लाला नंद-यशोदा का॥
बाहर से नटखट है।
सच्चा प्रेम है दिल में॥
करता है जो वादे।
हरहाल में वो निभाये॥
उसकी सूरत है मनभावन।
मुरली की धून भी पावन॥
उससे ज्यादा सुन्दर है मोर-पंख।
और बाजे पैरों में घूँघरू छम-छम॥
नाम उसका कर दे सबको दिवाना।
एकबार जो देख ले, फिर भूल सके ना॥
कान्हा-कान्हा पुकारा करे।
श्याम-रंग में वो डूबा रहे॥
प्रेम की गगरिया में,
कृष्णभक्त जो नहाया करे।
नहीं फिर कोई भूल पाता।
ना ही वो कभी हार मानता॥
कर्म अपना करते जाते,
हार-जीत का गम नहीं उन्हें।
यही कहा था हमको,
और सिखाया प्रेम वो।
दुनिया में जो एक अनमोल उपहार है।
प्रेम जिसका नहीं कोई मोलभाव है॥
प्रेम-नाम तेरा है कृष्णा,
वही सबकुछ है प्यारा।
बिन इसके जग लगता है सूना।
मानव नहीं फिर कोई कहलाता॥
जब नहीं कोई कृष्ण को पहचाने।
और वृन्दावन-जमुना नहीं जाने॥
तो कृष्ण में ही जान अटकी है।
दर्शन हेतु नैंन भी तो है प्यासे॥
दिन-रात यही जपता है दिल अपना।
बिन उसके एकपल भी चैन नहीं आता॥
- रतन लाल जाट
101.गीत- आज टूटे दो दिलों ने
आज टूटे दो दिलों ने,
बरसों बाद दुश्मनी भूलाके।
दोस्ती के कदम बढ़ाये,
जो प्रेम बसा था आज दिखा है।।
इस दोस्ती को आग लगाने वाले।
अब जिन्दा है नहीं बचने वाले॥
फूलों की कलियाँ जो मुरझायी थी।
पावन-गंगा लहू से मैली हुई थी॥
नीले गगन में अंधियारा छा गया।
सोने-सी धरती पर लाशों का ढ़ेर लगा॥
अब तक इतिहास है जिन्दा।
यही कहानी आज वो कहता॥
गद्दारों ने विश्वासघात किया है।
नफरत की आग में जलाया है॥
अंत समय किसी ने आकर
दिलों को प्रेम-बंधन में जोड़के।
नयी मिसाल कायम की है,
दोस्ती की बगिया सजाके॥
अब नहीं कोई फूल मुरझायेगा।
नहीं कोई कली को तोड़ पायेगा॥
हरी-भरी धरती पर,
श्मशान नहीं बनेंगे घर।
आसमाँ में अँधेरे की जगह,
रोशनी होगी जगमग॥
प्रेम को छुपाया जा सकता है।
प्रेम को मिटाया नहीं जाता है॥
प्रेम क्षणभर का खेल नहीं है।
कहानी यह इतिहास में अमर है॥
जब भी प्रेम ने ललकारा था।
शुरूआत हुई, नया युग आया॥
प्रेम इन्सान का एक गहना है।
छल-बल नहीं वो पावन रिश्ता है॥
जो काम नहीं बन्दूक कर सकती।
वो काम मोहब्बत पलभर में करती॥
किसी को कितना ही डराया जाता।
लेकिन भेद नहीं वो कभी खोलता॥
दुश्मन प्रेम के आगे झूक जाता है।
प्रेम से ही सब कुछ हो पाता है॥
हम सबने सुनी है यही कहानी।
हर घर और मुल्क में जो घटती रही॥
इस कहानी को, आज फिर से लिखना है।
बिछड़े दिलों को, एकबार फिर मिलाना है॥
जिसने भी प्रेम को तोड़ा है।
निश्चय ही अंत उसका हुआ है॥
प्रेम को मिटाने निकले थे जो।
प्रेम-पुजारी बन आ गये वो॥
यह पूछो अपने दिल से,
क्या कहती है धड़कनें?
इसके बाद ही कुछ करना है,
जहर नहीं अमृत-पान करना है॥
- रतन लाल जाट
102.गीत- वो सुन्दर-मनभावन
वो सुन्दर-मनभावन, बड़ा ही है पावन।
कभी कोमल-नटखट, जो है मुरलीमोहन॥
अगले ही पल, रूप नया धर।
श्रीराम-सा बन, खत्म करे दशानन।
जो शक्ति है महान्, देवों का देव समान।
दिखाते हैं दया हर जीव पर
मिटाते हैं सदा ही अहंकार-मद
भेदभाव नहीं तुम कुछ करना।
पाप-अनीति पर कभी ना चलना॥
छल कभी भी अच्छा ना लगे।
किसी को हम छोटा ना समझे॥
मौत भी उसके ईशारे पर चलती है।
अनहोनी वो होनी करके दिखाये॥
एक जादू है, बेकाबू है।
ऐसा खेल जो, गजब है॥
पल-पल में, उसका है वास
भक्त के मन में, बसी हर साँस
नाम से उसके भवसागर-पार हो।
काम नहीं कुछ भी मुश्किल उसको॥
वो मूरत है, एक सूरत है।
रंग और रूप, श्वेत-श्याम है॥
जो प्रेम-दिवाना, दुष्टदलन कर्त्ता।
शैतानी है करता, मर्यादा भी निभाता॥
उसके दिल में सबसे प्रेम है।
हम सब ज्योति वो दीपक है॥
नृत्य-गायन, युद्ध-विनाश कारक।
गरीबों का उद्धारक, जो अत्याचार का अंत॥
जब भी करे कोई पुकार
सुनते ही आये दौड़ तत्काल
दया का सागर, प्रेम-पथिक
पापियों का नाशक, मानवता-सृजक
रखो हमेशा डर उसका दिल में।
रहो दूर कोई गलती ना हो हमसे॥
नहीं फिर हम कभी बच सकते।
अंत समय वो ही तो मुक्ति दे॥
- रतन लाल जाट
103.गीत- हम लाख कोशिश करें छुपाने की
हम लाख कोशिश करें छुपाने की,
छुप सकता है मगर कुछ नहीं।
फिर भी करता है कोशिश हर कोई,
हाथी को छुपा दे, वो रखकर हथेली॥
आँसू वो आँख का, छलक करके ही रहता।
प्रेम है जो दिल का, प्यार बनके ही रूकता॥
पाप कभी जीत नहीं सकता।
पुण्य-ज्योति कोई पाये नहीं बुझा॥
रास्ते का काँटा, कितनी भी कोशिश करो?
चुभ ही जाता, जब गलती एक हो॥
सागर से छोटा-सा, मोती जो बाहर आ जाता।
चाँदनी रात हो, फिर भी चमकता है एक तारा॥
अच्छे-बुरे की कोई बात नहीं,
दिल जानता है सब पहले ही।
फूल कितना ही दूर हो?
खुशबू ना रूक पाती है वो॥
फिर भी हम कहते कि-
बाग नहीं है वहाँ कोई।
बरसात होने से पहले ही,
आ जाती है खुशबू हरकहीं॥
फिर भी कोई कहेगा-
बरसात नहीं होगी।
पाप बढ़ रहा है,
फिर भी प्रलय ना होगी॥
कान नहीं हो, फिर भी सुन लिया जाता है।
चाहे नींद में हो, लेकिन सब ज्ञात होता है॥
सूरज को इन्तजार है नहीं किसी का।
किधर है पूरब, वो हमको दिखलायेगा॥
जहाँ भी गिरा हो, बीज कहीं मिट्टी में।
चाहे हम भूल गये, फिर भी अंकुरित होता है॥
हवा कभी दीखती नहीं, फिर भी वो होती है।
पाप की जड़ पाताल में, तो भी बाहर आती है॥
दिल की बात हम कभी कहते हैं नहीं।
मगर आँखों से नजर वो आ ही जाती॥
पाप को हम साँच कहें,
हार को हम जीत कहें।
हमारे कहने से नहीं कुछ होता है,
औरों को सब पहले ही मालूम है॥
हवा नित बदलती है,
राहत दे, कभी डराती है।
जो अपनी दुनिया है,
एकदिन वो ही दुनिया छुड़ाती है॥
अपने भी हमको भूल जाते।
फिर गैर क्यों याद रखते?
सूरज किरण संग निकलता।
किरण को लेकर ही डूब जाता॥
बरसात में भी तेज गर्मी होती।
बारात से पहले ही उठ जाती अरथी॥
धरती की चाल
कोई ना पाया जान
फिर क्या है? जो बदलता नहीं।
आधी रात में, राह दिखाता कोई॥
- रतन लाल जाट
104.गीत- हर जुर्म का होना है
हर जुर्म का होना है, एकदिन तो अंत पक्का।
वृक्ष जो अन्याय का, उसकी जड़ काटता कीड़ा॥
सबका मन जानता है
कि- पाप नहीं छिपता है।
फिर भी सब करते हैं लाख कोशिशें।
अन्याय को झूठ से परदा कर छिपाते॥
लेकिन जब आती है आँधी तो
उड़ जाता है जल्दी से परदा वो।
दूध में भले ही पानी हो कितना?
चाहे शैतान हो बलवान कितना?
