रंगकर्मियों के लिए एक उपहार है यह पुस्तक - सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटक - पंकज सोनी

SHARE:

रंगकर्मियों के लिए एक उपहार है यह पुस्तक - पंकज सोनी पुस्तक - सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटक कहानीकार- पंकज सुबीर, नाट्य रूपांतरण- नीरज गो...

रंगकर्मियों के लिए एक उपहार है यह पुस्तक - पंकज सोनी

पुस्तक - सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटक

कहानीकार- पंकज सुबीर, नाट्य रूपांतरण- नीरज गोस्वामी


प्रकाशन : शिवना प्रकाशन, पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, सीहोर, मप्र, 466001, दूरभाष- 07562405545

प्रकाशन वर्ष - 2020, मूल्य - 150 रुपये, पृष्ठ - 136


हाल ही हिंदी नाटकों की एक क़िताब पढ़ी 'सुबह अब होती है.. तथा अन्य नाटक'। शिवना प्रकाशन की यह किताब सुप्रसिद्ध लेखक पंकज सुबीर की चार कहानियों का नाट्य रूपांतरण है। नाट्य रूपांतरण किया है सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और लेखक नीरज गोस्वामी ने। इन चारों कहानियों को मैं पहले ही पढ़ चुका था। और चारों ही मेरी पसंदीदा कहानियाँ हैं। किसी कहानी को मैं उसकी समग्रता में पसंद करता हूँ। मसलन उसमें निहित सामाजिक सोद्देश्यता, रोचकता, कहानीपन और चूंकि नाटकों की दुनिया से जुड़ा हूँ तो उसमें नाटकीय तत्वों का होना बेहद जरूरी है,जो कि पंकज सुबीर की लगभग हर कहानी में होते ही हैं। चारों ही कहानियाँ मन को झकझोर देती हैं। जिन पर लंबी चर्चायें की जा सकती हैं। चूंकि मैं समीक्षक नहीं हूँ। सिर्फ एक रसिक पाठक हूँ। पर बतौर रंगकर्मी उसे एक अलग नजरिये से जरूर देखता हूँ। मेरा मानना है कि एक सजग रंगकर्मी को पढ़ने की आदत एक साहित्यकार से भी ज्यादा होनी चाहिये। क्योंकि यही उसकी बौद्धिक ख़ुराख है। एक बिन पढ़ा अभिनेता , रंगकर्मी कम रंगकर्मचारी ज्यादा लगता है।

हिंदी नाटकों में नई और अच्छी पटकथा का सर्वथा अभाव देखा गया है। उसका कारण भी यही है कि नाट्य आलेख अब कम ही लिखे जा रहे हैं। एक अच्छी पटकथा वही है। जिसका मंचन संभव हो। और पटकथा लिख पाना तभी संभव है जब पटकथा लेखक के रंगकर्मियों से ताल्लुक़ात हों या लेखक खुद ही रंगकर्मी हो। हिंदी साहित्य के कथा सागर में अथाह मोती हैं। बस डुबकी लगाने की ही जरूरत है। नीरज गोस्वामी अखंड पाठक हैं। उन्होंने कथा सागर में डुबकी लगाई और पंकज सुबीर की कहानियों के चार मोती चुन लिये।

पटकथा लेखन बहुत ही श्रम साध्य काम है। यह इतना कठिन काम है कि आपको रस से लबालब भरे एक प्याले को हाथों में थामे एक नट की तरह रस्सी पर चलना है और मजाल है रस की एक बूंद भी छलक जाय। यह बहुत बड़ी चुनोती है कि आपको किसी कहानी का नया शरीर गढ़ना है लेकिन उसकी आत्मा को मारे बगैर। दरअसल पटकथा लेखक मूल कहानी की व्याख्या ही कर रहा होता है। नाटककार का बौद्धिक स्तर एक विचारक की तरह ही होना चाहिए। क्योंकि विचारों के विस्तार का ही दूसरा नाम पटकथा है। रचना संसार मे कोई पुरुष नहीं होता वहाँ सिर्फ माँयें ही होती है। क्योंकि सृजन भी जन्म देने की तरह है। विचार भी भ्रूण की तरह विकसित होते हैं। उस दौरान सृजनकार भी उतनी ही प्रसव वेदना से गुजरता है जितनी कि कोई माँ गुजरती है। यदि मूल लेखक उस रचना की माँ है तो उस रचना के नाटककार का दर्जा भी सेरोगेट मदर से कम नहीं है। क्योंकि वो किसी और के बच्चे को अपनी कोख में पाले उसे अपने रक्त मज्जा से सींच रहा होता है। वो भी प्रसव वेदना से गुजरता है। हो सकता है, उस संतान में उसके जीन्स का भी हिस्सा आ जाता हो।

