राम नरेश 'उज्ज्वल' की 10 नई कविताएं (1) कोरोना लौट गया चीन -------------------------- ...
राम नरेश 'उज्ज्वल' की 10 नई कविताएं
(1)
कोरोना लौट गया चीन
--------------------------
कितने सारे षड्यंत्र
यंत्र तंत्र मंत्र
अनगिनत टोने-टोटके
धारदार प्रहार
विश्व हैरान
कोरोना परेशान
एक के बाद एक
लगातार
त्यौहार पर त्यौहार
खुशियों की जमात
जमातियों की तलाश
बार-बार हंसी मजाक
कब तक करता बर्दाश्त
इज्जत से खिलवाड़
दिल हो गया चाक-चाक
बड़ा ही खतरनाक
लॉकडाउन
जान की बात
वह खा रहा था मात
मामला था संगीन
वह था वायरस
नहीं था मशीन
प्राण रक्षा हेतु
वह हो गया विलीन
क्या ?
हां !
विश्वविजयी कोरोना
लौट गया चीन
आमीन!
*
(2)
पंचनामा
----------
एक कार आती है
टक्कर मार कर
चली जाती है
अपनी गति से
बच्ची गिर जाती है
पब्लिक भीड़ लगाती है
वह घायलावस्था में
तड़पती हुई चीखती चिल्लाती है
पर
कोई नहीं सुनता
उसकी आवाज
धीरे-धीरे सांस टूटने लगती है
सब तमाशा देखते रहते हैं
आपस में बतियाते हैं
कौन पड़े इस बवाल में
छोड़ो
ऐसे किस्से रोज ही होते रहते हैं
पर
मैं पूछता हूं आपसे एक सवाल
अगर यह बच्ची आपकी बेटी होती
आपकी बहन होती
तो क्या
तब भी आप यही कहते
और तमाशबीन बने रहते
उसे उठाते नहीं
अस्पताल तक नहीं ले जाते
यों ही खड़े खड़े तमाशा देखते रहते
बताइए
मैं आपसे ही पूछ रहा हूं
अगर यह आपका लड़का होता
तो भी क्या आप यही कहते
पूरे पांच मिनट बाद
वह तड़पती हुई अंतिम सांस लेती है
और
दम तोड़ देती है
उसी समय अपने दल बल के साथ
पुलिस आती है एंबुलेंस लेकर
तफ्तीश करती है
भरती है पंचनामा
और फिर
उस लाश को लेकर
चली जाती है
पोस्टमार्टम के लिए।
*
(3)
..... तो याद रखना
-----------------
दोस्त बनकर छल रहे हो
' मुंह में राम बगल में छूरी '
वाला हाल कर रहे हो
मगर ध्यान रहे
हमें भी आता है चमकना
कड़कना और बिजली बनकर गिरना
इसलिए
शांत हो जाओ अपनी खातिर
बंद कर दो गुर्राना
छोड़ दो बेवजह दहाड़ना
तुम एक अच्छे पड़ोसी के नाते
निभाओ अपना फर्ज
बताओ अपने साथियों को
कि क्या होता है उसका महत्व
और खुद बाज आओ अपनी करतूतों से
क्या तुम यूं ही पहुंचाते रहोगे हमें चोट
और छिड़कते रहोगे उस पर नमक
अगर ऐसा है तो कब तक
बांधे रखेंगे हम अपना धैर्य
अपना क्रोध
एक न एक दिन जब टूटेगा यह बांध
तो सोचो क्या होगा
कैसा होगा
तुम खुद समझदार हो
निभाओ अपना दायित्व
करो अपना निर्णय
हम तैयार हैं हर तरह से
दोस्त बनोगे
तो करेंगे तुम्हारा स्वागत
बिठाएंगे तुम्हें सिर आंखों पर
और निभाएंगे तुम्हारा साथ
लेकिन अगर तुम्हें वहम है इस बात का
कि हम तुमसे डरते हैं
नहीं कर सकते तुम्हारा मुकाबला
तो याद रखना
इस बाग के माली
पुष्प की एक-एक पंखुड़ी के लिए
दांव पर लगा सकते हैं अपनी जान
और मिटा सकते हैं नामोनिशान
इस पर बुरी नजर डालने वाले का।
**
(4)
शेष क्या
----------
मैं बेबस देखती रही सब कुछ
वे हंसते रहे शैतानी हंसी
मैं ढूंढती रही अपनी खुशी
बचपन से लेकर आज तक
मुझे याद है आज भी वह दिन
मेरे पैदा होते ही
घर में चारों ओर
छा गया था गहन सन्नाटा
सबके चेहरे पर था
मातम , शोक, दुख और
मेरे लिए घृणा, तिरस्कार
जैसे मैं विपत्ति की काली छाया थी
किसी को नहीं थी मेरी जरूरत
मेरी मां को भी नहीं
मैं सदा अभाव में पली
और बढ़ी
मैं नहीं गई स्कूल
नहीं देखी किताबें
न ही छुई कलम
कुछ ही दिनों बाद मैं हो गई बड़ी
लग गईं पाबंदियां
छिन गई मेरी बची-खुची खुशियां
रच गया मेरा ब्याह एक वहशी दरिंदे से
बन गई मैं उसकी कनीज
उसने मुझे लूटा
नोंचा-घसोटा
जानवरों की तरह पीटा
मैंने आवाज लगाई