एकदिन तो चिंगारी जल उठेगी।
पाप के जंगल को राख कर देगी॥
आँखों से किसी ने नहीं देखा हो।
और ना कानों से भी सुना हो॥
लेकिन दिल की बात सबको मालूम है।
नहीं जरूरत साँच को कोई गवाही दे॥
शैतान को मद बहुत है,
नशे में वो चकनाचूर है।
मगर एकदिन पैरों तले जमीन ना होगी।
आँखों में नशे की जगह दया की भीख होगी॥
ऐसे में खुद अपना भी कोई माफ नहीं करेगा।
पाप के अंत से ही होता है भला सबका॥
छल-बल करने वाला,
नहीं होता है किसी का।
आज कातिल है जो औरों का,
कल अपनों का ही वो अंत करेगा॥
गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है।
मछली एक तालाब को गन्दा करती है॥
अँधेरे में एक दीप ही काफी है।
हजारों अन्याय मिटाने को सच एक ही है॥
जहाँ बारूद का ढ़ेर हो,
मशीनों से वहाँ माचिस बनती है।
उस माचिस की एक तीली जो,
सारे बारूद को जला देती है॥
नहीं मालूम कब हवा फिर जाये?
आज जीत है, कल वही हार हो जाये॥
प्रीतम ही खुद कातिल बन जाता,
दुश्मन एक-दूजे के गले लग जाता।
तब नया सूरज उगता,
नहीं फिर अंधकार रहता॥
अंत समय निर्णय होना है।
राम नहीं, रावण को ही मरना है॥
पाप और झूठ की हार होगी।
सत्य और प्रेम की जीत होगी॥
सूरज उगने में देर हो सकती है।
पाप को मिटाने में वक्त जरूरी है॥
अहंकार-मद में एकबार जो हँस देता।
फिर सौ-सौ बार रोना तो ही है पक्का॥
पाप की एक कौड़ी,
टका पूरा वसूल करती।
गुलामी के चार दिनों से अच्छी,
एकपल की अपनी वो जिन्दगी॥
विश्वासघात मौत से बढ़कर
अन्याय की जीत, हार से बदतर।
करो नफरत उस पाप से
प्रेम करो, तो सब बदल जाये।
भला-बुरा रब नहीं करता है।
सत्य के आगे सब झूकता है॥
तब इतिहास नया है बदलता।
क्रान्ति की जब उठती है ज्वाला॥
- रतन लाल जाट
105.गीत- फिर आयेंगे
फिर आयेंगे, दिन वो बीते।
हर रोज होगी, वही मुलाकातें॥
थोड़े दिनों की यह बात है।
उसके बाद तो अपना राज है॥
सच्चे प्यार को,
कोई मिटाये तो।
मिट जाये इस जहां से।
सबका नामोंनिशान है॥
हमको तो मिलाया है।
रब ने बड़े ही नसीब से॥
कौन रोकेगा? मिलने से हमको ।
दूर हटो, प्यार का रस्ता छोड़ो॥
दुनिया में अजब तरीके।
बिन माँगे सब लुटाये॥
माँगे तो कोई ना दे।
लेकिन अब हम पाकर रहेंगे॥
झूठ के पाँव कभी टिकते नहीं।
पाप तो एकदिन सामने आता है ही॥
संभलके रहना तुम हो कातिल दिलों के।
प्रेम के धागे को कैंची भी ना काट पाती है॥
फिर कैसे तुमने यह सोचा है?
प्रेम-दिवानों से जंग जीत जायेंगे॥
दिलवाले ही चलते हैं,
प्रेम की डगर पे।
काँटों पे भी हँसते हुए,
इम्तिहान वो देते॥
सागर जैसा दिल अपना,
धीर-गम्भीर धरती-सा।
बादल बन नीर बरसाये,
फूलों की खुशबू उड़ाये।
सारी नदियों को अपने में हम समा लेंगे।
बिजली और गर्जन को भी छुपा देंगे॥
विष पीकर भी हम मरते नहीं।
आँधी से भी कभी डरते नहीं॥
अंधेरी रात में भी, जगमग होती है चाँदनी।
गर्म हवा को सर्द हम करते,
जमे बर्फ को भी पिघला देते।
जो नहीं होता है, करके वो हम दिखायें।
मरे हुए को भी, एक बार तो हिलादें॥
- रतन लाल जाट
106.गीत- कैसे दिन नसीब में
कैसे दिन नसीब में?
करें क्या हम शिकायतें?
नहीं कोई समाधान है?
सहना ही बस काम है॥
ए देने वाले तूने इसका परिणाम नहीं सोचा।
अब हाल हमारा कितना बुरा है हो रहा?
ऐसा कोई यार नहीं रहा,
आज सब मतलबी हो गया।
अब कौन है जो हमारा ख्याल रखेगा?
राह बताना तो दूर चलती राह रोकता॥
बहुत मुश्किल अब जीना हो गया है।
इन्सान भला इन्सान ही नहीं रहा है॥
हम देखते हैं जो कुछ और है।
हर जगह दोहरा रूप व्याप्त है॥
चोरी-बेईमानी काम हो गया है अच्छा।
सत्य लगने लगा है अब जहर जैसा॥
खूनी-पापी का नाम है बड़ा,
संत-पुरूष भटकता है बेचारा।
इस दुनिया में अकसर ऐसा देखा जा रहा,
भगवान तू दुखियों का इम्तिहान ले रहा।
ना जाने कब तक ऐसा होता रहेगा?
दिन में भी घोर अंधेरा छाया रहता॥
जरूरत एक चाँद-रवि की है।
आस सिर्फ तेरे विश्वास की है।।
वरना कब-के मिट जाते?
मगर अब भी हम जिंदा हैं॥
शोर-शराबा, हल्ला-हुड़दंग
झूठे गवाह, खुलेआम कत्ल
इज्जत बिकती, सत्य है रोता
और पापियों की, जय-जय यहाँ
रास्ते नहीं थे, वहाँ पर अब है रास्ते।
जिससे हम दूर थे, अब वो ही साथ है॥
सारे के सारे दानव जो निकले।
दानव से बचते, मगर मानव से कैसे?
- रतन लाल जाट
107.गीत- ए मेरे मितवा
ए मेरे मितवा, तू भी तो है मेरे जैसा।
दिल तड़पता होगा, नाम जपता होगा॥
मगर क्या करें? जो है अपने नसीब में।
सहना है, वो हमको मानना है॥
कभी सुबह जगते ही,
याद मेरी आती होगी।
तो कभी आधी रात में भी,
नींद तेरी जाग जाती होगी॥
तुझको भी एकपल चैन आता है नहीं।
लाख कर कोशिश, फिर भी दिल भूलता नहीं॥
जिन्दगी जैसे ठहर गयी है।
तू नहीं तो कुछ भी नहीं है।।
तुमने मुझको चाहा,
दिल तेरे लिए रोता।
दिल की बात कैसे भला,
तुझको पहले से है पता॥
कसूर नहीं कुछ भी मेरा या तेरा है।
फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है?
वरना किस बात की कमी थी?
जो तेरे जैसा यार था जिन्दगी॥
हालात अपने बिल्कुल एक है।
हँसना भी अपने हाथ नहीं है॥
फिर जीना-मरना दूर की बात है।
मिलना तो एकदिन होना ही है॥
आज कैसे बतायें दिल को,
ये पगला नहीं समझेगा।
मैं तो मजबूर हूँ मगर वो
तेरी मजबूरी ना जानेगा॥
आसमां अपना, धरती प्यार करती है।
पवन तो एक यहाँ, जो श्वाँसों में रहती है॥
फिर भी अब देर नहीं है, आयेगी आँधी।
धरती क्या हिलेगी, डोलेगा शेषनाग भी॥
सत्य के संग सत्य हो
कमी किसकी है फिर तो
अब ज्यादा वक्त नहीं है,
वक्त खुद बदलेगा।
सच्चा प्यार सच्चा है तो,
फिर कौन रोकेगा?
दिल से दिल मिलेगा,
प्यार अपना जीतेगा।
प्रिय याद तुम रखना इसे,
प्रेम हमको निभाना है॥
- रतन लाल जाट
108.गीत- ओ यार मेरे!
ओ यार मेरे! चल हम घर चलें। ओ यार मेरे!
दिल में चुभन यही दिन-रात सताये। ओ यार मेरे!
ओ यार मेरे! चल हम गाँव चलें। ओ यार मेरे!
अब धुँआ-धुँआ मार देगा,
शहर में हमको ना रहना।
भीड़-भाड़ घनी यहाँ,
कदम मुश्किल है रखना॥
चोरी-डकैती, शोर-शराबा।
सारे अजनबी, कोई नहीं अपना॥
चलते-फिरते लोग यहाँ लगते हैं।
जैसे इंसान नहीं कोई मशीन हैं॥
ओ यार मेरे! देख जरा स्वर्ग नया ये। ओ यार मेरे!
दिल में चुभन यही दिन-रात सताये। ओ यार मेरे!
ओ यार मेरे! चल हम घर चलें। ओ यार मेरे!
यहाँ आगे-पीछे, अपने तुम देखो,
लोग सारे चलते आ रहे जो।
गाते हुए नाचते हुए,
ईशारा हमको कर रहे॥
ऐसा लगता कि- सारा घर-बार।
सारे बच्चे अपने दिल का इन्सान।
ओ यार मेरे! एक नहीं यहाँ सब प्यारे। ओ यार मेरे!
दिल में चुभन यही दिन-रात सताये। ओ यार मेरे!
ओ यार मेरे! चल हम घर चलें। ओ यार मेरे!
