जागरण गीत जाग उठो अब देश के वीरों, आन तुझे निज देश का। पर्दाफाश करो सूरमाओं का, लेकर नाम गणेश का। चीख-चीख कर बुला रही है, देखो माता भारती। ज...
जागरण गीत
जाग उठो अब देश के वीरों,
आन तुझे निज देश का।
पर्दाफाश करो सूरमाओं का,
लेकर नाम गणेश का।
चीख-चीख कर बुला रही है,
देखो माता भारती।
जाग उठो अब देश के वीरों
माता तुम्हें पुकारती।-
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सब कह रहे हैं दिग-दिगंत,
कर दो अरि दल का विध्वंस।
सदियों से झेल रही है माता,
जिन भुजंगों का गरल दंश।
भरो वीरता खुद में इतनी,
मिट जाओ निज शान पर।
शीश चढ़ा दो वलिवेदी पर,
राष्ट्र हित रख ध्यान में।
शिरोच्छेदन से पुर्व न जाये,
कभी कृपाण म्यान में।
काल के रथ का घड़-घड़ नाद सुनो,
गीता का अर्जुन -कृष्ण संवाद सुनो।
कान्हा आज स्वयं बनें हैं,
तेरे रथ का सारथी।
जाग उठो अब देश के वीरों,
माता तुम्हें पुकारती।
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दुष्टहीन कर दो धरती को,
तलवारों की धार से।
रक्तिम सरिता बहे धरा पर,
भाला,बर्छी,कटार से।
कोलाहल मच जाये जग में,
"जय महाकाल" हुंकार से।
पट जाए यह पृथ्वी सारी,
वीरों की पुकार से।
हो जाये सब एक सभी,
हो नाम सभी का भारती।
जाग उठो अब देश के वीरों,
माता तुम्हें पुकारती।
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नारी शक्ति
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नारी, नारी है तो,घर है, परिवार है, सुन्दर संसार है।
नारी है तो, अनुशासन है, चरित्र है, व्यवहार है।
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नारी , नारी तुम शक्ति हो,भोली भाली रुप हो।
गूलाब की महक,जुही की कली हो।
चंदा की पूनम और फूलों की डाली हो।
तू ही सीता, सावित्री,और शक्ति रुप काली हो।
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नारी, नारी तुम प्यार हो, बहनों की प्ररेणा,और माता की सीख हो।
तुम बेटी की सेवा हो,
बहुओं के हाथ की मिठी कलेवा हो।
नानी की कहानी हो,
दादी के हाथों की मिश्री और मेवा हो।
नारी, नारी है तो घर है, परिवार है,स्वर्ग सा मकान है।
बिन नारी यह सृष्टि श्मशान है।
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नारी, नारी तुम सीता की सतीत्व हो,
वात्सल्य की मूर्ति यशोदा मैया हो।
तू भक्ति की शैल शिखा,
अहिल्या, सबरी, अनसुईया हो।
नारी तुम पूजा हो, रोली हो, पूजा की थाली हो।
नारी तुम गुल हो, गुलशन हो, गुलशन का माली हो।
नारी ही से प्यार है,
परिवार है,
मीठी तकरार है।
बिन नारी सब श्री हीन,
सूना संसार है।
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पर्यावरण संरक्षण
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आओ पर्यावरण बचाएं,
आओ मिलकर पेड़ लगाएं ।
कर के पेड़ों से हरा भरा,
हम शस्य श्यामला धरा बनाएं।
आओ पर्यावरण बचाएं,
आओ मिलकर पेड़ लगाएं।
देकर वृक्षों को अभयदान,
कर के जलश्रोतों का परित्राण।
भारत की संस्कृति अपनाकर,
अपने पुरखों का रखें मान।
माता है यह धरा हमारी,
हम इसका सम्मान करें।
क्यों बिगड़ी है इसकी हालत?