अपने जन्म देने वालों को
पालने-पोषने वालों को
पर उन्होंने भी
मुझे दिया दुत्कार
नहीं सुनी मेरी चित्कार
मैं हो गई बेसहारा-लाचार
सहती रही सब कुछ
सोचती रही लगातार
उस दिन कन्यादान के समय
मेरे अधिकार, मेरी खुशी
मेरा सुख, मेरा चैन
मेरी नींदे
मेरे दिन, मेरी रातें
मेरा मन, मेरा तन
क्या-क्या हुआ था दान
क्या शेष कुछ भी नहीं बचा
मेरा अपना
सब कुछ हो गया पराया।
**
(5)
अगली सदी तक
-------------------
मैं रो रही हूं खून के आंसू
और सब कर रहे हैं मुझ पर
आघात-प्रघात
मैं देख रही हूं अपनी ही दुर्गति
लोग ठग रहे हैं मुझे
आधुनिकता और विकास के नाम पर
मैं बूढ़े वृक्ष की तरह खोखली होती जा रही हूं
मेरी भुजाओं को काटा जा रहा है
बांटा जा रहा है
और मैं मिटती जा रही हूं
सिमटती जा रही हूं अपने आप में
मैं एक ठूंठ की तरह कब तक खड़ी रहूंगी
क्या मैं अगली सदी तक जीवित रह पाऊंगी
या समाप्त हो जाऊंगी कदम रखते ही दहलीज पर
मुझे आज तुच्छ समझा जा रहा है
कुर्सियों और वोटों के सामने
मैं ठिगनी हो गई हूं नोटों के सामने
मेरा अस्तित्व मिटता जा रहा है
मैं होती जा रही हूं निर्जन और निर्धन
ऐसे समय भला कौन संभालेगा मुझे
कौन निकालेगा मुझे इस राजनीतिक दल-दल से
क्या मैं कभी उबर पाऊंगी इस घृणित कीच से
या दफना दी जाऊंगी इसी में
अपने ही पुत्रों द्वारा
सदा सदा के लिए।
**
(6)
सत्यानाश
------------
विवेक की गठरी लिए
पार कर रहा था सड़क
अचानक आ गया ट्रक
कुचल गया विवेक
मर गया मैं
हो गया सत्यानाश।
**
(7)
दिवाली की रात
------------------
मैं हजारों झिलमिलाते
दीपों के मध्य
खड़ा हूं
मन के कोने में
सघन अंधेरे की
परत लपेटे हुए
बेवश-सा आज
दिवाली की रात।
*
(8)
समर्पण
---------
मंत्री के स्वागत में
गीत गाती हुई कोयल को टोक कर
एक आसनासीन गधे ने रोककर
कहा-' मेरी प्रशंसा में गीत गाओ,
यह तो राजगद्दी का गान है'
कोयल बोली-'मेरी श्रद्धा तो इस
कुर्सी के प्रति है, जिस पर बैठकर कोई भी
हो जाता है शक्तिशाली और पंडित
मेरा गीत भी है इसी के लिए
गद्दी पर कोई भी रहा हो पर
स्वागत में अभी तक सुनाती रही हूं बार-बार यही
यह गीत है ऑलराउंडर, सदाबहार और
इसका रचयिता मर चुका है बरसों पहले
पर गीत है अमर
क्योंकि यह कुर्सी को समर्पित है।
**
(9)
अंधेरा
--------
रोज तूफान आता है
कायिक समंदर में एक
ज्वर उठता है चरमोत्कर्ष से पुन:
रफ्ता-रफ्ता शांत हो जाती है लहरें
अद्भुत सुख का सागर लहराता है
सुकून भरी अनुभूति
सूर्य ढलने के बाद
रात में प्रेम करने वाला मनुष्य
अंधेरे का शुक्रगुजार है।
**
(10)
गुरु का आदेश
-----------------
पुराने वस्त्र उतार कर
नए धारण करो वत्स
गुरु का यह आदेश
कैसे मानूं
कपड़े पहने नहीं
क्या उतारूं।
***
जीवन-वृत्त
.नाम : राम नरेश 'उज्ज्वल'
पिता का नाम : श्री राम नरायन
विधा : कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ
रचनाओं का प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तकें : 1-'चोट्टा'(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0
द्वारा पुरस्कृत)
2-'अपाहिज़'(भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत)
3-'घुँघरू बोला'(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
4-'लम्बरदार'
5-'ठिगनू की मूँछ'
6- 'बिरजू की मुस्कान'
7-'बिश्वास के बंधन'
8- 'जनसंख्या एवं पर्यावरण'
सम्प्रति : 'पैदावार' मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत
सम्पर्क : उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ-226009
ई-मेल : ujjwal226009@gmail.com
COMMENTS