होश उड़ाती, हवा चलती।
बिस्तर बिछाये, हरी धरती॥
आसमां में जगमग रोशनी।
गीत सुनाये कल-कल नदी॥
चारों ओर खुशबू है।
कितना पावन नजारा ये?
खेत-खलिहानों में कुदरत है।
जो करता नृत्य-गायन है॥
ओ यार मेरे! गयी चिंता दिल डोले। ओ यार मेरे!
दिल में चुभन यही दिन-रात सताये। ओ यार मेरे!
ओ यार मेरे! चल हम घर चलें। ओ यार मेरे!
अभी तक जो सुना था,
आज आँखों से वो देखा।
हरी सब्जी, अनाज सारे हमको मिलेंगे।
फल-फूल और दूध-मक्खन भी खायेंगे
सुख सारे गोद में आकर नाचेंगे
दुख भी यहाँ से पल में भागेंगे
ऐसी सपनों की दुनिया में,
कमी फिर किस बात की है?
ओ यार मेरे! कुटिया हम यहीं बना लें। ओ यार मेरे!
दिल में चुभन यही दिन-रात सताये। ओ यार मेरे!
ओ यार मेरे! चल हम घर चलें। ओ यार मेरे!
- रतन लाल जाट
109.गीत- दिलों का बंधन है शादी
दिलों का बंधन है शादी,
शादी से ही सँवरती है जिन्दगी।
रिश्तों में सबसे पावन है शादी,
शादी से ही सारी दुनिया है चलती॥
पक्की बात, इसकी पहचान
इसके बाद, दम्पत्ती नाम
जीवन-समर के पल,
जीत पायें दोनों मिल।
वरना अकेले तो,
समझेंगे कमजोर वो।
सारे संकट का हल है शादी,
बिन शादी के लगता है जीवन बर्बादी।
दिलों का बंधन है शादी,
शादी से ही सँवरती है जिन्दगी……॥
थामके एक-दूजे का हाथ,
जीवन-भर ना छोड़ना साथ।
कसमें जो हमने खायी है।
मिलके अग्नि के सामने॥
भूल ना जाना कभी इनको,
पाप और शाप दोनों है वो।
अपने बंधुबंधु-जनों की दुआएँ
दुःख हरके खुशियाँ बरसाएँ
कभी ना टूटे एक-दूजे की शादी,
सदा ही सलामत रहे दिल की जोड़ी ।
दिलों का बंधन है शादी,
शादी से ही सँवरती है जिन्दगी……॥
स्वर्ग की निशानी है अधूरी वो।
असंख्य दिलों की पहचान है जो॥
फिर दिल के कोमल धागों से।
अटूट धागा एक बन जाता है॥
यही तो भगवान की चाहत है
तभी तो दिल अपने मिलते हैं
वरना नामुमकिन था, हम मिल पाते कभी
ना जाने कैसे होती? यहाँ पर शादी अपनी।
दिलों का बंधन है शादी,
शादी से ही सँवरती है जिन्दगी……॥
- रतन लाल जाट
110.गीत- आज अपनी आवाज गूँजा दूँ मैं
आज अपनी आवाज गूँजा दूँ मैं।
दिल की बात सबको बता दूँ ये॥
क्या सपने हैं इस दिल के?
सच करके ही दिखाना है॥
सारे संसार को जन्नत से ज्यादा।
प्यार से भरपूर मैं कर दूँगा॥
नाम गमों का दिल से।
मिट जायेगा खुशियों में………
हम-तुमको क्या दुःख था जो?
मेहनत से क्यों ना भगा दें उसको?
प्यार करेगी परियों-सी धरती।
राह दिखायेगी जगमग ज्योति॥
चाँद-तारे भी साथ अपने।
चलते हुए रोशन करेँगे………
हर बेताब दिल को, तलाश है अपनी।
अनजान लोगों की, पहचान हमसे जरूरी॥
आज पूरी होगी सारी बातें।
दिल से होगी अपनी मुलाकातें……….
पुकार अपनी सुनकर
फूला ना समायेगा रब।
जिसके नाम से हम
हासिल करते हैं सब॥
उसकी दुआएँ अपने माथे।
फिर क्यों हम डरते हैं……….
जो भी करना है काम तुमको।
तन-मन लगाके करते जाओ॥
एकदिन जीत मिलेगी ही।
चाहे बाधाएँ हो कितनी भी?
कर्म से नहीं बढ़कर धर्म है।
कर्महीनता ही बस पाप है…………
- रतन लाल जाट
111.गीत- मेरे मुन्ने
मेरे मुन्ने तू बनकर रहना।
मेरे जीवन का एक सपना॥
और सपनों का है तू राजा।
करके दिखाना इनको पूरा॥
जो भी हमने सोचा है।
वो ही तेरी मंजिल है॥
निगाहों में रखना इसको।
चाहे जो भी हालात हो॥
एकदिन तू गुनगुनाये गीत अपने।
चाहत यही है दिल में बरसों से॥
जिस दिन हम तुझको देखेंगे गीत कोई गाता।
तो मान जायेंगे कि- रब ने सपना पूरा कर दिया…….
जो काम कर सके ना हम।
वो करके तुझको दिखाना अब॥
मेरे मुन्ने पर विश्वास है।
तुमको मेरी ही आन है॥
किसको नहीं मिलती है खुशी?
जब अपने लाल को आगे बढ़ता देखते।
और कौन चाहता है कि-
संतान अपनी एक जगह ही ठहर जाये?
दिन-रात करते हैं दुआ।
माँ-बाप अपने बेटों की सदा………
गुनगुनाते गीत वो।
बताये सपने सबको॥
गीतों में धड़कन मेरी।
हरपल सुनायी देगी॥
मेरे मुन्ने तुझको कुछ तो बनना है।
सबसे बढ़कर लायक बनना है॥
हर दिल का सपना पूरा तू करना।
वो ही सपना होगा मेरा अपना………
- रतन लाल जाट
112.गीत- प्रेम-दीवाने
प्रेम-दीवाने, श्याम तूने सीखाया है प्रेम सदा।
मगर अब कौन निभाता है? दिल से सच्चा॥
यहाँ तो सबको स्वार्थ ने आकर आपस में फँसाया है।
पहले अपनी खुशी, भले ही दूसरा क्यों ना मर जाये?
आज नहीं है कोई श्याम के जैसा।
तीन लोक छोड़के चराये जो गैंया………
राजा बनके भी वो ना भूले थे।
ब्रज के गोपी-ग्वाले सब याद थे॥
मगर यहाँ तो कुछ दिन बदलते ही।
भूल जाते हैं सारे अपने घर-पड़ौसी॥
जबकि मोहन दिल का सच्चा था।
अन्दर से बिल्कुल भोला-भाला………
आज दिखावा करके अन्दर कपट रखते हैं जो।
उनसे ही मरना पड़ता है सच्चे दिलवाले को॥
और देखो यारी, जो काम बनते ही।
बन जाती है, दुश्मनी जन्मभर की॥
अपने यारों की जान थे नंदलाला।
सुदामा को मालामाल कर दिया………
मैया यशोदा के लिए कान्हा थे।
अपने लाल से भी अधिक प्यारे॥
जब अतिवृष्टि ने ताण्डव ने मचाया तो।
पर्वत उठाके गिरधर ने बचाया सबको॥
मगर मैया से दूर है आज बेटा।
घर में आग लगा देखे तमाशा………
कालिया दमन करने वाले।
मुरली अधरों पे धरने वाले॥
प्रेम वचन निभाने को।
सर्वस्व अपना लुटाते जो॥
कई रूप बनके, लीला अपनी दिखाते।
फिर भी कोई मद नहीं,
ना ही अभिमान जताते।
राधा के प्रेम को पहचाना था।
द्रौपदी के चीर को बढ़ाया था॥
मीरा की भक्ति को जाना था।
कर्मा के हाथों खुद खाया था………॥
- रतन लाल जाट
113.गीत- एकबार आजा तू
एकबार आजा तू, मेरे दिल की रानी है।
तेरे आते ही खुशी से, झूम उठूँगा मैं॥
तुझे बाँहों में भर लूँगा।
गोद में अपने उठा लूँगा॥
फिर धीरे-से बतियाऊँगा।
बातें सारी तुझे सुनाऊँगा॥
पलक झपकते ही मैं।
हाथ पकड़ घुमाऊँगा तुझे॥
बाद उसके पास आकर मैं।
बालों को सहलाऊँगा तेरे॥
जैसे चाँद के पास सितारा कोई चमकता।
या सूरज में किरण साथ रहती है सदा॥
तेरे होठों से बहता है प्रेम-रस टपकता।
तेरी आँखों में छाया है एक अजीब नशा॥
और जुल्फें तेरी नागिन जैसी।
अलकों की घटा है बादल-सी॥
तेरे सोने से अंग में खुशबू है।
जो मदहोश मुझको करती है॥
- रतन लाल जाट
114.गीत- तुझे आना ही पड़ेगा
तुझे आना ही पड़ेगा, दिल ने जो पुकारा है।
फिर दूर तू कैसे रहेगा? मैंने प्यार से चाहा है॥
जब कोई दिल से पुकारे।
तो अगले ही पल आना है॥
सात समन्दर पार हो कोई।
आयेगा लौटकर वो भी॥
दिल से पुकारो तो, भगवान भी आ जाये।
और जब किसी ने
प्यार से पुकारा है तो, कौन नहीं आता है?