इन बातों का ध्यान करें।
भला हो जिससे सब जीवों का,
आदत हम सब अपनाकर।
देव दुर्लभ इस धरती का,
स्वर्ग से ऊंचा मान बढ़ाएं।
आओ पर्यावरण बचाएं,
आओ मिलकर पेड़ लगाएं।
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कुएं, तालाबों का फिर से,
जीर्णोद्धार करें।
प्लास्टिक के कूड़ा -करकट से,
अब धरती का उद्धार करें।
नदियां की अविरल धाराएं,
वसुधा की है रक्त वाहिनियां।
इनकी कल-कल बहती धाराओं को,
आओ मिलकर निर्बाध करें।
बंजर होती हैं धरती,
जिन विषैले रसायन से।
धूल, धुआं,और धूलकण फ़ैल रहे,
लेकर रुप कोई डायन सा।
कभी करोना, कभी इबोला,
इन सब का संहार करें।
जल, जीवन, हरियाली से,
हम धरती का श्रृंगार करें।
आओ मिलकर हम यह संदेश,
जन-जन को पहुंचाएं।
आओ पर्यावरण बचाएं,
आओ मिलकर पेड़ लगाएं।
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हे! कलम किसानों का जय बोल।
जो नर रुप नारायण है,
हल हाथ लिए रहते हैं सदा।
जो न करे आराम कभी,
करते हैं हर दिन काम सदा।
सियासत दान सियासत के
क्या करेंगे उनका मोल।
हे! कलम किसानों का जय बोल।।
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कड़कती सर्दियों में,धूप में,
पत्थर में, पानी में।
अड़े, लड़ कर सदा ही जो,
अपनी जिंदगानी में।
कभी भी हार ना मानें,
जो काली घटाओं से।
नतीजा चाहे जो भी हो,
दुष्कर आपदाओं के।
मुश्किलों से रार है ठाना,
नतीजा चाहे जो भी हो।
मगर फिर टूट जाता है,
सदा जी कर अभावों में।
सियासत खूब होती है,
इन्हें मुद्दा बनाते हैं।
खुद ही घाव देते हैं,
तो खुद मरहम लगाते हैं।
चुनावी मौसम में आकर,
इन्हें सब पूजते हैं लोग।
सभी यश गान करते हैं,
सभी आश्वासन देते हैं।
हमेशा कागज़ों पर ही,
ऋण की माफ़ी होती है।
दो गूना आय कर देंगे,
सुना कर मीठे-मीठे बोल।
हे!कलम किसानों का जय बोल।।
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वो महान बन गये
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देश तोड़ने वाले महान बन गये।
दे कर गालियां मां भारती को,
कई राजनीतिक सूरमा ,
तो कई युथ आईकान बन गये।
देश तोड़ने वाले---------
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कह कर काटने को,
खुलेआम हिन्दुओं को,
कई रहनुमा ए कौम,
तो कई मुस्लिमों के पहचान बन गये।
देश तोड़ने वाले--------
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माना कि अधिकार है,
विरोध जताने का।
आजादी है अभिव्यक्ति की,
कुछ भी कहे जाने का।
मगर , क्यों जली दिल्ली?
क्यों जले मकान?
क्यों बिछी लाशें?
क्यों लुटें दुकान?
खौफजदा लोग, सड़कें सुनसान,
गलियां वीरान।
ना जानें कई नालें,
श्मशान बन गये।
देश तोड़ने वाले महान बन गये।
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किसने दी आजादी?
अरे ओ मानवतावादियों,
भटके नौजवानों,
शांतिदूतों,जिन्ना के संतानो।
बंद करो झूठा स्वांग,
यह शांति वाद नहीं है।
जिस दिन कोइ आग ना उगलो,
हमको याद नहीं है।
अब हो गये ये बेनकाब,
वाहियात बे हया इन्सान बन गये।
देश तोड़ने वाले महान बन गये।
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कोरोना एक समस्या
