नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 29 - गोपी गोपाल - सीताराम पटेल "सीतेश"

SHARE:

अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक / टैप करें - रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 प्रविष्टि क्र. 29 ...

अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक / टैप करें -

रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020

प्रविष्टि क्र. 29 - गोपी गोपाल

सीताराम पटेल "सीतेश"

गोपी-गोपाल
पात्र परिचय


सूत्रधार :
सत्या : सूत्रधार की संगिनी
गोपी : एक किशोरी
गोपाल : एक किशोर
ललिता, कस्तूरी, चित्रा, चंपा, इंदु, लीला, पद्मा, चंद्रा : गोपी की अष्ट सखियाँ
नंदबाबा : गोपाल के पिताजी

--


दृश्य : 01


(मंच पर सभी पात्र आकर मंगलाचरण गाते हैं।)
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
प्रलय में मत्स्य रुप धरे, वेद डूबने बचाए भले।।
मत्स्य रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
मंथन में कच्छप रुप धरे, धरा डूबने बचाए भले।।
कच्छप रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
धरा गिराए पताल असूरे, वराह बनकर दौड़ पड़े।।
वराह रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
प्रहलाद के रक्षा करे, नरसिंह अवतार धरे।।
नरसिंह रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
बलि दान का अभिमान करे, वामन अवतार धरे।।
वामन रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
उदंडता सभी क्षत्रिय करे, परशुराम रुप धरे।।
परशुराम रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
रावण अत्यधिक पाप करे, श्रीराम के हाथों तरे।।
श्रीराम रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
प्रेम का रस गोपी भरे, गोपाल के मुख फूल झरे।।
गोपाल रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
पशु बलि को खतम करे, बुद्ध अवतार धरे।।
बुद्ध रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
आतंकवाद को खत्म करे, कल्कि अवतार धरे।।
कल्कि रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
(परदा गिरता है।)

दृश्य : 02


(मंच पर सूत्रधार आते हैं।)
सूत्रधार : सत्या ! ओ सत्या! जल्दी से आओ।
(सत्या आती है।)
सत्या :- इतने क्यों मरे जा रहे हो? आ ही तो रही थी।
सूत्रधार :- तुम मरी जा रही हो कह रही हो। मंगलाचरण गान किये पाँच मिनट से ज्यादा हो गए हैं। दर्शकगण बोर हो रहे हैं, पात्रों को जल्दी तैयार होने को कहो।
सत्या :- पर आज कौन सा नाटक करना है, स्वामी!
सूत्रधार :- तुम मेरे अर्द्धांगिनी होकर भी नहीं समझ पा रही हो , आज कौन सा नाटक करना है। समाज में वासना का जहर उद्वेलित हो रहा है, चारों ओर अविश्वास ही अविश्वास फैला हुआ है, घृणा एक दूसरे में समाई हुई है, लोगबाग इंच भर जमीन के लिए लड़ रहे है, आज चारों ओर मानवीय मूल्य खत्म हो रहे हैं, आज मानव में प्रेम की आवश्यकता है, प्रेम ही वह ताकत है, जो एक दूसरे को जोड़ सकती है, सबके आत्मा का योग कर सकती है, धन को आज प्रेम से अधिक महत्व दे रहे हैं।
सत्या :- स्वामी! तो हम भगवान के प्रेम अवतार का नाटक करेंगे।
सूत्रधार :- तुम ठीक समझी, सत्या! आज हम नटवर नागर गोपाल और रासेश्वरी गोपी के प्रेम लीला का नाटक करेंगे। तो दर्शकगण दिल थाम के देखिए :- नवरस कला मंदिर की पेशकश - स्नेह के शहद से सने, चाहत के चाशनी में चूरे, मोहब्बत के मिश्री में पगे, रति रस के सागर में डूबे आपके सामने हम लेकर आ रहे हैं- गोपी-गोपाल
(दोनों जाते हैं।)
(परदा गिरता है।)