बातें मेरे दिल की, है तेरे दिल में।
प्यास जगी मेरी, श्वाँसों में तेरी है॥
तड़प मेरी, कदम तेरे उठा देगी।
तू चाहे या ना, दिल तो चाहेगा ही॥
रोके नहीं रूक पायेगी,
फूल से खुशबू आ ही जायेगी।
प्यार मौन रहेगा नहीं
कितना ही भूलाओ? याद आ ही जाती है॥
- रतन लाल जाट
115.गीत- या तो मेरे खुदा तू
या तो मेरे खुदा तू, किसी को प्यार नहीं देता।
और यदि तूने प्यार दिया, तो बेवफा क्यों करता?
ऐसे में क्या गुजरती है?
हाल नहीं तुझे मालूम है॥
अगर तू किसी से प्यार करता।
तो शायद ऐसा दर्द नहीं देता॥
अब बहुत जलता है दिल ।
टुकड़े-टुकड़े हो गया दिल॥
प्यार जीते-जी मार देता।
सारी खुशियाँ छिन लेता॥
अपनों से भी बेगाना हमको करके।
प्यार खुद कहीं चला गया है॥
पहले से बदतर जिन्दगी।
प्यार के बाद हमको मिली॥
अगर होता, इसका पता?
कि- हाल हमारा, ऐसा होगा॥
तो कभी डगर प्यार की चलते ना।
औरों को भी कभी चलने देते ना॥
मगर अब फँस गये।
क्या करें और क्या ना करें?
अपनी ही खबर हमको नहीं।
जैसे हम हो गये बेगाने सभी॥
नहीं दिखता है कोई रस्ता।
मंजिल भी तो है एक सपना॥
- रतन लाल जाट
116.गीत- जब सवेरे
जब सवेरे, उठते ही।
पहली नजर से मैंने, एक किरण देखी॥
वो नीले गगन की, शीतलता बीच थी।
अंधकार के बीच, एक ज्योति-सी॥
तब मुझको एहसास हुआ।
उसकी सुन्दरता का॥
चारों ओर छायी लालिमा।
और वो सुन्दर नजारा॥
यह पल सुनहरे, सजाते हैं जिंदगी।
खुशियों की बहारे, मौजें हैं आनंद की॥
अपनी इस धरती पर, ऐसे हैं सब सुन्दर।
खो जाये देखकर, जिसे हर कोई दिल॥
देखो जादू, जो था पहले।
नजर आया, वो अस्त होते॥
वही है अब आभा सतरंगी।
और मोहक नजारा भी हँसी॥
- रतन लाल जाट
117.गीत- वो एकदिन आयेगा
वो एकदिन आयेगा
काल बन मंडरायेगा।
जो गरीबों का सहारा
पापियों का नाश करेगा॥
अब कोई जायेगा
बचकर दूर कहाँ?
पाताल में छिप जा
या गगन में उड़ जा॥
फिर भी ढ़ूँढ़ निकालेगा………
वो सबका ही प्यारा
भाई को भाई समझता।
जो पराये को अपना जानता
और किया हर वादा निभाता॥
नहीं कभी किसी से हार मानेगा………
वो लगता है कोई फरिश्ता
इस युग में एक अलबेला।
जो बाहर से अपने जैसा
पर रूप है राम-कृष्ण का॥
जीवित अब कंस-रावण नहीं रहेगा………
वो तूफान है या शोला
मुझको तो महाकाल लगता।
जो अंगार को राख करता
बर्फ को भाप बना उड़ाता॥
दूध का दूध, पानी का पानी करेगा………
वो सबका है रखवाला
संकट से मुक्ति देने वाला।
वो शैतान को संत बनाने वाला
हार को जीत में बदलता॥
झूठ पर सत्य को जय दिलायेगा………
वो पुजारी मानवता का
यार है सबका ही पक्का।
जो दिल में रखे प्यार सच्चा
सबके लिए जान लुटाता॥
तोप जैसे घनघोर गरजेगा………
वो सबको जीवन नया देगा
सूखे दरिया में पानी भर देगा।
जो उजड़ी बगिया लहरायेगा
गर्मी में बरसात बन बरसेगा॥
तब कौन प्यास से तरसेगा………
- रतन लाल जाट
118.गीत- सरहद पर
सरहद पर सारे वतन के,
आपस में मिल भाई-बंधु अपने।
हम सबकी रक्षा करते हैं
धरती माँ! तुझ पर मरते हैं॥
कोई पंजाब का शेर है।
तो कोई मराठा सवा सेर हैं॥
बंगाल से निकले दिलदार बड़े।
और राजपूत-जाट मिल फतह करते हैं॥
सबके ही दिलों में एक ही सपने हैं।
घर पर उनके माँ-बाप और बीबी-बच्चे हैं॥
जो बरसों इंतजार में दिन-रात जगते हैं।
आँखों में कभी तो आँसू आ ही जाते हैं॥
समर-भूमि में दिन तो कट जाते।
मगर कभी अकेले में शूल चुभते हैं॥
अपनी-अपनी ताकत से सारे।
अपना हर कर्म करते हैं॥
- रतन लाल जाट
119.गीत- आखिर ये प्यार
आखिर ये प्यार कैसा संगम है?
जो दो दिलों की एक धड़कन है॥
कोई सोचता कि- मैं अकेला।
तो दूसरा कहता कि- मैं हूँ ना।।
जबकि दोनों ही अकेले हैं।
भले ही साथ पास सब हैं॥
बिन फूल के खुशबू कहाँ आती है?
बादल बिना नहीं बरसात होती है॥
यादें ही जीवन में जिंदा रहती है।
सुख-दुख के पल वो साथ सहती है॥
साजन के बिना, सजना है नाम क्या?
प्यार में जीना, नहीं डर मिलन-जुदाई का॥
विष अमृत बन जाता है।
काँटा भी फूल लगता है॥
प्यार में कोई, भूले नहीं अपना।
बरसों बाद भी, वो याद रहता॥
प्रेम की प्यास बुझाये, कभी नहीं बुझती है।
जितना भी चाहो, चाहत उतनी ही बढ़ती है॥
- रतन लाल जाट
120.गीत- जब रात ढ़ले
जब रात ढ़ले, चाँद निकले।
तो हम देखें, गगन में॥
चारों ओर छाये उजाला।
जहाँ पहले था घोर अंधेरा॥
कैसा ये जादू? कोई ना जाने।
सब पर अपना जादू करता है॥
आज इस चाँद ने, साकार किये सपने।
तिमिर का नाश कर, सबको जगमगाये।।
कोई नहीं यह जानता?
छुपाये ये कब छिपता?
चाहे कितनी ही शिकायत है?
पर करता ये अपने मन की है॥
जब तक तेरे पास मौका है।
तू नहीं कभी थक जाना है॥
सबको ही खुशियाँ देना है।
कोई ना तुझसे खफा है॥
बस, इतना ही काम तेरा।
इसीलिए तो नाम है चंदा॥
तुझसे कौन रूठे? तू सबको हँसाता है।
तेरी शीतलता से, अंगार भी बुझ जाता है॥
- रतन लाल जाट
121.गीत- प्यार करने वालों की
प्यार करने वालों की, ईश्क में होती है हालत कैसी?
यहाँ-वहाँ चारों तरफ आँखें ढ़ूँढ़ती, फिर भी नहीं वो मिलती॥
और रात-दिन उसकी ही याद दिल में आग जलती।
वो भी बिना आह के चुपचाप सही जाती॥
इधर-उधर दौड़ना, सुख सब छोड़ना।
फूलों की वादी भूलके, चलना काँटों की डगर पे।
किसी के प्यार में, बेगाने हो जाते हैं सभी………॥
घर-बार छोड़कर, दुनिया उसको ही मानकर।
अब वो ही कहते उनको, सब भूल मर जाने को।
नींद अपनी गँवायी, पर सपने देखते उसके ही………॥
भूख-प्यास सब चली गयी, अपनी पहचान भी बदल गयी।
काम तमाम कर हो गया, अब जान भी जाये भला।
औरों को पागल कर देते थे, वो अब पागल हैं खुद ही………॥
पहले सब उनकी सुनते थे, अब वो औरों की सुनते हैं।
और कई जनों के साथी थे, पर अब नहीं कोई संगी है।
हँसी-खुशी से जीते थे, अब रो-रोकर गुजरती है जिंदगी………॥
- रतन लाल जाट
122.गीत- अवधपुरी राम पधारे
लंका फतह करके, अवधपुरी राम पधारे।
पापों का अंत करके, धर्म-पताका फहराये॥
सुनकर सन्देशा, फूली नहीं समाये।
नगरी अयोध्या, फिर से जगमगाये॥
सूख चुकी धरती पे सावन की लगी झड़ी है।
प्यासी आँखें अमृत से भीग गयी लगती है॥
चारों ओर हैं रोशन दीपक जलते अनगिनत।
गम सारे भूलकर, दिल उठे झूमकर॥
नहीं अपनी सुध-बुध है।
दौड़ पड़े सब आँधी बनके॥
साफ-सुथरे घर-आँगन, महकते तन-मन है।
आसमान में जगमग, आज तारे हजार हैं॥
बगीचे में फूल कोई खिला है आज।
सभा बीच लगते कमल-से राम॥
गूँज उठा है कोयल का गान।
माथे पर टीका हो रहा सत्कार॥
अब मंगलमय सुख-शांति, हरियाली खुशहाली है।
प्रभु राम सिंहासन पर बिराजे, प्रजा सारी गाती है॥
- रतन लाल जाट
123.गीत- दीपक-सा जगमगाता सारा जहां रे
दीपक-सा जगमगाता सारा जहां रे।
चारों ओर खुशियों का नजारा है॥
ऐसे लगता जैसे, उतर आया अंबर नीचे।
और तारे सारे, झिलमिलाते हैं लगते॥
कहीं पटाखों की धूम मची।
तो फूलझड़ियों की बौछार कहीं॥
झूम रहे सज-धजकर नर-नारी।
नन्हें-मुन्ने नाच रहे बजाकर ताली॥
शायद जन्नत है नीचे, देवता भी आने की सोचे।
चलो, हम भी चलें, यहाँ अब मन नहीं लगता है॥
धरती पर कितनी? सुन्दरता और खुशहाली।
यहाँ सब वही है, जन्नत तो लगता है नहीं॥
फिर क्या करेंगे? हम यहाँ बैठे हुए।
देखो, धरती पे सभी, फूले नहीं समाते॥
आज यहाँ नहीं है कोई कमी।
हार-जीत या जन्म-मृत्यु का भय नहीं॥
सबकी ही झोली में खुशियाँ बाँट रहे।
और हम देवता होकर भी तरस रहे॥
दिवाली के दीपों में खुशियाँ ढ़ेर छुपी।
राम-कृष्ण तक गये हैं, फिर हम क्यों नहीं?