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हालात बेहद गम्भीर है,
राजनीति मत करो यारो ।
सब मिलकर साथ लड़ो ,
बे वज़ह मत अड़ो यारो ।।
देश है तो हम हैं ,
हम हैं तो मज़हब है धर्म है ।
आपदा गम्भीर है,
हालात बड़े नर्म है ।
पार्टी संगठन से ऊपर उठकर,
सब एक सुर में लड़ो यारो ।
सब मिलकर साथ लड़ो,
बे वज़ह मत अड़ो यारो ।।
मोदी जी के निर्देशों को,
तोड़ मरोड़ करो ना ।
हालात बेहद नाजुक है,
राजनीती करो ना ।
श्रृंखला तोड़ो विषाणुओं के,
प्रसार का ।
बंद करो यात्राएं ,
हाट और बाजार का ।
भीड़-भाड़ वाले जगहों से,
बस थोड़े दिन बचो ना ।
महामारी कोरोना से,
सब मिलकर साथ लड़ो यारो ।
हालात बेहद गम्भीर है,
राजनीति मत करो यारो ।।
सत्ता पक्ष या हो विपक्ष,
यह सबकी जिम्मेवारी है ।
खुद जागें ,और जगाएं सबको,
यह गम्भीर बीमारी है ।
मेलों-जलसों में तकरीरें देकर,
पंडे-मुल्ले तुमको भटकाते हैं ।
क्या क्या खूब दलीलें देते,
क्या क्या टोटके बतलाते हैं ।
पंडों-मुल्लों के तकरीरों में,
तुम बे वज़ह मत पड़ो यारों ।
हालात बेहद नाजुक है,
राजनीति मत करो यारों ।।
राजनीति मत करो यारों ।।
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।।जय बिहार जय जय बिहार ।।
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जय बिहार जय जय बिहार,
जय बिहार जय जय बिहार ।।
तू मेरा अभिमान है,
तू हीं मेरी हो दशा ।
तेरा उन्नत भाल रहे,
हर पल मुझको है यही नशा ।
तेरी गरिमा की खातिर,
मैं कर दूं अपनी जां निसार ।
जय बिहार जय जय बिहार,
जय बिहार जय जय बिहार ।।
तू आर्यभट्ट की ज्ञान पुंज,
तू गौतम बुद्ध की वेणु कुंज ।
तू खगोल का है प्रमाण,
तूने ही शून्य से दिया ज्ञान ।
तेरी गौरवमयी अतीत को,
आज सारा विश्व है रहा निहार ।
जय बिहार जय जय बिहार,
जय बिहार जय जय बिहार ।।
वैशाली की पावन धरती ने,
महावीर को दिया ज्ञान ।
मोक्ष दायिनी धरा गया की,
होता पित्रों का पिण्डदान ।
राष्ट्र चिन्ह अशोक स्तम्भ ने,
है दिया तुझे अनूठा मान ।
तेरी गौरवमयी अतीत को,
आज सारा विश्व है रहा निहार ।
जय बिहार जय जय बिहार,
जय बिहार जय जय बिहार ।।
तीन कठिया आन्दोलन चम्पारन का।
राज रतन राजेंद्र हमारे,
गौरव भाल हैं सारण का।
देश रत्न की यह धरती है,
जो राष्ट्र पति थे बने प्रथम ।
सिक्खों को यह धरती,
प्राणों से प्यारा है ।
गुरु गोविन्द का त्याग,
मानव मूल्यों में न्यारा है ।
तख्त श्री हरि मंदिर साहिब,
सिक्ख गुरु थे बने दशम ।
तेरी गौरवमयी अतीत को,
आज सारा विश्व है रहा निहार ।
जय बिहार जय जय बिहार
जय बिहार जय जय बिहार ।।
माता सीता का जन्म स्थान,
तू विदेह का पुण्य धाम।
अंग प्रदेश का राजा कर्ण,
जिसका दानवीर था नाम ।
तू मौर्य ध्वज की तपोभूमि,
तुझमें रहसु का परम धाम ।
विद्यापति की भक्ति तुझमें,
दिनकर की लेखनी शक्ति तुझमें।
तेरी गौरवमयी अतीत है,
जिसे देख रहा पुरा संसार ।
जय बिहार जय जय बिहार,
जय बिहार जय जय बिहार ।।
जिसके रज कण में लोट पोट ,
चाणक्य आचार्य भी खेले थे।
गोरों के ताक़त को बाबू,
कुंवर सिंह जी तौले थे।
वीर बलिदानी कुंवर सिंह की,
अमर गाथाएँ याद हमें ।
जे0पी0के आन्दोलन को,
पूरे भारत नें देखा था ।