नाट्यलेखन एक स्वतंत्र विधा है। किसी कहानी का नाट्य रूपांतरण एक प्रकार का transcreation है। इसमें एक विधा दूसरी विधा का रूप ले रही होती है। इसलिये नाट्य रूपांतरण का मूल लेख से कम योगदान नहीं होता है। कई बार वो मूल रचना से भी महान रचना हो जाती है। भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' पर बनी गोविंद निहलानी की कृति 'तमस' इसका बेहतरीन उदाहरण है। पंकज सुबीर की इन चारों कहानियों के लिये भी यही कहा जा सकता है कि उनकी कहानियां तो श्रेष्ठ हैं ही उनके नाट्य रूपांतरण भी श्रेष्ठ हैं। और इसका श्रेय नाटककार नीरज गोस्वामी को जाता है। चारों नाटकों पर विस्तार से बात करना जरा मुश्किल है। इसलिये संक्षिप्त में ही लिख रहा हूँ। पहला नाटक है , ' सुबह अब होती है..., इसी नाम से पंकज सुबीर की रहस्य से भरपूर कहानी है। हंस ने रहस्य विशेषांक निकाला था जिसमें यह कहानी पुरुस्कृत हुई है। हिंदी साहित्य में रहस्य कथाओं को दोयम दर्जे का माना जाता रहा है। जिसे बाज लोग छुपकर पढ़ते हैं। लेकिन यही साहित्य जब अंग्रेजी में हो तो वो ड्रॉइंग रूम में शान से रखा जाता है। वो स्टेटस सिंबल बन जाता है। अपराध कथाओं को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं क्योंकि अपराध समाज का हिस्सा हैं। जब तक समाज में असमानता है। निर्धनता है। जात-पात या अन्य किस्म का भेदभाव है। अपराध होते रहेंगे। 'सुबह अब होती है... है तो रहस्य कथा पर यह अपराध के कारण और उसके मनिविज्ञान पर बात करती है। यह अंतहीन घुटन की कहानी है।

कुछ लोग अति से ज्यादा परफेक्टनिस्ट होते हैं। उन्हें हर चीज अनुशासित और नियम पूर्वक चाहिये। उनकी यही आदत उन्हें सनकी और ख़बती बना देती है। वो यह भूल जाते हैं कि इस दुनिया में कोई भी चीज परफेक्ट नहीं होती। कुदरत उनके बनाये नियमों से नहीं बल्कि अपने नियमों से चलती है। उसके अपने अनुशासन हैं। जब वो अपने अनुशासन दूसरों पर थोप देते हैं। उन्हें अहसास ही नहीं होता कि वो उनके जीवन को कितना कष्टप्रद बना देते हैं। ऐसे नमूने हर दो चार परिवार में मिल जाते हैं। उन्हें हर चीज यथास्थान चाहिये। वो इस हद तक यथास्थितिवादी होते हैं कि उनका बस चले तो वे मौसमों को भी बदलने से रोक दें। जबकि परिवर्तन संसार का नियम है। संसार में शाश्वत यदि कुछ है तो वो है खुद परिवर्तन। यह कहानी एक सस्पेंस के साथ आगे बढ़ती है। थाने में एक गुमनाम चिट्ठी आती है जिसमें लिखा होता है कि फलां कॉलोनी में एक बुजुर्ग की मौत हुई है वो स्वभाविक मौत नहीं है बल्कि हत्या है। बस उसी तफ़्तीश में कहानी परत दर परत खुलती है। जितना अच्छा शिल्प पंकज सुबीर ने गढ़ा है उससे एक इंच भी कम नहीं है नाटक का शिल्प। बल्कि नाटककार ने उसको शरीर और आवाज देकर उसमें प्राण ही फूंके हैं।