अब नहीं सहेंगे, दुख कोई हम अकेले।
कर्म कर हासिल करेंगे, धरती की मौजें॥
- रतन लाल जाट
124.गीत- क्यों तूने
क्यों तूने कीचड़ में, कमल खिलाये हैं?
जबकि मालूम है, फूल नहीं गन्दे होते हैं॥
क्यों तूने काँटेदार वृक्ष पे, लगाये हैं फल मीठे।
जबकि बहुत मुश्किल है, हासिल करना इन्हें॥
क्यों तूने रखे है, अनमोल मोती समुद्र में।
कौन करेगा जतन? इतनी गहराई में॥
तेरे खेल निराले हैं, तू सबसे ही अलग है।
बगिया में फूल हजारों, मगर कमल तालाब में है।
फल तो बहुत आते हैं, छोटे पौधे और झाड़ी पे।
फिर क्यों श्रेष्ठ नारियल है, जो अंबर को छुए॥
अगर इतना आसान होता।
फूल कमल को तोड़ लाना॥
तो फिर कौन इसे संभालता?
पैरों-तले हर कोई कुचलता॥
इसीलिए सरोवर बीच खिला कमल हैं।
नहीं तो सूख जाते बिन पानी के॥
इसी तरह से जड़ी-बुटियाँ।
जो खेतों में होती पैदा॥
तो फिर कौन कद्र करता?
ना ही कोई औषधि नाम देता॥
यही सोचकर पर्वत-कन्दरा में।
छिपाकर इनको कुदरत ने रखा है॥
बिन समुद्र-तल खोजे? मोती मिल जाते।
तो फिर भाव कौड़ी के, सभी खरीद लाते॥
तभी तो पाताल में उसने।
रखी है अनमोल चीजें॥
- रतन लाल जाट
125.गीत- मनुज तेरा नाम
मनुज तेरा नाम, कर तू ऐसा काम।
कि जग में हो खुशियों का संसार।
मनुज तेरा नाम…………॥
अपने गम ना तू किसी को दे।
औरों के गम लेकर सबको प्यार दे॥
तभी है तुम्हारे जीवन का सार।
मनुज तेरा नाम…………॥
हर गरीब का तू आसरा बने।
सदा ही नेक राह पर चले॥
धर्म-कर्म है सबसे महान्।
हर दुख का करो उपचार।
मनुज तेरा नाम…………॥
अपने खातिर तू बुरा काम ना कर।
एक जान खातिर हजारों जान ले मत॥
मीत बनकर पाना है सबका प्यार।
मनुज तेरा नाम…………॥
- रतन लाल जाट
126.गीत- चाहे मेरा जीवन जाये
चाहे मेरा जीवन जाये।
पर औरों के कुछ काम आये॥
मुझको कभी कुछ ना मिले।
पर सबको प्यार दूँ मैं॥
अपना सुख देखकर हँसना, कोई हँसना नहीं।
अपने खातिर कुछ भी करना, कुछ है नहीं॥
जग में उसी का नाम है।
जो गैरों पर भी जान दे॥
चाहे मेरा जीवन जाये
कभी ना बहने दूँ मैं अश्रुधारा।
रोते हुए को भी सिखाऊं हँसाना।।
निर्बल को होती जररूत है।
फिर क्यों सबल के संग हैं?
चाहे मेरा जीवन जाये
कुछ लेने के भाव से नहीं देना कुछ भी।
प्यार किया, तो परवाह नहीं करना जान की॥
यही हर दिल की पुकार है।
रब की भी यही तमन्ना है।।
चाहे मेरा जीवन जाये
- रतन लाल जाट
127.गीत- मेरी तरफ से जाकर तुम
मेरी तरफ से जाकर तुम,
मेरे मुन्ने को लेना चुम।
और उसको कहना कि-
पापा तेरे आ सकते नहीं।
सिर्फ इतना ही कहा है,
तुझे अपना प्यार भेजा है।
वो नाम मेरा सुनते ही रोता चुप,
किलकारी कर हो जायेगा खुश…………
मानो मैं खुद उसके हूँ सामने,
इतना वो हँसेगा, ना हँसा जितना पहले।
जीवन का वो एक सपना है,
खातिर उसके कुछ करना है॥
अपनी सारी उम्मीदें उस पर
टिकी है जो अब तक ना हुई पूर्ण…………
- रतन लाल जाट
128.गीत- इतने दिनों से
इतने दिनों से छुपाके रखी थी मैंने।
चाहत है बड़ी उनसे मिलना है॥
बातें निराली, दिल में है जो कहनी है।
जान मेरी बसी, लौट आयी वो घड़ी है॥
उसके ही सपने देखूँ, उसकी ही बातें करूँ।
अब अपना सब लुटा दूँ, माँगें तो जान दे दूँ॥
उस सूरज से मिलने का, सँजोये हूँ मैं एक सपना।
जाने कब उदित होगा? वो मेरे जीवन में सवेरा॥
अब तक नहीं उनसे मिला हूँ, ना ही कभी उनको देखा है।
फिर कैसे कह पाऊँ? बात दिल की जो कहना है॥
अब आँखें बन्द करके मैं, कहता हूँ सारी बातें।
मिलने को जी करता, तो मिल जाऊँ सपने में॥
गुनगुनाऊँ नाम उसका और निहारूं तस्वीरें।
दिन-रात हूँ साथ उनके, फिर कैसे वो अनजान है?
वो मेरा जीवन, साँस में उसकी।
जाने क्यों मुझको लगता है यही?
जिनके लिए हरपल आँखें, खुली है कभी ना सोये।
जान अटकी है उनमें, मरके भी जुदा ना होये॥
बस इतना ही काफी है, दरस जो उनके हो गए।
भला क्यों करूँ शिकायतें? हर चाहत वो पूरी कर दे॥
- रतन लाल जाट
129.गीत- वतन के नौजवानों ने
वतन के नौजवानों ने,
आजादी के नाम पर
अपनी शहादत दी है।
अब हम दुश्मन के
हाथों में मुल्क बेचकर
सौदे क्यों करते हैं?
रग-रग में बहता हुआ खून।
लगता है आज गया जम॥
कहाँ गये शेर-हिन्दुस्तान के?
कहीं भी नजर नहीं आते हैं॥
इस माटी का कण-कण सोने से महँगा।
बात यह भूल गये कि- धरती अपनी माता॥
उस वक्त माँ कितना दर्द उठती है?
जब कोख से अपने जन्म देती है॥
पहले केरल से करगिल तक।
अपना था सारा एक वतन॥
ना जाने अब क्यों अलगाव है?
सारे वादे जैसे निकले झूठे हैं॥
अब पहचानो मोल आजादी का।
गुलामी में जीने से है मरना अच्छा॥
नहीं मिल जाना भाईयों दुश्मन से।
कभी ना अपना फर्ज भूलना है॥
- रतन लाल जाट
130.गीत- मेरा साथ ना कभी
मेरा साथ ना कभी, कभी तुम छोड़ना।
मरके भी ना मुझको, कभी तुम भूलना॥
ना कभी मुझको अपने से दूर करना।-२
दुःख में भी रोऊँ नहीं-२
इतनी शक्ति मुझको देना।
आँचल ना यह कभी, कभी तुम छोड़ना।
मेरा साथ ना……………………-२
मरके भी ना…………………….
तुम हो प्यारे जान से भी और
बिन एक पल जी सकूँ नहीं।-२
प्रेम की डगरिया पर भी मुझे-२
आये ना थकान कभी।
ना दिल का बंधन भी, कभी तोड़ना।
मेरा साथ ना……………………-२
मरके भी ना…………………….
- रतन लाल जाट
131.गीत- सुनो जरा
सुनो जरा बात मेरी रब्बा!
क्यों मुझे दिन यह दिखाया?
बताओ कसूर है क्या?
बोलो, ऐसा करके क्या मिला?
ना मैं कुछ करता,
ना कुछ तुझे मिलता।
फिर भी तू क्यों लड़ता?
जो चाहा, वही तो मिला॥
अरे! नहीं कभी मैंने, ऐसा कुछ सोचा।
जो भी देखा सपना, वो पूरा क्यों ना किया?