सत्ता को जागीर समझने,
वालों को रास्ते पर फेंका था ।
वशिष्ठ नारायण की प्रतिभा को,
अमरीका भी मान गया ।
हम प्रतिभा के धनी रहे हैं,
अपनी थाती रखें सम्भार ।
आओ हम सब करें पुकार,
जय बिहार जय जय बिहार,
जय बिहार जय जय बिहार ।।
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सियासत के रुप अनेक
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कभी जाट,गुर्जर, मुस्लिम दलितों,
का आरक्षण है सियासत ।
कहीं भू माफिया, गुण्डों ,को,
संरक्षण देती है सियासत ।
कहीं किसानों मजदूरों, गरीबों,
का शोषक है सियासत ।
आतंकी, चरमपंथ, देशद्रोहियों,
का पोषक है सियासत ।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम,
पर ठुमका लगाती है सियासत ।
कहीं कोसकर सेना को,
गीत गाती है सियासत ।
जे0एन0यू0 में राष्ट्र द्रोह का,
पाठ पढ़ाती है सियासत ।
कहीं धर्म के नाम पर रंग,
बताती है सियासत ।
कहीं आम जन मुद्दों पर,
टांग अड़ाती है सियासत ।
सामाजिक सरोकारों से कहीं दुर,
जाती है सियासत ।
क्षेत्रवाद, भाषावाद माओवाद को,
जगाती है सियासत ।
कहीं देश के गद्दारों संग
बिरियानी खाती है सियासत ।
कहीं अपनी संस्कृति को,
बौना बनाती है सियासत ।
बेशर्मी की सारी हदें,
लांघती है यह सियासत ।
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दिहाड़ी मजदूर ।।
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वह किस्मत से मजबूर ,
एक दिहाड़ी मजदूर है।
जिनकी आंखों से,
सपने भी कोसों दूर है ।
वह भारत का दिहाड़ी मजदूर है।
दो वक़्त की रोटी पाने को,
बोझ उठाने को,
चढ़ती दुपहरी हो,
या तपती डगर हो।
रोटी पाने की चाहत,
ही आठों पहर है।
मेहनत के बदले,
दो वक़्त की रोटी पाना है ।
पढ़ाकर अपने बच्चों को,
बस आदमी बनाना है ।
अदना सी चाहत है,
चाहतों के सपने हैं ।
सपनों के जहान में,
हर-पल वह जीता है ।
आत्म संतोष ही,
उसका लक्ष्य है ।
गरीबी बेबसी,
दिख रहा प्रत्यक्ष है।
अपना लक्ष्य पाने को,
स्वाभिमान बचाने को ।
भुखमरी, लाचारी की,
कड़वी घूंट पीता है ।
फटे चीथड़ों में,
सदियों से जीता है ।
नदियों को रोक कर,
बाँध बनाता है ।
तपती गर्मी में जलकर,
जो सड़कें चमकाता है ।
नव निर्माण हमेशा करता है ।
पहाड़ों को काटकर,
सड़कें बनाता है ।
हालात के संगीन थप्पड़ों से,
उसके सपनें चकनाचूर है।
वह भारत का दिहाड़ी मजदूर है।
शायद विधाता की नजरों से दूर है ।
वह भारत का दिहाड़ी मजदूर है ।
( चार पंक्तियाँ उनके लिए जो गुजरात, दिल्ली, पंजाब से पैदल ही बिहार एवं उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़े हैं)
दूर तक सूनसान रास्ते पर,
केवल सन्नाटा पसरा है ।
भूख प्यास की परवाह नहीं,
ऊपर वाले का आसरा है ।
जनता कर्फ्यू के कारण,
छिन गया है रोजगार ।
अपनों से मिलने को आतुर,
पैदल चलने को साकार ।
रुकें तो रुकें कहां ,
मालिक क़ोई रखता नहीं ।
दर्द उनके अनकहे हैं,
क़ोई भी लखता नहीं है ।
अपने ही हाल पर,
आज वह मजबूर है ।
वह भारत का दिहाड़ी मजदूर है ।
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संकट सकल धरा पर आई
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हम किससे लड़ें?