दृश्य : 03


( परदे पर जंगल का दृश्य है, गोपी और गोपाल जंगल में कदंब पेड़ के नीचे मिलते हैं, गोपाल गोपी को एकटक देख रहा है।)
गोपी :- पागल, इतना मग्न होकर क्या देख रहे हो?
गोपाल :- पीले पीले पके रसाल का दर्शन कर मेरे युगल नयन भ्रमर सा मेरे श्रवणेन्द्रीय में गुंजायमान कर रहे हैं। रसना रस पाने को लालायित हो रहे हैं, मुँह से लार निकल रहा है, हृदय धक धक कर रहे हैं।
गोपी :- पागल हो सचमुच के, पतझड़ में तुम्हें मधुमास सूझ रहा है, विरह में गीत गा रहे हो।
गोपाल :- गोपी! मैं कहाँ गा रहा हूँ, अमराई मे वसंतदूत गा रहा है।
गोपी :- तो क्या तुम भी उसके समान रस को पाओगे?
गोपाल :- मुझमें क्या कमी है, गोपी!
गोपी :- जानते हो गोपाल ! मोती को प्राप्त करने के लिए गोताखोर समुन्दर के बहुत नीचे गहराई में जाता है, तभी उसे वह प्राप्त हो पाता है, पर उसे प्रतिदिन प्राप्त हो, ऐसे भी बात नहीं हैं।वह निराश नहीं होता है और वह फिर फिर जाता है। तुम्हें गोताखोर के समान इसकी गहराई में उतरना पड़ेगा, तभी तुम्हें प्राप्त होगा।
गोपाल :- मैं तैयार हूँ, गोपी!
गोपी :- अपने जो भी परिधान पहने हुए हो गोपाल! क्या उसे तुम उतार सकते हो।
गोपाल :- मुझे तुमसे प्यार है गोपी!
गोपी :- तलवार के तेज धार में चल सकोगे?
गोपाल :- मैं मरा हुआ हूँ। मुझे और कौन मार सकता है।
गोपी :- जलते हुए जंगल में जा सकोगे?
गोपाल :- जले हुए को और कौन जला सकता है।
गोपी :- तुम में इतनी शक्ति है?
गोपाल :- मुझमें इतनी शक्ति कहाँ है, गोपी! तुम्हारी शक्ति के भरोसे मैं इतना तैर रहा हूँ। तुम ही मेरी शक्ति हो गोपी।
गोपी :- मुझमें भी कोई शक्ति नहीं है, गोपाल!
गोपाल :- फिर किसकी शक्ति से भ्रमर गान कर रहा है?
गोपी :- प्रेम की शक्ति, प्यार के ताकत से ही दिवाकर प्राची में उदयमान होते हैं और पश्चिम में अस्तगान होते हैं। प्रेम के प्रकाश से ही प्राणियों के प्राण को भरतें हैं।
गोपाल :- ठीक कह रही हो, गोपी! प्रेम की शक्ति से क्या मैं रसाल के खट्टा-मीठा रस का पान कर सकता हूँ।
गोपी :- रसपान करोगे, फिर भी तुम्हारा प्यास नहीं बुझेगा।
गोपाल :- रस के सागर में रहकर प्यास की चिन्ता किसे होगी, गोपी! प्रेम का रस पीकर ही प्रेम पक्का होता है।
गोपी :- तुम ठीक कह रहे हो, मेरे गोपाल!
( दोनों परस्पर गले मिलते हैं। )  (परदा गिरता है।)