कोरे सपने किस काम के थे?
यदि तूने कोई काम ना किया है।
इसीलिए तो सबसे पहले कोशिश कर,
फिर कहना क्या कुछ नहीं मिलता?
यह सब लगता मुझे।
केवल बकवास है॥
दिन-रात मैं ना सोया।
बस, पुकारता रहा॥
फिर भी तू है कहता।
कि- मैं नहीं कुछ करता॥
कहने से कुछ नहीं होता।
काम तू करता जा, फिर कहना॥
तकदीर तेरी है तेरे हाथ में,
बस एक साधन मात्र हूँ मैं।
जैसे को तैसा देना ही,
बस एक काम है मेरा।
पहले क्यों ना बताया?
इतनी-सी बात ना जान पाया॥
अब कौन है जो रोक सकता?
हासिल सबकुछ मैं करूँगा॥
मैं तो सबके साथ में,
नहीं कोई अपना-पराया।
दूध का दूध और
अलग पानी का पानी करता॥
फिर क्यों दोष मेरे सिर पे।
मैं तो हूँ तेरे ही वश में॥
माफ कर दो अब ना कुछ माँगूँ।
खुद मैं औरों को भी दान दूँ॥
तो फिर क्यों शिकायत करूँ?
मैं ही तो हूँ खुद भाग्य-विधाता॥
- रतन लाल जाट
132.गीत- ओ माँ!
क्यों नहीं आने देती हो, ओ माँ!
मुझे इस जग में बताओ ना॥
ऐसा मैंने क्या कसूर है किया?
जो जन्म से पहले ही दंड मिला॥
कोई अपराध कितना ही बड़ा हो?
फिर भी एकबार माफ उसे कर दो॥
यहाँ हर किसी का कत्ल तो आम बात है।
और बहु-बेटी की इज्जत लुटना भी माफ है॥
गुनाहगार यहाँ खुलकर जीते हैं।
कोख में ही क्यों मरने को मजबूर हूँ मैं॥
बेटे तो बहुत प्यारे हैं, आँखों के वो तारे हैं।
जो एकदिन तुम्हें, छोड़ पराये हो जाते हैं॥
जिसको तूने गोद में अपने पाला था।
उसने ही आज तुम्हें घर से निकाला॥
बेटी तो हमेशा ही माँ-बाप के जीवन का होती सहारा है।
हाथ पकड़कर वो साथ चलती और दिन-रात करती सेवा है॥
बेटे को जरूरत है, जब तक वो अकेले हैं।
यदि बीमार हो जाओ तो, आज ही छोड़ जाते हैं।।
इस जग में बेटे पर क्यों है इतनी ममता।
और क्यों माना जाता है पाप जन्म कन्या का?
- रतन लाल जाट
133.गीत- अब दिल में कुछ
अब दिल में कुछ काँटे-सा चुभता है।
जो पहले था फूल वही शूल लगता है॥
अब रूखा-सूखा-सा जीवन है मेरा।
क्यों वो किसी और के संग जाके मिला॥
तन्हा-तन्हा रहके, दिन गुजारूँ गिनके।
मिटाकर भी दिल से, मिटती नहीं निशानी है॥
कई हजारों से मिलता हूँ, फिर भी ना कोई भाता है।
ना जाने ऐसा है क्यूँ? हर मोड़ पर वो नजर आता है॥
आँखें सपने सँजोती है, रातें नहीं कटती है।
खामोश दिल में सुनता हूँ, बातें जो अधूरी है॥
आते-जाते पास तुम्हारे, लड़खड़ाते हैं कदम मेरे?
जैसे मुझको प्यार करने का नहीं कोई सलूक है।
देखते ही बस दिल लेना-देना ही एक मेरा काम है॥
उस बुझी आग में फिर एक चिराग फेंकता हूँ।
ढ़ेरों खुशियों में भी खुद तन्हा रहता हूँ॥
मैं एक उपवन, वो बहार-सी।
मैं एक सागर, वो लहर-सी॥
बादल के संग बिजली जैसे।
रात में जैसे चमकती चाँदनी है॥
चाहे हम चले जायें, दूर भले ही कितने?
फिर भी प्यार ना मरे, ना बेवफाई जन्में॥
कितने ही शूल मुझको चुभते हैं?
फिर भी ये सेज बहुत भाये है॥
- रतन लाल जाट
134.गीत- धुँआ-धुँआ
चारों तरफ छाया है धुँआ-धुँआ।
लग रहा है एक घर सारा जहां॥
हो-२ जैसे खुदा ने गीली चादर से,
ढ़क दिया हम सबको है।
यहाँ जैसे हूँ मैं ही मैं,
या सिवाय तेरे और कोई नहीं है॥
चाहे कितना ही दूर हम चले जायें?
फिर भी रहेगा संग है उसका पहरा………
हो-२ आज सब कुछ छुप गया है।
संसार छोटा-सा घर बन गया है॥
अब मालिक जैसे तू ही सामने।
हर बन्दे को नजर आता है॥
बाकी और कोई नहीं हैं।
बस तू ही रहता है साथ सदा………
हो-२ आज वो ही खड़ा है।
देखो, अब खुद मिलना है॥
कहीं पास आ चला ना जाये।
वो हमसे मिले बिना ही यारा………
- रतन लाल जाट
135.गीत- एक कली तो बच गयी है
किसी की बगिया उजड़ गयी है,
पर एक कली तो बच गयी है।
अब उसे सींचना है अपने खून से,
तब एकदिन वो फूल महकेगी रे॥
इसका मालिक तो अपने मालिक के पास चला।
उस मालिक ने मुझे मालिक का भार सौंपा॥
होनी को कौन टाल सकता है?
तकदीर कोई बदल सकता है?
इसलिए अब करना है,
पालन-पोषण इसका रे
नहीं मिलता है हरकिसी को,
ऐसा अवसर हजारों बरसों।
यदि मिला है वो मुझको,
तो जान देकर निभाना है।
जब तक ना खुद अपने
पैरों पर यह खड़ी हो जाती रे
कितने ही संकट आयेंगे?
हिम्मत नहीं अब हारेंगे॥
हार-जीत क्या है?
नहीं कोई अपना-पराया है।
समझो तो सारा संसार अपना है॥
इस गुलशन में ना कली कोई सूखे।
मालिक सबका एक है,
जो सबकी ही सुनता रे
- रतन लाल जाट
136.गीत- वक्त की ठोकरें
वक्त की ठोकरें खा-खाकर
बदल गयी है अपनी डगर।
ख्वाब जो सँजोये थे,
अधूरे ही वो रह गये।
जो ना कभी सोचा था,
वो ही आज हो गया।
यदि दिल को मालूम होता,
तो कभी ना देखते सपना॥
खुदा ने जो खेली है,
शतरंज उसमें हम चौसर है।
अलग रास्ते हैं, मंजिल एक।
दूर रहेंगे फिर भी, संग है एक॥
चाँद-सूरज कभी ना साथ रहते है।
फिर भी उनको एक समझते हैं॥
नाव नहीं रूक जाती है बीच मझधार में।
नदियाँ कई पार कर जाती है।।
ज्वार भी आते हैं, आती है आँधी भी।
प्यार लोग करते हैं, देनी पड़े जान भी॥
दिन में नहीं तारे चमकते हैं
ना रात को नहीं किरण निकलती है।
- रतन लाल जाट
137.गीत- अपने खातिर
अपने खातिर ना कोई, किसी और को दाँव पर लगाना।
खुद जिन्दा रहने के वास्ते, नहीं दूसरे की मौत बुलाना॥
प्यार के इस सौदे में, स्वार्थ नहीं साधा जाता है।
सिर्फ दिल देना है, नहीं किसी की जान लेना है॥
आज वो खेल हुआ है।
दोस्त दुश्मन से भीड़ा है॥
उसका तो नाता कुछ नहीं है।
फिर कैसा यह फसाना है॥
अपना घर बसाने को, नहीं उजाड़ना घर किसी का।
चैन की नींद सोने को, नींद किसी की हराम ना करना॥
उसने भी अब ठान ली।
अपने लिए देगा जान भी॥
मगर इसकी जरूरत क्या है?
जो आँख बन्दकर जहर पिला दें॥
आज खायी है कसम, नहीं माँगेंगे कुछ भी सनम।
मेरे खातिर ना कर सितम, मेरा जीवन है तू ही प्रीतम॥
अब ना उस आग में जलना, जान से तू कभी ना खेलना॥
मेरे यार तू माफ करना, अब करूँ ना मैं कभी कोई खता॥
- रतन लाल जाट
138.गीत- यार तू तो रूप भगवान का है
नहीं तू भाई मेरा है।
ना तू रिश्तेदार अपना है॥
फिर क्या नाम दूँ तुझे?
यार तू तो रूप भगवान का है॥
सच्चे यार से बड़ा ना, सुख कोई है यहाँ।
धन-वैभव सारा, नहीं कुछ झूठ के सिवा॥
जिसके जीवन में है साथ, अपने किसी यार का।
तो कोई उसे, दे सकता है कभी मात ना॥
और तेरे-मेरे बीच में,
नहीं कुछ भी अनजान है।
एक को आँच आये तो,
दोनों की जाती जान है॥
भाई अपने भाई का नहीं है उतना।
तू साथी है दिल का खास इतना॥
जब तू है, मैं हूँ जिन्दा।
जाने कैसे रहेंगे अकेला?