दूसरा नाटक है, 'औरतों की दुनिया ' यह दुनिया यदि औरतों ने बनाई होती शायद ज्यादा बेहतर होती। शिकार युग से ही मर्दों ने औरतों की खूबियों को पहचान लिया था। उन्हें अपनी सत्ता छीने जाने का डर था। उसने उस पर चौका चूल्हा और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी से बांध दिया। यहाँ तक कि उस पर अपना सौंदर्यबोध भी थोप दिया। वो अपने श्रृंगार में कुछ यूं उलझी की उसे पता ही नहीं चला कि वो अपनी चोटी से ही बंध कर रह गयी। हज़ारों सालों से औरतों से मर्दों ने सत्ता कुछ यूं छीनी की दुनिया में उनके लिये कोई जगह ही छोड़ी। मजबूरन औरतों की अपनी अलग दुनिया है। उस दुनिया में प्रेम है, समर्पण है, ममता है। वहाँ घृणा नहीं है,नफरत नहीं है,छल कपट नहीं है,वासना नहीं है। वे किसी का अपमान नहीं करती हैं। किसी का हक नहीं छीनती है। उनमें दुःख बर्दाश्त करने की अद्भुत छमता है। पुरुषों ने केवल छीना है। जीता है। तमाम युद्ध औरत की छाती पर ही लड़े जाते हैं। सुहाग भी औरत का ही मिटता है। गोद भी औरत की ही उजड़ती है। किस्सा कुछ यूँ है कि एक शहरी नौजवान को लगता है कि गाँव में रहने वाले उसके सगे चाचा ने चालाकी से विरसे में मिली पैतृक संपत्ति में उनके हिस्से की जमीन को हथिया लिया है। सो वो मामले को कचहरी तक ले गया। परिवार के सभी लोग उसके इस कदम के ख़िलाफ़ हैं,ख़ासकर औरतें। आगे कहानी कुछ यूं मोड़ लेती है। जिनके ख़िलाफ़ अदालत में केस लगाया है। उन्हीं के घर पर रह रहे हैं। उन्हीं के घर का बना हुआ खा रहे हैं। खाना खाते हुए प्यार मनुहार, शिक़वे शिकायतें चलती हैं। नौजवान को लगने लगता है कि घर के मामले को कचहरी तक ले। जाकर उससे वाकई गलती हो गयी। चाची सिर्फ चाची ही नहीं होती वो दोस्त और माँ दोनों ही होती है। चाचा एक ऐसा पिता होता है जिससे दोस्तों जैसा नाता होता है। जो बातें पिता से भी नहीं बोली जा सकती वो चाचा से शेयर की जा सकती हैं। झूठा अहम और लालच यदि न हो तो यह रिश्ता