दृश्य : 04


(गोपी अपनी अष्ट सखियों के साथ पानी भरने पनघट जा रही है, रास्ते में गोपाल मिलता है।)
गोपाल :- कहाँ जा रहे हो, ललिता?
ललिता :- गोरस बेचने जा रही है, गोपाल!
कस्तूरी :- बहुत झूठ बोलती हो, ललिता! हम लोग तेल लेने जा रहे हैं, गोपाल!
चित्रा :- इनके बातों पर विश्वास नहीं करना, गोपाल! हम लोग मिट्टी लेने जा रहे हैं।
चंपा :- क्या गोपाल तुम इनकी बातों पर विश्वास कर रहे हो? क्या कोई मटका से मिट्टी लायेगा। क्या इसका भरतार वहाँ पर खोद के रख दिया है? क्या खोदने के लिए कोई चीज नहीं रखते। हम लोग तो मिट्टी का तेल लाने जा रहे हैं।
इंदु :- ला ला! क्या ये सच बोल रही है? हम तो गन्ना का रस लेने जा रहे हैं, गोपाल!
लीला :- क्यों झूठ बोलती हो , रे ! गोपाल! हम लोग गुड़ लाने जा रहे हैं।
पद्मा :- सब के सब झूठी हैं , गोपाल! इनके बात पर विश्वास नहीं करना, हम लोग तो दही बेचने जा रहे हैं।
चन्द्रा :- गोपाल! मैं एक शर्त पर बताऊँगी, जब तुम हमारे साथ नाचने का वादा करो।
गोपाल :- मुझे नाचना कहाँ आता है, चंद्रा!
पद्मा :- तुम झूठ बोल रहे हो , गोपाल!
लीला :- तुम तो नृत्य के गुरु हो, गोपाल!
इंदु :- तुम नटवर नागर हो, गोपाल!
चंपा :- तुम बहुत अच्छा नाचते हो, गोपाल!
चित्रा :- तुम नृत्य करते बहुत ही अच्छे लगते हो, गोपाल!
कस्तूरी :- अब नाचो भी न गोपाल!
ललिता :- अब नाच भी दो न गोपाल!
गोपाल :- (गोपी की ओर इशारा करके) तुम्हारी सखी तो कुछ नहीं कह रही है।
सभी सखियाँ :- तुम कह दो ना गोपी बहन!
गोपी :- अब कह रहे हैं, तो हमें अपने नृत्य का दर्शन करा कर कृतकृत्य करो।
गोपाल :- मेरी एक शर्त है, तुम्हें भी मेरे साथ नृत्य करना होगा।
(गोपी और उनके अष्ट सखियों के साथ गोपाल रास नृत्य कर रहे हैं।)
हमारी मानस में बसे हो तुम्हीं गोपाल।
हमको दुनिया के माया से जल्दी निकाल।।
अंग से अंग मिलाकर सजन हमें रंग दो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
झूठ बोलना तो बस एक ही बहाना था।
तेरे संग हमें ज्यादा समय बिताना था।।
तुम्हारे दिल अंदर का पिला हमें भंग दो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
हम तेरे ही आगे पीछे घूमते रहें।
तुम कहीं भी रहें, हम सबको देखते रहें।।
मरते तक वो न मिटे वैसा हमें रंग दो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
जब हम आँखें बंद करें पी तुमको देखे।
जब हम आँखें खोले बस पी तुमको देखे।।
नवरंग में डूबे हुए हमारा अंग हो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
महाकाल को बस करना आप जानते हो।
तुम हमें अपने माप का सखी मानते हो।।
दुनिया जीतने के लिए प्रेम का जंग दो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
आज शरद की पूनम की अनोखी रात है।
सोम की सुधा का खाते सौगंध सात है।।
सिलवा दो नूतन, हो रहा चोली तंग जो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
दुनिया की रीत देख देख रात भर रोते।
प्रेम के बिना भरी जवानी कैसे खोते।।
मिलने का बहाना बनाते हमें दंग हो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
दुध दही मक्खन घी, सबको तुम हमारा पी।
तेरे बिना हम लाश, तुमको पा जायें जी।।
हमें पिला दो चम्मच प्रेम का जल गंग दो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
संसार कह रहा है, तुम यहाँ अवतार हो।
पर हम इतना जाने तुम हमारा प्यार हो।।
हमारे चंचला मन को सदा कर पंग दो।
रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो, रंग दो,
रंग दो, रंग दो, रंग दो, हमें रंग दो।
नवरंगी प्रेम के रंग से हमें रंग दो।
हर पल हर क्षण घड़ी घड़ी तुम्हारा संग दो।।
( सभी एक साथ गोपाल से गले मिलते हैं। ) 

(परदा गिरता है।)