यार तू मेरा प्राण है।
जान भी तेरे नाम है॥
अब और कुछ कहा नहीं जाये।
यार हमेशा तेरी पूजा करूँ मैं॥
- रतन लाल जाट
139.गीत- कुछ पाने को
कुछ पाने को कुछ खोना पड़ता है।
जिन्दा रहने को मौत से लड़ना होता है॥
बिन नदी के नाव का मतलब ही क्या है?
आँधी आये बिना पतवार की कीमत क्या है?
कोशिश करने से सब कुछ हासिल हो जाता है।
हिम्मत हारने पर बना काम बिगड़ ही जाता है॥
आँखों में आँखें डालकर,
लड़ना शेर से दहाड़कर।
प्रेम की कसम देने पर,
नाग भी नहीं डसता है तब॥
माँगने पर कुछ ना मिले तो,
झपटकर भी उसे छिन लो।
कहने से कुछ नहीं होता है।
करके ही सबको दिखाना है…………
अगर प्यार करो तो,
प्यार की चाहत ना करना।
सीना तानके निकलो तो,
मरने से नहीं डरना॥
आसमान देखोगे तो उड़ान भर सकोगे।
आँखें खोल विचारो तो हार नहीं पाओगे॥
हद से ज्यादा कुछ ठीक नहीं है।
मर्यादा में रहना ही उचित है…………
बिन दुःख का अहसास किये,
कभी ना सुख का मजा आये।
हर हाल में जीना सीखें,
संकट में भी कुछ बात जानें॥
इन्सान जितना भी दिमाग लगाता है।
उतने ही रास्ते नये खोजता जाता है…………
- रतन लाल जाट
140.गीत- अपना करम
अपना करम हम सब ही करते हैं।
सब वो किये का फल झेलते हैं॥
सुनके धड़कन अपनी,
करें कोई काम बुरा नहीं।
फिर जो किया है, वही तो मिलना है।
तो फिर सोचो- कुछ बुरा ना करें हम।
पाप से बच जायें हम॥
ये सबने ही देखा है जाना,
कब कौन इससे बच पाया।
हम कहीं भी छुप जायें,
फिर भी फल मिल जाता॥
कल का आज है चुकारा
अपना करम हम सब ही करते हैं।
सब वो किये का फल झेलते हैं॥
सोचो कुछ ऐसा करें, हम सब मिलके।
कि- विधाता सोच में पड़ जाये हमसे॥
आ पास अपने कहे कि तू धन्य हैं॥
- रतन लाल जाट
141.गीत- मेरा नाम अमन
मेरा नाम अमन, मैं हूँ सबका ही मन।-२
मेरा-अपना कुछ नहीं, औरों का सपना है चाहत मेरी।
सबका सुख-चैन हूँ मैं, आराम और राहत हूँ मैं।
शांति ही शांति, सबसे बड़ी है खुशी।
मेरा-अपना कुछ नहीं, औरों का सपना है चाहत मेरी।
मेरा नाम अमन, मैं हूँ सबका ही मन।-२
अंधे की लाठी, गरीब से यारी।
आँखों का तारा, डूबते को तिनका।
प्यार का हूँ मैं प्यार, दुश्मन का हूँ दुश्मन।
मेरा नाम अमन, मैं हूँ सबका ही मन।-२
- रतन लाल जाट
142.गीत- सपना जो देखा था गाँधी ने
सपना जो देखा था गाँधी ने।
गोली खायी थी हजारों ने॥
साकार उसे करने को जंग छेड़ी है।
भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती को मिटाये॥
सब काला धंधा करने वाले।
अपना घर बनाने वाले॥
माँ और बेटी का सौदा करके।
दुश्मन से मिल गद्दारी करते॥
आज वो डर के मारे, काँप उठे हैं …….
देखो, जल उठा है एक शोला।
वो आँधी-तूफान के ही जैसा॥
अत्याचार के जंगल को जलाके।
पाप की किश्ती मँझधार डूबाये॥
तो फिर बच सकोगे तुम कैसे……
घर-घर से हूँकार उठी, हर दिल की दुआ यही।
खत्म होगी अब दूरी, राजा और प्रजा की॥
प्रजा ही खुद अपना भाग्य बनायेगी।
भेड़-चाल छोड़ नये कदम बढ़ायेगी॥
कौड़ी तक का हिसाब पूछती है।
सपने में भी ना माफ करती है॥
फिर क्यों ना तख्त-ए-ताज डोले रे……
समय रहते खुद को बदल डालो।
स्वार्थ छोड़ परमार्थ को अपना लो॥
इसी में सबकी भलाई है।
और परलोक भी सुधरना है॥
लाख गुनाह करके भी, पश्चाताप करे कोई।
तो सद्गति ही मिलती, इतिहास देता है गवाही॥
अन्तस् की पुकार सुनके।
मन की आँखों से देखना है॥
तब ही कुछ करना आगे है………
- रतन लाल जाट
143.गीत- जीत हासिल करेंगे
हार नहीं मानेंगे, विश्वास हम रखेंगे।
आज नहीं तो कल, जीत हासिल करेंगे॥-२
कोरे भाग्य-भरोसे रोते हैं नहीं।
कर्म से बदल देते हैं तकदीर भी॥
तानके सीना खड़े हैं।
आँख उठाये जिन्दे हैं॥
जो सोच लिया वो, कर दिखायेंगे।
मौत भी आये तो, नहीं हम घबरायेंगे………
हर दिन निकलता सूरज नया।
पल-पल बदलता रंगीन समां॥
पंछी भरते हैं उड़ान अपनी।
घोंसले बना विश्राम करते नहीं॥
खोज लाते हैं दाना-तिनका।
कहीं खेत तो कहीं बगिया॥
नदियों से भी आगे उड़ते हैं।
सागर में जा खुद नहाते हैं………
आँधी में भी पतवार हैं हम।
चाँदनी हैं काली रात में हम॥
पहाड़ से भी अटल, अंबर से हैं असीम।
साहस-शक्ति-विश्वास, सब कुछ अटूट आज।
फिर क्यों ना जन्नत में डेरा डालेंगे।
नाच-गान हँसकर खूब करेंगे………
- रतन लाल जाट
144.गीत- डैडी मेरे
एकदिन हाथ पकड़कर चल रहे थे।
डैडी मेरे यूँ अचानक ही रूक गये॥
फिर मुझको छोटा समझ वो कर बैठे।
एक गलती बिना कुछ सोचे-समझे॥
वो करने लगे थे बातें प्यारी-प्यारी।
जो निकली थी अपनी ही पास-पड़ौसी॥
जी-खोलके हुई, जब दिल की बातें पूरी।
फिर लौट गए जल्दी, पापा लेकर मुझको गोदी॥
रास्ते में देख वो दुकान चॉकलेट ले आये थे।
फिर बोले- कहना कि नहीं मिला था कोई रास्ते में…………
तपाक् से मैं बोला कि- कहूँगा घर जाते ही।
तुम भी तो पूछते हो मुझे रोजाना कि- नहीं॥
बात-बात पर मारते हो तगड़ा।
अब कर दूँगा मैं भी लफड़ा॥
कान पकड़कर मेरे कहने लगे।
कहेगा तो मार देगी मम्मी तुझे…………
मैं बालक छोटा हूँ रूप भगवान का।
नहीं किसी से डरता फिर झूठ क्यों बोलूंगा?
आप बड़ों को ही देता है शोभा।
झूठ बोलना और बात से मुकरना॥
तो फिर पापा हो गये, नाराज बहुत मुझसे।
तब मैं बोला- नहीं कहूँगा, जब लाओ तुम खिलौने…………
अगर यह बात थी, तो पहले क्यों ना बतायी?
तुम चाहो जो ले लो, इसे दुकान समझो अपनी॥
बातें मीठी-मीठी सुन करके मैं सोचने लगा कि-
पहले तो नहीं कुछ लाते थे, फिर सब क्यों आज ही?
ऐसी क्या बात है? पूछूँगा अपनी मम्मी से।
और कहूँगा क्यों डरते हैं? पापा इतने तुमसे…………
- रतन लाल जाट
145.गीत- उसका नाम क्या है
उसका नाम क्या है?
किससे जाकर पूछूँ
और मुझे कौन बताये?
पूछ ना पाऊँ किसी से,
कुछ ऐसी ही एक बात है॥
फूलों से पूछूँ तो, वो दिखाये कली।
सूरज से पूछूँ, वो कहे किरण तो नहीं॥
सारी धरती खोज डालूँ।
आसमां की उड़ान भर लूँ॥
फिर भी ना चलता है उसका पता।
लगती है दुनिया से वो लापता॥
आँखों में अजब-सी प्यास है।
जीऊँ ना मरूँ, ऐसा मेरा हाल है॥
लेकिन मैंने भी अब ठान लिया।
फूल नहीं तो खुशबू से जा पूछूँगा॥
सूरज को इतनी फूर्सत है कहाँ?
चाँद आयेगा शायद वो बतलायेगा॥
इसलिए वो नजर नहीं आता है।
कई दिन हुए हैं उसको देखे॥
मुलाकातें भी हुई थी अपनी।
याद है उसका चेहरा आज भी॥
लेकिन याद ना है नाम उसका जो भी।
उसने भी नाम अपना बताया क्यों नहीं?