बहुत ही पवित्र होता है। नाटक के क्लाइमेक्स में एक सीन है। नौजवान पश्चाताप के आँसू बहा रहा है। उसकी चाची भावुक होकर कहती है " अब चुप कर मुन्ना बस कर । जो हुआ सो हुआ। पहले ही घर आ जाता बेटा तो इत्ते साल तो दुःख में न बीतते। अच्छा हुआ जो आज तूने औरतों की दुनिया में झाँकना सीख लिया। काश, अगर सब हमारी इस दुनिया की झलक पा लें तो दुनिया से नफऱत जड़ से ख़तम हो जाए। " तीसरा नाटक है 'कसाब.गाँधी@यरवदा.in ' यह कहानी पंकज सुबीर की सबसे ज़्यादा चर्चित कहानी है। पहली बार जब इसे पढ़ी थी तब से ही यह जेहन में घूम रही थी। इसको लिखने के लिये लोहे का ज़िगर चाहिये। ज्ञात हो कि अज़मल क़साब ने जेल में गाँधी की जीवनी पढ़ी थी। और पूना की यरवदा जेल की जिस बैरक में वो कैद था वहाँ कभी मोहनदास करमचंद गांधी भी कैद थे। कथाकार का यह जीनियस है कि वो कल्पना करता है कि फांसी की आख़िरी रात क़साब को आभास होता है कि उसके साथ बैरक में कोई और भी है। वो और कोई नहीं बल्कि खुद महात्मा गांधी हैं। कहानी में अज़मल क़साब और गाँधी का लंबा वार्तालाप है। कहानी का जिस्ट यह है कि आतंकवादी पेड़ पर नहीं उगते हैं। वो भी व्यवस्था की ही उपज होते हैं।

इस दुनिया में अमीर और गरीब की लंबी खाई का नहीं बल्कि जमीन और आकाश का अंतर है। जहाँ एक ओर एक अमीर आदमी अपनी पत्नी को तोहफे में पाँच हज़ार करोड़ का मकान बनाकर देता है। वहीं दूसरी ओर इतनी ग़रीबी है कि लोग कूड़े के ढेर से खाना बटोरते हैं। जहाँ मुट्ठी भर लोग जन्नत की जिंदगी बसर कर रहे हैं वहीं लाखों लोग जहन्नुम के कीड़ों की तरह बिलबिला रहे हैं। आज़ादी के इतने साल बाद भी देश की जनता आर्थिक गुलाम है। आज भी लाखों लोग शिक्षा,स्वास्थ्य और रोज़गार जैसी मौलिक जरूरतों से महरूम है। दूसरा यह कि आज भी बार बार गांधी को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। यहाँ भी गांधी सवालों के कटघरे में खड़े हैं और क़साब उनसे सवाल पूछ रहा है। पंकज सुबीर की कहानी जब नाटक में तब्दील होती है तब नीरज गोस्वामी का जीनियस टच उसको और महान बना देता है। नाटक में गांधी की पहचान कैदी नंबर 189 और क़साब की पहचान कैदी नंबर 7096 है। कहानी में दोनों के बीच सिर्फ संवाद है पर नीरज अपने नाटक में उसे और आगे ले जाते हैं। यहाँ कथानक में क़साब का परिवार भी आ जाता है। और बताया गया है कि कैसे गरीबी का फ़ायदा उठाकर घाघ राजनीतिज्ञ गरीबों के बच्चों से आतंकवाद जैसा घिनौने काम करवाते हैं। इसे उन्होंने नाटक में पिरोया है।

नाटक में अज़मल क़साब की माँ का एक संवाद है। "क्यों है इतना खून ख़राबा क्यों? मैं कहती हूँ अगर मांओं के हाथ में यह दुनिया सौंप दी जाये, तो ये सारा खून-ख़राब ये सारी हिंसा ही रुक जाये। मगर आप लोग ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि माँएँ इस दुनिया को बदल देंगी। वो बुहार देंगी दुनिया के नक्शे पर खींची गई सारी लकीरों को,इधर से उधर तक सब एक सा कर देंगी। झाड़ू लेकर साफ कर देंगी सारी बारूदों को और फेंक आएंगी उसे कूड़ेदान में। वो जानती हैं कि बारूद हमेंशा किसी माँ की कोख को ही झुलसाती है। वो इस दुनिया को सचमुच रहने के काबिल बना देंगी,यदि आप ये दुनिया उन्हें सौंप दें। "पूरा नाटक इस तरह से गढ़ा गया है कि दर्शक या पाठक खुद को पात्र की तरह महसूस करने लगते हैं। आने वाले समय में लोग नीरज गोस्वामी को इस नाटक के रचयिता के रूप में जानेंगें।