दृश्य : 05


( परदे पर जंगल का दृश्य है, गोपी और गोपाल जंगल में कदंब पेड़ के नीचे मिलते हैं, दोनों परस्पर बातें कर रहे हैं।)
गोपी :- मैं बुद्धिहीन हूँ, गोपाल!
गोपाल :- तो कौन सा मैं बुद्धिमान हूँ, गोपी!
गोपी :- मैं कुछ भी नहीं जानती हूँ, तुम पर भरोसा है, इतना जानती हूँ।
गोपाल :- गोपी! बस एक राह पकड़कर चल, तुम्हें मंजिल मिल जाएगी।
गोपी :- तुम ही तो मेरा राह हो, तुम ही मेरा मंजिल हो, गोपाल!
गोपाल :- प्रेम में बुद्धि का क्या काम है, गोपी! बुद्धि तो दिमाग का काम है, प्रेम तो हृदय का काम है। मैं प्रेम को बुद्धि से बड़ा मानता हूँ।
गोपी :- मैं मानस को मनीषा से महान मानती हूँ, गोपाल!
गोपाल :- तुम और कुछ कहना चाह रही हो, पर मुझसे छिपा रही हो, गोपी!
गोपी :- जिसे मैं अपना सब कुछ मानती हूँ, उसे क्या छुपाऊँगी, गोपाल।
गोपाल :- तुम्हें डर तो नहीं लग रहा है, गोपी! हमारा प्रेम अब दुनिया में प्रसारित हो रहा है।
गोपी :- प्रेम को एक न एक दिन प्रसारित होना ही है, फिर डर कैसा, मेरे गोपाल! प्रेम अपने आप में अभय है।
गोपाल :- मेरी गोपी तो सचमुच निडर है।
(नंदबाबा आते हैं।)
नंदबाबा :- यहाँ क्या कर रहे हो, गोपाल!
गोपाल :- गोपी के संग बतिया रहा हूँ, बाबा!
नंदबाबा :- ये गोपी कौन है, गोपाल!
गोपाल :- बरसाने की है बाबा।
नंदबाबा :- बरसाने की है, तो बरसाने में रहे, यहाँ क्या कर रही है।
गोपाल :- बोला तो बाबा, मुझ संग बतिया रही है।
नंदबाबा :- बेटा, ये समय बतियाने का नहीं है। कहीं तुम पर यह डोरे तो नहीं डाल रही है।
गोपाल :- डोरी या डोरा एक तरफ से नहीं डाला जाता है, बाबा! डोरी तो दोनों तरफ से डाला जाता है।
नंदबाबा :- ऐसी बात है तो ठीक है, बेटी तुम किसकी बेटी हो।
गोपी :- बाबा! मेरे बापू वृषभानु हैं।
नंदबाबा :- तुम वृषभानु की पुत्री हो, बेटी। मुझे अभी काम से दूसरे जगह जाना है। आकाश में काली घटा छाई हुई है, फिर ये जंगल तमाल तरुवरों से भरा हुआ है, मेरा बेटा डरपोक है, बेटी। रात को अकेले में जंगली जानवरों को देखकर डरता है। बेटी तुम तो जानती हो, इसे छोड़कर मत जाना, तुम पहले इसे राह बताते सही सलामत घर पहुँचाना, फिर अपने घर जाना।
गोपी :- हाँ, बाबाजी! इसे सही सलामत घर पहुँचा दूँगी।
( नंदबाबा चले जाते हैं।) ( इधर गोपी और गोपाल भी घर जा रहे है।)
गोपी :- इधर आओ, गोपाल!
गोपाल :- तुम्हारे पास नहीं जाऊँगा, गोपी!
गोपी :- ज्यादा नखरा मत करो, पीछे पछताओगे, गोपाल!
गोपाल :- किसको पछताउँगी, गोपी!
गोपी :- प्रेम के पल बार बार नहीं मिलते हैं, गोपाल!
गोपाल :- क्या कह रही हो, नहीं समझ पा रही हूँ, गोपी!
गोपी :- (बंदर और बंदरी को दिखाते हुए) देख रहे हो ना, गोपाल!
गोपाल :- किसको? मैं तो नहीं देख पा रहा हूँ, गोपी!
गोपी :- पागल कहीं का, नहीं देख रहे हो, उस तमाल के तरुवर को देखो ना, कैसे बंदर और बंदरी प्रेम का रस लूट रहे है, गोपाल!
गोपाल :- हाँ देखे ना, क्या कह रही हो? गोपी!
गोपी :- चलें, हम भी प्रेम का रस लूटे, गोपाल!
गोपाल :- गोपी! फिर मुझे कुछ नहीं कहोगे।
गोपी :- गोपाल! प्रेम का रस पीकर प्रेम पक्का हो जाता है।
गोपाल :- सचमुच।
गोपी :- तेरी कसम! सचमुच, गोपाल!
( दोनों परस्पर गले मिलते हैं। )  (परदा गिरता है।)

दृश्य : 06


( परदे पर जंगल का दृश्य है, अष्ट सखियाँ गोपी के पास आकर गाते हुए बताते हैं।)
गली गली में हो रहा शोर। गोपाल तेरा नामी चोर।।
श्याम शरीर में लगा चंदन। घूम रहा है सारा मधुवन।।
मधुवन में करता है विहार। दूसरे के संग करे प्यार।।
गोपियों के पास हृदय हार। गोकुल में मनाता त्यौहार।।
उसे मिलता नहीं ओर छोर। तन में दिखता प्रेम के डोर।।
गली गली में हो रहा शोर। गोपाल तेरा नामी चोर।।
योग प्रेम में हिलता कुंडल। प्रेम करते सभी सखियाँ बल।।
बाला देखे चंचल चितवन। मदन फैलाएँ गोपाल मन।।
बाँसुरी के लय वो मिलाते। कंगन के लय में मिल जाते।।
प्रेम वो करते होते भोर। उनके मानस नाचता मोर।।
गली गली में हो रहा शोर। गोपाल तेरा नामी चोर।।
कानाफूसी वो सब करते। गोपाल के गालों चूमते।।
अपने उन्नत उरोज मोहे। पीला पीताम्बर है सोहे।।
पहना सभी बाँहों का हार। जुड़ता सभी मानस के तार।।
बंशी धुन में नाचता ढोर। हम सभी यहाँ नाचे अघोर।।
गली गली में हो रहा शोर। गोपाल तेरा नामी चोर।।
( गोपी उदास हो जाती है।)