अब आती ना मुझको कभी नींद है।
लगाकर गयी वो एक नया रोग है॥
- रतन लाल जाट
146.गीत- नीम की डाल पर
नीम की डाल पर
तोता उड़ करके।
जाकर अपनी पिया-संग
दिल की बात कहता है॥
चलें दूर कहीं उपवन में।
लायेंगे दाना चोंच भरके॥
मैना बोली, तोते मिंया से-
आ सकूँ ना, अब मैं संग तेरे।
आने वाला है कोई पंछी।
घोंसले में अब जल्दी ही॥
खामोश हो तोता बोला-
ऐसा वो कौन है प्यारा?
अब तक हम दोनों थे।
चाँद और सूरज जैसे॥
जब सूरज डूब जाता था।
अमावस को चाँद नहीं निकलता॥
ऐसे में छा जाता है घोर अंधियारा।
तो जगमगाने आज उगेगा एक तारा॥
बात सुनकर तोता
कहने लगा- सुन पिया।
वो तेरा-मेरा होगा सहारा
अपनी आँखों का तारा॥
ले आता हूँ अभी मैं चुग्गा।
तू पत्ते बिछाकर पालना बनाना॥
पंख फैलाकर मैना सो गयी।
तोता जा पहुँचा जंगल में कहीं॥
फिर लौट के, वो क्या देखे?
घोंसले के बाहर पंछी कोई खेले?
नीम की डाल पर
तोता बच्चा धीरे-से।
छुप गया जाकर
मैया के आँचल में॥
- रतन लाल जाट
147.गीत- तिरंगे पर जान देंगे
तिरंगे पर जान देंगे।
तिरंगे से प्यार करेंगे॥-२
कभी ना इसको झूकने देंगे।
जान हजारों हम दे देंगे॥-२
मेरे प्यारे वतन, महकता रहे चमन।
दुआओं में अमन, यह खाते हैं कसम॥
तिरंगे की आन है,
तिरंगे की शान है।
तिरंगा अपनी पहचान है,
तिरंगा सबकी जान है॥-२-२
तिरंगा सिरमौर, तिरंगा सरताज।
तिरंगा अनमोल, तिरंगा जज्बात॥
नदी-नाले जहाँ कलरव करते हैं।
तोता-मैना, कोयल-भंवरे गाते हैं॥
बागों में नाचते मोर, खेतों में उपजते हीरे हैं।
चारों तरफ हरियाली, लगती चुनर कोई लहराती है॥
देखो, शीतल पानी धरती माँ का क्षीर है।
जिसकी कीमत खून से-२
चुकायें तो भी कम है॥
हर घर की कहानी सबकी यही कहानी है।
आजाद-भगत हैं हर बच्चा-२
तो बिटिया रानी लक्ष्मी है॥
सबके एक ही इरादे हैं
सपने एक ही हिन्दू-मुसलमां के।
हिल-मिलकर जीयें,
हर रोज खुशियों में॥
टूटने से अच्छा मर-मिट जायेंगे।
दुश्मन को कभी ना जीतने देंगे॥-२
सबकी आँखों से आज यही झलकता है।
जब तक धरती-अम्बर जीवित हिन्दुस्तां है॥
जीना-मरना इसके खातिर
नाम प्यारा खुद से बढ़कर
मरके फिर हम वापस आयेंगे।
इस धरती पर खुशियाँ लायेंगे॥
कभी आँच ना आने देंगे।
तिरंगे को हम लहरायेंगे॥-२
- रतन लाल जाट
148.गीत- साहिब मेरे
साहिब मेरे! तू मुझको मार देता।
तो भी मैं ना करती कुछ गिला॥
मगर तू मेरे जीते-जी क्यों करने लगा?
उस नागिन! मेरी सौतन से प्यार इतना॥
मैं देखकर उसको आग में जलती रहती हूँ।
फिर सुख-चैन से भला कैसे रह सकती हूँ?
महकती प्रेम बगिया में आग लगा दी।
खिलती फूलों की कलियाँ तोड़ दी॥
फिर उसके घर में कैसे आये खुशियाँ?
चाहे हररोज वो लुटाये हजारों अशर्फियां॥
कभी ना दिल तोड़ना।
नहीं अपना प्यार छोड़ना॥
यहाँ सब कुछ मिल जाता।
लेकिन अपना नहीं मिलता॥
फिर भी विश्वास है।
बस, तेरी चाहत है॥
मरने के बाद भी तुझे हासिल करना।
यही एक अरमां है मेरे इस दिल का॥
चाहे तू मुझको मार दे।
मैं नहीं मरने दूँगी तुझे॥
तुमने मुझसे बेवफा की है।
फिर भी करूँगी वफा मैं॥
तेरे दिल पर रहम जो आता।
ना जाने फिर क्या हाल होगा?
- रतन लाल जाट
149.गीत- देखो, लड़कियाँ दरिया पार करती है
लड़के खड़े किनारे पर रहते हैं।
देखो, लड़कियाँ दरिया पार करती है॥
वो धरती से ऊपर अम्बर देखते हैं।
और ये अम्बर के तारे तोड़ लाती हैं॥
जब बात हो कुछ करने की।
पुरूष नहीं कर पाता काम सभी॥
लेकिन नारी सब करके दिखाती है।
वो काम जो पुरूष ना पाते हैं॥
पढ़-लिखकर कोई कलेक्टर बनती।
सर्वोच्च राष्ट्रपति-पद हासिल करती॥
खेल-खेल में जीत लाती मेडल है।
सेवा-भाव में लगती ऐनी-बिसेन्ट है॥
फूल होकर भी वो नाजुक है नहीं।
रूपवती है फिर भी मानो रणचण्डी॥
कभी नैया बनकर नदी पार कराती है।
कभी शोला बन दुष्टों को जलाती है॥
शर्म से क्यों तुम सिर अपना झूकाते हो?
गर्व से क्यों नहीं अपना सीना फूलाते हो?
जब एक नारी सबकुछ कर सकती है।
फिर पुरूष तो नारी से भी शक्तिशाली है॥
ताकत से बढ़कर हिम्मत होती।
सपने से ऊपर जीत कर्म की॥
जब फूल बन सकता शूल है।
तो फिर शूल क्यों ना बने त्रिशूल है?
- रतन लाल जाट
150.गीत- क्या समां है
क्या समां है? क्या राज है?
क्यों मिलती है? आँखों से आँखें॥
तेरा-मेरा रिश्ता है क्या?
पहले तो कभी मिले थे ना॥
आज कैसा जादू है?
हम दोनों बेकाबू है॥
नजर मिल ही जाती।
राज कई कह जाती॥
हम क्यों ना एक-दूजे को जानते हैं?
सब अपने फिर भी क्यों अनजाने है?
चाहे दिल की बात कहो ना।
आँखों से कुछ भी छुपता है ना॥
दिवानों की महफिल है,
जन्मों का प्यार है।
कुछ धागे, तोड़े भी ना टूटते हैं॥
दिल की एक डोर है।
चाहे वो कितनी दूर है?
फिर भी एक है।
जो खींच पास लाती है॥
वक्त भर देता है धीरे-धीरे।
दिल के घाव वो अपने॥
एक-दूजे से दूर,
भूलने की कोशिश खूब।
फिर भी मिलते रोज,
यही जमाने का दोष॥
प्यार को काट सके ना कोई तलवार है।
प्यार को मार सके ना कोई बन्दूक है॥
प्यार की कहानी को,
लिखते ही लिखते जाओ।
आगे बढ़ती ही जाती वो,
जैसे कोई गाथा हो॥
कितने ही मिट जाते?
मरते और वापस आते॥
लेकिन प्यार अमर है।
ना मिटता ना मरता है॥
कोई ना कोई मौका ढ़ूँढ़ ही लेता है प्यार
अवसर पाते ही फिर जाग जाता है प्यार॥
प्यार को जितना ही तड़पाओ।
उतना ही बढ़ता जाता है वो॥
दिल में प्यार रहता।
फिर भी दिल ना जानता॥
कब और कहाँ प्यार हो जाता है?
दिल बेचारा बेखबर ही रहता है॥
- रतन लाल जाट
151. मेरी नींद चुराने वाली
मेरी नींद चुराने वाली।
रोज-रोज सपनों में आने वाली॥
जायेगी तू कहाँ छोड़कर दिवानी?
अब जाने दूँगा ना मैं कहीं तुझको रानी॥
मुझको अपना बना ले।
गले से तू लगा ले॥
वरना मंडराते ही रहेंगे।
जैसे कली पर भँवरे॥
बात मेरी मान जा।
हाथ अपना मुझे थमा॥
चाहे मेरी जान ले जा।
दिल मुझको देके जा॥
सोने के कंगना हाथों में पहनाऊँगा।
चमकता-सा मोती नाक में सजाऊँगा॥
पैरों में बाँधके घुँघरू तुझको नचाऊँगा।
कमर पे झूमते छल्ले को मैं छनकाऊँगा॥
फिर भी ना मानोगी तो बहुत पछताओगी।
देखना नहीं फिर तेरे दर पे आऊँगा मैं कभी॥
- रतन लाल जाट
कवि-परिचय :-
रतन लाल जाट S/O रामेश्वर लाल जाट
जन्म दिनांक- 10-07-1989
गाँव- लाखों का खेड़ा, पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पदनाम- व्याख्याता (हिंदी)
कार्यालय- रा. उ. मा. वि. डिण्डोली
प्रकाशन- मंडाण, शिविरा और रचनाकार आदि में
शिक्षा- बी. ए., बी. एड. और एम. ए. (हिंदी) के साथ नेट-स्लेट (हिंदी)
ईमेल- ratanlaljathindi3@gmail.in
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