चौथी और अंतिम कहानी है 'चौथमल मास्साब और पूस की रात' आप लोगों ने प्रेमचंद की पूस की रात तो पढ़ी ही होगी। यह पंकज सुबीर की लिखी पूस की रात है। ये एक शरारत भरी कहानी है। इंसान को जीने के लिये सिर्फ रोटी कपड़ा और मकान की ही नहीं और भी वगैरह की जरूरत होती है। यह वगैरह वगैरह आदिम भूख का नाम है। जिसे हम ठरक कहते हैं। जो होती तो हर किसी में है। पर स्वीकारता कोई नहीं है। इस से तो देवता,दानव यक्ष और गंधर्व भी नहीं बच पाये तो बेचारे चौथमल मास्साब तो फिर एक इंसान ही हैं। बेचारे चौथमल मास्साब घर से सौ कि.मी.दूर एक गांव में मास्टर हैं। पूरे गांव में वही एक पढ़े लिखे मनुष्य हैं। गांव में बड़ी ठाठ है उनकी। ख़ूब इज्ज़त है। बस कमी है तो उस चीज की जो इस आदिम भूख को शांत कर सकती है। सरसरी तौर पर देखो तो यह एक हल्की कहानी जान पड़ती है पर इसको गम्भीरतापूर्वक सोचो तो बड़ी असाधारण कहानी है। मजाक मज़ाक में लेखक पाठकों को एक गम्भीर मैसेज दे देता है कि कैसे रोज़ी रोटी की तलाश में अपनी पत्नी से दूर रह रहे पुरुष सेक्सुअल फ्रस्टेशन का शिकार हो जाते हैं। और दूसरा मैसेज यह है कि चौथमल मास्साब हर मर्द के अंदर होते हैं। वरना क्यों पाठक अंत तक इस कहानी को पढ़ रहे होते हैं कि आगे क्या हुआ होगा।

यही हाल नाटक पढ़ते या देखते समय होता है। दर्शक अंत तक यह जानने के लिये उत्सुक रहते हैं कि मास्साब चौथमल की पूस की रात कैसे बीती। क्लाइमैक्स में सूत्रधार दर्शकों से कहता है कि हम सब में कहीं न कहीं चौथमल मास्साब छुपे बैठे हैं जो वक्त और मौका मिलते ही बाहर आ ही जाते हैं। " इस नाटक को पढ़कर कहानीकार और नाटककार दोनों की रेंज पता चलती है की वो यदि गम्भीर कहानियाँ लिख सकते हैं तो हल्के फुल्के अंदाज में लोगों को हँसा भी सकते हैं। नाटक के संवाद बहुत ही चुटीले हैं। पढ़ते वक्त कई बार हँसी फूट पड़ती है। कुल मिलाकर जो रंगकर्मी नई स्क्रिप्ट की तलाश में रहते हैं उनके लिये यह किताब एक अच्छा उपहार है।

000

पंकज सोनी, प्लाट नं 172, साकार सिटी, ललमटिया, मंगलिपेठ, सिवनी (म.प्र.), पिन 480661

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रंगकर्मियों के लिए एक उपहार है यह पुस्तक - सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटक - पंकज सोनी
रंगकर्मियों के लिए एक उपहार है यह पुस्तक - सुबह अब होती है... तथा अन्य नाटक - पंकज सोनी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQnA2kV9p5MhDbPyAYat_DdUcuJ5Vk0m8JDJeC3TZkgVq98SEKhzt2VVGdv7KWek9-tGMHMv1PosKTaFNh0Fkd-nbu2puf7is435LTPcLLcq7MRd-FaMvW4jb-0qiLjKG2sNDy/s320/SUBHA+AB+HOTI+HAI+THUMB-748954.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQnA2kV9p5MhDbPyAYat_DdUcuJ5Vk0m8JDJeC3TZkgVq98SEKhzt2VVGdv7KWek9-tGMHMv1PosKTaFNh0Fkd-nbu2puf7is435LTPcLLcq7MRd-FaMvW4jb-0qiLjKG2sNDy/s72-c/SUBHA+AB+HOTI+HAI+THUMB-748954.JPG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/03/blog-post_81.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/03/blog-post_81.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content