महामारी से या नादानी से ।
या जनता कर्फ्यू,
न मानने की नादानी से ।
विपक्ष के अनर्गल प्रलाप से,
या अफवाहों के,
बेबुनियाद मंत्र जाप से ।
पूर्वाग्रह से ग्रसित,
आलोचनात्मक तथ्यों से ।
ना समझ जनता से,
या श्रीमंतों के कर्तव्यों से ।
धर्म के ठेकेदारों से,
या कठमुल्लों के जिद्द से ।
महामारी को भयंकर रूप,
देने पर तुले नर गिद्धों से।
पीएम केयर फंड पर,
नामकरण की राजनीति से ।
या क्षत्रपों की ओछी सोंच से,
होने वाली गतिविधि से।
मेलों-जमातों में घूम रहे कोरोना वाहकों से ।
या फिर मेलेजलसों के आयोजकों से।
उन्हें खुली छूट देने वाली सरकार से ।
कुछ लोगों ने माना है,
कोरोना को हराना है,
ये सच्चे देशभक्त हैं जिन्हें वतन से प्यार है ।
चंद लोग जो रोग फ़ैला रहें हैं,
ये हमारे है ही नहीं ये तो किरायेदार हैं ।
इनकी सोच जग जाहिर है,
गिरगिट भी शर्मा जाए,
ये रंग बदलने में माहिर हैं ।
मोदी का कहना क्यों करें,
कर्फ़्यू से ये क्यों डरें ।
दुनिया भले भाड़ में जाय,
शहर भले हीं साफ़ हो जाय ।
राजनीति चमकाने को,
झूठी अफवाह फैलाने को,
सरकार को विफल दिखाने को,
इनकी यही सोच है ।
ये नर नहीं निरा पशु, निशिचर पोंच हैं ।
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मैं दीपक हूँ मुझको जलना है ।
अणु अणु गल कर घुल जाना है ।
बहादुर लड़ाकुओं के शान में,
राष्ट्र के सम्मान में,
मोदी जी के आह्वान पर तुम्हें मुझको जलना है ।
मैं दीपक हूँ मुझको जल जाना है ।।
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काट कर संकट के तिमिर को,
छाट कर भ्रम जाल को,
बाँधूं एकता के सूत्र में,
माँ भारती के पुत्रों को ।
संरक्षित करने के लिए,
तेरी जान माल को ।
जन जन में संदेश यही,
अब मुझको फैलाना है ।
मैं दीपक हूँ मुझको जल जाना है ।।
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मैं सकार का हूँ प्रतीक,
नकारात्मकता जल जायेगी ।
मिल जुल कर तुम लड़ो यदि,
अंधियारी छंट जायेगी ।
मैं रूप हूँ सुख शांति का ।
मैं मशाल हूँ किसी क्रांति का ।
मैं साक्षी हूँ तेरे कर्म का।
मैं प्रदीप तेरे धर्म का ।
युगों युगों से मैं जलता हूँ,
तुझमें साहस मैं भरता हूँ ।
फिर जलने को ठाना है,
मुझको तुम्हें जलाना है ।
मैं दीपक हूँ मुझको जल जाना है ।।
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मुझे देख ऊर्जा मिलती है,
मैं तुझमें साहस भरता हूँ ।
तुमको जगाने की खातिर,
हर पल मैं जलता जाता हूँ ।
नव प्रभात हो भारत में,
तब तक मुझको जलना है ।
मैं दीपक हूँ मुझको जल जाना है ।।-
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जनता कर्फ्यू एक जनभागीदारी
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यदि करते हैं अपनों से प्यार,
तो दूरियां रखें बरकरार ।
ना निकले कोई सड़क पर,
ना जाये कोई हाट बाज़ार ।
पूरा विश्व डोल रहा है,
हर कोई अब बोल रहा है ।
कोरोना डायन सी चल रही,
फ़ैल रही है पाँव पसार ।
यदि करते हैं अपनों से प्यार,
तो दूरियां रखें बरकरार ।।
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चाइना, फ्रांस, इटली में देखो,
सब के सब हैं पड़े बीमार ।
हाल ना हो भारत में वैसा,
मिलकर हम सब करें विचार ।
तोड़ना है श्रृंखला इसके प्रसार का,
रखना है महफ़ूज यदि अपने परिवार को।
खिंच दो लक्ष्मण रेखा अपनी दहलीज पर ।
आप और आपका प्रियजन,
कोई भी ना करे पार ।
यदि करते हैं अपनों से प्यार,
तो दूरियां रखें बरकरार ।।
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कुछ हमारी और कुछ आपकी,
यह सबकी जिम्मेवारी है ।
सुरक्षा मानकों का ध्यान रहे,
यह जन भागीदारी है ।
सारी गतिविधियां बंद करें हम,
क़ैद हो जाये घर के अंदर ।
इसके जद में हैं सभी,
कोई अदना हो, या हो सिकंदर ।
जनता कर्फ्यू ही माध्यम है,
जिससे हम सब बच सकते हैं ।
आओ मिलकर हम करें पुकार,
यदि करते हैं अपनों से प्यार,
तो दूरियां रखें बरकरार ।।
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जन्मेजय कु0पाण्डेय
ग्राम शिव नगरी
थाना मुफस्सिल
छपरा सारण
बिहार ।
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