(परदा गिरता है।)

दृश्य : 07


( परदे पर जंगल का दृश्य है, गोपी और गोपाल जंगल में कदंब पेड़ के नीचे मिलते हैं, गोपी दूसरी तरफ अपने मुख को की है, गोपाल उसे मना रहे हैं।)
गोपाल :- गोपी, अपना मुख मेरी ओर करो ना।
गोपी :- ( चुप रहती है।)
गोपाल :- तनिक हमसे कुछ बतियाओ, गोपी!
गोपी :- ( चुप रहती है।)
गोपाल :- तुम्हें किस बात का दुःख है, गोपी।
गोपी :- ( गुस्सा से कहती है।) मेरी अष्ट सखियाँ कह रही थी, कि तुम दूसरों के साथ रास लीला कर रहे थे।
गोपाल :- और तुमने विश्वास भी कर लिया, गोपी तुम्हारे बिना गोपाल आधा है, तुम तो मेरे मानस में समाई हो, गोपी!
गोपी :- ( पिघल जाती है।) तुम ठीक कह रहे हो, मेरे गोपाल! क्या तुम मेरे मानस से बाहर जा सकते हो? मैंने अपने मानस मंदिर में ताला लगायी हूँ और उसकी चाबी को छिपा दी हूँ। कहाँ पर छिपायी हूँ, भूल चुकी हूँ। मैं तुम्हें अपने दिल के अंदर बंद कर सकती हूँ। क्या प्रेम बंधन है? प्रेम तो स्वच्छंद है, मैं तुम्हें बाँधना चाहा, क्षमा! क्षमा! क्षमा! मेरे गोपाल, क्षमा! मैंने सखियों के बातों पर विश्वास कर लिया। ओ कह रहे थे कि तुम उसके मुख का चुंबन ले रहे थे। छीः! छीः! छीः! ये मैं क्या सुन रही थी? मेरे गोपाल! वसंत ऋतु प्रेम की ऋतु है। आओ हम दोनों प्यार करें।
( दोनों परस्पर गले मिलते हैं। )

(परदा गिरता है।)

दृश्य : 08


(मंच पर सभी पात्र आकर मंगलाचरण गाते हैं।)
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
प्रलय में मत्स्य रुप धरे, वेद डूबने से बचाए भले।।
मत्स्य रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
मंथन में कच्छप रुप धरे, धरा डूबने से बचाए भले।।
कच्छप रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
धरा गिराए पताल असूरे, वराह बनकर दौड़ पड़े।।
वराह रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
प्रहलाद के रक्षा करे, नरसिंह अवतार धरे।।
नरसिंह रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
बलि दान का अभिमान करे, वामन अवतार धरे।।
वामन रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
उदंडता सभी क्षत्रिय करे, परशुराम रुप धरे।।
परशुराम रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
रावण अत्यधिक पाप करे, श्रीराम के हाथों तरे।।
श्रीराम रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
प्रेम का रस गोपी भरे, गोपाल के मुख फूल झरे।।
गोपाल रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
पशु बलि को खतम करे, बुद्ध अवतार धरे।।
बुद्ध रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
आतंकवाद को खत्म करे, कल्कि अवतार धरे।।
कल्कि रुप धर्ता हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
ऊँ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।।
(परदा गिरता है।)

--


सीताराम पटेल "सीतेश"

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 29 - गोपी गोपाल - सीताराम पटेल "सीतेश"
नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 29 - गोपी गोपाल - सीताराम पटेल "सीतेश"
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-igql59t9DrDflx9qHyz6rXFIQUAEDpkovx9zNAjFN0B4KP5QcLcSU_sNDlCEr1g-aosYoQTcL9hEyp9VrJTdfdBYbdxZ8sBtXiT7ZI0DiyUHSMTWtpLQWoAkClweLs2oadE2/s320/plboekldigliomec-714599.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-igql59t9DrDflx9qHyz6rXFIQUAEDpkovx9zNAjFN0B4KP5QcLcSU_sNDlCEr1g-aosYoQTcL9hEyp9VrJTdfdBYbdxZ8sBtXiT7ZI0DiyUHSMTWtpLQWoAkClweLs2oadE2/s72-c/plboekldigliomec-714599.png
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/04/2020-29.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/04/2020-29.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content